RE: non veg kahani व्यभिचारी नारियाँ
“ठहर साली... तू तो नशे में खुद को संभाल ही नहीं पा रही है... यू विल नीड सम सप्पोट, कहते हुए शाजिया भी झुमती हुई खड़ी हुई। उसकी खुद की हालत नजीबा से । ज्यादा अच्छी नहीं थी। वो बूरी तरह लड़खड़ाती छप्पर के दूसरे कोने में गयी जहाँ काफी सारा पुराना बेकार सामान पड़ा था। वहाँ उसे एक छोटा सा लकड़ी का तिपाया स्टूल दिखायी दिया तो उसने उसे उठाने की कोशिश की। जो औरत नशे में ठीक से चलने के भी काबिल नहीं थी वो उस स्टूल को कैसे उठाती। उसने नजीबा को बुलाया जो इतनी देर में फिर से गधे का लंड चाटने-चूमने लगी थी।
“अरे इधर आ... हेल्प मी विद दिस स्टल... साली चुदैल... लीव दैट डिक फोर ए मोमेंट..." शाजिया भुनभुनाती हुई बोली।
नजीबा ने बे-मन से गधे का लंड छोड़ा और ऊँची ऐड़ी की सैंडल में खटखट करती नशे में लड़खड़ाती हुई शाजिया के पास गयी। फिर दोनों किसी तरह गिरती-पड़ती वो स्ट्रल घसीटती हुई गधे के पास लायीं फिर नजीबा उस स्टूल को गधे के नीचे ठेल कर, अपनी कमर पीछे झुका कर उस छोटे से तिपाया स्टूल पर बैठ गयी। उसके सैंडल ज़मीन पर सपाट टिके थे और उसकी जाँचें और चूत ठीक उस गधे के विशाल लंड के सुपाड़े के स्तर पर थी। उसकी जाँचें चौड़ी खुली थीं और उसकी चूत गरम कढ़ाई की तरह थी खुली थी - चूत की गुलाबी पंखुड़ियाँ चौड़ी फैली थीं और चूत की तहें चूत-रस से भिगी हुई थीं।
शाजिया ने झुक कर नजीबा की क्लिट पर सात-आठ बार अपनी जीभ फिरायी। नजीबा उसकी जीभ का मज़ा लेते हुए उस लकड़ी के स्टूल पर कुलबुलायी पर वो लंड के लिये बेकरार थी।
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“इसका लंड मेरी चूत में घुसेड़ दे, शाजिया, नजीबा ने निवेदन किया।
शाजिया ने कुहनी मोड़ कर अपनी बाँह लंड के सुपाड़े के बिल्कुल पीछे से लंड की छड़ के इर्द-गिर्द लपेट कर वो काला लंड अपनी सहेली की जाँघों के बीच में ठेल दिया। जब नजीबा को अपनी खुली चूत पर गरम लंड टकराता महसूस हुआ तो वो ठिनठिना उठी। उसकी क्लिट से भाप सी उठ रही थी और चूत भी गरम हो कर दहक रही थी। उसकी जाँचें और चूत के आसपास का हिस्सा चूत-रस और थूक से तर था और गधे के लंड का सिरा धड़कता हुआ उसकी जाँघों के बीच में फिसलने लगा। नजीबा ने सिर उठा कर अपनी चूचियों के बीच में से नीचे झाँका। गधे के लंड का सुपाड़ा उसे अपनी जंघाना से। भी बड़ा प्रतीत हुआ और हालांकि वो शाजिया को उससे चुदते देख चुकी थी, फिर भी उसे पूरा विश्वास नहीं था कि वो लंड उसकी चूत में अंदर नहीं समा सकेगा।
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पर शाजिया तो बेहतर जानती थी। गधे के लंड को अपनी कुहनी के मोड़ में जकड़े हुए, शाजिया ने दूसरा हाथ नजीबा की चूत पर ले जाकर अपनी अंगुलियों और अंगूठे से नजीबा की चूत की पंखुड़ियाँ इस तरह फैलायीं जैसे कि एलास्टिक का बैग खोल रही हो। फिर शाजिया अपनी सहेली की चूत की लचीली पंखुड़ियाँ गधे के लंड के सुपाड़े पर खींचने लगी। नजीबा आहें भरने लगी। उसकी चूत रबड़ की तरह लंड पर खिंच रही थी और चूत की पंखुड़ियाँ फैल कर तरंगित होने लगी। शाजिया ने थोड़ा सा पीछे खींच कर अपनी कुहनी से फिर वो लंड नजीबा की चूत में आगे धकेला। लंड का सिरा अंदर गया और उसके पीछे बड़ा सा सुपाड़ा नजीबा की चूत की लचीली तहों में से धीरे से अंदर फिसल गया। गधे के लंड का काला बड़ा सुपाड़ा पूरा अलोप हो गया।
होली शिट” नजीबा ने आह भरी जब उसे अपनी चूत के अंदर गधे के लंड का गरम मोटा सुपाड़ा धड़कता हुआ महसूस हुआ। उसकी चूत की पंखुड़ियाँ लंड की शाख पर पट्टे की तरह कस कर जकड़ गयीं और मलाईदार चूत के अंदर फड़कती टोपी के नीचे उस लंड-शाख को खींचने और चूसने लगीं।
और..और लंड घुसेड़ो... गिव मी मोर..” वो चुदैल औरत चिल्लाने लगी।
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शाजिया ने अपनी सहेली की चूत छोड़ दी और अपनी बांहें नीचे ले जाकर उसके चूतड़ों को पकड़ लिया। गधे ने एक झटका दिया तो नजीबा के नीचे का लकड़ी का स्टूल अपने तीन पायों पर चरमाराता हुआ खिसकने लगा। किंतु शाजिया ने अपनी सहेली को एक जगह। स्थिर पकड़ा हुआ था। गधे ने फिर एक झटका लगाया और अपना लंड और दो-तीन इंच नजीबा की चूत में ठेल दिया। नजीबा का सिर अब स्टूल से नीचे ज़मीन पर टिका था और वो मस्ती और विस्मय से अपना सिर झटका रही थी। उसकी चूत की दीवारें चौड़ी, और चौड़ी फैल कर गधे के लंड के सुपाड़े और शाख के इर्द-गिर्द सांचे की तरह ढल रही थीं। चूत की पेशियाँ भी तरंगित हो कर लंड पर खिंचाव डाल रही थीं।
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