RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
उस रात बरसात भी अपने उफान पे थी हम भी एक होके अपने विवाहित जीवन की शुरुआत कर रहे थे , हमारी मोहब्बत का तूफान आकर थम चूका था पर ये बारिश न थमी थी ,सुबह जब मेरी आँखे खुली तो मैंने देखा की पलंग पर मेरे साथ पूजा नहीं थी,
आँखे मलते हुए मैं उठा और देखा की बाहर अभी भी तेज बारिश हो रही है मैंने कपडे पहने और पूजा को आवाज दी पर हवेली मेंरी आवाज ही लौट के आयी जवाब न लायी साथ में, अब ये कहा गयी
बार बार उसको आवाज दी पर हवेली जैसे हमेशा की तरह उसी गहरे सन्नाटे में डूबी हुई थी, कुछ चिंता सी हुई मुझे पर पूजा अक्सर पहले भी ऐसे ही चली जाती थी तो मैंने ध्यान न दिया मैं वापिस कमरे में आया तो देखा की कल उसने जो दुल्हन का जोड़ा पहना था वो पास ही एक मेज पर रखा था ,
पता नहीं क्यों मेरे अंडर से एक आवाज सी आ रही थी की हवेली की तलाशी ली जाये पर मुझे याद आया की छज्जे वाली मेरा इंतज़ार कर रही होगी वैसे तो जबर बरसात हो रही तो पर दिल के रहा था की वो होगी वही पे,
तो मैंने गाड़ी ली और कुछ ही समय पश्चात मैं वही पहुच गया जहाँ उससे मिलने का वादा किया था,उसी तिबारे के नीचे वो मेरा इंतज़ार कर रही थी मैंने गाड़ी का दरवाजा खोला और वो बैठ गयी
मैं- बारिश की वजह से थोड़ी देर हो गयी
वो- कोई नहीं, वैसे हम जा कहा रहे है
मैं- एक तलाश पर
वो- कैसी तलाश
मैं- बताता हु
और फिर उस घर तक के सफर में मैंने उसे शुरू से लेके आज तक की पूरी बात बता दी की कैसे ये सब आया हुआ, कैसे ज़िन्दगी के सब रंग धूमिल हो गए कैसे सब उजड़ गया।
वो बेहद ख़ामोशी से सब सुनती रही जैसे समझने का प्रयास कर रही हो , और फिर मौसम ने भी जैसे आज ठान ही लिया था कि आज वो अपनी ताकत दिखा के रहेगा जैसे तैसे हम वहाँ तक पहुचे गाड़ी से उतरने और दरवाजे तक पहुचने में ही हम भीग गए थे,
ताला तोड़के हम अंदर आये ये तीन कमरो का एक मकान था और देख कर लगता था की कई दिनों से कोई आया नहीं था यहाँ, धूल भरे जाले चारो तरफ थे हमने टोर्च जलायी और आस पास देखने लगे,
वो- यहाँ तो कुछ भी नहीं
मैं- अक्सर जो होता है वो दीखता नहीं राणाजी ने यहाँ का पता दिया तो कुछ सोच कर ही दिया होगा
वो- हम्म, एक एक कमरे को अच्छे से देखना पड़ेगा फिर तो
मैं- हां, चलो शुरू करते है , बस कोई सुराग मिल जाए
पहले दो कमरों में सिवाय धुल और पुराने कमरे के कुछ न मिला पर तीसरे कमरे ने हमारे होश उड़ा दिए, उसने सोचने पे मजबूर कर दिया ये पूरा कमरा साफ सुथरा था , हर चीज़ सलीके से रखी गयी थी
छज्जे वाली- कोई रहता था यहाँ
मैं- हां
तभी मुझे दिवार पे कुछ तस्वीरें थी ये बिलकुल वैसे ही थी जैसे राणाजी के तहखाने में थी राणाजी, अर्जुन, पद्मिनी और मेनका उनके जवानी के दिन अब राणाजी को आखिर क्या लगाव था इन तस्वीरो से ,
मैं गौर से पद्मिनी की तस्वीर को देख रहा था पूजा काफी हद तक वैसे ही दिखती थी उत्सुकता वश मैंने वो तस्वीर उतार ली और तभी उसके साथ एक डायरी सी भी नीचे गिर पड़ी मैंने तस्वीर को पलंग पर रखा और डायरी को उठाया
कुछ पन्ने खाली थे और फिर राणाजी की लिखाई शुरू हुई
"कुंदन," हमे मालूम है की जब ये डायरी तुम्हारे हाथो में आएगी तो तुम किस हद तक बेचैन रहोगे, पर हमारे पास वो हिम्मत नहीं थी की तमाम सच तुम्हारी आँखों में आँखे डाल कर बता सके , इसलिए इन कागज़ों का सहारा लेना पड़े , हो सकता है कि जब ये दस्तावेज तुम तक पहुचे हम रहे न रहे पर इतना जरूर होगा की सच तुम्हारे पास होगा,
तुम्हारी ही तरह ठीक तुम्हारी ही तरह मैं भी ऐसा था, अल्हड मस्तमौल्ला मेरे जीवन में अगर कुछ था तो मेरा मित्र अर्जुन , जिंदगी के न जाने कितने पल हमने साथ जिए पर समय से साथ हमे एक ऐसी लत लग गयी जिससे हमारे कदम सिर्फ बर्बादी की ओर बढ़े
अपनी हवस में हमने न जाने कितनी ज़िन्दगानिया बर्बाद कर दी,
पर वक्त ने हमे भी मौका दिया हमारे जीवन में प्रेम आया और हम दोनों दोस्तों ने फैसला किया की चीज़ों को सुधारने की और जीवन को एक नए सिरे से शुरू करने की, अरजून पद्मिनी के साथ ग्रहस्थी बसा चूका था, पर हमारे नसीब में कुछ और था ,तुम्हारे दादाजी के दवाब में तुम्हारी माँ से ब्याह करना पड़ा,
पर मन में मेनका बसी थी जीवन बस अस्त व्यस्त होने को था पर अर्जुन और पद्मिनी ने एक रास्ता निकाला की मेनका से विवाह कर लूं कर उसे दुनिया से छुपा कर रखा जाये और ऐसा ही हुआ, हमारी दोहरी ज़िंदगी शुरू हो गयी थी
पर हमारी नसों में जो जहर भरा था उसका मोह न टुटा हम सुधर न पाये कभी और हमारे अंदर के जानवर ने एक बार हमें उसी रास्ते पर धकेल दिया हर नारी हमे बस भोग की वस्तु लगती , हवस जैसे सांसो जितनी ही जरुरी हो गयी हमारे लिए ,
जिसमे हर रिश्तो की मर्यादा टूटती गयी, बिखरती गयी पर समय बढ़ता गया अर्जुन भी एक बेटी का पिता बन चूका था तुम्हारे भाई बहन भी इस दुनिया में आ चुके थे,
पर मेरे दिल में बोझ था एक दोहरी ज़िन्दगी का जिसे मैं उतार के फेंक देना चाहता था, पर क्या ये सब आसान था, इस बीच एक ऐसी घटना हो गयी जिसने सब कुछ बदल दिया पद्मिनी की मौत हो गयी, किसी ने कहा कोई सिद्धि में चूकने से हुआ तो किसी ने कहा कि आत्महत्या कहा पर आजतक कोई न जान पाया
पर उसके जाने का असर हम सबपे हुआ, खासकर अर्जुन पे उसने खुद को डूबा लिया शराब में उसे खुद का होश न था परिवार को क्या देखता, बहुत समझाया बहुत मिन्नते की पर वो अपने गम में डूबता ही गया शराब और शबाब इसके सिवा अब कोई साथी न था उसका और हम चाह कर भी कुछ न कर सके
पर उसकी ये हालात भी देखे न जाते थे समय गुजरता गया तुम आ चुके थे औलादे बड़ी हो रही थी तो करीब तेरह साल पहले की बात है ये एक तूफ़ान ऐसा आया की जिसने सब बर्बाद कर दिया लोग सोचते है की दो दोस्त दो भाई कैसे दुश्मन बन गए की एक ने दूसरे की जान ले ली और तुम्हे भी इस प्रश्न ने अवश्य परेशान किया होगा तो आज इसका जवाब तुम्हे देता हूं
सच बहुत घिनोना होता है कुंदन इतना घिनोना की सोच से परे एक ऐसा ही सच है जो या तो अर्जुन अपने साथ ले गया या मेरे सीने में दफन है पर आज तुम्हे बता रहा हु, अर्जुन की बेटी साक्षात् पद्मिनी की ही छाया थी तरुण अवस्था में थी वो उन दिनों उस क़यामत की रात वो अपने नशे में चूर पिता को भोजन पकड़ाने गयी थी और नशे में चूर हवसी अर्जुन के हाथों ये अनर्थ हो गया ,
अपने अंश को रौंद दिया उसने अपनी ही बेटी का बलात्कार किया उसने और जब उसे होश हुआ की क्या किया उसने देर हो चुकी थी ,पद्मिनी को बहन माना था मैंने जब उसके अंश के साथ हुए इस अन्याय के बारे में मुझे पता चला तो हर रिश्ते की बेड़िया टूट पड़ी गुस्से में भरे हुए मैंने अर्जुन को ललकारा
और उसने बस इतना ही कहा मुक्त करदो मुझे इस पाप से, उस दिन अर्जुन के साथ मेरी मृत्यु भी हो गयी थी मैं तो बस उस दिन के बाद बस सांसे ही ले रहा था सब बर्बाद हो गया था मैंने बेटी को बहुत तलाशा पर न जाने कहा गायब हो गयी वो , कोई कहा मर गयी कोई बोला चली गयी पिछले 13 साल से उसकी तलाश ने जिन्दा रखा हमे पर कामयाब ना हुए पद्मिनी के अंश की हिफाज़त न कर सके हम
तमाम उम्र उस बच्ची की तलाश करते रहे पर मिली नहीं वो पर वक़्त हर किसी को एक मौका और देता है मेनका भी तंत्र ज्ञाता थी किसी पुराणी सूत्र से उसे एक ऐसी सिद्धि का पता चला जिसमे
सिद्ध होने से वक़्त के कुछ पलों को बदला जा सकता है
सुनने में अजीब है पर हमने चूँकि पद्मिनी को देखा था तो दिल में आस जागी पर ये सिद्धि ऐसे नहीं हो सकती थी इसमें किसी पुरुष को अपनी ही बेटीयो से सम्भोग कर उस रस का भोग देना होता था शुरूआती चरण में बार बार ये ही प्रकिर्या दोहरायी जाती
पर चूँकि पद्मिनी को वचन दिया था कि उसकी औलाद की हिफाज़त हमारी जिम्मेदारी थी और ठाकुर हुकुम सिंह वचन की रक्षा न करने का बोझ लिए मरना नहीं चाहते थे तो हमने अपनी गैरत अपना सर्वस्व सब दांव पे लगा दिया और बुरे हद से ज्यादा बुरे बन गए
अपनी बेटी कविता के साथ हम बिस्तर हुए, हमे हर पल मालूम था जस्सी हमारा ही खून है पर हिमे उसे बहु बनाके लाये और फिर उसे भी मजबूर किया पर वो हमारे प्रयोजन को भांप गयी और हमने ही मेनका को तुम्हारे साथ वो सब करने को कहा था
तुम्हारी नजरो में ये सब गलत है पर ये जीवन बहुत ही क्रूर होता है हमारी दुनिया थी ही कहा अर्जुन के बिना ये जो बोझ लेकर मैं पल पल मर रहा था न बूढ़े होते काँधे अब थकने लगे थे मैं सब कुछ सही कर देना चाहता था ववत के उस एक लम्हे को बदल के पर किसी वीरांगना ने वो प्रयास विफल कर दिया
और ये साधना बस एक बार ही करी जा सकती है हुआ तो ठीक नहीं तो नसीब ,मैंने अपना सब कुछ लगा दिया पर किसी के सशक्त प्रयास मेरी आस तोड़ दी, अब इस जीवन का क्या फायदा जब प्रयोजन ही नहीं रहा तुमने जब लाल मंदिर की चुनोती दी मैंने तुम्हारी सुलगी आँखों में खुद की छवि देखि पर मेरी इतनी हिम्मत नहीं थी की आँखों में आँखे डाल के तुम्हारा सामना कर सकू, ये सब तुम्हे बता सकू
पर गर्व है की मेरी विरासत काबिल हाथो में देके जा रहा हु, मैं समझता हूं दो दो बेटियों का जीवन बर्बाद करके एक बेटी को पाना मूर्खतापूर्ण ही है पर शायद मैं पद्मिनी का क़र्ज़ चूका पाता जो राखी के रूप में मेरी कलाई पे बंधा था, अगर मैं खुद बर्बाद होकर भी उसके अंश को आबाद कर पाता तो खुद को सफल मानता पर कुंदन अब तुम्हे उसे तलाशना होगा उसे उसका हक़ देना होगा यही मेरी अरदास है तुमसे, आयात को ढूंढो आयात को घर ले आओ , ले आओ उसे
इसी के साथ डायरी मेरे हाथों से छूट के गिर गयी आँखों से अश्रुधारा बह चली सोचने समझने की क्षमता ने जैसे जवाब दे दिया था छज्जे वाली ने डायरी उठाई और अपनी ऊँगली दरवाजे के पास करते हुए बोली- ये आयत है
मैंने देखा उसका इशारा पूजा की तस्वीर की ओर था
मैं- ये नहीं है ये तो पूजा है आयत तो तुम हो न
वो- किसने कहा मैं तो पूजा हु , आयात तो ये है न ये मुझे मिल चुकी है करवा चौथ की रात और फिर उसने उसकी और पूजा( आयात) के बीच हुई मुलाकात के बारे में बताया
मैं तो जैसे बेहोश ही होने को आया ये कैसे हो सकतस था जिसे मैं आयात समझता था वो पूजा थी और पूजा आयत ,ये कैसा खेल खेला था उसने मेरे साथ
मैं- झूठ कहती हो तुम
पूजा- मुझे क्या मिलेगा आपसे ऐसा कहके
पर मेरे पास और भी तरीके थे ये साबित करने के की मैं सही था मैंने छज्जेवाली को लिया और साथ में दरवाजे के पास लगी तस्वीर भी ले ली और गाड़ी को ले उड़ा घंटे भर बाद हम उस कैसेट वाले के पास थे
कैसेट वाला- आओ ठाकुर साहब आज यहाँ का रास्ता कैसे भूल गए
मैं- गौर से देख इस लड़की को ये ही वो आयात है न जो कैसेट भरवाने आती थी
वो- न जी ये तो पूजा है आप तो जानते ही है न
मैंने तस्वीर रखी और वो तुरंत बोला- ये ही है आयात
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