RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मेरी आँखों के सामने कामिनी खड़ी थी लाल जोड़े में सजी हाथो में पूजा की थाली लिए ,वो कामिनी जिसने खुद मुझे बताया था की वो विधवा हो गयी बरसो पहले तो फिर आज वो क्यों दुल्हन के लिबास में थी, क्यों उसकी मांग में आज सिंदूर था क्यों हाथो में चुडिया थी क्यों।और सबसे बड़ी बात वो इस समय अर्जुनगढ़ की हवेलिया में क्या कर रही थी
कामिनी- तुम्हारा हैरान होना लाज़मी है कुंदन
मैं- आप मेरा मतलब ये सब क्या, कैसे
वो- मैं तुमसे भी पूछ सकती हूं कि यहाँ तुम कैसे, क्यों पर ये ठीक नहीं होगा क्योंकि कही न कही हम लोगो को ऐसे, इन कुछ कठिन सी परिस्तिथियों में टकराना ही था ,है ना
मैं- कमसेकम मैं आपकी मौजूदगी तो यहाँ नहीं सोच रहा था
वो- तो इस वीरान इस बरसो से खंडहर पड़ी ईमारत में किसका इंतज़ार था तुम्हे
मैं- उसका जिसने देवगढ़ से यहाँ तक सुरंग बनवायी
कामिनी- अपनी उम्र से बहुत तेज हो तुम कुंदन जब तुम्हे पहली बार देखा था तभी समझ गयी थी पर कोई बात नहीं, देर सवेर तुम्हे पता चल ही जाना था
मैं- पर महत्वपूर्ण ये है की आप इस हवेली में क्यों है
कामिनी- मुझे लगा था की तुम सब समझ गए हो, तुम्हे सब समझ जाना चाहिए था जब तुम पहली बार अनपरा आये थे , बेशक तब भी तुम कुछ सवाल लेकर आये थे और आज भी तुम सवालो में उलझे हो
मैं- सही कहा पर आज मैं अपने हर सवाल का जवाब आपसे जान कर रहूँगा
कामिनी- मुझे भी ऐसा ही लगता है की वक़्त आ गया है
मैं- तो आप यहाँ कैसे
वो- हर साल सिर्फ इसी दिन इसी समय मैं यहाँ आती हु
मैं- क्यों
वो- क्योंकि आज करवा चौथ है , माना कि बूढ़े होने लगे है पर फिर भी दिल है की मानता नहीं
मैं- तो उस दिन झूठ क्यों बोला
कामिनी- क्योंकि कभी कभी झूठ सच से ज्यादा फायदेमंद होता है खासकर उस स्तिथि में जिसके लिए जूठ बोला गया वो भी अपना हो और जिसके लिए सच छुपाया वो भी अपना
मैं- आज बातो की चाशनी में नहीं फिसलूंगा मैं
वो- सुबह से निर्जला हु मैं भी आज झूठ नहीं बोलूंगी कुंदन वचन देती हूं
मैं- आखिर ये हो क्या रहा है ये रिश्तो की उलझन ये दुश्वारियां क्यों आज अपने ही शक के घेरे में है
कामिनी- क्योंकि प्रेम का नाश हो रहा है धीरे धीरे और जाने अनजाने सबके पैर धंसे है लालच और हवस के कीचड में ,अब औरो का क्या ज़िक्र बस तुम और मैं अपनी बात ही ले लेते है
कामिनी की बात में जो व्यंग्य था उसे समझ लिया था मैंने
मैं- हां ये सच है, पर बाते वर्तमान की नहीं अतीत की है आप वैसे किसके लिए आई थी यहाँ ,ठाकुर जगन सिंह के लिए क्या
वो- तो फिर हम उसकी हवेली में जाते यहाँ नहीं, और कुंदन लाशें कब से किसी को इंतज़ार करवाने लगी
मैं- तो आपको पता चल गया
कामिनी- मैंने ही मारा था उसको, मैंने ही
कामिनी की बात ने मेरे सारे दिमाग को हिला दिया था आखिर क्या वजह आन पड़ी थी जगन सिंह को मारने की
मैं- पर क्यों ,ऐसा क्या हुआ जो जान ही ले ली उसकी
कामिनी- उसको मरणा ही था , क्योंकि उस रात वो न मरता तो तुम मरते, उसने पूरी साज़िश कर ली थी तुम पर हमला करने की
ये कामिनी का एक और धमाका था
मैं- पर मैं ,वो क्यों मारना चाहता था मुझे
कामिनी- क्योंकि तुम उसके झांसे में नहीं आ रहे थे यहाँ तक की वो अपनी लड़की भी तुम्हे देने को तैयार हो गया था पर तुम माने नहीं, और वसीयत का जो डंडा तुमने अड़ाया था वो रस्ते पर आ जाना था तो क्या करता वो
मैं- पर अर्जुन सिंह की तलवार और मेरे भाई की घडी वहां
कामिनी- दरअसल हुकुम सिंह उस रात मेरे साथ था हम कुछ समय पहले लाल मंदिर में मिले थे वो बहुत उदास था तो अर्जुन की तलवार से मन बहला रहा था पर जैसे ही उसे पता चला की जगन क्या गुल खिला रहा है गुस्से में तलवार हाथ में ही रह गयी, रही बात घडी की तो हुकुम अपनी औलादो को बहुत चाहता है बस इन्दर की निशानी के तौर पे रख ली जो वहां गिर गयी
मैं- बात जम नहीं रही, राणाजी अपने दोस्त की तलवार को कभी ऐसे नहीं छोड़ते
कामिनी- सही कहा पर फिर तुम्हे ये सुराग कैसे मिलते
मैंने हैरान होकर उसकी तरफ देखा
वो- ये हुकुम सिंह ही है जो तुम्हे यहाँ तक लेके आये है तुम इतिहास के जिन पन्नो की तलाश कर रहे हो वो मार्गदर्शक रहे है हर कदम पर तुम्हारे
मैं और हैरान हो गया ये सुनकर ,
कामिनी- जीवन बड़ी कठिन राह है कुंदन, जैसे एक छलावा जो दीखता है वो होता नहीं
मैं- पर पुजारी को मारने की क्या जरूरत थी
कामिनी- कौन पुजारी
मैं- लाल मंदिर का
वो- उसके बारे में कुछ नहीं पता मुझे
मैं- चलो मान लिया पर कुछ सवाल अभी भी है
वो- जैसे
मैं- ये व्रत किसके लिए रखा आपने
वो- अगर मैं ये कहु की मेरा व्यक्तिगत मामला है तो
मैं- बेशक पर एक औरत जिंदगी भर विधवा होने का ढोंग करती है और फिर एक दिन करवा चौथ को एक सुहागन के रूप में मिलती है अजीब नहीं है कुछ
वो- मेरे लिए नहीं क्योंकि इस सिंदूर की बहुत बड़ी कीमत चुकाई है मैंने अगर देख सको तो इस सिंदूर के नीचे खून से सनी हुई मुझे देखो, और खून गैरो का नहीं अपनों का है, उन अपनों का जो जी गए और हमे सजा दे गए जीने की
मैं- पहेलिया नहीं कामिनी की पहेलिया नही मुद्दे पे आइये
कामिनी- सच का कड़वा घूंट पि सकोगे कुंदन तुम बोलो अगर हां तो फिर तैयार हो जाओ गैरत के उस दरिया में उतरने को जहा आत्मा तक सड़ जाती है
मैं- बस इतना बता दो की कौन है वो जिसके नाम का सिंदूर रंग गया एक विधवा को
कामिनी- नहीं मानोगे तुम
मैं- आज तो बिलकुल नहीं
कामिनी- तो सुनो मेरी मांग में उसका सिंदूर है जिसका खून तुम्हारी रगों में दौड़ रहा है हुकुम सिंह की ब्याहता हु मैं
कामिनी के शब्द अबतक हवेली में गूंज रहे थे जैसे किसी ने मेरे सर पर हथौड़ा मार दिया हो ये क्या कह गयी कामिनी, ये कैसा अनर्थ था ये क्या कर गयी वो मैं धम्म से फर्श पर ही बैठ गया ये कैसा धमाका कर दिया था उसने अब सब कुछ झुलसने वाला था औऱ पहली चिंगारी मुझे जलाने वाली थी
बेशक इस समय एक गहरी ख़ामोशी हमारे दरमियान थी पर कामिनी के कहे शब्द किसी भारी हथौड़े की तरह मेरे कानों में पड़ रहे थे, राणाजी की ब्याहता यानी ,यानि एक नाते से मेरी माँ नहीं ये नहीं हो सकता एक नजर मैं उसको देखता एक नजर मैं हवेली की दीवारों को,
मैंने बस अपना सर झुका लिया क्योंकि अब मायने बदल गए थे, मुझे कामिनी से ज्यादा गुस्सा अब अपने आप पर आ रहा था मेरी आँखों के सामने वो द्रश्य बार बार आ रहे थे जब मैं और कामिनी। एक हुए थे ग्लानि से डूबने लगा था मैं
मैं- क्यों, मुझसे क्यों पाप करवाया
कामिनी- तुम्हारा कोई दोष नहीं कुंदन, कुछ मेरा कसूर है कुछ नियति का
मैं- हर बात के लिए नियति की आड़ लेना ठीक नहीं
वो- तो क्या करे हम, उस रात जब उस बगीचे में जो कुछ हुआ
मैं- तो रोक क्यों नहीं दिया मुझे क्यों धकेला इस पाप के दरिया में क्यों
कामिनी- उस दिन मैं वहां हुकुम सिंह का इंतज़ार कर रही थी, पर संयोग से एक तो अँधेरे का वक़्त ऊपर से तुम्हारी कद काठी भी अपने पिता सी
मैं- अब भी बहाना, आपको पता तो चल गया था कि मैं कोई और हु
कामिनी- तब तक देर हो गयी थी कुंदन वो एक कमजोर लम्हा था
मैं- बात जंची नहीं, क्योंकि राणाजी उस दिन वहां नहीं थे, सिर्फ मैं और भाभी ही थे
वो- सही कहा तुमने, पर वो पास से गुजर रहे थे कुछ काम से तो आधी रात के लगभग आये थे
मैं- चलो मान लिया पर ये जानते हुए की मैं कौन हूं आप कौन फिर भी अनपरा में जबकि आप टाल सकती थी
कामिनी- मैंने कहा ना वो कमजोर लम्हे थे मेरे लिए जब तुम साथ थे उस समय मैं तुम्हे नहीं तुम्हारे अंदर हुकुम सिंह की छवि देख रही थी
मैं- पर अपने बेटे सामान के साथ
कामिनी- ये कहकर अब हम सिर्फ एक दूसरे पर कीचड ही उछाल सकते है, क्योंकि इस दलदल में अब हम सब धँसे है
मैं-कैसे नजरे मिलाऊँगा राणाजी से मैं
कामिनी- ये मेरा प्रश्न होना चाहिए खैर, यहाँ बात चरित्र की है ही नहीं
मैं- पर मैं कैसे जीऊंगा इस बोझ के साथ
कामिनी- जब तक पता नहीं था तो मजे ले रहे थे तब कुछ नहीं था, तब मैं ही क्या कोई भी औरत चाहे किसी भी उम्र की हो बस मजा लिया और काम खत्म, अब आखिर दुहाई भी तो किन रिश्तो की जिनका बोझ तुम एक साँस नहीं उठा सकते
हमने कहां ना की उसके लिए अगर कोई जिम्मेदार है तो बस हम क्योंकि ये हमारी खता है की हम कमजोर पड़ गए, और इसका प्रायश्चित भी हम ही करेंगे क्योंकि जीवन में सबसे मुश्किल होता है अपने आपसे भागना
जो हम न जाने कबसे करते आ रहे है, तुम्हे जरा भी जरुरत नहीं है कुछ सोचने की माना अब तुम्हारे लिए भी इस राज़ को अपने सीने में दफन करना मुश्किल होगा पर मेरे बच्चे यही ज़िन्दगी है कुछ बाते ऐसी है जो तुम क्या हम ही आज तक समझ नहीं पाए
परन्तु सब ठीक होगा और जल्दी ही ठीक होगा हमने इस बारे में बहुत सोचा और हम जान गए की ये शुरुआत हमसे हुई तो अंत भी हमसे ही होगा
मैं- क्या करने वाली है आप
वो- कुछ नहीं कुछ भी नहीं बस तुमसे कुछ बाते करने का दिल है दरअसल मैं मिलना चाहती थी तुमसे तुम्हे सब बताना चाहती थी पर ,पर हम सबकी कुछ कमजोरिया होती ही है, बेशक तुम आज नहीं समझ पाओगे पर जब तुम हमारी अवस्था में आओगे तब जरूर
कामिनी मेरे पास आई और बोली- जानते हो जब तुमने मुझसे पूछा था की मैं पद्मिनी को कैसे जानती हूं
मैं- याद है
कामिनी- तो मेरा जवाब भी याद होगा ही
मैं कुछ कहता उससे पहले ही वो बोली- अगर तुम्हे मेरा जवाब याद है तो तुम्हारे प्रश्न का उत्तर भी तुम्हे मिल जायेगा की मैं यहाँ इस हवेली में कैसे
मैं- हां आपने बताया था कि आप पद्मिनी की बहन है , ओह एक मिनट इसका मतलब इसका मतलब आप
बिना मेरे जवाब की प्रतीक्षा किये वो चलते हुए दौर के उस हिस्से की तरफ बढ़ गयी जहा एक के बाद एक कई कटार लगी हुई थी मैं बस उसे देखता रहा और जब तक उसकी बात मेरे समझ में आयी शायद देर हो गयी थी
"नहीं, नहीं रुकिए" चिल्लाते हुए मैं उसकी तरफ भागा पर तब तक कामिनी ने कटार अपने सीने में उतार ली थी
"कुंदन" वो कुछ चीखी सी और फर्श पर गिर पड़ी
मैं उसके पास पंहुचा "ये क्या किया आपने क्या किया आपने मैं अभी आपको डॉक्टर के पास ले चलता हूं कुछ नहीं होगा आपको,कुछ नहीं होगा "
कामिनी- नहीं, कुंदन नही, मुझे तो जाना ही था पर कमसे कम आज , आज देखो सुहाग के जोड़े में जा रही हु हिच्छ सारी जिंदगी हुकुम ने मुझे दुनिया से छुपा कर रखा पर उससे कहना की एक पति के हक़ से मुझे आखिरी विदाई दे
मेरी आँखों से आंसू निकल पडें मैं घुटनो के बल बैठ गया और कामिनी का सर अपनी गोद में रख लिया उसकी पकड़ मेरी कलाई पर कस गयी
कामिनी- मैंने किसी का हक़ नहीं मारा किसी को दुःख नहीं दिया बस प्रेम किया था हुकुम से और उम्र ही निकल गई परीक्षाएं देते देते, पर शुक्र है कि आज हुकुम की छाया में ही जी निकल रहा है हिच्छ
खून बहुत तेजी से बह रहा था कटार तेज थी अंदर तक जख्म कर गयीं थी खून रोकने की कोशिश में मैंने कटार को खींचा तो वो मेरे हाथ में आ गयी और कामिनी दर्द से तड़प उठी उसकी आँखे बंद होने लगी
"आह कुंदन, एक विनती है तुमसे पूरा करोगे ना"
मैं- जी
कामिनी- एक बार एक बार मुझे माँ पुकारोगे एक बार कहो माँ मेनका मा कहोगे ना
मैं- हां, हाँ मा मेरी मेनका माँ मा रोते हुए मैं बोला
और जैसे ही मैंने ये कहा उसकी पकड़ टूटने लगी आवाज कांपने लगी वो बस इतना बोली- कुंदन, कविता को संभालना सम्भलना उसे और फिर साँस टूट गयी मैंने उसे अपनी बाहों में भर लिया और रोने लगा पर शायद क़यामत अभी आनी बाकी थी तभी दरवाजा खुला और सामने राणाजी खड़े थे और सामने मैं अपनी गोद में मेनका की लाश लिए बैठा था
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