Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:47 PM,
#51
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
मैं और वो उसके कमरे में आ गए वो मेरे पास आ लेटी मैंने उसे अपने से चिपका लिया उसने भी दूर जाने की कोशिश नहीं की उसके पसीने की हलकी सी महक मुझ पर नशा सा करने लगी मैंने अपना हाथ उसकी नाभि पर रख दिया 

वो- क्या इरादा है 

मैं- कुछ नहीं 

वो- पर एक बात समझ नहीं आयी तुम्हारी साइकिल क्यों ले गयी और फिर उसका जलना मतलब जब उसे जलना ही था तो साइकिल का क्या करेगी

मैं- यही तो समझ नहीं आया एक बात हो सकती है जंगल के पार दस पंद्रह किलोमीटर सरहदी इलाका है तो क्या पता कोई तस्कर लोगो ने ये खेल खेला हो अपना माल रखते हो बावड़ी मे

वो- नहीं, देखो तस्कर लोग इस इलाके में नहीं आते है दूसरा बावड़ी मे कुछ और ही चक्कर है क्योंकि तुमने बताया न की रात को दरवाज़ा खुल गया था पर सुबह बात दूसरी थीं ये कोई और चक्कर है पर अगर बात भूत प्रेतों की हुई तो मामला गंभीर होगा और तब हमें किसी सयाने की मदद लेनी होंगी

मैंने अपना हाथ उसके पेट से सरकाते हुए उसकी चूचियो तक पहुचा दिया और उनको धीरे से सहलाते हुए बोला- भूतनी थी तो उसने मुझे नुकसान क्यों नहीं पहुचाया जिस तरीक़े से उसने अपनी बाहे फैलायी थीं और उसकी वो आँखे ऐसा लगता था की जैसे मैं जानता हूं 

वो-भूत प्रेत हज़ार भेस बदल लेते है ,आह धीरे दबा न

मैंने थोड़ा जोर से उसकी चूची को मसल दिया था 

मैं-देखते है रात को 

मैंने उसे अपनी और खींच लिया और उसके निचले होंठ को अपने दोनों होंठो के बीच दबा लिया उसने अपनी बाह मेरी पीठ पर रख दी और मुझे चूमने का पूरा मौका दिया उसने मैंने उसका हाथ अपने लण्ड पर रख दिया और वो पेण्ट के ऊपर से ही उसको रगड़ने लगी

मैं- पूजा ऐसी ही बावड़ी लाल मंदिर में भी है 

वो- हाँ वो मेरे पिताजी ने बनायीं थी 

मैं- तब तो तू ये भी जानती होगी की लाल मंदिर में ।।।।।।

"Shhhhh मैंने कहा था न कुंदन की तू मुझसे अतीत के बारे में सवाल नहीं करेगा " वो बोली

मैं- हां याद है 

कहकर मैंने उसकी सलवार का नाडा खोल दिया अंदर उसने चड्डी नहीं पहनी थी सलवार उतरते ही उसने एक चादर से हम दोनों को ढक लिया मैं उसकी चूत को अपनी मुट्ठी में भरके सेहलाने लगा 

मैं-अगर रात को मुझे कुछ हो गया तो 

वो- जबतक मैं हु कुछ नहीं होने दूंगी और मैं न रही तो बात और है 

उसने मेरी पेण्ट को खोल दिया और लण्ड को अपनी मुट्ठी के दबा लिया इस बीच मेरी ऊँगली उसकी चूत की दरार पर पहुच गयी थी जैसे ही मैंने अंदर डालने की कोशिश की उसने अपनी टांगो को भींच लिया ओर मुझसे लिपट गयी

एक बार फिर से हम दोनों के होंठ आपस में जुड़ गए थे बदन से बदन जो रगड़ खा रहे थे तो उत्तेजना अपने चरम पर आने लगी थी पर हमारी भी हदे थी तो मैंने उसे अपने से दूर कर दिया 

मैं-पूजा जमीन पर खेती होगी ना 

वो- जरूर होगी मुझे तुम पर भरोसा है 

मैं- पिछले कुछ दिनो में मैं ऐसा उलझा अगर तुम न होती तो मैं कुछ नहीं कर पाता

वो- चल अब झूठी तारीफे ना कर सोते है थोड़ी देर रात को जागना है 

मैं- मैं तू इस तरह पास रहेगी तो सो न पाउँगा

वो- कपडे भी तूने ही उतारे है 

मैं- बात वो नहीं है मैं एक पप्पी लेना चाहता हु 

वो- तो इसमें पूछना क्या ले ले

मैं- यहाँ लेना चाहता हु 

बोलकर मैंने उसकी चूत पर हाथ रख दिया पूजा बुरी तरह से शर्मा गई 

वो- सो जा 

एक बार फिर से उसे अपने सीने से लगा लिया और ऐसे ही उसे अपनी बाहों में लिए लिए कुछ देर के लिए हम सो गए जब मेरी आँख खुली तो वो बिस्तर पर नहीं थी बाहर हल्का हल्का सा अँधेरा हो रहा था मैं कुछ ज्यादा ही सो गया था मैंने हाथ मुह धोये और फिर पूजा को देखा वो दूसरे कमरे में थी

मैंने देखा उसने वो ही काले कपडे पहने हुए थे जो जब मैं पहली बार उससे मिला था तब पहने थे 

मैं- तैयार है 

वो- हाँ तू कुछ खायेगा 

मैं- नहीं चाय पीने की इच्छा है 

वो- चाय नहीं मिलेगी दूध नहीं है पशु बेच दिए तो दूध का जुगाड़ नहीं है

मैं- कोई नहीं पर और थोड़ा अँधेरा घिर आये फिर चलते है 

वो- जैसा तुझे ठीक लगे 

तो करीब घंटे भर बाद हम दोनों पैदल खारी बावड़ी की तरफ चल दिए हमारे पास एक टोर्च भी थी जो बहुत काम आ सकती थी वातावरण में रोज जैसी ही ख़ामोशी भरी पड़ी थी हम दोनों वहाँ पहुचे और देखा की आज वहाँ पर दो दीये जले हुए थे

मैं- कल एक था आज दो है 

वो- देखने दे 

पूजा ने दोनों दियो को कुछ देर देखा और फिर वापिस अपनी जगह पर रख दिया अब हम लोग उस तरफ चले जहा वो राख थी पर अब वहां कुछ नहीं था 

मैं- राख कहा गयी 

वो- मुझे क्या पता 

उसने मेरी बतायी जगह को सूंघ कर देखा और फिर किताब में से कुछ पढ़ा और चावल के कुछ दाने उस जगह पर बिखेर दिए जो कुछ पल में ही काले पड़ गए पूजा धीरे से बोली- कुछ है यहाँ 

मैं- क्या 

वो- पता नहीं पर कुछ है देखो दाने काले पड गए 

मैं- किताब में पढ़ के कुछ कर फिर

वो- क्या करूँ ये किताब तो मैंने मेले में ली थी इसके मन्त्र कैसे काम करते है कुछ उल्टा सीधा हो गया तो

मैं- वो भी देखेंगे मुझे तुझ पर पूरा भरोसा है जब तू मेरे साथ है तो मेरे साथ कुछ भी गलत नहीं हो सकता 

वो- इतना भरोसा मत कर मुझ पर कुंदन 

मैं- अब है तो है 

हम बाते कर ही रहे थे की वो दोनों दिए झट से बुझ गए और जैसे ही दिये बुझे अँधेरा गहरा सा लगने लगा हम दौड़ कर दियो के पास आये हवा भी इतनी तेज नहीं थी की उसके जोर से ही वो बुझ जाये खैर मैंने माचिस जलायी और दियो को फिर से रोशन किया 

पूजा- क्या लगता है 

मैं- मुझे क्या पता 

वो- आओ वो कमरा देखते है 

तो मैं और वो उस कमरे के पास आये अब उसके दरवाजे पर ताला नहीं था दरवाजे के पास वो ही पानी की हांडी थी मैंने ढक्कन हटाया पानी लबालब था उसमें मैं पीने ही वाला था की पूजा ने मुझे रोका और बोली-रुक जरा देखने दे

मैं- पानी ही तो है 

पर उसने टोर्च जलायी और हांड़ी की तरफ की और अब होश उड़ने की बारी मेरी थी क्योंकि जिसे मैं पानी समझ रहा था वो पानी नहीं बल्कि खून था मुझे तो देखते ही उबाक सी आयी और तभी टोर्च बुझ गयी अब इसे क्या हुआ मैंने कोशिश की पर वो नहीं जली
पूजा दौड़ कर गयी दिया लेने ताकी कुछ रौशनी हो पर उसे झटका सा लगा क्योंकि वहाँ दिए थे ही नहीं मेरा माथा थोड़ा सा घूमने लगा जैसे कुछ गलत सा होने लगा हो ऊपर से मैं पूजा को भी अपने साथ ले आया था 

वो- कमरा देखे 

मैं- ह्म्म्म

मैंने दरवाजे को धक्का दिया और वो चर्रर्र करता हुआ खुल गया हम अंदर गए पर आज कमरे में पता नहीं क्या क्या भरा हुआ था 

पूजा- तूने तो कहा था कमरा खाली है 

मैं- कल तो था अभी कैसे भर गया 

वो- मुझे क्या पता पूजा एक काम करते है अभी यहाँ से वापिस चलते है कल दिन में आएंगे जब रौशनी होगी तो इतनी परेशानी नहीं होगी और हम आराम से खोज बीन कर सकेंगे

वो- हां यही सही रहेगा 

हम दोनों वापिस बावड़ी की तरफ आये और देखा की आज पानी ऊपर तक भरा हुआ था उसमें हम दोनों के चेहरे पर हवाईयां उड़ने लगी ये कैसा खेल था या नजरो का धोखा कुछ देर पहले तक तो ये सूखी पड़ी थी मैं सोचने लगा की ये झमेला आखिर है तो क्या है 
पर इतना हम दोनों ही समझ गए थे की यहाँ अब रुकना नहीं है तो हम खिसक लिए वहाँ से पूरे रास्ते हमने कुछ बाते नहीं की बस चुपचाप आ गए रात भी काफी हो गयी थी तो बस सो गए चुपचाप अगले दिन हम सुबह सुबह से फिर से वहां पर पहुच गए और दोपहर तक कुछ सुराग ढूंढते रहे


पर कुछ नहीं मिला हाँ इतना जरूर था उस कमरे पर ताला फिर से लगा हुआ था और बावड़ी हमेशा की तरह सूखी हुई थी 

पूजा- कुंदन ताला तोड़ दू क्या 

मैं- तोड़ तो दे पर कुछ उल्टा सीधा हो गया तो 

वो- देखेंगे वो भी पर इतना जरूर है की इस कमरे में कुछ तो है 

मैं- हाँ पूजा कभी ये खाली होता है कभी उसमे कुछ सामान सा होता है चक्कर क्या है 
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:47 PM

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