Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:33 PM,
#16
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
हमारी आहे तो कही दब ही गयी थी अगर कुछ था तो बस पुच पुच की अवजे जो हम दोनों के मुह से आ रही थी बहुत देर तक मैं चाची की चूत और गांड दोनों को चाटता रहा फिर मुझे ऐसा लगा की एक बार फिर मेरे लंड में कुछ सुगबुगाहट होने लगी है और एक बार फिर उसमे से कुछ निकल कर चाची के मुह में गिरने लगा और ठीक उसी पल चाची ने अपने चुतड ऊपर उठाये और मेरे मुह में अपना गाढ़ा रस छोड़ते हुए निढाल हो गयी

उस रात उसके बाद कुछ नहीं हुआ थकान में चूर हम दोनों एक दुसरे की बाहों में कब सो गए कुछ खबर ही नहीं थी सुबह मैं जागा तो चाची बाहर ही थी मुझे देख कर वो हंसी तो मैं भी हंस पड़ा पर उस हंसी में जो बात थी वो बस हम दोनों ही समझ पा रहे थे चाची थोड़ी देर में आने वाली थी पर मुझे जल्दी थी मैंने साइकिल उठाई और हो लिया घर की और 



एक नजर घडी पर डाली और फिर अपनी वर्दी उठा कर मैं सीधा बाथरूम में गुस गया पर यही पर साली कयामत ही हो गयी जैसे ही मैं बाथरूम में घुसा तो मैंने पाया की वहा पर मैं अकेला नहीं था भाभी पहले से ही वहा पर मोजूद थी सर से लेकर पांव तक पानी की बुँदे टपक रही थी भाभी के बदन से काली कच्छी ही उस समय उसके बदन पर थी ये सब ऐसे अचानक हुआ भाभी भी घबरा गयी उसने पास पड़ा तौलिया उठाया पर उसके पहले ही मैं बाथरूम से बाहर आ गया पर मेरे दिमाग को हिला डाला था इस घटना ने सुबह सुबह 



जैसे तैसे आँगन के नलके के निचे नाहा कर मैं तैयार हुआ और जब मैं सीढिया उतरते हुए निचे आ रहा था जाने के लिए तो मेरी नजरे भाभी से मिली पर मैंने सर झुका लिया और बाहर भाग गया कक्षा में ऐसा व्यस्त हुआ की समय कब गुजर गया कुछ पता नहीं चला मास्टर जी से बहाना करके एक बार उसकी कक्षा का चक्कर भी लगा दिया पर वो दिखी नहीं तो हताशा सी हुई पर कुछ चीजों पर अपना बस कहा चलता है 



खैर छुट्टी हुई और मैं घर के लिए निकल ही रहा था की उसी कैसेट वाले ने आवाज देकर रोका मुझे 



मैं- भाई बाद में मिलता हु थोड़ी जल्दी है 



वो- सुन तो सही 



मैं- जल्दी बोल 



वो- वो गाने भरने को दे गयी है मैंने शाम पांच बजे का टाइम दिया है तू आया रहियो 



मैं-पक्का भाई 



और मैं घर के लिए बढ़ गया घर आते ही भाभी के दर्शन हुए मुझे तो मैं सर झुका कर ऊपर चला गया तभी उन्होंने पुकारा “कुंदन रसोई में आना जरा ”


मैं गया 



भाभी- सुबह नाश्ता किये बिना निकल गए तुम ऐसे बार बार करना ठीक नहीं है 



मैं- भाभी जल्दी थी मुझे 



वो- कोई बात नहीं, खाना लगाती हु खा लो 



भाभी ने खाना लगाया मैं खाने बैठ गया वो भी पास बैठ गयी सुबह जो घटना बाथरूम में हुई थी उसके बाद मुझे अजीब सा लग रहा था मैंने निवाला लिया ही था की खांसी उठ गयी 



भाभी- आराम से खाओ कोई जल्दी है क्या 



मैं चुपचाप खाने लगा तो भाभी बोली- मेरी गलती थी मुझे कुण्डी लगानी चाहिए थी पर कई बार ऐसा होता है कुंदन तो अपराध बोध इ बाहर आओ कुंदन जल्दी खाना ख़तम करो मुनीम जी आते ही होंगे वो किसी काम से सरहद की तरफ जा रहे है तो राणाजी का हुकुम है की तुम्हे जो भी औजार चाहिए मुनीम जी जीप में वहा छोड़ आयेंगे 



मैं- आप बहुत अच्छी है भाभी 



भाभी बस मुस्कुरा दी और मेरे सर पर हाथ फेरा हलके से मैंने खाना ख़तम किया और बहुत से औज़ारो के साथ गाड़ी में बैठ कर जमीन की और चल पड़ा करीब आधे घंटे बाद मैं वहा अकेला था तो ये थी मेरी कर्मभूमि अब जो कुछ करना था यही करना था दोपहर के करीब चार बजे थे आसमान में धुप सी थी पर हवा में ठंडक भी थी रात की बरसात से मिटटी में नमी थी मैंने बस इतना सोचा की पहले अगर यहाँ खेती होती थी तो अब भी होगी 



मैंने पथरीली जगह को गैंती से खोद कर जायजा लिया तो करीब आठ इंच के बाद निचे नरम जमीन थी भूद वाले हिस्से को तो मिटटी मिलाकर समतल किया जा सकता था पर इस पथरीली जमीन की परत हटाना टेढ़ी खीर थी पर कोशिश करनी थी अगर टेक्टर होता तो बात बन जाती पर राणाजी की वजह से कोई मदद भी नहीं करता मेरी मुझे आदमियों की जरुरत थी पर फिर भी मैंने खोदना शुरू किया शुरू में तकलीफ हुई पर मेहनत रंग लायी थोड़ी ही सही पर कुछ तो शुरुआत हुई 



करीब तीन घंटे मैंने वहा बिताये और इन तीन घंटो ने मेरा दम चूस लिया मैंने खुद को कोसा की साइकिल भी रख लेता तो वापिस जाने में दिक्कत नहीं होती सांझ तो हो ही गयी थी तो मैं टहलते हुए गाँव की और आने लगा रस्ते में पूजा का घर आया तो मेरे कदम अपने आप उस तरफ बढ़ गए घर के बाहर ही वो मुझे मिल गयी 



वो- तू यहाँ 



मैं- वो जमीन वही से आ रहा हु 



वो- तो तूने ठान ही लिया 



मैं- क्या कर सकता हु अब 



वो- अच्छा है मेहनत करेगा तो मिटटी का मोल जान जायेगा तू 



मैं- कैसी है तू 



वो- मुझे क्या होगा भली चंगी हु 



मैं- थोडा पानी पिलाएगी प्यास लगी है 



वो- पानी क्या चाय भी पिला दूंगी तू कह तो सही 



मैं- फिर तो मजा आ जायेगा 



वो- आजा फिर 



मैंने ये बात देखि की पूजा बहुत फुर्ती से काम करती थी बस कुछ ही देर में चाय का कप मेरे हाथ में था और उसकी चाय में भी कुछ बात थी मैं हौले हौले चुस्की ले रहा था 



मैं – अब कब जाएगी जादू करने 



वो- तुझे क्या है 



मैं- बस ऐसे ही पूछा 



वो- आएगा साथ मेरे 



मैं- ले चलेगी 



वो- ऊँगली पकड़ के ले चलूंगी क्या आना है तो आ जाना 



मैं- कब जायेगी 



वो- परसों 



मैं- जादू होगा 



वो- होगा तो पता चल ही जायेगा वैसे मजा बहुत आता है 



मैं- ठीक है मिलता हु परसों फिर अभी चलता हु देर हो गयी है 



वो- आराम से जाना 



पता नहीं क्यों बहुत अपनापन सा लगा खैर पूजा के बारे में सोचते सोचते ही मैं घर आया तो देखा की माँ सा कही जा रही है और चाची भी साथ है अब ये कहा चले 



मैं- कहा जा रहे है 



माँ सा- पड़ोस के गाँव में राणाजी के मित्र की पुत्री का विवाह है तो वही जा रहे है 



मैं- मैं भी चलू 



माँ सा- घर पे जस्सी अकेली है तो तुम यही रहो हमे आते आते सुबह हो जाएगी 



मैंने चाची की तरफ देखा तो वो बस मुस्कुरा दी खैर अब जिसे जाना जाए मैं क्या कर सकता हु मैंने किवाड़ बंद किया और अन्दर आ गया मैंने देखा भाभी रसोई में थी 



भाभी- खाना लगा दू 



मैं- अभी नहीं भाभी कितना काम करोगे आओ बैठते है बाते करेंगे 



वो- क्या बात है आज बड़ी याद आ गयी भाभी की बाते करेंगे 



मैं- क्या इतना भी हक़ नहीं भाभी 



वो- हक़ तो कही ज्यादा है
भाभी और मैं छत पर आकार बैठ गए 



भाभी- कितने दिन हुए तेरे भैया का तार या चिट्ठी कुछ नहीं आया 



मैं- आपको याद आती है उनकी 



वो- याद तो आएगी ना 



मैं- समझता हु पर उनको भी थोडा सोचना चाहिए वैसे बोला तो था पिछली चिट्ठी में की सितम्बर तक आऊंगा 



वो- बस बोलते है अपनी मर्ज़ी के मालिक जो ठहरे 



मैं- अब मैं क्या कहू भाभी 



वो- तू भी अपने भैया जैसा है पहले तो भाभी बिना एक मिनट नहीं रुकता था और आजकल बस अपने आप में खोया हुआ है 



मैं – ऐसा कुछ नहीं है भाभी पर अभी बस उलझ गया हु अपने आप में और आपसे क्या छुपा है अभी आप भी ऐसा बोलोगे तो कैसे चलेगा 



वो- चल जाने दे क्या हुआ तेरी उस आयत का 



मैं- क्या भाभी मेरा उस से क्या लेना 



वो- अच्छा जी तो फिर वो कैसेट पर उसका नाम क्यों 



मैं- वो तो बस यु ही लिख दिया 



वो- यु ही कभी मेरा नाम तो नहीं लिखा तुमने 



मैं- भाभी ... 



वो हंसने लगी 



भाभी- कुंदन पता नहीं क्यों मुझे ऐसा लगता है की तुम मुझसे कही दूर जा रहे हो शायद ये बड़े होने का असर है इस उम्र में इन्सान को अकेलापन चाहिए होता है मैं समझती हु पर जितना मैं जानती हु तुमको अपनी भाभी से बाते नहीं छुपाओगे ना 
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RE: Antarvasna kahani नजर का खोट - by sexstories - 04-27-2019, 12:33 PM

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