Antarvasna kahani नजर का खोट
04-27-2019, 12:32 PM,
#10
RE: Antarvasna kahani नजर का खोट
“नहीं मुझे मत खाओ नहीं मुझे जाने दो “ मैं डरते डरते बोल रहा था उसके हाथ मुझे अपने बदन पर महसूस हो रही थे की उसने मुझे इस तरह सी खींचा की जैसे मुझे उठा रही हो कुछ ही पलो में हम दोनों एक दुसरे के सामने खड़े थे उसके खुले बाल उसके चेहरे को ढके हुए थे 
मैं कुछ बोलने ही वाला था की वो बोल पड़ी “थम जा क्यों बेफालतू में मरे जा रहा है कोई ना तेरे प्राण हर रहा गौर से देख कोई भूतनी ना हु मैं ”
क्या कहा उसने , अब जाके मैं थोडा शांत हुआ 
“कौन हो फिर तुम और इतनी रात को यहाँ क्या कर रही थी ”
“”बताती हु , आ साथ मेरे कहकर वो आगे को चल पड़ी 
पर मैं वही रुका रहा 
“इब्ब आ भी जा डर मत भूतनी होती तो इब तक निगल गयी होती तुझे आजा ”
मैं उसके पीछे चल पड़ा और हम दोनों वापिस उसी पीपल के पेड़ के पास आ गए वो चबूतरे पर बैठ गयी और अपनी कलाई से रबड़ निकाल कर बालो को बाँधा उसमे तो मेरी नजर दिए की रौशनी में उसके चेहरे पर पड़ा दिखने में तो चोखी लगी 
“बैठ, जा खड़ा क्यों है अब इतना भी ना डर ”
मैं उस से कुछ दूर बैठ गया 
“कौन हो तुम, ” मैंने पूछा 
“पहले तू बता कौन है तू ” उसने उल्टा सवाल किया 
“मैं कुंदन हु वो नदी के साथ वाले इलाके में मेरी जमीन है खीतो में सियारों का टोला घूम रहा था तो भगाते हुए इस तरफ निकल आया और फिर ये दिया देखा ”
“हुमम्म दिलेर लगे है जो इतनी रात को अकेले में जंगल में आ गया ”
“मेरी छोड़ अपनी बता तू के कर रही थी ”
“के करेगा जान के ”
“बस ऐसे ही पूछा ”
“यो देख, ” उसने अपने झोले से एक किताब निकाली और मुझे दिखाई 
“के है ” मैंने पूछा 
“अनपढ़ है के दिख ना रहा जादू की किताब है ”
“जादू ” मैंने हैरत से पूछा 
“हां, जादू , बस करके देख रही थी ”
“इतनी रात को वो भी अकेली ”
“और के सारे गाँव ने साथ ले आती ”
“डर ना लगा इतनी रात को अकेली आ गी ”
“किताब में लिख रखी है अकेले करना सारा काम ”
“कर लिया मेरा मतलब हुआ जादू ”
“ना रे, तू जो आ गया बीच में वैसे बुरा ना मानियो मजा बहुत आया तुझे डरा के और तू क्या बोल रहा था भूतनी जी , भूतो को कोई आदर-सत्कार देता है क्या ” वो हस पड़ी 
“हां, एक पल तो मैंने भी सोचा की भूतनी इतनी खुबसूरत कैसे हो सकती है ”
“अकेली छोरी देख के डोरे डाल रहा है ”
“ना जी, बस जो देखा बोल दिया ”
तभी मैंने एक अंगडाई सी ली और उसी के साथ मेरी पीठ में दर्द हो गया “आई आई ” मैं कराहा 
“क्या हुआ ”
“पीठ में लगी हुई है गिरने से शायद जख्म ताज़ा हो गया ”
“देखू ”
मैंने हां कहा तो वो मेरे पीछे आई “खून आ रहा है इसमें तो एक काम कर कमीज ऊपर कर मैं कुछ करती हु ”
उसने अपने झोले से टोर्च ली और जंगल की तरफ हो ली पर जल्दी ही आ गयी उसके हाथ में कुछ हरे पत्ते से थे “ये लगा देती हु खून बंद हो जायेगा ” उसने पत्तो को पत्थर से पीस कर एक लेप सा बनाया और मेरी पीठ पर लगाया थोड़ी जलन सी हुई पर खून बंद हो गया 
“तू कहा रहती है मैंने पूछा ”
“कोस भर दूर घर है मेरा ”
“पर तू अकेली रात में भटक रही घरवाले कुछ ना कहते ”
“अकेली हु माँ- बाप गुजर गए वैसे तो कुछ लोग है परिवार के पर जबसे होश संभाला है जीना सिख लिया है ”
हमको जो मिटा वो दिन दुखी ही मिलता था अब क्या कहते उसको 
“चल तुझे छोड़ दू तेरे घर ”
“रहने दे चली जाउंगी ”
“बोला ना छोड़ देता हु भरोसा कर सकती है मुझ पर ”
कुछ देर उसने सोचा फिर बोली “ठीक है ”
रस्ते भर हम दोनों चुपचाप चलते रहे करीब आधे घंटे बाद हम एक ऐसी जगह पहुचे जहा मैं तो कभी नहीं आया था आस पास घने पेड़ थे पानी बहने की आवाज आ रही थी मतलब नदी थी पास में ही और फिर मैंने उसका घर देखा उसने उस बड़े से दरवाजे को खोला और अपने कदम अन्दर रखे 
“अच्छा तो मैं चलता हु ”

उसने अपना सर हिलाया और मैं वापिस मुड़ा पर मैंने जोश में बोल तो दिया था की चलता हु पर मेरे खेत यहाँ से काफी दूर थे और अब तो एक से ऊपर का टाइम हो रहा रात का मैं अकेला कैसे जाऊंगा मुझे फिर से डर लगने लगा पर जाना तो था ही बस कुछ कदम ही गया था की पीछे से आवाज आई “कुंदन ”
मैंने मुडके देखा वो आ रही थी पास बोली “रात को अकेले जाना ठीक नहीं एक काम कर मेरे घर आजा सुबह चले जाना ”
“नहीं मैं चला जाऊंगा ”
“अरे चल ना , इतना भी क्या सोचना रात है रास्ता भटक गया तो कहा जायेगा मुझ पर भरोसा कर सकता है तू ” उसने मेरी आँखों में आँखे डालते हुए कहा 
मैं उसके साथ अन्दर आ गया तो देखा की थोड़े पुराने ज़माने का घर था तीन कमरे थे पास ही में एक छप्पर था पर चार दिवारी ऊँची ऊँची थी 
“थोड़ी मरम्मत मांग रहा है न ”
“अच्छा है ” मैंने कहा 
“यही सोच रहा है आ की इस टूटे फूटे घर में .......”
“ना सही है तू तो ऐसे ही बोल रही है ”
“गाँव में हवेली है हमारी पर रिश्तेदारों ने कब्ज़ा ली ले देके एक जमीन का टुकड़ा और कुछ पशु बचे है ”
पता नहीं क्यों मुझे लगा ये भी अपने जैसी ही है 
“नाम क्या है तेरा, ”
“पूजा ”
“अच्छा नाम है जरा अपने घरवालो के बारे में बता कुछ ”
“क्या बताऊ, मैं तेरे सामने हु माँ-बाप रहे नहीं रिश्तेदारों ने ठुकरा दिया इतनी सी बात है ”
“बाबूजी का क्या नाम था ”
“अर्जुन सिंह कभी इलाके में नाम था उनका और आज देखो ” बोलते बोलते वो थोड़ी भावुक सी हो गयी 
“उनक नाम आज भी है तुम जो हो ”
वो बस हलकी सी मुस्कुरा पड़ी
बाते अच्छी करता है तू 
“तुम भी ” 
“तुम्हारी शर्ट पे खून लगा है धो दू मैं ”
“नहीं मैं घर जाके धो लूँगा ”
“आराम कर लो फिर रात बहुत हुई ”
“हम्म्म ” मैंने चादर ओढ़ ली और सोने की कोशिश करने लगा कुछ देर बाद मैंने चादर से मुह बाहर निकाल के देखा वो पास ही चारपाई पर वो सो रही थी तो मैंने भी आँखे बंद कर ली सुबह जब मैं जागा तो वो वहा पर नहीं थी कुछ देर इंतजार किया और फिर मैं अपने रास्ते पर हो लिया घूमते घुमाते मैं खेतो पर आया तो देखा की चंदा चाची वहा नहीं थी ताला लगा था तो मैं भी गाँव की तरफ हो लिया 
घर आके मैं छत पर कुर्सी डाले बैठा था की भाभी भी आ गयी 
“आज पढने नहीं गए तुम ”
“भाभी, वैसे ही नहीं गया ”
“”मैं देख रही हु पिछले कुछ दिनों से अजीब से हो गए हो तुम ऐसा क्यों “
“ऐसा कुछ नहीं भाभी ”
“चलो कोई नहीं कुछ काम निपटाके आती हु फिर बात करते है ” 
मैं भी भाभी के पीछे निचे आया तो मुनीम जी ने कहा की आज दोपहर को तुम्हे मेरे साथ चलना है जमीन देखने तो तैयार रहना मैंने एक नजर मुनीम के चेहरे पर डाली और फिर घर से बाहर निकल गया और पहुच गया चंदा चाची के घर पर दरवाजा खुल्ला था मैंने अन्दर जाते ही उसे बंद किया और चाची को देखने लगा 
वो अपने कमरे में थी “कुंदन, कहा गायब हो गया था कल रात कितनी चिंता हो गयी थी मुझे ”
“चाची वो कल रास्ता भटक के जंगल में चला गया था तो फिर थोड़ी परेशानी हो गयी खैर बताओ क्या कर रहे हो ”
“कुछ नहीं नहाने जा रही थी फिर सोचा की पहले हाथ पैरो को थोडा तेल लगा लू कितने दिन हो गए त्वचा रुखी रुखी सी हो गयी है अब तू आ गया बाद में लगा लुंगी ”
“बाद में क्यों अभी .... कहो तो मैं लगा दू ”
“नहीं रे मैं लगा लुंगी ”
“उस दिन भी तो मैंने आपको दवाई लगाई थी आपको अच्छा नहीं लगा था क्या ”
“दवाई कम लगायी थी तूने बल्लकी मुझे ज्यादा रगडा था तूने ”
“पर आपको अच्छा भी तो लगा था चाची ” चाची ने मेरी तरफ दखा और फिर तेल की शीशी मुझे देते हुए बोली “ले तू कर अपने मन की “ 
मैंने तेल लिया और चाची के हाथो पर मलने लगा चाची के नर्म हाथो को मेरे कठोर हाथ रगड़ने लगे चाची के बदन को छूते ही मेरे लंड में तनाव आने लगा कुछ देर बाद मैं बोला “चाची एक बात कहू ”
“बोल ”
“आप इतनी सुंदर हो फिर भी चाचा आपको छोड़ कर बाहर गए कमाने को ”
“कमाना भी जरुरी है ना और वैसे भी इतने दिन निकल गए थोडा टाइम और निकल जायेगा अगली दीवाली तक वो वापिस आही जायेंगे वैसे आजकल तू मेरी कुछ ज्यादा ही तारीफ करने लगा है ”
“अब आप सुन्दर हो तो आपकी तारीफ होगी ही ”
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