RE: Hindi Porn Kahani गीता चाची
चाची ने मुझे वैसा ही सजाया था जैसा हनीमून के दिन मैं दुल्हन बना था. प्रीति तो मुझे देखकर पहचान ही नहीं पायी. जब मैंने उसे चूमा तब वह समझी कि नारी रूप में यह उसका भैया अनिल ही है. थी बड़ी चुदैल, मेरे इस रूप को देखकर वह भी गरम हो गयी. "मौसी, कितना सेक्सी लगता है अनिल भैया! इसीलिये मौसाजी ने उसकी ऐसी हालत की."
अपने कपड़े उतारते हुए चाचाजी बोले. "तू भी कम नहीं है बेटी, तेरी भी वैसी ही हालत करता हूं चल." प्रीति उनके लंड की ओर देखकर सहम गयी. नौ इंच का वह लौड़ा अब तन कर सीधा खड़ा था. मुझसे न रहा गया और मैं चाचाजी के लंड को चूसने लगा. अब तो पूरा मुंह में लेकर मुझे चूसना आता था. प्रीति मेरा कारनामा देखती रह गयी. "अनिल भैया ने कैसे लिया होगा गांड में मौसी इस लंड को? और निगल भी लिया है पूरा! लगता है मौसाजी के लंड के पुजारी हैं अनिल भैया!"
"तू भी सीख जायेगी बिटिया, अनिल के लिये तो इनका लंड मानों उसकी जान है, उसका भगवान है. चलो अब
जल्दी करो जी. मुझसे नहीं रहा जाता." कहकर चाची ने अपने कपड़े उतारे और प्रीति को भी नंगा कर दिया. चाचाजी ने मुझे उठाकर बांहों में भर लिया और चूमते हुए मेरी साड़ी, ब्लाउज़ और पेटीकोट उतार दिये. ब्रा और पैंटी वैसे ही रहने दीं. "तू ऐसा ही रह यार, बहुत मस्त दिखता है."
मेरा लंड अब मेरी पैंटी के सामने के छेद में से बाहर आ गया था. आइने में मैंने खुद को देखा तो मजा आ गया. जैसे इंटरनेट पर शी मेल के फ़ोटो होते हैं वैसा ही दिख रहा था.
पहले हमने चाची की ओर ध्यान दिया क्योंकि एक बार प्रीति के पीछे लगने के बाद रात भर आज उनका नंबर आना मुश्किल था. पहले तो मैंने चाची की चूत चूसी और चाचाजी ने अपना लंड उससे चुसवाया, बिना झड़े. फ़िर उसे बीस पच्चीस मिनट चोद डाला. प्रीति चाची की बुर में घुसता निकलता वह महाकाय लंड देखते हुए चाची को अपनी बुर चुसवती रही. वह भी अब गरमा गयी थी. तब तक मैं चाचाजी को अपना लौड़ा चुसवा रहा था.
चाचाजी अब बहुत गरम हो गये थे. उनकी आंखों में भयानक वासना के डोरे उभर आये थे. मेरे कान में उन्होंने कहा. "अनू रानी, आज इस कन्या पूरा खलास कर देते हैं. तू चोद और मैं गांड मारता हूं, एक साथ दोनों छेद चोद डालते हैं छोकरी के."
मैं तैयार था. चाची भी समझ गयीं. झड़ झड़ कर वे तृप्त हो गयी थीं. आंख मार कर हमारे इस प्लान को उन्होंने अपनी सहमति दे दी.
"चलो अनिल बेटे, अब प्रीति को चोद कर दिखाओ. तुम्हारी चाची और मैं देखना चाहते हैं कि तुम दोनों छोकरा छोकरी कैसे चोदते हो" चाचाजी ने कहा. प्रीति तैयार थी, चुदासी से वह अब अधीर हो चुकी थी. उसे लिटा कर मैं उस पर चढ़ गया और उसकी किशोर चूत में अपना लंड पेल दिया. आज तकलीफ़ नहीं हुई, वह एक बार चुद चुकी थी और वासना से अब उसकी बुर गीली भी थी. बस एक बार थोड़ी कराही.
पूरा लंड उसकी चूत में घुसेड़कर उसे मैं चोदने लगा. दस मिनिट खूब चोदा और दो बार उसे झड़ाया. खुद झड़ने के करीब आकर मैं रुक गया. अब मौका आ गया था कि उस कन्या को यह पता चले कि उसके साथ क्या बीतने वाली है. प्रीति के दोनों हाथ मैंने अपने पीठ के गिर्द घेर लिये. उसने बड़े प्यार से मुझे पकड़ लिया. उसकी चूचियां
और मेरे नकली स्तन एक दूसरे पर कस कर दब गये. चाची ने अचानक उसके हाथ पकड़कर कस कर वैसे ही आपस में मेरी पीठ के पीछे बांध दिये.
वह घबरा गयी. मैं पलट कर नीचे हो गया और प्रीति को ऊपर ले लिया. "क्या कर रहे हो भैया, और चोदो ना! और मौसी मेरे हाथ क्यों बांध दिये?"
"मेरी नन्ही बिटिया, इसलिये बांधे कि अब रात भर तू और अनिल ऐसे ही चिपके रहें और वह तुझे चोदता रहे." चाची ने उसे समझाया. तब तक चाचाजी पास आकर बठ गये थे और प्रीति के गोरे नन्हे चूतड़ों से खेलने लगे थे. जल्द ही वे झुक कर उसकी गांड चूसने लगे. उनकी जीभ अंदर जाते ही वह और हुमक उठी. "छोड़िये मौसाजी, यह क्या कर रहे हैं? मुझे डर लगता है, उस दिन अनिल भैया ने भी मेरी गांड चूसी थी और फ़िर मारी थी."
"तो मैं भी मारूंगा बेटी, आखिर इतनी प्यारी बचकानी गांड रोज थोड़े ही मिलती है." उठ कर मख्खन से उसकी गांड चिकनी करते हुए चाचाजी बोले.
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