RE: Desi Sex Kahani गदरायी मदमस्त जवानियाँ
अब आगे की कहानी सुनिए सुनीता की जुबानी.
अब नीरज और निकिता को पटाने के लिए आगे क्या किया जाए इस सोच में मैं और राज थे तभी मेरी छोटी बहन के परिवार पर एक विपत्ति आ गयी.
मेरी छोटी बहन का नाम सारिका था. वह भी मेरी तरह बड़ी सुन्दर और जवानी से भरपूर थी. सारिका दिखने में मुझसे थोड़ी ज्यादा गोरी थी, बस कद से थोड़ी सी नाटी थी. उसकी शादी महाराष्ट्र के एक छोटे से गांव के एक गरीब परिवार में रूपेश के साथ हुई थी. रूपेश देखने में गौरवर्णीय, बहुत हैंडसम और एकदम फुर्तीला था. उस की अपनी मेडिकल की दूकान थी जिससे उनका घर चलता था. एक दिन अचानक उसकी दुकान में आग लग गयी. बीमा नहीं होने के कारण बहुत भारी आर्थिक नुकसान भी हो गया और आमदनी का एकमात्र जरिया खत्म हुआ.
जैसे ही हमें पता चला, मैं फूट फूट कर रोने लगी. मुझे शांत करके राज तुरंत रूपेश के गांव पहुंचा और उससे बात की.
राज ने रूपेश से कहा, "रूपेश, मैं अँधेरी में कुछ दवाई की दूकान मालिकोंको अच्छे से जानता हूँ. मैं तुम्हारे लिए नौकरी की बात करके सारा मामला ठीक कर दूंगा. रूपेश और सारिका, तुम दोनों भी हमारे अँधेरी वाले घर पर हमारे साथ रह सकते हैं. फिर तुम्हे किसी भी प्रकार के खर्चे के बारे में सोचना नहीं पडेगा. कुछ पूँजी जमा होने के बाद हम लोग अपनी खुद की मेडिकल की दूकान खोलने के बारे में भी सोच सकते हैं."
उसकी बात सुनकर रूपेश ने राज को गले लगाया और रोने लग गया.
उसने भावुक होकर कहा, "राज भैया, मैं आप का एहसान पूरी जिंदगी नहीं भूलूंगा. समझ लो की आज से मैं आप का गुलाम हो गया."
राज ने कहा, "रूपेश, हिम्मत मत हारो और रोना बंद करो. जल्द से जल्द यहाँ का मामला निपटाकर आप दोनों मुंबई पहुँच जाओ."
जैसे ही सारिका ने यह बात सुनतेही उसके भी आँखों में आँसू छलक गए. राज ने दोनोंको बड़े प्यार से गले लगाया और हिम्मत बँधायी. बाद में राज ने मुझे बताया की इस समय तक उसके मन में अपनी सुन्दर और सुडौल साली सारिका के बारे में कोई सेक्सी विचार नहीं आये थे. वो तो बस उनकी सचमुच अपनेपन से मदद करना चाहता था.
राज अपनी बैंक में अच्छे पद पर था और उस पर काम की काफी जिम्मेदारी भी थी. इसलिए वो तुरंत अगले ही दिन मुंबई वापिस चला आया. एक हफ्ते के बाद रूपेश और सारिका अपने गावसे बस में बैठकर मुंबई सेंट्रल स्टेशन पर आ गए. राज और मैं उन्हें लेने के लिए पहले से ही प्लेटफार्म पर खड़े थे. अपना सामान लेकर दोनों नीचे उतर गए.
हमें देखकर दोनोंके चेहरों पर अपार प्रसन्नता छा गयी. पहले रूपेश राज के गले लगा और सारिका मेरे. फिर राज ने आगे बढ़ कर सारिका को बाहों में भर लिया और रूपेश ने अपनी मजबूत बाहों में मुझे ले लिया. सारिका फिर से रोने लग गयी, फिर राज ने उसे कसकर बाहोंमे जकड़ा और उसके सर पर बड़े प्यार से हाथ फेरते हुए उसके आंसू पोंछ दिए.
वहाँ मैंने भी रूपेश को कहा "रूपेश, आज से हम चारों सबसे अच्छे दोस्त बनकर साथ साथ रहेंगे." उसका मुझे अपनी बाहों में लेना अच्छा लगा था.
अँधेरी जाने के लिए हम लोकल में चढ़ गए. उन दोनोंका मुंबई मायानगरी में यह पहला ही दिन था. साथ में काफी सामान भी था और वह लोग कहीं खो न जाए इसलिए राज और सारिका एक डब्बे में चढ़ गए और मैं और रूपेश दुसरे डब्बे में!
लोकल में हमेशा की तरह खचाखच भीड़ थी. बड़ी मुश्किल से सामान जमाकर राज और सारिका बैठ गए.
जैसे ही वो दोनों बैठे, खड़े हुए लोगों में से एक आदमी ने कहा, "भाई, भीड़ बहुत ज्यादा हैं. अपनी लुगाई को गोदी में बिठा दो ताकि मैं बची हुई जगह पर बैठ जाऊं."
मुंबई की लोकल में यह एकदम सामान्य बात थी. सारिका झटसे आकर राज की गोदी में बैठ गयी. उसने नीले रंग का कमीज और गुलाबी रंग की सलवार पहनी थी. भीड़ में आजु बाजू के लोग उसके जिस्म को धक्के न मार सके इसलिए राज ने अपने हाथोसे उसकी कमर को लपेट लिया। पहली बार वो सारिका के बदन से इतना नज़दीक था. उसकी भरी हुई गांड और मांसल जाँघे राज को उत्तेजित करने लगी.
फिर दोनों यहाँ वहां की बाते करने लगा, भीड़ ज्यादा होने के कारण सारिका राज के और पास आकर उसकी बाते सुनने और बाते करने लगी. उसके बदन की खुशबू, उसकी गर्म साँसे, उसकी गांड और मांसल जाँघे सबकुछ मिलकर राज को पागल करने लगी. राज ने बताया की उसका लंड भी तन गया था. अब इतनी भीड़ में इधर उधर हिलकर उसे एडजस्ट करना भी संभव नहीं था. शायद सारिका को भी उसकी चुभन महसूस हो रही थी मगर वह भी कुछ न बोली. लोकल रस्ते में दो बार रूक गयी और उससे राज की हालत और भी खराब हो गयी.
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