RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘जीवन बस एक पल है वंदना… न इसके पीछे कुछ था और न ही इसके आगे कुछ होगा… जो है वो बस यही एक पल है… और इस पल में मैं तुम्हारे साथ हूँ… तुम मेरी बाहों में हो… बस इस पल में जियो और सबकुछ भूल जाओ… कल किसने देखा है…’ मैंने भी अपनी भावनाओं पर काबू करते हुए उसकी आँखों में देखकर कहा।
मेरी बातें सुनकर उसके चेहरे पर एक हल्की सी मुस्कान उभर गई और फिर धीरे धीरे हमारे होंठ एक दूसरे के इतने करीब हो गए कि पता ही नहीं चला कब हमारे होठों ने एक दूसरे को अपने अन्दर समां लिया… हम सब कुछ भूल कर एक दूसरे से चिपक गए और यूँ एक दूसरे के होठों का रसपान करने लगे मानो कभी अलग नहीं होंगे… हमारी साँसें एक दूसरे की साँसों से टकराती और फिर एक दूसरे से मिल जातीं…
यूँ ही वंदना के होंठों को चूसते हुए मैं धीरे-धीरे वंदना के ऊपर ढलता गया और अपनी सीट से हटकर उसकी सीट के साइड में लगे लीवर को खींच कर उसकी सीट को पीछे की तरफ बिल्कुल लिटा सा दिया…
अब वंदना अपनी सीट पर बिल्कुल लेटी हुई थी और मैं उसके ऊपर अधलेटा हुआ था… हमारे होंठ अब भी एक दूसरे के साथ चिपके हुए थे, उसकी बाँहों ने मुझे जोर से जकड़ा हुआ था… और मेरे हाथ अब उसके बदन पर धीरे-धीरे फिसलने लगे… यूँ ही एक दूसरे के साथ चिपके हुए ही मेरे हाथों में उसका दुपट्टा आ गया और मैंने धीरे से उसे खींच कर अलग कर दिया…
लेकिन दुपट्टा खींचना इतना आसान नहीं था… मैं वंदना के ऊपर यूँ औंधा पड़ा हुआ था कि मेरे सीने और उसके उन्नत उभारों के बीच दुपट्टा बुरी तरह से फंस गया था और जब मैंने उसे खींचा तो सहसा ही वन्दना का ध्यान उस तरफ चला गया और उसने मेरे होठों को चूसना छोड़ दिया और अचानक से हमारी निगाहें एक दूसरे से टकरा गईं…
वंदना का दुपट्टा हटते ही उसकी दो खूबसूरत 32 साइज़ की चूचियाँ तेज़ चल रही साँसों की वजह से उभर कर मेरे सीने से कभी सट रही थीं और कभी हट रही थीं…
बड़ा ही कामुक सा दृश्य था वो..
मेरी नज़र सहसा ही उसकी उठती बैठती चूचियों पर टिक गईं। वंदना ने मुझे उसकी चूचियों को निहारते देख लिया और जब मैंने उसकी तरफ देखा तो उसने शर्मा कर मेरे सीने में अपना मुँह छुपा लिया..
यूँ लग रहा था मानो वो मेरी नई नवेली दुल्हन हो और सुहागरात को मैंने उसे पहली बार उसके कामुक बदन को निहारना शुरू किया हो…
मैंने उसे धीरे से खुद से थोड़ा सा अलग किया और झुक कर उसके होठों को एक बार फिर से अपने होठों में भर लिया… उसने भी उतने ही प्यार से मेरे होठों को फिर से चूसना शुरू कर दिया… और इसी बीच मैंने अपने दाहिने हाथ की उँगलियों से उसकी गर्दन और सीने के ऊपर चलाना शुरू किया…
मेरी छुअन ने आग में घी का काम किया और जैसे ही मेरी उँगलियों ने वंदना की चूचियों की घाटी में प्रवेश किया उसने मेरे होठों को जोर से चूसना शुरू किया… मेरी उँगलियाँ अब उसके कुरते के ऊपर से ही उसकी चूचियों की गोलाइयों का जायजा लेने लगीं और मैंने धीरे से अपनी पूरी हथेली को उसकी बाईं चूची पे रख दिया…
वंदना की धड़कनें इतनी बढ़ गईं कि मुझे बारिश के शोर में भी साफ़ साफ़ सुनाई देने लगीं…
मैंने अब अपनी हथेलियों को धीरे-धीरे उसकी चूचियों पे चलाना शुरू किया.. उसकी चूचियाँ इतनी कड़ी थीं मानो मैंने बड़े साइज़ का कोई अमरुद थामा हो.. 32 का साइज़ मेरी हथेलियों में पूरी तरह से फिट बैठ गया था और मैं मज़े से धीरे-धीरे अपना दबाव बढ़ाता गया।
मेरे हर दबाव के साथ हम दोनों का मज़ा दोगुना होता जा रहा था…
अब मैंने अपने बाएँ हाथों को वंदना के सर के नीचे से आज़ाद किया और उसकी दाईं चूची को भी थाम लिया… अब स्थिति यह थी कि मैं वंदना के होठों को खोलकर अपनी जीभ को उसके मुँह में डालकर उसके जीभ से खेल रहा था और अपने दोनों हाथों से उसकी खूबसूरत चूचियों को मसल रहा था…
वंदना के हाथ मेरी पीठ पे थे और वो मेरे शर्ट को अपनी हथेलियों में पकड़ कर खींच रही थी…
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