RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘उफ्फ्फ… इतनी जोर से मत भींचों न… पूरा बदन दुःख रहा है… और इन पर थोड़ा रहम करो, बेचारी सुबह से मसली जा रही हैं…’ रेणुका ने शरारत भरे अंदाज़ में एक मादक हंसी के साथ अपनी चूचियों की तरफ इशारा किया।
उसकी बात मुझे खटकने लगी… मैंने उसे झट से अपने से थोड़ा अलग किया और उसकी चूचियों को अपनी हथेलियों में पकड़ कर दबाकर देखने लगा।
‘उफ्फ्फ… बोला ना… प्लीज आज इन्हें छोड़ दो.. इनकी हालत बहुत खराब है और पता नहीं रात भर में इन बेचारियों को और कितना जुल्म सहना पड़ेगा…’ रेणुका ने सिसकारी भरते हुए अपनी एक आँख दबा कर मुस्कुराते हुए कहा।
उसकी चूचियों को दबाकर सच में यह पता लग गया कि उन्हें बहुत ही बेदर्दी से मसला गया था और उसका सारा रस निचोड़ निचोड़ कर पिया गया था… यानि आज सुबह से… शायद आज अरविन्द भैया ने सुबह से जमकर रेणुका कि चुदाई की थी… और आगे भी रात भर कुछ ऐसा ही प्लान था… तभी तो वंदना के साथ मुझे भेज कर वो दोनों अपने लिए एकांत का इंतज़ाम कर रहे थे… शायद तभी रेणुका की आँखों में वो चमक देखी थी जब अरविन्द भैया मुझे अपने घर में बुलाकर वंदना के साथ जाने को कह रहे थे… और इस बात से रेणुका भी बहुत खुश थी…
हे ईश्वर… एक तरफ तो मैं रेणुका के प्यार में पागल हुआ जा रहा था… उसका दिल न दुखे इस बात से डर कर मैं वंदना जैसे हसीं माल को छूने से भी कतरा रहा था… और यहाँ रेणुका है जो बड़े मज़े से अपनी दिन भर कि चुदाई की दास्ताँ सुना रही थी…
सच कहूँ तो एक पल के लिए मेरा दिल टूट सा गया… मुझे रेणुका के ऊपर गुस्सा आने लगा… मैं यह सोचने लगा कि रेणुका मेरे अलावा किसी और से कैसे चुद सकती है… जिन चूचियों को मैं अपनी आँखों से ओझल नहीं होने देना चाहता उन पर कोई और कैसे हाथ लगा सकता है… जिस मखमली चूत को मैं चाट चाट कर उनका रस पीता हूँ उस रसीली चूत में कोई और कैसे अपना लंड डाल सकता है??
मुझे जलन होने लगी और मेरे मन में अजीब अजीब से ख्याल आने लगे…
‘क्या हुआ मेरे समीर… किस सोच में डूब गए… तुम्हे कहीं इस बात से बुरा तो नहीं लग रहा कि मैं आज अपने पति के साथ बहुत ही खुशनुमा पल गुजार रही हूँ…’ रेणुका ने अजीब सी शकल बनाकर मुझसे पूछा और सवाल पूछते पूछते अपना हाथ सीधे मेरे लंड परलेजा कर दबाने लगी।
जी में तो आया कि खींच कर एक थप्पड़ लगा दूँ उसके गालों पर… लेकिन फिर मैंने अपने आपको संभाला और उसे अपने से अलग कर दिया।
‘मुझे बुरा क्यूँ लगेगा… आखिर वो आपके पति हैं और आपके ऊपर पहला हक उनका ही है… मैं तो बस कुछ दिनों का मेहमान हूँ…’ मैंने दुःख भरे गले से मुस्कुराते हुए कहा और इस बात का ख्याल रखा कि उन्हें मेरी नाराज़गी का एहसास न हो।
‘यह बात तो बिल्कुल ठीक है… आखिर वो हैं तो मेरे पति… और आज कई बरसों के बाद उनका प्यार मुझे फिर से जवान कर रहा है… और हाँ, रही बात आपकी तो आप को तो मैंने अपना सब कुछ दे दिया है लेकिन आपका नंबर तो उनके बाद ही आता है न…’ बड़े ही सफाई से रेणुका ने यह बात कह दी और मुझे इस बात का एहसास दिला दिया कि मैं बेवकूफों की तरह उनके लिए प्यार में मारा जा रहा था।
आखिर मैंने सच्चाई को कबूल करने मे ही भलाई समझी और अपने आपको समझाने की कोशिश करने लगा… इतना आसान भी नहीं था लेकिन सच तो सच ही था।
‘चलिए अब देर हो रही है… वंदना कब से इंतज़ार कर रही है… हम दोनों के मिलने के लिए तो बहुत वक़्त पड़ा है।’ रेणुका ने मुझसे अलग होकर मुझे चलने का इशारा किया।
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