RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
‘अरे इतना घबरा क्यूँ रहे हैं आप, मैंने तो यह पूछा कि आजकल आप नज़र ही नहीं आते हैं, आखिर कहाँ व्यस्त हैं आजकल?’ अपने हाथों को अपने सीने के इर्द गिर्द बांधते हुए उसने ऐसे पूछा जैसे कोई शिक्षक अपने छात्र से सवाल कर रहा हो।
हाय उसकी ये अदा… अब उसे कैसे समझाता कि आजकल मैं उसकी माँ की गुलामी कर रहा हूँ और उसके हुस्न के समुन्दर में डुबकियाँ लगा रहा हूँ।
‘अरे ऐसी कोई बात नहीं है… बस आजकल ऑफिस के काम से थोड़ा ज्यादा व्यस्त रहने लगा हूँ।’ मैंने अपने मन को नियंत्रित करते हुए जवाब दिया।
‘ह्म्म्म… तभी तो आजकल आपके पास हमारे लिए समय ही नहीं होता वरना यूँ इतने दिनों के बाद घूर घूर कर देखने की जरूरत नहीं पड़ती, मानो कभी देखा ही ना हो!’ अपने हाथों को खोलते हुए अपनी चूचियों को एक बार और उभारते हुए उसने एक लम्बी सांस के साथ मेरी नज़रों में झाँका।
हे भगवान्… इस लड़की को तो मैं बहुत सीधी-साधी समझता था… लेकिन यह तो मुझे कुछ और ही रूप दिखा रही थी, एक तरफ उसकी माँ थी जो मुझसे इतना चुदवाने के बाद भी शर्माती थी और एक यह है जो सामने से मुझ पर डोरे डाल रही थी।
हुस्न भी कैसे कैसे रूप दिखता है…
खैर जो भी हो, मैंने स्थिति को सँभालते हुए पूछा- चलो मैंने अपनी गलती स्वीकार की… मुझे माफ़ कर दो और यह बताओ कि आज आपको हमारी याद कैसे आ गई?
‘अजी हम तो आपको हमेशा ही याद करते रहते हैं, फिलहाल आपको हमारे पिता जी ने याद किया है।’ उसने मेरी तरफ एकटक देखते हुए कहा, उसकी नज़रों में एक शरारत भरी थी।
अचानक से यह सुनकर मैं थोड़ा चौंक गया कि आखिर ऐसी क्या जरूरत हो गई जो अरविन्द भैया ने मुझे याद किया है.. कहीं उन्हें कोई शक तो नहीं हो गया… कहीं रेणुका और मेरी चोरी पकड़ी तो नहीं गई?
वंदना के हाव-भाव से ऐसा कुछ लग तो नहीं रहा था लेकिन क्या करें… मन में चोर हो तो हर चीज़ मन में शक पैदा करती है।
‘जाना जरूरी है क्या… अरविन्द भैया की तबियत ठीक तो है… बात क्या है कुछ बताओ तो सही?’ एक सांस में ही कई सवाल पूछ लिए मैंने।
‘उफ्फ्फ… कितने सवाल करते हैं आप… आप खुद चलिए और पूछ लीजिये।’ मुँह बनाते हुए वंदना ने कहा और मुझे अपने साथ चलने का इशारा किया।
उस वक़्त मैं बस एक छोटे से शॉर्ट्स और टी-शर्ट में था इसलिए मैं उठा और वंदना से कहा कि वो जाए, मैं अभी कपड़े बदल कर आता हूँ।
‘अरे आप ऐसे ही सेक्सी लग रहे हो…’ वंदना ने एक आँख मरते हुए शरारती अंदाज़ में कहा और खिलखिलाकर हंस पड़ी।
‘बदमाश… बिगड़ गई हैं आप… लगता है आपकी शिकायत करनी पड़ेगी आपके पापा से..’ मैंने उसके कान पकड़ कर धीरे से मरोड़ दिया।
‘पापा बचाओ… ‘ वंदना अपना कान छुड़ा कर हंसती हुई अपने घर की ओर भाग गई।
मैं उसकी शरारत पर मुस्कुराता हुआ अपने घर से बाहर निकला और उनके यहाँ पहुँच गया।
अन्दर अरविन्द जी और रेणुका जी सोफे पे बैठे चाय की चुस्कियाँ ले रहे थे, वंदना अपने कमरे में थी शायद!
‘नमस्ते भैया… नमस्ते भाभी..’ मैंने दोनों का अभिवादन किया और मुस्कुराता हुआ उनके बगल में पहुँच गया।
‘अरे आइये समीर जी… बैठिये… आजकल तो आपसे मुलाकात ही नहीं होती…’ अरविन्द भैया ने मुस्कुराते हुए मुझे बैठने का इशारा किया।
मैंने एक नज़र उठा कर रेणुका की तरफ देखा जो मुझे देख कर मुस्कुरा रही थी। उसकी मुस्कराहट ने मुझे यकीन दिला दिया कि मैं जिस बात से डर रहा था वैसा कुछ भी नहीं है और मुझे डरने की कोई जरूरत नहीं है।
मेरे बैठते ही रेणुका भाभी सोफे से उठी और सीधे किचन में मेरे लिए चाय लेने चली गईं… आज वो मेरी फेवरेट मैरून रंग की सिल्क की नाइटी में थीं। शाम के वक़्त वो अमूमन अपने घर पे इसी तरह की ड्रेस पहना करती थीं। उनके जाते वक़्त सिल्क में लिपटी उनकी जानलेवा काया और उनके मस्त गोल पिछवाड़े को देखे बिना रह नहीं सकता था तो बरबस मेरी आँखें उनके मटकते हुए पिछवाड़े पे चली गईं…
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