Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के संग
04-12-2019, 12:27 PM,
#8
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इस बार उन्होंने सावधानी से बिना उँगलियों को छुए गिलास पकड़ लिया और ऐसे मुस्कुराई मानो उन्हें पता था कि मैं उन्हें छूने की कोशिश करूँगा और उन्होंने मुझे ललचाते हुए अपने आपको छूने से बचा लिया हो।
एक पल को हमारे बीच बिल्कुल ख़ामोशी सी छाई रही मानो वो मेरी प्रेमिका हो और मैं उनसे अपने प्रेम का इजहार करना चाहता हूँ लेकिन कुछ कह नहीं पा रहा…
बड़ी ही अजीब सी भावनाएँ उठ रही थीं मेरे मन में… शायद उनके मन में भी हो!
‘कल भी देर तक सोने का इरादा तो नहीं है न… कहीं आदत न बिगड़ जाए आपकी?’ रेणुका जी ने चुप्पी तोड़ते हुए उस स्थिति को सँभालते हुए कहा।
‘अगर आप हर रोज़ कल की तरह दूध पहुँचाने आयें तो मैं रोज़ ही देर से उठा करूँगा…’ मैंने लाख कोशिश करी थी लेकिन चांस मारने की आदत से मजबूर मैं यह बोल ही पड़ा।
‘हा हा हा… फिर तो आपकी सारी आदतें ही ख़राब हो जाएँगी समीर बाबू… !!’ रेणुका जी ने हंसते हुए ठिठोली करते हुए मुझे कहा और अपनी आँखों से मुझे एक मौन सा इशारा करने लगीं।
‘कोई बात नहीं रेणुका जी… हम अपनी सारी आदतों को बिगाड़ने के लिए तैयार हैं…’ मैंने उनकी तरफ अपने कदम बढ़ाये और उनसे लगभग सटते हुए कहा।
‘सोच लीजिये, फिर यह न कहियेगा कि हमारे यहाँ आकर आप बिगड़ गए?’ एक शरारत भरी हसीं के साथ उनकी इस बात ने मुझे यह यकीन दिला दिया कि शायद आग दोनों तरफ लगी हुई है।
मैंने उनके करीब जाकर बिना किसी हरकत के उनकी आँखों में झाँका और अपने दिल में उठ रहे अरमानों का इजहार करने की कोशिश करी… लेकिन बिना कुछ कहे।
मैं उनकी तरफ से अगले कदम का इंतज़ार करने लगा… लेकिन वो बस यूँ ही खड़ी मुस्कुराती रहीं… हाँ उनकी साँसें जरूर तेज़ चलने लगी थीं और उनके उभारों को ऊपर नीचे करके मुझे यह एहसास दिला रही थीं कि शायद रास्ता साफ़ है।
पर मैं थोड़ा रुका और ये सोचा कि थोड़ी और तसल्ली कर ली जाए… कहीं यह बस मजाक न हो… और मेरी किसी हरकत का उल्टा असर न हो जाए।
‘अब मैं चलता हूँ रेणुका भाभी… ऑफिस भी जाना है और काम भी बहुत है… फिर मिलेंगे।’ मैंने उनसे अलग होते हुए कहा और वापस मुड़ने लगा।
‘ठीक है समीर जी, अब तो रोज़ ही मिलना मिलाना लगा रहेगा…’ रेणुका ने मेरे पीछे से एक मादक आवाज़ में कहा, जिसे सुनकर मैंने फिर से उनकी तरफ पलट कर देखा और उन्हें मुस्कुराता हुआ पाया।
मेरा तीर निशाने पर लग रहा था। बस थोड़ी सी तसल्ली और… 
मैं बड़े ही अच्छे मूड में ऑफिस पंहुचा और फिर रेणुका के ख्यालों के साथ काम में लग गया… लेकिन जब सामने एक मदमस्त गदराया हुआ माल आपको अपनी चूत का स्वाद चखने का इशारा कर रहा हो और आपको भी ऐसा ही करने का मन हो तो किस कमबख्त को काम में मन लगता है… 
जैसे तैसे मैंने ऑफिस का सारा काम निपटाया और शाम होते ही घर की तरफ भागा।

घर पहुँचा तो अँधेरा हो चुका था और हमारे घर के बाहर हमारे पड़ोसी यानि अरविन्द भाई साहब अपनी पत्नी रेणुका और बेटी वन्दना के साथ कुर्सियों पे बैठे चाय का मज़ा ले रहे थे।
जैसे ही मैं पहुँचा, अरविन्द जी से नज़रें मिलीं और हमने शिष्टाचार के नाते नमस्कार का आदान-प्रदान किया।
फिर मुझे भी चाय पीने के लिए बुलाया और मैं उनके साथ बैठ कर चाय पीने लगा।
सामने ही रेणुका बैठी थीं लेकिन फिर उसी तरह बिल्कुल सामान्य… मानो जो भी मैं सुबह सोच कर और समझने की कोशिश करके दिन भर अपने ख्याली पुलाव पकाता रहा वो सब बेकार था।
या फिर पति के सामने वो ऐसा दिखा रही थीं मानो कुछ है ही नहीं!
वन्दना और अरविन्द जी के साथ ढेर सारी बातें हुई और इन बातों में बीच बीच में रेणुका जी ने भी साथ दिया।
मैंने थोड़ा ध्यान दिया तो मेरी आँखों में फिर से चमक उभर आई… क्योंकि रेणुका जी ने दो तीन बार चोर निगाहों से अपनी कनखियों से मेरी तरफ ठीक वैसे ही देखा जैसे वो सुबह देख रही थीं… 
अब मेरे चेहरे पर मुस्कान छा गई और मैं थोड़ा सा आश्वस्त हो गया।
काफी देर तक बातें करने के बाद हम अपने अपने घरों में चले गए और फिर रोज़ की तरह खाना वाना खा कर सोने की तैयारी…
लेकिन आज की रात मैं थोड़ा ज्यादा ही बेचैन था।
पिछले दो दिनों से चल रही सारी घटनाओं ने मुझे बेचैन और बेकरार कर रखा था। मैं कुछ फैसला नहीं कर पा रहा था कि क्या करूँ… 
हालात यह कह रहे थे कि रास्ता साफ़ है और मुझे थोड़ी सी हिम्मत दिखा कर कदम आगे बढाने चाहिए.. लेकिन दिल में कहीं न कहीं एक उलझन और झिझक थी कि कहीं मेरा सोचना बिल्कुल उल्टा न पड़ जाए और सारा खेल ख़राब न हो जाए!
अंततः मैंने यही सोचा कि अगर सच मच रेणुका जी के मन में भी कोई चोर छिपा है तो कल सुबह का इंतज़ार करते हैं और जानबूझ कर कल उठ कर भी सोने का नाटक करूँगा। अगर रास्ता सच में साफ़ है तो कल रेणुका जी खुद दूध लेकर आएँगी और फिर मैं कल अपने दिल की मुराद पूरी कर लूँगा…
और अगर ऐसा नहीं हुआ तो फिर अगले इशारे का इंतज़ार करूँगा।
इतना सोच कर मैंने अपने लंड महाराज को मुठ मरकर शांत किया और सो गया।
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