RE: Real Sex Story नौकरी के रंग माँ बेटी के स�...
मैं रसोई में एक हाथ से अपने बरमुडे के ऊपर से अपने खड़े लंड को दबा कर बिठाने की कोशिश करने लगा और एक हाथ से बर्तन ढूंढने लगा।
‘क्या हुआ समीर जी… बर्तन नहीं मिल रहा या फिर से भूतनी दिख गई?’ रेणुका जी यह कहते हुए घर में घुस पड़ीं और सीधे रसोई की तरफ आ गईं।
मेरा हाथ अब भी वहीं था यानि मेरे लंड पे!
भाभी की आवाज सुनकर मैं हड़बड़ा गया और जल्दी से अपना हाथ हटा लिया लेकिन तब तक शायद उन्होंने मुझे लंड दबाते हुए देख लिया।
मैं झेंप सा गया और जल्दी से जल्दी दूध का बर्तन ढूंढने लगा।
‘हटो मैं देखती हूँ…’ भाभी ने मुस्कुराते हुए मुझे हटने को कहा और दूध का पतीला एक किनारे रख कर अपने दोनों हाथों से बर्तनों के बीच दूध का बर्तन ढूंढने लगी।
रैक के ऊपर के सारे बर्तन गंदे पड़े थे इसलिए वो झुक गईं और नीचे की तरफ ढूंढने लगीं।
‘उफ्फ्फ्फ़…’ बस इसी की कमी थी।
रेणुका जी ठीक मेरे सामने इस तरह झुकी थीं मनो अपनी गोल गोल और विशाल चूतड़ों को मेरी तरफ दिखा दिखा कर मुझे चोदने का निमंत्रण दे रहीं हों।
अब मुझ जैसा लड़का जिसने दिल्ली की कई लड़कियों और औरतों को इसी मुद्रा में रात रात भर चोद चुका हो उसकी हालत क्या हो रही होगी, यह तो आप समझ ही सकते हैं।
ऊपर से चूत के दर्शन किये हुए तीन महीने हो गए थे।
मेरा हाल यह था कि मेरा लंड अब मेरे बरमुडे की दीवार को तोड़ने के लिए तड़प रहा था और मैं यह फैसला नहीं कर पा रहा था कि क्या करूँ… अभी बस कल रात को ही तो हमारी मुलाकात हुई है और वो भी बड़ी शालीनता भरी। तो क्या मैं इतनी जल्दी मचा कर आखिरी मंजिल तक पहुँच जाऊँ या अभी थोड़ा सा सब्र कर लूँ और पूरी तरह से यकीन हो जाने पर कि उनके मन में भी कुछ है, तभी आगे बढूँ…
सच कहूँ तो दिल्ली की बात कुछ और थी… वहाँ इतनी झिझक न तो मर्द की तरफ से होती है और न ही औरत की तरफ से… कम से कम मुझे जितनी भी चूतें हासिल हुई थीं वो सब बेझिझक मेरे लंड को अपने अन्दर ठूंस कर चुदवाने का ग्रीन सिग्नल पहली मुलाकात में ही दे देती थीं…
लेकिन यहाँ बात कुछ और थी। एक तो यह छोटा सा शहर था और यहाँ के लोगों को मैं ठीक से समझ भी नहीं पाया था… इसलिए इस बात का डर था कि अगर पासा उल्टा पड़ गया तो लेने के देने पड़ जायेंगे।
इसी उधेड़बुन में अपना लंड खड़ा किये मैं रेणुका जी को अपनी गांड मटकाते हुए देखता रहा और धीरे से उनके पीछे से हट कर बगल में आ गया और खुद भी झुक कर उनकी मदद करने लगा।
ऐसा करने की एक वजह ये थी कि अगर मैं पीछे से न हटता तो पक्का कुछ गड़बड़ हो जाती… और दूसरा यह कि मुझे यह एहसास था की रेणुका के झुकने से उसकी चूचियों की हल्की सी झलक मुझे दिखाई पड़ सकती थी।
दिल में चोर लिए मैं उनसे थोड़ा नज़दीक होकर अपने हाथ बढ़ा कर बर्तन ढूंढने का नाटक करने लगा और जान बुझ कर उनके हाथों से अपने हाथ टकरा दिए।
अचानक हाथों के टकराने से उन्होंने थोड़ा सा घूम कर मेरी आँखों में देखा और यूँ ही झुकी हुई मुझे देखते हुए अपने हाथ चलाती रही बर्तनों की तरफ।
उनके जरा सा घूमते ही मैं खुश हो गया और उनके आँखों में देखने के बाद अचानक से नीचे उनके गाउन के खुले हुए गले पे अपनी नज़र ले गया।
उफ्फ्फ्फ़… गाउन का गला उनके झुकने से थोड़ा सा खुल गया था और उनकी बला की खूबसूरत गोरी चूचियों के बीच की लकीर मेरे ठीक सामने थी।
बयाँ नहीं कर सकता कि उन दो खूबसूरत चूचियों की वो झलक अपने अन्दर कितना नशा समेटे हुए थी।
उनकी चूचियाँ अपनी पूरी गोलियों को कायदे से सँभालते हुए गाउन में यूँ लटकी हुई थीं मानो दो खरबूजे… उन लकीरों ने मुझे यह सोचने पे मजबूर कर दिया कि गाउन के अन्दर उन्होंने ब्रा पहनी भी है या नहीं।
कुछ आधा दर्ज़न चूचियों का रसपान करने के मेरे तजुर्बे ने यह बताया कि उन चूचियों के ऊपर गाउन के अलावा और कुछ भी नहीं, तभी वो इतने स्वंतंत्र भाव से लटक कर अपनी सुन्दरता को नुमाया कर रही थी।
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