RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
स्मिता आंटी का मायका मेरी सोच से काफी बड़ा था। जब हम वहां पहुँचे तो ढेर सारे लोग एक बड़े से गेट के बाहर खड़े हमारा इंतज़ार कर रहे थे। हमारे पहुँचते ही सबने आगे बढ़ कर हमारा भव्य तरीके से स्वागत किया और हम इतने सारे लोगों के बीच मानो खो ही गए। घर के अन्दर दाखिल हुए तो लगा घर नहीं, कोई पुराने ज़माने की हवेली हो। बड़ा सा आँगन और तीन मालों में ढेर सारे कमरे। खैर हम सबको अपना अपना कमरा दिखा दिया गया। मुझे सबसे ऊपरी महले पर बिल्कुल कोने में एक कमरा मिला था। मैं वैसे ही सफ़र की थकान से परेशान था और ऊपर से इतनी सीढियाँ चढ़ कर कमरे में पहुँचते ही वहाँ बिछे बड़े से पलंग पे धड़ाम से गिर पड़ा।
घर में इतने लोग थे लेकिन फिर भी एक अजीब सी शांति थी, शहरों वाला शोरगुल बिल्कुल भी नहीं था। इस शांति ने मेरी पलकों को और भी बोझिल कर दिया और मैं लगभग सो ही गया।
नाना जी के घर में अगली सुबह
“ये ल्लो … जनाब अभी तक सो रहे हैं और हम कब से उनकी राह देख रहे हैं !” एक मधुर आवाज़ ने मुझे नींद से जगा दिया और जब आँखें खुलीं तो मेरे सामने मेरे सपनों की मल्लिका प्रिया अपने कमर पर हाथ रख कर खड़ी मिली। दिन के करीब दस बज चुके थे और मै बहुर देर तक सोता रहा था।
“अजी राह तो हम कब से आपकी देख रहे हैं… इतना थक गया हूँ कि उठा भी नहीं जा रहा है, सोचा कि आप आएँगी और मुझे उठा कर अपने हाथों से नहलायेंगी!” मैंने शरारत भरी नज़रों से उसकी तरफ देखते हुए कहा।
“ओहो…कुछ ज्यादा ही सपने देखने लगे हैं जनाब… उठिए और जल्दी से फ्रेश हो जाइये। नीचे सब खाने के लिए आपका इंतज़ार कर रहे हैं… फिर आपको बागों की सैर भी तो करनी है।” प्रिया ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे उठाने की कोशिश की और खींचने लगी।
मैंने अचानक से उसे पकड़ कर अपनी बाँहों में दबा लिया और उसके गर्दन पे अपने होंठ फिराने लगा। उसके बालों से अच्छी सी खुशबू आ रही थी। मैंने अपने हाथ पीछे से उसके नितम्बों पे ले जा कर उसके उभरे हुए नर्म कूल्हों को अपने लंड की तरफ दबाना शुरू किया। प्रिया ने एक जोर की सांस ली और अपना एक हाथ बढ़ा कर मेरे लंड को पकड़ लिया और उसे जोर से मरोड़ दिया।
“उफ्फ्फ….लगता है न बाबा..” मैंने उसे अलग करते हुए उसका हाथ पकड़ते हुए कहा।
वो जोर से खिलखिला कर हंस पड़ी और मेरे होंठों पे एक पप्पी देते हुए कहने लगी, “बस इतना ही दम है आपके शेर में… लगता है आज बाग़ की सैर का प्रोग्राम कैंसल करना पड़ेगा!”
उसकी बातों ने मेरे अन्दर के मर्द को एकदम से जगा दिया और मैंने अपने दोनों हाथों से उसकी दोनों चूचियों को पकड़ कर जोर से मसल दिया…
“आउच… बदमाश कहीं के… इतनी जोर से कोई मसलता है क्या। अभी भी इनका दर्द ठीक नहीं हुआ है। अगर ऐसे करोगे तो फिर इन्हें छूने भी नहीं दूंगी… ज़ालिम!” प्रिया की यह शिकायत बिल्कुल वैसी थी जैसी एक बीवी अपने पति से करती है बिल्कुल अधिकारपूर्ण… उसकी इन्ही अदाओं का तो दीवाना था मैं!
मैंने नीचे झुक कर उसकी चूचियों को चूम लिया और अपने कान पकड़ कर सॉरी बोला और प्रिया से माफ़ी मांगने लगा।
मेरी भोली सी सूरत देखकर प्रिया को हंसी आ गई और उसने बढ़कर मुझे चूम लिया। प्रिया ने मुझे धक्का देकर बाथरूम में भेज दिया और नीचे चली गई।
बाथरूम में ठंडे पानी से नहाकर मेरी सारी थकान दूर हो गई। मेरे नवाब साहब भी नहाकर बिल्कुल चमक से रहे थे लेकिन एक अजीब सी बात मैंने नोटिस की थी और वो यह कि मेरा लंड कल रात में रिंकी के मुख चोदन के बाद भी अर्ध जागृत अवस्था में ही था… न तो पूरी तरह सोया था न ही पूरी तरह जगा हुआ था। अब यह रिंकी की वजह से था, प्रिया की वजह से या फिर आंटी के कारनामों की वजह से… यह कहना मुश्किल था।
मैं नीचे पहुँचा तो करीब बारह बज चुके थे। खैर, तो वहाँ एक हॉल में ढेर सारे लोग बैठ कर खाना खा रहे थे। मैं इधर उधर देखने लगा और प्रिया को ढूँढने लगा ताकि बैठ सकूँ और खाना खा सकूँ। भूख ज़ोरों की लगी थी।
“इधर आ जाओ… हम कब से तुम्हारा इंतज़ार कर रहे हैं। चलो जल्दी से खा लो।” स्मिता आंटी की आवाज़ मेरे कानों में गई और मैं उन्हें ढूँढने लगा।
सामने बिल्कुल कोने में स्मिता आंटी थालियों के साथ बैठी थीं और अपने पास की खाली जगह की तरफ इशारा करते हुए मुझे बुला रही थीं। कमाल की लग रही थीं, लाल साड़ी और वो भी गाँव के स्टाइल में सर पे घूंघट किये हुए… सच कहूँ तो आंटी को पहली बार घूंघट में देखकर मन किया कि उन्हें बस देखता ही रहूँ.. बड़ी बड़ी आँखें, गाल प्राकृतिक रूप से लाल, हाथों में ढेर सारी लाल चूड़ियाँ… दुल्हन से कम नहीं लग रही थीं वो।
उन्हें घूरता हुआ मैं उनकी तरफ बढ़ा और उनके पास जाकर बैठ गया। उनके बदन से आ रही खुशबू ने मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लिया और मैं उन्हें फिर से घूरने लगा। आंटी ने मेरी निगाहों को अपने चेहरे पे महसूस किया और कनखियों से मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगीं। उनकी आँखों में मैं साफ साफ देख सकता था… एक चमक, एक शरारत, एक प्यास…
आने वाला वक़्त पता नहीं क्या दिखाने वाला था लेकिन अब तो मेरे दिल ने भी समर्पण करने का मन बना लिया था… मैंने सब कुछ ऊपर वाले के ऊपर छोड़ा और खाना खाने लगा।
खाना खाकर हम सब उठे और बाहर आँगन में चारपाइयों पर बैठ गए। थोड़ी ही देर में प्रिया लड़कियों के एक झुण्ड के साथ आँगन में आई और मेरी चारपाई के पास आकर उन सबसे मेरा परिचय करवाने लगी.. करीब 7-8 लड़कियाँ.. सब लगभग प्रिया की उम्र की या उससे थोड़ी छोटी रही होंगी। कसम से यार, सब एक से बढ़ कर एक थीं। अगर प्रिया सामने नहीं होती तो शायद मैं जी भरकर उनके गोल गोल टमाटरों को देख लेता और उन सबके साइज़ का अनुमान लगा लेता… लेकिन मेरी जानम सामने खड़ी थीं और मैं उसे नाराज़ नहीं करना चाहता था। इसलिए एक शरीफ बच्चे की तरह उनसे मिला और फिर सबके साथ हंसी ठिठोली होने लगी।
“क्यूँ बेचारे को परेशान कर रहे हो तुम लोग… इसे थोड़ा आराम कर लेने दो फिर उसे मामा जी के साथ बाज़ार जाना है।” स्मिता आंटी अपने हाथों में एक प्लेट लेकर हमारी तरफ बढ़ रही थीं।
‘चल प्रिया, तू भी थक गई होगी न, थोड़ा सा आराम कर ले फिर शाम को जितना मर्ज़ी हंसी ठिठोली करते रहना!” आंटी ने प्रिया को डांटते हुए कहा और सब लड़कियाँ वहाँ से ही ही ही ही करती हुई घर के दूसरे महले पे चली गईं।
“ये लो सोनू बेटा, तुम्हारी मनपसंद गुलाब जामुन!” आंटी ने एक प्लेट में करीब 4-5 गुलाब जामुन मुझे दिए।
“अरे आंटी, अभी तो इतना सारा खाना खाया है… इतनी मिठाइयाँ नहीं खा सकूँगा।” मैं उनके हाथों से प्लेट ले ली और उनसे मिठाइयाँ कम करने के लिए कहने लगा।
आंटी ने मेरी एक न सुनी और मुझे आँखें बड़ी बड़ी करके लगभग धमका सा दिया और चुपचाप खाने का इशारा किया। गुलाबजामुन देखकर मुझे दो दिन पहले गुज़रे वो लम्हे याद आ गये जब प्रिया को…..
खैर मैं प्लेट लेकर उठा और सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा। मैंने सोचा कि अभी अपने कमरे में जाकर थोड़ा रुक कर खा लूँगा और फिर थोड़ा सो भी लूँगा क्यूंकि शाम को प्रिया ने बाग़ दिखाने का वादा किया था। बाग़ तो सिर्फ एक बहाना था, असल में हम एक बार फिर से एक दूसरे में समां जाना चाहते थे। और इस बात से मैं खुश था और उत्तेजित भी होता जा रहा था।
तभी मुझे याद आया कि अभी अभी आंटी ने कहा था कि मामा जी के साथ बाज़ार जाना है। जैसे ही मुझे ये याद आया मेरा मन उदास हो गया। प्रिया से मिलन की बेकरारी मैं अपने लंड पे महसूस कर सकता था जो कि अर्ध जागृत अवस्था में प्रिया की चूत को याद करते हुए अकड़ रहा था। मैं दुखी मन से सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगा।
“ऊपर जाकर इन्हें यूँ ही रख मत देना। मैं आकर चेक करुँगी तुमने खाया है या नहीं!” आंटी की आवाज़ ने मेरा ध्यान खींचा और मैं उनकी तरफ देखने लगा।
आंटी मुस्कुराते हुए मुझे देख रही थीं और बाकी लोगों को भी मिठाइयाँ खिला रही थीं। मैंने एक बार उन्हें एक मुस्कान दी और सीढ़ियों से चढ़ कर ऊपर बढ़ गया।
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