RE: Desi Porn Kahani करिश्मा किस्मत का
मैं हक्का बक्का बस अगले पल का इंतज़ार कर रहा था… मुझमें इतनी हिम्मत नहीं आ रही थी कि मैं कुछ कर पाता। मन में चल रहे अंतर्द्वंद्व ने मुझे मूर्तिवत कर दिया था। मैंने सब कुछ भगवन के ऊपर छोड़ दिया और जो कुछ भी हो रहा था उसे बस होने दे रहा था।
थोड़ी देर के लिए ख़ामोशी थी… पर तभी आंटी का एक पैर उसी अवस्था में खुलने सा लगा और पूरी तरह खुलकर मेरे कूल्हों तक पहुँच गया। अब तक मेरे दोनों पैर उनकी गोद में थे लेकिन आंटी ने अपने एक पैर फ़ैलाने के साथ साथ मेरा भी एक पैर अपनी दोनों जांघों के बीच में कर दिया था और एक पाँव को सीट की ओर रख दिया था। कुल मिलाकर यह स्थिति थी कि आंटी की नंगी जांघों के बीच उनकी मखमली चूत पे मेरे दाहिने पैर का पंजा था और आंटी का दाहिना पैर मेरे कूल्हों को छू रहा था। कूल्हों से नीचे मेरे लंड ने उनके घुटनों को अपने होने का एहसास करवाया और आंटी के घुटनों ने भी उन्हें हल्का सा दबाकर उन्हें सलाम किया।
भाई साहब, मैं तो अब प्यास से मारा जा रहा था… सूख कर मेरे गले का बुरा हाल था । अभी कल ही मैंने उनकी दोनों बेटियों को जम कर चोदा था और अपने लंड का गुलाम बनाया था, और आज उनकी माँ अपनी चूत में मेरा लंड लेने के लिए खेल खेल रही थी… एक पल को तो मुझे कुछ शक सा हुआ कि कहीं ये पूरा परिवार ही तो ऐसा नहीं … लेकिन कल ही मैंने रिंकी और प्रिया दोनों की सील तोड़ी थी तो यह तो पक्का था कि ऐसा नहीं हो सकता। स्मिता आंटी को मैंने हमेशा अकेला ही देखा था। मेरा मतलब है कि सिन्हा अंकल को आंटी के साथ कभी देखा ही नहीं था।
शायद आंटी की तड़प की वजह उन दोनों की आपस की ये दूरियाँ ही थीं… बहरहाल आंटी अपनी कमर को थोड़ा हिला कर मेरे अंगूठे से रगड़ रहीं थीं, अपनी चूत को और अपने घुटने से मेरे लंड को दबाये जा रही थीं.. मेरा बुरा हाल था, आंटी के इतना सब करने के बाद भी मेरी हिम्मत नहीं हो रही थी कुछ करने की। मैं बस उनकी चूत को अपने पैरों से सहला कर और अपने लंड को उनके घुटने पर रगड़ कर मज़े ले रहा था। ट्रेन अपनी पूरी स्पीड से दौड़ रही थी और गाड़ी के हिचकोले हम दोनों को अपने अपने काम में मदद कर रहे थे।
थोड़ी देर में ही मुझे अपने अंगूठे पे ढेर सारे गर्म पानी का एहसास हुआ…
“उम्म… हम्म्म्म…” फिर से वही मादक सिसकारी लेकिन इस बार सुकून भरी.. आंटी के ये शब्द मुझे और भी उत्तेजित कर गए और मेरे लंड ने अकड़ना शुरू किया… लेकिन तभी आंटी ने हरकत करी और अपने पैरों को मेरे पैरों से आजाद करके उठने लगीं। मेरा लंड अचानक से उनके घुटनों से जुदा होकर बेचैन हो गया। आंटी ने जल्दी से उठ कर कम्बल मेरे ऊपर डाल दिया और अपनी सीट पर जाकर लेट गईं। मैं एकदम से चौंक कर देखने लगा लेकिन कोई प्रतिक्रिया नहीं हुई। आंटी ने अपने आपको पूरी तरह से ढक लिया और नींद के आगोश में समां गईं…
“धत तेरे की… के.एल.पी.डी !! मैं तड़पता हुआ अपने लंड को अपने हाथों से सहलाने लगा और उसे सांत्वना देने लगा। बस आज रात की ही तो बात थी, फिर तो कल गावं पहुँच कर अपनी प्रिया रानी की चूत के दर्शन तो होने ही थे। मैं अपने लंड को यही समझाकर सो गया। लेकिन दोस्तों आज मेरा शक पूरी तरह से यकीन में बदल चुका था कि आंटी भी अपनीं दोनों बेटियों की तरह ही मेरे लंड की प्यासी हैं। बस उनकी पहल करनें की हिम्मत नहीं हो पा रही थी।
एक जोर के झटके ने मेरी नींद खोल दी। आँखें खोलीं तो देखा कि दिलदारनगर जंक्शन स्टेशन आ गया था और घड़ी में करीब ढ़ाई बज रहे थे। पूरा डब्बा नींद की आगोश में था और जरा सी भी आवाज़ नहीं आ रही थी। स्टेशन पर कोई भी हमारे डब्बे में नहीं चढ़ा। ट्रेन थोड़ी देर रुक कर फिर से चलने लगी, मैं अपने बर्थ से उठ कर खड़ा हो गया और अपने सामने सोये हुए घर के सभी लोगों का मुआयना करने लगा, सामान भी चेक किया। सब कुछ ठीक पाकर मैंने अपने ऊपर एक हल्की सी शॉल डाल ली जिसे कि मैंने अपना तकिया बना रखा था और बाथरूम की तरफ चल पड़ा।
आंटी की वजह से मेरा लंड बेचारा अब भी तड़प रहा था। मैंने सोचा कि टॉयलेट में मूत्रविसर्जन करके उसे थोड़ा आराम दे दूँ। मैंने बाथरूम में घुस कर अपना लोअर और अपना इनर नीचे किया और अपने लंड को अपने हाथों में लेकर पुचकारने लगा।
ये क्या, यह तो पुचकारने मात्र से ही फिर से खड़ा हो गया… अब तो मुझे लगा कि मुठ मारे बिना कोई उपाय नहीं है आज। यही सोचकर मैंने अपने लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया और धीरे धीरे से मुठ मारने लगा।
“ठक-ठक ! ठक-ठक…! ठक-ठक-ठक…!” अचानक से किसी ने दरवाज़े को लगातार ठोकना शुरू किया…
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