RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
बहन की इच्छा—4
गतान्क से आगे…………………………………..
"में मज़ाक नही कर रहा हूँ, दीदी!" मेने उसे समझाते हुए कहा, "उलटा तुम अगर इस साड़ी के बजाय ड्रेस पहनोगी तो कोई बोलेगा भी नही के तुम्हारी शादी हो गयी है. हम दोनो प्रेमी जोड़ी लगेंगे अगर हम हाथ में हाथ लेकर घूमेंगे तो."
"तुम्हारी कल्पना तो अच्छी है, सागर. लेकिन इसका क्या??" ऐसे कहते ऊर्मि दीदी ने अपना मंगलसूत्र मुझे दिखाते कहा, "इसे देख'ने के बाद तो कोई भी समझ लेगा के मेरी शादी हो गयी है."
"हाँ! तुम सही कह रही हो, दीदी! लेकिन उस'से क्या फरक पड़ता है? हम दोनो शादीशुदा है ऐसे ही सबको लगेगा ना. अब हम दोनो शादीशुदा जोड़ी लगे कि प्रेमी जोड़ी लगे ये तुम तय कर लो, दीदी!"
"अच्च्छा! अच्च्छा! सागर. चल! अब हम तैयार होते है बाहर जा'ने के लिए." ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी उठ गयी और बाथरूम में गयी. फ्रेश होकर वो बाहर आई और फिर में बाथरूम में गया. बाथरूम में आने के बाद सबसे पह'ले अगर मेने क्या किया तो अपना लंड बाहर निकाल'कर सटसट मूठ मार ली और कमोड के अंदर मेरा पानी गिराया.
सुबह जब मेने ऊर्मि दीदी को साड़ी में देखा तब में काफ़ी उत्तेजीत हो गया था. तब से मुझे मूठ मार'ने की इच्च्छा हो रही थी लेकिन सफ़र की वजह से में मूठ नही मार सका. बाद में ऊर्मि दीदी के साथ जैसे जैसे मेरा समय कट रहा था वैसे वैसे में ज़्यादा ही उत्तेजीत होता गया. और थोड़ी देर पह'ले मेरी उसके साथ जो 'प्यारी' बात'चीत हुई थी उस'ने तो मेरी काम'भावना और भी भडक दी थी. इस'लिए बाथरूम में आने के बाद मूठ मार'ने का मौका मेने छोड़ा नही. फिर फ्रेश होकर में बाहर आया.
बाहर आने के बाद मेने देखा के ऊर्मि दीदी ने साड़ी बदल दी थी और हल्का पिंक कलर का पंजाबी ड्रेस पहन लिया था. वो ड्रेस देख'कर में खिल उठ. मेरी बहेन का ये ड्रेस मुझे काफ़ी पसंद था क्योंकी उसमें से उस'का काफ़ी अंगप्रदर्शन होता था. में उसके ड्रेस से उसे निहार रहा हूँ ये देख'कर ऊर्मि दीदी ने कहा,
"ऐसे क्या देख रहे हो, सागर. हैरान हो गये ना ये ड्रेस देख'कर?" ऊर्मि दीदी ने बड़े लाड से कहा, "ये ड्रेस मेरी बॅग में था जो में लेके जा रही थी अप'नी मौसी की लड़'की को देने के लिए. क्योंकी मुझे ये ड्रेस थोड़ा टाइट होता है और वैसे भी आज कल में ड्रेस पहनती ही नही हूँ. वो तो अभी थोड़ी देर पह'ले तुम'ने कहा था ना के ड्रेस पहन'ने से में कुवारी लगूंगी इस'लिए मेने सोचा चलो पहन लेते है आज के दिन ये ड्रेस!"
"ये तो बहुत अच्च्छा किया तुम'ने, दीदी!" मेने खूस होकर कहा. फिर ऊर्मि दीदी ड्रेसंग टेबल के आईने में देख'कर मेक अप कर'ने लगी. मेने हमारे बॅग लॉक किए और वार्ड रोब के अंदर रख दिए. फिर में चेर'पर बैठ'कर ऊर्मि दीदी के तैयार होने की राह देख'ने लगा. जाहीर है के में उसे कामूक नज़र से चुपके से निहार रहा था. वो ड्रेस उसे अच्छा ख़ासा टाइट हो रहा था और उस वजह से उसके मांसल अंग के उठान और गहराईया उस'में से साफ साफ नज़र आ रही थी.
और उपर से उस'ने ओढ'नी नही ली थी जिस से उसकी मदमस्त चुचीया मेरी आँखों में चुभ रही थी. बीच बीच में वो आईने से मुझे देखती थी और हमारी आँखे मिलते ही वो थोड़ा सा शरमाकर हँसती थी. लेकिन में थोड़ा भी ना शरमा के हँसता था. उस'का मेक अप होने के बाद उस'ने आखरी बार अप'ने आप को आईने में गौर से देखा और फिर मेरी तरफ घूमके उस'ने बड़े प्यार से पुछा,
"कैसी लगा रही हूँ में, सागर?"
"एकदम दस साल कम उम्र की, दीदी!!" मेने उसे उप्पर से नीचे तक देख'ने का नाटक कर'ते कहा. जब उसके गले पर मेरा ध्यान गया तो मुझे थोड़ा अजीबसा लगा. मुझे वहाँ कुच्छ कमी नज़र आई. में उसके गले की तरफ देख रहा हूँ यह देख'कर ऊर्मि दीदी हंस'कर बोली,
"ओह. में तो तुम्हे बताना ही भूल गयी. मेने मंगलसूत्र निकाल के रखा है. भले तुम कह रहे हो के हम दोनो शादीशुदा लगेंगे लेकिन मुझे नही लगता सबको ऐसा लगेगा. तो फिर लोगो को शक की कोई गुंजाइश ना रहे इस'लिए मेने मंगलसूत्र निकाल के रख दिया है."
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