RE: bahan ki chudai बहन की इच्छा
हम लोग सेकंड फ्लोर पर हमारे रूम के बाहर पहुँच गये. उस रूम बॉय ने दरवाजा खोल दिया और हमारे बॅग वो अंदर ले गया. जैसे कोई सेवक किसी महारानी के आगे झुक के, हाथ हिला के उसे अंदर जा'ने का इशारा करता है वैसे मेने ऊर्मि दीदी को रूम के अंदर चल'ने का इशारा किया.
मेरा वैसे कर'ना उसे काफ़ी मनोरंजक लगा और वो हंस'ते हंस'ते रूम के अंदर चली गयी. उतने में रूम बॉय बाहर आया. मेने उसके हाथ में दस रुपये थमा दिए और फिर में रूम के अंदर गया.
ये लक्जरी रूम बहुत ही सुंदर था. दरवाजे से अंदर आने के बाद एक पसेज था और दाए बाजू में बाथरूम था. पैसेज से आगे आने के बाद में रूम था. रूम के बीच में डबल बेड था. एक बाजू में ड्रेसंग टेबल था. कोने में एक चेर थी. एअर कंडीशन की वजह से रूम ठंडा लग रहा था. कूल मिला के वो रूम बहुत ही अच्छी तराहा से डेकोरेट किया हुआ था. अंदर आने के बाद ऊर्मि दीदी हैरानगी से रूम को निहार रही थी. उसके आँखों की चमक और चेहरे का खिलतापन बता रहा था के उसे रूम बेहद पसंद आया था.
"कित'ना खूबसूरत रूम है ये, सागर! में पहिली बार ऐसा रूम देख रही हूँ. इस रूम का भाड़ा तो थोड़ा महँगा ही होगा. नही?" ऐसा कहते ऊर्मि दीदी बेड'पर बैठ गयी.
"हाँ!. लेकिन मेरी प्यारी बहन की ख़ूसी से तो ज़्यादा नही है!." मेने उसकी नाक को हलके से पकड़'कर शरारती अंदाज में कहा और उसके बाजू में बैठ गया.
"ओहा, रियली?. तो फिर बता मुझे कि कितना भाड़ा है इस रूम का जो तुम्हारी बहेन की खूशी से काम जो है?" उस'ने भी मेरे ही शरारती आवाज़ में कहा.
"ज़्यादा नही, दीदी. एक दिन का सिर्फ़ 1500 रुपया!"
"पंद्रह सौ??" ऊर्मि दीदी तकरीबन चिल्लाई, "और ये भाड़ा ज़्यादा नही है? तुम पागल तो नही हो गये हो? क्या ये सागर? इतना महँगा रूम लेने की ज़रूरत थी क्या? कोई भी रूम चल जाता ."
"ये देखो, दीदी! तुम पहिली बार इस तरह के रोमान्टीक जगहा पर आई हो तो यह बिताया हुआ हर पल तुम्हे जिंदगीभर याद रहना चाहिए. और उसके लिए तुम्हे सभी फ़र्स्ट क्लास चीज़ों का आनंद लेना चाहिए ऐसा मुझे लगता है. और सही मानो मेरी लाडली बहन को एकदम कम्फर्टेबल और रिलक्स फील कर'ना चाहिए ऐसा मुझे लगा इस'लिए मेने इत'ना महँगा रूम ले लिया."
"ओहा, सागर! तुम कितना ख़याल रखते हो मेरा.. थाक्स, ब्रदर!" ऐसा कह'कर ऊर्मि दीदी ने मुझे बाँहों में भर लिया. उसकी छाती के उठान मेरी छाती पर दब गये. तो फिर मेने भी उसे ज़ोर से आलींगन दिया. कुच्छ पल हम वैसे ही एक दूसरे की बाँहों में रहे और फिर ऊर्मि दीदी मुझसे अलग होते बोली,
"सागर! तुम'ने गौर किया. वो रूम बॉय मेरी तरफ बार बार चुपके से देख रहा था? वो ऐसे क्यो देख रहा था?"
"क्या मालूम, दीदी!" मेने उसे जवाब दिया और शरारती अंदाज में आगे कहा, "शायद उसे लगा होगा के हम शादीशुदा जोड़ी है और वो तुम्हारी तरफ नई दुल्हन को जैसे देख'ते हैं वैसे देखा रहा होगा."
"तुम तो कुच्छ भी बकते हो, सागर! हम दोनो क्या शादीशुदा जोड़ी जैसे दिखाते है? में क्या नई दुल्हन लगती हूँ?"
"अब ये देखो, दीदी! पहली बात ये के हम दोनो भाई-बहेन है ये किसे पता है? हमारे माथे पे वैसे लिखा है क्या? दूसरी बात ये के इस होटल में आनेवाली जोड़ी या तो शादीशुदा होती है या तो फिर प्रेमीयों की जोड़ी होती है. तो शायद उस रूम बॉय को लगा होगा के हमारी वैसी ही कोई जोड़ी है."
"तो फिर हम दूसरे होटल में क्यो नही गये जहाँ ऐसी जोड़ीयां नही जाती है?"
"वैसा होटल तुम्हे खंडाला में मिलेगा ही नही, दीदी! क्योंकी सभी होटल में ऐसी ही जोड़ीयां जाती है."
"अच्च्छा! तो एक बात बता, सागर! तो फिर तुम'ने होटल के रजिस्टर में हमारे बारे में क्या लिखा है?" ऊर्मि दीदी ने जान'कारी के लिए पुछा.
"मेने ना. ऱजिस्टर में लिखा. मिस्टर अन्ड मिसेस.!" मेने चुपके से उसे जवाब दिया.
"क्या???" ऊर्मि दीदी ने चिल्लाते हुए कहा, "सागर.. में क्या तुम्हारी बीवी लगती हूँ?? और तुम क्या मेरे पती लगते हो??"
"क्यों नही, दीदी?." में हंस'ते हंस'ते उसे बताने लगा, "अब देखो, दीदी! माना के तुम मेरे से आठ साल बड़ी हो लेकिन तुम्हारी उम्र जित'नी तुम बड़ी दिखती नही हो. और में भी अप'नी उम्र से बड़ा ही दिखता हूँ. इस'लिए हम दोनो पाती-पत्नी जोड़ी के लिए ज़रा भी ऑड नही लग'ते है."
"हे राम! नालयक!" ऊर्मि दीदी ने मुझे झुटे गुस्से से चाटा मारते कहा, "तुम्हे शरम नही आती खुद को बहेन का पती कहलाते हुवे? अगर किसी को मालूम पड गया तो, हम बहेन-भाई है ये?"
|