RE: Antarvasna kahani घरेलू चुदाई समारोह
कोमल को इस बात से कोई परेशानी नहीं हुई कि प्रेम इतनी जल्दी स्वाहा हो गया। वो तो अमृतपान में व्यस्त थी। और उसे विश्वास था कि वो प्रेम को जल्द ही फ़िर से सम्भोग के लिये तैयार कर लेगी- “पिला दो मुझे अपना रस…” जब प्रेम के रस की पिचकारी ने पहला विश्राम लिया तो कोमल अपना मुँह खोलकर बोली। कोमल को लण्ड चूसना इतना अच्छा लग रहा था कि वो उसे छोड़ने को राजी नहीं थी। उसने जब तक उसे पूरी तरह सुखा नहीं दिया, छोड़ा नहीं।
प्रेम थक कर बिस्तर पर लेट गया- “अभी मैं और नहीं कर सकता, मैनें बहुत औरतें देखीं, पर तुम सी…”
कोमल मुश्कुराई और उसके ऊपर आ लेटी। “रंडी…” वो बोली- “अगर तुम मुझे रंडी कहोगे तो मैं बुरा नहीं मानूंगी। बल्कि शायद मुझे अच्छा ही लगे। मैं चाहती थी कि आज तुम मुझे एक रंडी की तरह ही चोदो। आज मैं वैसे ही चुदी जैसे सालों से चाहती थी। मेरे पति एक बहुत अच्छे आदमी हैं, इसलिये कभी इस तरह पेश नहीं आते…”
“मै समझ सकता हूँ जो तुम कहना चाहती हो। मेरी पत्नी भी सैक्स के प्रति बहुत सीधी है। तुम्हें विश्वास नहीं होगा मैने आज तक उसके मुँह में अपना लण्ड नहीं डाला है…”
“तो आज की रात हम एक दूसरे की सहायता करेंगे…” कोमल ने प्रेम को चूमते हुए कहा- “और ऐसा क्या है जो तुम तो चाहते हो पर वो नहीं करने देती… तुम चाहो तो मेरे मम्मों की भी चुदाई कर सकते हो। वाह देखो, यह फ़िर से मेरे लिये खड़ा होने लगा है…” कोमल ने अपनी विशाल गोलाइयों को उसपर झुकाते हुए अपने हाथों से उन्हें दबाया- “तुम चाहो तो मेरे मम्मों को चोद सकते हो…”
“मेरी पत्नी तो मुझे कभी ऐसा न करने दे…” प्रेम ने अपने लण्ड को कोमल की चूचियों के बीच में चलाना शुरू कर दिया।
“चोदो मेरे मम्मों को…” न जाने क्यों वो इस आदमी के साथ वो सब करना चाहती थी जो उसकी पत्नी उसे नहीं करने देती थी। है भगवान, यह कितना गर्म लग रहा है यहाँ पर। सुनील ने कभी ऐसा नहीं किया था और वो यह सब न जाने कब से करने को बेताब थी। सुनील को हमेशा यह डर रहता था कि कोमल को कहीं इससे तकलीफ़ न हो। काश… उसे पता होता। इसी कारण से और भी कुछ था जो सुनील ने कभी नहीं किया था।
“क्या तुमने कभी अपनी बीवी की गाण्ड मारी है…” कोमल ने अपने मम्मों को प्रेम के लण्ड पर और जोर से दबाते हुए पूछा।
“अगर मैं उससे पूछूंगा भी तो वो मर जायेगी। क्या तुम यह कहना चाहती हो कि तुम मुझसे अपनी गाण्ड भी मरवाना चाहती हो…”
इसके जवाब में कोमल ने अपने शरीर को इस तरह मोड़ा की उसका पिछवाड़ा प्रेम के मुँह की तरफ़ हो गया। “मेरी गाण्ड मारो, अपने इस मूसल से मेरी गाण्ड की धज्जियां उड़ा दो…” कोमल ने जवाब दिया।
प्रेम कोमल के पीछे गया और उसने कोमल के पिछवाड़े को पकड़कर उसके इंतज़ार करते हुए छेद पर एक नज़र डाली। वो इस दृश्य का भरपूर आनंद उठाना चाहता था।
“जल्दी करो… मुझे इस बात की बिलकुल परवाह नहीं कि मुझे दर्द होगा…” कोमल ने मिन्नत की। उसने अपने हाथ पीछे करते हुये अपने कद्दू से पुट्ठों को फ़ैलाया जिससे कि उसकी गाण्ड का छेद प्रेम के लिये और खुल गया। अब कोई शक नहीं था कि वह मूसल सा लौड़ा किस रास्ते को पावन करेगा।
प्रेम का लौड़ा अपने मदन रस से गीला था, उसे किसी और चिकनाहट की आवश्यकता नहीं थी। उसने अपने लण्ड का सुपाड़ा गाण्ड के मुहाने पर रखा और धुंआंधार धक्का मारा।
“अरे मरी रे… इसमें तो बहुत दर्द होता है…” जैसे ही प्रेम के सुपाड़े ने गाण्ड को छेदा तो कोमल चीख उठी। उसके शरीर में एक तीव्र वेदना उठी। एक मिनट के लिये तो उसकी सांस ही बंद हो गई, और गाण्ड… उसके दर्द की तो कोई इंतहा ही नहीं थी।
जब वो थोड़ा सम्भली तो बोली- “ओके प्रेम अब पूरा पेल दो अपना लण्ड मेरी गाण्ड में…”
“क्या इसमें बहुत दर्द होता है…” प्रेम ने पूछा। उसने नीचे देखा पर समझ नहीं पाया कि उसका पूरा लण्ड इतनी संकरी गली में कैसे घुस पाया था।
“और नहीं तो क्या, जान निकल जाती है…” कोमल अभी भी तकलीफ़ में थी- “पर मुझे परवाह नहीं, तुम जितनी जल्दी इसकी चुदाई शुरू करो उतना ही अच्छा है। मैं जल्द ही आदी हो जाऊँगी…” उसने अपनी गाण्ड को पीछे धक्का दिया जिससे कि लण्ड थोड़ा और अंदर जाये।
क्रमशः.............
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