Desi Sex Kahani चढ़ती जवानी की अंगड़ाई
03-11-2019, 12:51 PM,
#25
RE: Desi Sex Kahani चढ़ती जवानी की अंगड़ाई
मनोज से बात करके पूनम को काफी अच्छा लग रहा था,,, जिंदगी में पहली बार उसने इस तरह के कदम उठाए थे पहली बार किसी लड़के के साथ फोन पर बात की थी उसके दिल को सुकून मिल रहा था वह काफी अच्छा महसूस कर रही थी,,, वरना जब तक वह मनोज से बात नहीं की थी तब तक उसके मन में ना जाने कैसे-कैसे ख्याल आते थे। उसके बदन में अजीब सी हलचल सी मची हुई थी उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे उसे जोरों की पेशाब लगी है इसलिए वह शॉल ओढ़ कर कमरे से बाहर आ गई,,,, लेकिन इस बार वह घर के बाहर पेशाब करने के लिए नहीं गई बल्कि सामने के बाथरूम में घुसकर जल्दी-जल्दी अपने सलवार की डोरी खोल कर,,, पेशाब करने बैठ गई आज उसकी बुर से बड़ी तेजी के साथ पेशाब की धार फूट पड़ी थी उसे ऐसा लग रहा था कि अगर कुछ देर रुकी रहती तो शायद वह सलवार गीली कर देती,,,,

थोड़ी ही देर में वहां पेशाब करके खड़ी हो गई और अपने सलवार को पहनने लगी लेकिन उसे अजीब सा महसूस हो रहा था पेशाब करने के बाद भी उसे अपनी बूर के इर्द-गिर्द बेहद गीलापन महसूस हो रहा था,,,,ऊसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है,,, वह जल्दी-जल्दी अपने कमरे में आई और बल्ब जलाकर फिर से अपनी सलवार की डोरी खोलकर सलवार को पेंटिं सहीत अपनी जांगो तक नीचे सरका दी,,, वह ध्यान से अपनी बुर को देखने लगी,, बुर पर हल्के हल्के बाल उगे हुए थे कुछ दिन पहले ही उसने क्रीम लगाकर अपनी बुर को साफ की थी,,,, क्योंकि हमेशा वहां अपने अंगों की सफाई की ज्यादा ध्यान देती थी,,,, भले ही अभी उसकी बुर पर झांट के बाल ज्यादा घने ना आते हो,, लेकिन फिर भी वह सप्ताह में एक बार क्रीम का उपयोग करके अपनी बुर पर ऊगे बालों को साफ जरूर करती थी,,,,

उसे इस बात का अंदाजा बिल्कुल भी नहीं था कि उसकी बुर बेहद ही खूबसूरत रूप में घड़ी हुई थी,,, उसकी बनावट बेहद खूबसूरत और अद्भुत थी इस बात का अंदाजा उसे बिल्कुल भी नहीं था,,,, इस बात का अंदाजा वहीं लगा सकता था जो कि उसकी बुर को रूबरू अपनी आंखों से देख पाए,,,,

बुर बड़ी मुश्किल से केवल एक ही इंच के लगभग होगी लेकिन उसके इर्द-गिर्द का भाग काफी फूला हुआ था मानो कि जैसे तवे पर कोई रोटी फूल रही हो,, पूनम किशोर और चिकनी जांघों के बीच का वह हिस्सा बुर ही है यह दर्शाने के लिए,, उसके बीच हल्की सी एक पतली लकीर के जैसी दरार थी जिससे यह पता चलता था की यह पूनम की बुर है,,,, वैसे तो पूनम की खूबसूरत बुर का स्पष्ट वर्णन उसकी सुंदरता लिखने पर पूरी एक उपन्यास भर जाए इतनी बेहद खूबसूरत और रस से भरी हुई थी उसकी बुर,,,, 

लेकिन उसकी यही खूबसूरत बुर ईस समय उसकी परेशानी का कारण बना हुआ था,,, पूनम बड़े आश्चर्य जैसे अपनी बुर की तरफ देखकर हैरान हो रही थी,,, क्योंकि पेशाब करने के बावजूद भी उसे ऐसा महसूस हो रहा था कि उसकी बुर पूरी तरह से गीली है,,, इसलिए वह अपने मन की तसल्ली के लिए हाथ को नीचे की तरफ ले जाकर उसे अपनी बुर पर रखकर टटोलने लगी,, जिससे कि उसे एहसास हो गया कि वाकई में उसकी बुर पूरी तरह से गिली थी,,,, लेकिन उसे एक बात बेहद परेशान कर रही थी कि गीली होने के साथ साथ चिपचिपी भी थी ऊसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि आखिरकार यह चिपचिपा सा तरल पदार्थ है क्या? वह चिपचिपा तरल पदार्थ उसकी उंगलियों पर लग चुका था,,, जिसे वह ध्यान से देख रही थी लेकिन उसे कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था आखिरकार थक हारकर वह बुर के ऊपर लगे चिपचिपा पदार्थ को रुमाल से साफ करके सो गई,,,,

दूसरी तरफ मनोज भी बहुत खुश था क्योंकि वह आज पहली बार अपने मनपसंद की बेहद खूबसूरत लड़की के साथ बातें करते हुए संतुष्टि भरा चरम सुख प्राप्त किया था जितना मजा उसे आज पूनम के साथ केवल साधारण से बातचीत करने में आया इतना मजा उसे दूसरी औरतों और लड़कियों के साथ अश्लील बातें करने में भी नहीं आया था वह भी पूनम की यादों को सीने से लगाए सो गया,,

दोनों की प्रेमगाथा शुरू हो चुकी थी जो कि एक तरफ से तो प्यार ही था लेकिन दूसरी तरफ प्यार के साथ-साथ वासना का भी मिश्रण था जो कि समय के साथ काफी फल-फूल रहा था,,,, स्कूल में आते जाते रास्ते में दोनों इस तरह से व्यवहार करते थे कि जैसे एक दूसरे के प्रति दोनों के मन में किसी भी प्रकार का स्नेह या आकर्षण नहीं है लेकिन मन ही मन दोनों एक दूसरे को जी-जान से चाहने लगे थे,,,,, दो-चार दिन तक पूनम को मोबाइल नहीं मिला क्योंकि उसकी चाची अपनी मां के फोन करके बातें किया करती थी जिसकी वजह से वह अपनी चाची से फोन भी नहीं मांग पा रही थी,,,, और मनोज बेहद परेशान सा हो गया था क्योंकि पूनम ने सख्त हिदायत दे रखी थी कि जब तक वह मिस कॉल ना करें तब तक वह फोन नहीं करेगा वरना वह रिश्ता तोड़ देगी,,,,, पूनम की बात की गहराई को बहुत अच्छी तरह से समझता था क्योंकि अगर वह अपने ऊपर काबू में रख कर फोन कर दिया तो हो सकता है उसके परिवार में कोई भी फोन उठा सकता था और उस समय पूनम के लिए मुसीबत खड़ी हो सकती थी और वहां ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता था इसलिए अपनी भावनाओं पर काबू कर के वह शांत रह जाता था,,,। मनोज से बात किए बिना पूनम काफी बेचैन हो जाया करती थी वहां दिन रात बस फोन कहीं जुगाड़ में लगी रहती थी लेकिन दिन में तो उसे बिल्कुल भी समय नहीं मिल पाता था और रात में उसकी चाची फोन अपने पास में ही रखती थी इस वजह से पूनम का काम बिगड़ता जा रहा था,,,,, वक्त के साथ-साथ सुजाता की बुर में भी खलबली सी मचने लगी थी,,,। वह हमेशा मौके के ही तलाश में रहती थी लेकिन कुछ दिनों से उसे भी मौका नहीं मिल पा रहा था,,,,। सोहन तो वैसे ही शुरू से औरतों का दीवाना था,,,। आंख सेंकने के लिए उसे कहीं दूर जाने की जरूरत नहीं पड़ती थी जब भी आंख सेकना होता था, तो वह पूनम के घर दूध लेने के बहाने चले जाता था क्योंकि वह भी अच्छी तरह से जानता था कि पूनम के घर में एक से एक गर्म साइलेंसर,,, अपनी गर्माहट उसकी जवानी के रस को पिघलाने का पूरा जुगाड़ की तरह थे,,,,। जब कभी भी उसे चोदने के लिए बुर नहीं मिलती थी तो अक्सर वह पूनम के घर की औरतों के बारे में कल्पना कर कर के हाथ से ही काम चला लिया करता था,,। वैसे भी पूनम के घर की औरतें एकदम हाई वोल्टेज टाइप की एक से बढ़कर एक माल थी।,,, ऐसे ही वह अपनी आंख सेंकने के लिए पूनम के घर दूध लेने के बहाने से पहुंच गया,,,, घर के आंगन में पहुंचकर वह इधर उधर देखने लगा,,,, वह इसी ताक में था कि किसी की मदमस्त बड़ी बड़ी बड़ी गांड देखने को मिल जाए भले ही साड़ी के ऊपर से ही सही,, वह कुछ देर तक आवाज नहीं खड़ा रहा लेकिन किसी ने भी उसे अपने खूबसूरत बदन के दर्शन नहीं कराए,,, उसका लंड तड़प रहा था नजारा देखने के लिए,,, जब काफी देर हो गई उसे वही खड़े-खड़े इंतजार करते हुए तो वह आवाज लगाकर बुलाने की सोचा और जैसे ही आवाज लगाने जा रहा था कि सामने से हाथों में ढ़ेर सारे बर्तन लिए पूनम बाहर आती नजर आई,,,,, उस पर नजर पड़ते ही सोहन खुश हो गया और मन में ही सोचा चलो,,,,

कोई बात नहीं,,,, जवानी का गोदाम ना सही जवानी का शोरूम भी चलेगा,,,, पूनम सोहन की तरफ देखते ही गुस्से मैं नजर दूसरी तरफ फेरते हुए,,, बर्तन को जोर से पटकते हुए बोली,,,,

क्या काम है? 

दूध लेना है और कुछ काम नहीं है,,,,

तो तबेले मे जाओ यहां क्या कर रहे हो,,,,,? 

तुम नहीं दोगी,,,,,,, दूध,,,,,( सोहन,, दो अर्थ वाली भाषा में बात कर रहा था,,,।)

नहीं आज मैं नहीं दूंगी मुझे बहुत काम है तबेले में जाओ वहां पर चाची हैं वह तुम्हें दूध देंगी,,,,,

अच्छी बात है वैसे भी तुम बहुत कम दुध देती हो चाची अक्सर ज्यादा दूध देती है,,,( सोहन दांत दिखाते हुए बोला उसकी बात को सुनकर पूनम गुस्से में बोली,,,।)

जितना आता है उतना ही दूंगी ना कि तुम्हारे लिए ज्यादा निकाल कर दे दूंगी,,,,


तो ज्यादा निकाला करो यह तो तुम्हारे ऊपर ही है,,,,

ऐसे कैसे ज्यादा निकाल दूं जितना होगा उतना ही दूंगी ना अगर ज्यादा ही चाहिए तो ज्यादा पैसे दिया करो,,,,
( पूनम सोहन की दो अर्थ वाली भाषा को समझ नहीं पा रही थी इसलिए वह मासूमियत से उसका जवाब दे रही थी लेकिन उसके जवाब को दूसरी तरफ से लेकर सोहन बहुत खुश हो रहा था,,,।)

ऐसे कैसे ज्यादा पैसे दे दूं जितना पैसा देता हूं उतने में तुम्हारे घर के सभी ज्यादा दूध देती हैं एक तुम ही हो जो बहुत कम दूध देती हो,,,,

अच्छा जाओ यहां से मुझसे ज्यादा बहस मत किया करो जो ज्यादा दूध देता हो उसी से ले लिया करो,,,,,( पूनम गुस्से में बोल कर नीचे बैठकर बर्तन मांजने लगी,,, और इसी पल का सोहन बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रहा था किंतु जैसे ही वह नीचे बैठने के लिए झुकि उसकी गोल गोल का है सलवार के ऊपर से भी अपनी खूबसूरती बिखरने लगी,,, सोहन मात्र 2 सेकंड के नजारे से एक दम मस्त हो गया और हंसते हुए वहां से तबेले की तरफ चला गया,,,,, वैसे तो वह यहां पर सुजाता के हितार्थ में आया था लेकिन सुजाता उसे कहीं नजर नहीं आ रही थी काश अगर वह उसे नजर आ जाती तो वह अपने लिए कुछ जुगाड़ बना पाता लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ तबेले में पहुंचते ही उसकी नजर,,, संध्या चाची पर पड़ी जो कि झुक कर भैंस की रस्सी को बांध रहीे थी,,,, जो कि झुकने की वजह से उसकी जवानी की दुकान कुछ ज्यादा ही उभार लिए नजर आ रही थी जिसे देख कर सोहन का लंड ठुनकी मारने लगा,,, लेकिन वह एक कारण की वजह से अपना मन मसोसकर रह गया क्योंकि,,, संध्या की जवानी की दुकान पर साड़ी रुपी सटर पड़ा हुआ था। जी मैं तो आ रहा था कि वह पीछे से जाकर उसका शटर उठाए और अपने लंड को बुर में डालकर चोद डाले,,, क्योंकि उसकी हालत खराब हुए जा रही थी और उसके पैंट में तंबू बन चुका था,,,, वह उसकी मत मस्त गांड को हिलते-डुलते हुए देखकर धीरे-धीरे उसके नजदीक जाने लगा,,,, साथ ही वह पेंट के ऊपर से अपने लंड को मसलते हुए जा रहा था,,, इतने दिनों से पूनम के घर उसका आना जाना था।

इसलिए अच्छी तरह से देख कर यह समझ गया था कि पूनम के घर में जितनी भी औरतें थी उन सब में सबसे बड़ी और बेहद भरावदार गांड संध्या की थी जिसे देखते ही किसी का भी लंड खड़ा हो जाए,,,,सोहन संध्या की बड़ी बड़ी मटकती हुई गांड को देखकर एकदम कामीभूत हो चुका था,,,,

अभी तो मात्र उसने साड़ी के ऊपर से ही बस उसकी बड़ी-बड़ी प्यार की कल्पना ही किया था अगर वह सच में उसकी नंगी गांड को देख लेता तो खड़े खड़े पानी छोड़ देता,,,, संध्या उसी तरह से झुककर रस्सी को बांधने में लगी हुई थी,,, उसे तो इस बात का अंदाजा भी नहीं था कि उसके पीछे वासना से भरा हुआ एक नौजवान लट्ठ खड़ा है,,, वह अपने काम में एकदम मग्न थी,, वह संध्या के एकदम बिल्कुल करीब पहुंच गया था,,, वह पीछे से संध्या को पकड़कर अपने लंड का कड़कपन उसकी बड़ी बड़ी गांड पर धंसाना चाहता था,,,। क्योंकि वह अच्छी तरह से जानता था कि संध्या की उम्र की औरतों को बड़े बड़े लंड का बहुत ही ज्यादा शौक होता है,,,,

पहले तो वह समाज और परिवार के डर से बिल्कुल भी हां नहीं बोलती लेकिन धीरे-धीरे जब उनका डर निकल जाता है तो वह अपनी बुर में मोटा लंड को लिए बिना बिल्कुल भी नहीं रह पाती,,, वह ईस बात से इसलिए अच्छी तरह से वाकिफ था क्योंकि वह खेला खाया जवान था और अब तक उसने संध्या जैसी उम्र की औरतों को ही चोदते आया था,,,,।
सोहन धीरे-धीरे आगे बढ़ ही रहा था कि तबेले में बड़ी एक भैंस उसकी तरफ से मारने के लिए लपकी,,, और वह उस भेश से बचने के लिए थोड़ा सा हट कर जल्दी से आगे बढ़ा ही था कि तभी उसके दिमाग में एक शरारत सूझी और वह भैंस से बचने के बहाने जल्दी से संध्या के पिछवाड़े से सटते हुए बचते बचते नीचे गिर गया और इस तरह से अपने बदन से सटने की वजह से संध्या एक दम से घबरा गयी,,,, वह पीछे मुड़कर देखी तो सोहन नीचे घास फूस के ढेर पर गिरा हुआ था,,,, लेकिन सोहन गिरने से पहले अपना काम कर चुका था वह बचते-बचते संध्या के बड़े पिछवाड़े के बीचोे बीच,,, अपने खड़े लंड का कठोरपन धसाते हुए अपने लंड को उसके नितंबों के बीचो-बीच उसे महसूस करा गया था,,,। इसलिए तो संध्या घबराकर तेजी से उछली थी।,, उसे ऐसा महसूस हुआ था कि कोई ऊसकी गांड के बीचो-बीच कोई नुकीली चीज घुसेड़ रहा है,,,, वह अपने आप को संभाल पाती तभी,,
ऊसकी नजर घास फुस के ढेर पर गिरे सोहन पर पड़ी,,, जो की बड़े जोर से गिरा था,,,,, जिस तरह से वह घबरा गई थी उसे देखते हुए वहां सोहन को गुस्से में डांटना चाहती थी लेकिन उसकी हालत को देखकर उसे हंसी आ गई पल भर के लिए वह एकदम से भूल गई की उसके नितंबों के बीचो-बीच कोई नुकीली जीच चुभी थी,,,, और वह सोहन की हालत को देखकर जोर-जोर से हंसने लगी,,, उसे हंसता हुआ देखकर तो हमको भी अच्छा लग रहा था लेकिन फिर भी वह थोड़ा सा जानबूझकर गुस्सा दिखाते हुए बोला ताकि उसको यह ना लगे कि जिस चीज का अनुभव उसनें अपने नितंबों के बीचो-बीच कुछ पल पहले की थी वह जानबूझकर हुआ था,,,,

कमाल करती हो तुम भी एक तो तुम्हारी भैंस की वजह से मैं गिर गया और तुम्हें हंसी सूझ रही है,,,

अब हमसे ना तो क्या करूं तुझे देख कर चलना चाहिए था ना

मे तो देखकर ही आ रहा था लेकिन तुम्हारी भैंस न जाने क्यों भड़क गई,,, 

तो जरूर कुछ किया होगा तभी भड़क गई वरना वहं तो बहुत सीधी है,,

अच्छा,,,,, सीधी,,,,, और वह भी तुम्हारे साथ रहकर हो ही नहीं सकता,,,,,

तेरा क्या मतलब है,,,

अरे मतलब साफ है एक तो मैं नीचे गिरा हुआ हूं और मुझे उठाने की बजाय तुम हंसे जा रही हो,,,

अच्छा बाबा ठीक है ला,,, मुझे हाथ हाथ दे मैं तुझे उठाती हुं।
( संध्या हंसते हुए बोली,,, सोहन को बहुत ही अच्छा लग रहा था नीचे घास फूस के ढेर पर पड़ा हुआ वह ऊपर की तरफ देख रहा था और उसे संध्या का पूरा नजारा देखने को मिल रहा था,,, हवा बहने की वजह से उसकी साड़ी इधर-उधर लहरा रही थी साथ ही उसका पेटीकोट भी नजर आ रहा था जी मैं तो आ रहा था कि वह उसकी पेटीकोट को उठाकर उसकी नमकीन जवानी को देख ले लेकिन ऐसा करने में अभी वह हीचकीचा रहा था,,,। संध्या के कहने पर वह हाथ आगे बढ़ा दिया और संध्या ने उसका हाथ पकड़ते हुए उसे ऊपर उठाने की कोशिश की लेकिन सोहन का शरीर कसरती और भारी भरकम था,,, जो कि एक औरत से उठने वाला नहीं था तो भी संध्या कोशिश करके उसे उठाने लगी लेकिन तभी उसका पैर फिसला और वह सीधे सोहन के ऊपर गिर गई,,

संध्या गिर कर सीधे सोहन की बाहों में पड़ी थी,,, सोहन संध्या को गिरते हुए देख लिया था इसलिए उसे थाम लिया लेकिन उसे थामते हुए भी धीरे-धीरे अपनी बाहों में गिरा ही दिया,,, गजब का एहसास सोहन के बदन में हो रहा था उसे ऐसा लग रहा था कि जैसे ऊपर वाले ने उसे कोई भारी भरकम तोहफा दे दिया हो,,, संध्या को तो कुछ समझ में नहीं आया कि आखिर हुआ क्या जब उसे होश आया तो वह सोहन की बाहों में थी,,,, उसके लाल लाल होंठ सोहन के होंठों के बिल्कुल करीब थे,, सोहन के जी में आया कि वह उसके होठों को चूम ले,,,,, संध्या की बड़ी बड़ी चूची की नर्माहट को वह अपने सीने पर महसूस करके एकदम से उत्तेजित हुआ जा रहा था,,,, उसका लंड एकदम से तन कर खड़ा हो गया था जो कि अब सीधे संध्या की जांघों के बीच,, साड़ी के उपर से ही उसकी बुर के मुहाने पर दस्तक दे रहा था,,, जिसका एहसास संध्या को भलीभांति हो रहा था कुछ पल के लिए तो संध्या को उस कठोर पन का एहसास अपनी बुर के मुहाने पर बेहद सुखदायक लग रहा था ऐसा लग रहा था कि वह कठोर सी चीज साड़ी फाड़कर ऊसकी बुर में समा जाएगी,,, संध्या को इस बात को समझते बिल्कुल भी देर नहीं लगी कि कुछ देर पहले जो उसके नितंबों के बीचो बीच जो नुकीली सी चीज चुभी थी वह सोहन का दमदार लंड ही था इस बात का एहसास होते ही उसके बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ गई,,,,,,,, उसके दिल में तो आ रहा था कि वह इसी तरह से सोहन के बदन पर लेटी रहे और उसके दमदार लंड को अपनी बुर के मुहाने पर महसूस करतेी रहे,,

जिस तरह से संध्या उसके बदन पर लेटी हुई थी और उठने की बिल्कुल भी कोशिश नही कर रही थी,,, उसे देखते हुए सोहन को भी थोड़ी छूट छाट लेने की इच्छा हो गई,,, और वह अपने दोनों हाथ को संध्या की कमर पर रखते हुए नीचे की तरफ ले गया और संध्या की पूरी पूरी कहानी पर अपनी हथेली को रखकर ऐसा जताते हुए कि वह उठने की कोशिश कर रहा है जितना उसकी हथेली में हो सकता था उतना संध्या की गांड को भर कर जोर से दबा दिया इतनी जोर से दबाया था कि संध्या के मुंह से हल्की सी चीख निकल गई,,

आऊच्च,,, 
( संध्या की चीज की आवाज सुनकर संध्या कुछ कहती ईससे पहले ही सोहन बोल पड़ा,,,।)

क्या करती हो चाची एक तो पहले से ही गिरा हुआ था कि मुझे उठाने की बजाय तुम मुझ पर ही गिर पड़ी पता है मेरी पीठ कितनी तेज दर्द कर रही है,,,,
( संध्या जानती थी की उसने जानबूझकर उसकी गांड को हाथों से दबाया था,,, लेकिन वह औरत होने के नाते उसे कुछ कह नहीं पाई और शरमाते हुए उसके ऊपर से उठने लगी,,। उसके उठने के बाद सोहन खुद अपने आप ही उठ गया और अपने बदन को झाड़ने लगा,,,, सोहन मन ही मन बहुत खुश हो रहा था क्योंकि उसका काम हो गया था उसने अपनी मर्दाना ताकत को संध्या के बदन में महसूस करा कर उसके बदन में खलबली मचा दिया था,,,, संध्या शर्मा कर दूसरी तरफ देखने लगे तभी तो उनकी नजर संध्या की ब्लाउज मै से झांक रही उसकी नंगी पीठ पर गई,,, और उसकी नंगी चीकनी पीठ को देखकर उसे छुने की इच्छा होने लगी,,, इसलिए उसकी पीठ को छूने के लिए एक बहाने से बोला,,,

चाची तुम्हारी पीठ पर धूल मिट्टी लगी है उसे साफ कर लो,,,

( संध्या को ना जाने क्या हो गया था वह तो सोहन से नजर तक नहीं मिला पा रही थी,,,, क्योंकि अभी तक सोहन के लढ के कड़कपन का असर उसके बदन पर छाया हुआ था,,,वह सोहन की तरफ देखे बिना ही बोली,,,,)

तू ही झाड़ दे मेरा हाथ वहां तक नहीं पहुंचेगा,,,
( संध्या की यह बात सुनकर तो सोहन की बांछे ही खिल गई
ऊसे इस बात की उम्मीद बिल्कुल भी नहीं थी कि संध्या ऐसा कुछ कहेगी,,, संध्या की बात सुनते ही वहां जबसे उसके पीछे पहुंच गया और अपनी उंगली से उसकी महंगी चिकनी पीठ पर इस तरह से स्पर्श कराने लगा मानो कि वह सच में धूल मिट्टी साफ कर रहा है,,,,। लेकिन संध्या की चिकनी पीठ का स्पर्श उंगली पर होते ही उसके तन-बदन में उत्तेजना की लहर दौड़ने लगी,,, बिल्कुल यही हाल संध्या का भी हो रहा था ।

संध्या के तन-बदन में कामाग्नि की तेज लहर दौड़ रही थी जिसकी वजह से उसे साथ-साथ महसूस हो रहा था कि उसकी बुर से मदन की बूंदे टपक रही थी,,,, संध्या ने इस तरह का उत्तेजना का अनुभव किसी गैर मर्द के सामने पहली बार कर रही थी,,,,, ज्यादा देर तक वह संध्या की पीठ को सहला नहीं सकता क्योंकि कोई भी आ सकता था,,,, इसलिए वह आखरी क्षण अपनी उंगली का दबाव उसकी नंगी पीठ पर बढ़ाते हुए बोला,, जिसकी वजह से संध्या के मुंह से हल्की सी सिसकारी फूट पड़ी,,,,।)
सससससहहहहहह,,,,, 

चाची हो गया,,,, साफ हो गया,,,,,

( सोहन संध्या को चाची कह कर संबोधित कर रहा था ताकि संध्या को बिल्कुल भी शक ना हो कि जो उसने किया है वह जानबूझकर किया है,,, वैसे भी पड़ोसी होने के नाते और दोनों की उम्र में काफी अंतर होने की वजह से संध्या उसकी चाची ही लगती थी,,, संध्या के बदन में शुभम ने एकदम से काम भावना प्रज्वलित कर दिया था,,, तभी संध्या अपने आप को संभालते हुए सोहन से बोली,,,।)

ला मुझे बरतन दे,,, मैं उसमें दूध भर दूं,,,,
( सोहन नीचे गिरे बर्तन को उठाकर संध्या को थमाते हुए बोला।)

लो चाची ज्यादा देना,,,, तुम ज्यादा दूध देती हो,,,, ( सोहन मुस्कुराते हुए बोला और उसके कहने के अर्थ को समझते ही संध्या का बदन अंदर ही अंदर सिहर उठा,,, वह बिना कुछ बोले बर्तन में दूध भरकर सोहन को थमाने लगी,, दुध थमाते हुए उसकी नजर शुभम की पेंट की तरफ गई तो उसकी आंखें फटी की फटी रह गई,,

सोहन की पेंट में बने तंबू को देख कर संध्या की आंख फटी की फटी रह गई क्योंकि वह अच्छी तरह से जानती थी कि पैंट में बना इतना ऊंचा तंबू उसके किस अंग की वजह से बना हुआ है,,, इसलिए तो उसका तन-बदन एकदम से झनझना उठा,, उसको समझते देर नहीं लगी कि सोहन का हथियार एकदम तगड़ा और बलिष्ठ है,,,, वह जल्दी से सोहन को दूध का बर्तन थमा कर अपना काम करने लगी ताकि सोहन चला जाए,,,, सोहन अपना काम कर चुका था धीरे-धीरे करके उसने घर की तीन औरतों को अपने बलिस्ठ हथियार का परिचय दे चुका था,,, सबसे पहले वह पूनम को इसी तरह से अपने पैंट में बना तंबू दिखाया था जिसे देखकर वह भी सिहर उठी थी,,,, दूसरी थी सुजाता,,,, उसे तो वहं अपने हथियार का स्वाद भी चखा चुका था,,, और तीसरे नंबर की थी यह संध्या,,, जो कि उसके तंबू के आकार को देखकर ही समझ गई थी कि उसका हथियार ज्यादा बलिष्ठ है वह सोहन को जाते हुए देखती रह गई।
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