RE: Porn Story चुदासी चूत की रंगीन मिजाजी
में राज अपनी चूत मिलने और चोदने की दास्ताँ आपको सुना रहा हु जब तक नही मिली तो तब तक चूत मुझे नही मिली, लेकिन जब एक बार मुझे चूत मिली तो ऐसी मिली की फिर तो मेने किसी भी रिश्ते का लिहाज नही किया।
तो चले बात शुरू करते हे मेरे घर में मेरी मॉम शालू गुप्ता, पापा अनिल गुप्ता और एक बड़ी बहन प्रीति गुप्ता हे, पापा पहले कांट्रेक्टर थे अब शहर के नामी बिल्डर हे। मेरी मम्मी के पापा यानि मेरे नाना एक सरकारी ऑफिस में बड़े इंजीनियर थे और पापा ने उनके मातहत कई काम किये थे, उनको कमीसन की राशि घर देते देते पापा ने मम्मी को पटा लिया और शादी कर ली, लेकिन लोग कहते हे की पापा नाना के बीच जब इंजीनियर, ठेकेदार का रिश्ता था तब पापा नाना के लिए शराब शवाब कवाब सब उपलब्ध करवाया करते थे, पापा ने नाना की किसी कमजोरी का फायदा उठा कर उन्हें ब्लैकमेल किया और नाना को अपनी बेटी शालू की शादी मजबूरन १८ साल की उम्र में ही पापा से करनी पड़ी, मेरी मॉम कान्वेंट की पढी लिखी थी जबकि पापा बी ए पास थे।
इसके आलावा हमारी फैमिली में एक और व्यक्ति था जो फैमिली का ना होकर भी फैमिली से ज्यादा था वो था जफ़र। जफ़र पापा के साथ ठेकेदारी के टाइम से जुड़ा हुआ था, वो पापा का हमराज,कार्यकर्ता ड्राइवर बाउंसर नौकर सब था। वो हमेशा पापा के साथ ही साये की तरह रहता था, उसका कोई घर नही था तो वो हमारे घर के सर्वेंट क्वाटर्स में ही रहता था। हमेशा जर्दे का पान खाए जफ़र एकदम कालकलुटा लेकिन बलिष्ठ व्यक्ति था।
पापा की रंगीन मिजाजी के किस्से भी हम बचपन से सुनते आये थे, शहर में चर्चा थी की पापा जो भी नयी बिल्डिंग बनाते हे उसमे वो सबसे पहले सैंपल फलते तैयार करवाते थे और उसका उपयोग वो अपने ऐश के लिए करते, थे उन्हें रोज नयी औरत या लोंडिया चाहिए होती थी चाहे वो उनके काम करने वाली मजदुर हो या काल गर्ल। उनके लिए ये सब जफ़र जुटाता था।
मॉम को शायद पापा की हरकते पता थी इसलिए वो उनसे ज्यादा जफ़र से चिढ़ती थी और वो उन्हें फूटी आँख भी नही सुहाता था।
वैसे मेरी मॉम आधुनिक होते हुए भी संस्कारो से परिपूर्ण शालीन व् गरिमामय तरीके से रहती थी, शादी के बाद उन्होंने परिवार को अपनी दुनिया मान लिया था। वो ज्यादातर अपना समय टीवी देखकर या किट्टी पार्टीज में व्यतीत करती थी। वो हम दोनों बच्चो की परवरिश का भी पूरा धयान रखती थी।
इस कहानी में जब भी जिस पात्र को अपनी बात कहनी होगी वो कहेगा ये उसकी जुबानी होगी। अब बात में ही शुरू करता हु
अब बात में ही शुरू करता हु।
में बहुत छोटा था तब मुझे सेक्स के बारे में जानने की उत्सुकता हो चली थी इसकी ३-४ वजह रही।
मुझे याद हे उन दिनों मेरी बुआ अपनी बड़ी लड़की यानि मेरी कजिन पायल को लेकर आई हुई थी सर्दी के दिन थे। पायल मुझसे ३ साल बड़ी थी और ये समझिए उसकी जवानी की शुरुआत ही थी, और हम बच्चे थे क्यू की तब हमारा लंड खड़ा तो होता नही था और सब उसे नूनी नूनी कहते थे।
रात को जब हम सब रजाई में बैठे थे और पायल मेरे समीप ही बैठी थी, अचानक मुझे लगा की पायल का एक हाथ मेरी निकर में से होते हुए मेरी नूनी तक जा पंहुचा हे और वो उसे पकड़ कर सहला रही हे। मुझे तो कोई असर होना ही नही था इसलिए पायल नूनी को पकड़ कर कभी दबाती रही कभी मसलती रही लेकिन में बेअसर बैठा रहा।
थोड़ी देर में पायल ने मेरा हाथ पकड़ा और उसे अपनी चूत तक ले गयी।
में बहुत छोटा था पर इतना जरूर जानता था की ये लड़कियों के पेशाब करने की जगह हे और इसे चूत कहते हे। उसने मेरे हाथ की एक अंगुली को पकड़ा और उसे अपनी चूत की उस जगह पर ले जाकर टिका दिया जो मटर के दाने की तरह उभरा हुआ था। पायल ने अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़ा हुआ था और वो मेरे हाथ से उसकी उस जगह को सहला रही थी। थोड़ी देर में मुझे लगा की मेर अंगुली गीली हो गयी हे मेने समझा पायल ने पेशाब कर दिया हे, मुझे बड़ी नफरत सी हुई और में उठकर सीधे बाथरूम गया और अपना हाथ कई बार साबुन से धोया।
एक दो दिन फिर में पायल से दूर भागता रहा लेकिन एक दिन फिर में सुबह उसकी गिरफ्त में आ गया, घर के लोग कंही बाहर गए हुए थे और में और पायल ही घर पर थे तब पायल मेरे पास आई और कहा की राज मेरे पास आ तुझे एक खेल दिखती हु।
पायल ने फ्रॉक को उप्पर किया और अपनी अंडरवियर उतारा और जमीन पर टाँगे चौड़ी कर बेठ गई, उसने मुझसे भी कहा की में निकर उतार दू और उसके सामने आकर बेठ जाऊ। हम दोनों एक दूसरे के सामने बैठ गए उसने फिर से मेरी नूनी पकड़ ली और मेरा हाथ ले जाकर चूत के उस जगह पर लाकर टिका दिया जो उभरा हुआ था।
मेने तब पहली बार उसकी चूत देखि कुछ पलो के लिए। एक लकीर सी मुझे दिखाई दी बस। थोड़ी देर हम ऎसे ही बैठे रहे और फिर से मेरा हाथ गीला
हुआ और में अपना निकर सँभालते हुए बाथरूम भगा और फिर से साबुन से अपने हाथ धोये। बस पायल से उस समय तो ये ही २ मुलाकाते हुई, लेकिन पहली चूत मेने उसी की देखी। कुछ दिनों बाद मेरा स्कूल जाना शुरू हुआ, स्कूल में भी मेरा ये ही आलम रहा सबसे अलग अलग रहना। लेकिन कुछ दिन बाद मेने देखा की मेरे हिस्ट्री के टीचर मेहबूब सर मेरे में कुछ ज्यादा दिलचस्पी लेने लगे हे।
एक दिन स्कूल खत्म होने के बाद जैसे में घर जाने को तैयार हुआ, मेहबूब सर ने मुझे बुलाया और स्कूल के एक कमरे में ले गए।
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