RE: Chodan Kahani हवस का नंगा नाच
थोड़ी देर बाद हरदयाल आँखे खोलता है ...और अपनी बेटी की ओर देखता है......
साना की आँखें गहरी नींद में बंद थी .. कितनी मासूम लग रही थी .. किसी बच्ची की तरेह, बीखरे बाल , टाँगें पापा की जांघों पर ...सारी दुनिया से बेख़बर ..उसके हाथ अपने पापा के सीने पर लगे थे ..मानो पापा के सीने से लगी अपने आप को कितना महफूज़ समझ रही थी...कितना शूकून था ...अपने पापा पर कितना भरोसा था उसे...सारी दुनिया की मुसीबतें,परेशानियाँ , दूख सब कुछ उसके पापा के सीने से लगते ही दूर हो गये थे ....
अपने पापा के साथ आज उसका एक बहोत प्यारा और पुराना सपना पूरा हुआ था ..हां अपनी गान्ड उन्हें दे कर ..और पापा ने भी कितने प्यार और दुलार से सारा काम किया था ...साना को ज़रा भी दर्द नही हुआ...थोड़ा बहोत हुआ भी तो दर्द , मज़े की सीहरन से ढँक गया ..जिस तरेह चील्चीलाति धूप की जलन बादल की आध में छुप जाती है....
हरदयाल अपनी तरेफ से उसे किसी भी प्यार से महरूम नही करता... उसकी मा की कमी पूरी करना चाहता था ...पर आखीर उसकी भी मजबूरी थी ...मा की ममता , मा की नज़दीकी खास कर बेटियों के साथ ...इन सब बातों की कमी साना की ज़िंदगी में थी और सब से ज़्यादा हरदयाल के पास कमी थी तो समय की ...
अपने बहोत व्यस्त कारोबारी कामों के मारे जितना वक़्त देना चाहता था अपनी बेटी को ..और जितना वक़्त उसकी बेटी की ज़रूरत और उसका हक़ था...नही दे पाता था ...
मजबूरन हरदयाल ने इन बातों की कमी साना को हर तारेह की छूट और आज़ादी दे कर पूरी करनी चाही ...पर इसका नतीज़ा वोही हुआ जो उस ने आज पार्टी के बाद साना के बेढंगे, भोंडे और बहूदे नंगेपन में दीखा ..पर हरदयाल मजबूर था ..उसकी आँखों के सामने उसकी बेटी बहकती जा रही थी ..वो सिर्फ़ हाथ मलता हुआ बेबाश देखता ही रह जाता ...
साना अंदर से कितनी मासूम , कितनी भोली और प्यार की भूखी थी ....पर वो मासूम और भोली लड़की प्यार और शूकून सेक्स में ढूँढ रही थी ... रोज नये दोस्त ..नयी नयी शानो-शौकत की चीज़ें , शराब और शबाब की दुनिया में ढूँढ रही थी ...पर एक मृगतृष्णा की तरेह साना से दूर और दूर होता जाता ....और साना उसे पकड़ने , पाने की नाकामयाब कोशिश में अपने आप को इस दल दल में और भी बूरी तरेह फँसा हुआ पाती ...
पर इस पूरी अंधेरी रात की तरेह साना के भविश्य में एक उजाले की किरण भी थी और वो था उसका अपने पापा से अटूट , बेइंतहा प्यार .... यही एक सहारा था ...यही साना की डूबती ज़िंदगी में एक तिनके का सहारा था ...
हरदयाल भी समझता था ..पर मजबूर था ...उसकी मजबूरी थी उसका बड़ा और फैला बिज़्नेस .....और जिसके चलते समय की कमी ..उसे समझ नही आ रहा था क्या करे ... कैसे अपनी बेटी को इस हवस और बर्बादी की दल दल से निकाले....
हरदयाल काफ़ी परेशान था..गहरी सोच में डूबा था ..एक ओर उस की बेटी की मासूम सी ज़िंदगी थी ...जो उस के प्यार और करीबी की भूखी ..और दूसरी ओर उसका बिज़्नेस जो उसे अपनी बेटी को पूरा समय दे पाने में सब से बड़ी रुकावट था ....
अचानक उसके दिमाग़ में एक कौन्ध सी होती है ..एक आशा की किरण फूट पड़ती है ..अगर उस के पास समय नही तो कोई और तो उस की जगेह ले सकता है... कोई और साना की ज़िंदगी में आए और उसे उतना ही प्यार दे, उतना ही ख़याल रखे ...यानी किसी ऐसे शक्श से उसकी शादी कर दी जाए ...
पर साना का दिल जितना उतना आसान नही था किसी के लिए ..और सब से बड़ी बात क्या साना इस बात के लिए राज़ी होगी..?? पर कोशिश तो की जा सकती है..
इस बात पर हरदयाल को कुछ तस्सल्ली होती है..वो अपने दिमाग़ में रख लेता है यह बात ..और साना से इस बारे खूल कर बात करने का मन बना लेता है...
इन सब ख़यालों में खोए हरदयाल को भी नींद आने लगती है..वो बड़े अएहतियात से साना के हाथ अपने सीने से हटाता है.... उठ ता है पलंग से .बेड रूम के वॉर्डरोब से एक धूलि चादर निकाल कर साना के नंगे बदन को ढँक देता है और खुद स्लीपिंग सूट , जो के हमेशा फार्महाउस के वॉर्डरोब में होता है....पहेन कर खुद भी साना के बगल में आ कर लेट ता है , और फिर साना के माथे को चूमता है ...और आँखें बंद कर नींद की आगोश में खो जाता है ...
Thodi der baad Hardyal ankhein kholta hai ...aur apni beti ki or dekhta hai......
|