RE: bahan ki chudai मेरी बहनें मेरी जिंदगी
वो अपनी कसम खा कर कह सकता था कि दोनो नंगी थी अभी कुछ देर पहले. तभी पीछे से 2 और कदमो की आवाज़ सुनाई दी उसे तो उसने सिर्फ़ और सिर्फ़ खाने पर ही ध्यान बनाए रखा.
"सॉरी, वो सुबह के लिए." स्नेहा की आवाज़ उसके कानो मे पड़ी, फिर स्नेहा ने उसे गाल पर किस कर दिया.
"आइ'म नोट." तभी दूसरे कान मे आरोही की आवाज़ पड़ी, उसने भी अरुण के गाल पर किस कर दिया.
अरुण ने फिर भी अपना सिर उपर नही किया. उसे डर लग रहा था कि अगर उसने उपर देखा तो पता चले सामने नंगे दूध और चूत के अलावा कुछ ना दिखे.
"दी, आज क्या डाला है पराठो मे?" अरुण ने पराठो को ध्यान से देखते हुए पूछा.
"मतलब?" सुप्रिया को भी ये बात समझ मे नही आई.
"मुझे..मुझे.अजीब चीज़े दिख रही हैं, ऐसा कुछ है जिस से मुझे आलर्जी होती हो?" वो बोला.
सुप्रिया वहाँ आई और उसके माथे पर हाथ रख के देखने लगी. "नही, कुछ नही डाला. बुखार तो नही है? लग तो नही रहा.."
अरुण ने भी सिर हिला दिया. "नही, सही हूँ दी, शायद नींद नही पूरी हुई, इसलिए."
सुप्रिया उसे बड़े ध्यान से देखती रही, फिर कुछ सेकेंड्स के बाद वापस किचन मे पराठे बनाने चली गयी.
बाकी लोग भी टेबल पर बैठ गये. अरुण ने नज़रे उपर करके स्नेहा की ओर देखा. तो स्नेहा ने भी कुछ नही पहना था और वो बटर को अपने दूधों पर मल रही थी. आरोही आगे झुकी और वहाँ से बटर को चाटने लगी.
"ओह माइ गॉड," अरुण तेज़ी से बोल पड़ा.
चारो लोगो की नज़रें उसके उपर आकर टिक गयी. दोबारा, सब लोगो के कपड़े पता नही कहाँ से वापस आ गये थे और सब सवालिया नज़रो से उसे देख रहे थे.
"क्या हुआ, भाई?" सोनिया ने पूछा.
"ना, ना, कुछ नही. वो पराठे बहुत अच्छे हैं..हाँ" अरुण जल्दी से अपना सिर हिलाकर नीचे देखने लगा.
सुप्रिया को उसकी बात पर विश्वास नही हुआ.
"मैं सही मे पागल हो रहा हूँ," अरुण सोचने लगा.
"उपर से एक बात बोलूं, तुम अपने ही सिर मे रहने वाली आवाज़ से बात करते हो. किसी और को ये बात बताई तो वो कहेगा कि तू तो पहले से ही पागल था. लेकिन, तेरी तसल्ली के लिए मैं बता दूँ कि मुझे पता है कि तुझे क्या हो रहा है?" दिमाग़ में उस आवाज़ ने कहा
अरुण हल्के से हँस दिया, तो दोबारा सब लोग उसे देखने लगे.
"सही रीज़न होना चाहिए," उसने सोचा.
"3 दिन से चूत नही मिली, इसलिए." अरुण के दिमाग़ की आवाज़ ने कहा
"ओह क्या नयी बात बताई है, थॅंक्स" अरुण बोला.
"अरे चूतिए, मेरा मतलब है तूने हद पार कर दी है. तेरा दिमाग़ अब सच्चाई और सपने मे फ़र्क नही कर पा रहा. क्यूकी नॉर्मल कंडीशन्स होती तो कंट्रोल करना सही भी होता है, लेकिन यहाँ तो तेरे लिए तीन तीन लड़कियाँ नंगी हो गयी थी, लेकिन तूने तो मना कर दिया." अरुण के दिमाग़ की आवाज़ ने उसे समझाया
"ओके, थोड़ा थोड़ा समझ मे आ रहा है.."
अरुण ने जल्दी से खाना ख़त्म किया और प्लेट को सींक मे रख के रूम मे चला गया. उसे अपनी कार और आरोही की स्कूटी मे कुछ करना था तो पुरानी टीशर्ट और शॉर्ट्स पहेन कर नीचे चला गया.
"मैं मार्केट जा रहा हूँ, स्कूटी और कार मे कुछ चीज़ो की ज़रूरत है. किसी को कोई काम तो नही है, या फिर मार्केट से कुछ माँगना हो तो बता दो?"
सुप्रिया ने कुछ कहने को मूह खोला लेकिन फिर कुछ सोचकर मूह बंद कर लिया. लेकिन सुप्रिया की मुस्कान देखकर अरुण समझ गया कि उसके दिमाग़ मे अलग ही खिचड़ी पक रही होगी.
"मैं भी चलूं?" स्नेहा ने पूछा.
"ओके.." अरुण ने हां कह दिया.
तो स्नेहा जल्दी से अपने रूम मे चेंज करने चली गयी. वो वापस आई तो कॅप्री और टीशर्ट मे थी.
चलो कम से कम सोनिया या आरोही तो नही थी साथ मे. स्नेहा का साथ काफ़ी सही था. "कम से कम दी मुझे टॉर्चर तो नही करने वाली, बाकियों का क्या भरोसा." उसने खुद को दिलासा देते हुए कहा.
"तो अभी नाश्ता करते हुए क्या हुआ था?" स्नेहा ने उससे पूछा. अरुण कार ड्राइव कर रहा था.
अरुण सोचने लगा कि किस तरीके से डिस्क्राइब करे. और स्नेहा भी पीछा छोड़ने वाली तो है नही. उसने एक बार कोई सवाल पूछ लिया तो फिर जवाब मिले बिना तो आगे तो बढ़ ही नही सकती.
"तो कैसे कहूँ, कैसे कहूँ, हां. आपको तो पता ही है कि तीनो मुझे शर्त हराने के लिए टॉर्चर कर रही हैं."
"या, वो तो मुझे पता ही चल गया." स्नेहा हँस के बोली.
"लेकिन कब तक?" स्नेहा ने पूछा.
"14 दिन.." अरुण ने उसे देखते हुए कहा तो स्नेहा हसी को दबाने की कोसिस कर रही थी. "दी, इट'स नोट फन्नी." उसने कहा तो स्नेहा तेज़ी से हँसने लगी.
"अरुण तुम जानते हो अगर तुम किसी लड़की से कह दो कि वो कोई काम नही कर सकती या कोई चीज़ नही पा सकती, तो तुम दुनिया के सबसे बड़े बेवकूफ़ हो. किसी भी तरीके से वो लड़की कुछ ना कुछ रास्ता निकाल ही लेगी. अब मुझे समझ आ रहा है कि आरोही मुझ पर इतना ध्यान क्यूँ दे रही थी. वो लोग इतने छोटे छोटे कपड़े पहेन रही हैं. वाउ.."
"यॅ..वाउ.." अरुण ने बुझी सी आवाज़ मे बोला.
तब तक वो लोग ऑटो पार्ट्स की शॉप पर आ गये तो अरुण ज़रूरत का समान लेने लगा. स्नेहा उसके साथ ही बनी रही. फिर सब समान लेकर उसने कार मे रख दिया.
"तो और क्या क्या करा उन लोगो ने?" स्नेहा ने पूछा.
"बहुत कुछ, आज सुबह की ले लो. मैं नहा रहा था तो आरोही भी आ गयी और फिर आपको भी अंदर भेज दिया."
"चलो इस बात से एक फ़ायदा तो हुआ." स्नेहा बोली.
"वो क्या?"
"तुम मेरे साथ ज़्यादा टाइम स्पेंड कर रहे हो." स्नेहा ने उसे आँख मार दी.
अरुण जवाब मे मुस्कुरा दिया, फिर कुछ देर चुप रहने के बाद उसने कहा.."दी आइ'म रियली हॅपी की आप मेरे साथ इतना ज़्यादा खुल के बात करती हो.."
स्नेहा भी उसकी ओर देख कर मुस्कुराते हुए बोली.."हां, चलो इस बहाने इतने सालो बाद तुम्हे अपनी स्नेहा दी की याद तो आई."
"आआआआ, भाई इतनी बोरिंग बातें, सुलाने का इरादा है क्या.." अरुण के दिमाग़ की आवाज़ ने चुटकी ली
"अच्छा अब वापस मुद्दे पर, सुबह क्या हुआ था जो इतने अजीब हरकते कर रहे थे? तुम्हे लगा कि तुम बात बदल दोगे, तो मैं भूल जाउन्गी, हाँ?" वो हँस कर बोली.
|