RE: Nangi Sex Kahani सिफली अमल ( काला जादू )
दरवाजे की चरर चराती आवाज़ के खुलते ही बाहर की तेज़ हवा मेरे चेहरे से टकराई पूरा बदन मानो सिहर उठा....जब आँखे खोली तो सामने खड़े उस मुस्कुराते चेहरे को देख कर एक पल के लिए बस उसे ही घूर्रता रहा...उसने आम निवासीयो की तरह गले से लेके पाओ तक धकि पोशाक पहनी थी पर उसके बदन पे ना ही कोई स्वेटर या ऐसे कोई कपड़े थे जो उसे ठंड से बचाती हो इतनी सर्द रात को वो ऐसे तूफान में कैसे मेरे घर पहुचि इस बात की मुझे बेहद हैरानी थी...उसके बदन से एक अज़ीब सी महेक आ रही थी...उसका बदन निहायती बहुत गोरा था...एक सुंदर अँग्रेज़ औरत जिसकी आँखो के नीचे काले घेरे से थे आँखो की पुतलिया ठहरी हुई थी...आँखें एकदम सुर्ख ब्राउन रंग की थी....ये कोई इंसान नही थी...आम औरतो को मैने देखा था....उसका पूरा बदन ऐसा सफेद था मानो जैसे क़बर से उठके आई हो..वो बस मुस्कुरा रही थी ऐसा लग रहा था जैसे होंठो से अभी खून टपक के निकल जाएगा...बदन भरा पूरा था...उसकी चुचियों का उभार सॉफ देख सकता था....और पीछे के नितंब भी काफ़ी उठे हुए थे उसके बालों का रंग भी सुनहेरे रंग का था
"त्त...तुम यहाँ?".......जानने में देरी ना लगी ये लूसी थी....दूसरी बस्ती की निवासी और मेरी नयी बनी दोस्त लेकिन आज उसे देख कर बेहद अज़ीब लग रहा था और वो मुझे कहीं से भी इंसान नही नज़र आ रही थी
"हां मैं तुमसे ही मिलने आई हूँ इसलिए यहाँ आई हूँ तुम्हारे पास"......उसने फिर मुस्कुराया उसकी आँखो में एक कशिश थी उसकी खूबसूरती की तारीफ मैं करना चाहता था पर दिल को मज़बूत करते हुए उसे अंदर ले आया
बाहर की तूफ़ानी हो हो की आवाज़ें दरवाजे बंद होते ही दब गयी...अंदर जल रही आग में एक गर्मी थी...लेकिन उसे कोई फरक नही पड़ा वो एक सोफे पे जाके बैठ गयी और मैं ठीक मेज़ के उपर....हो हो करती हवाओं में एक अज़ीब सा शोर था मानो जैसे कितने लोग एक साथ हो हो की आवाज़ निकाल रहे हो....और फिर कुछ ही देर में हावोअवो की आवाज़ आई....भेड़िए की आवाज़ थी यह
लूसी जो मुझे एकटक बस मुस्कुराए देख रही थी....उस आवाज़ को सुन खिड़की की ओर देखने लगी "वो लोग मुझे ही ढूँढ रहे है"........उसने खिड़की की तरफ ही मुँह करके कहा....
"कौन ढूँढ रहे है?"........मैने उससे पूछा.....
"भेड़ियो का दल उनसे ही च्छुपते छुपाते यहाँ आई हूँ".......लूसी ने इस बार चेहरा मेरी ओर किया और मुस्कुराइ
मैं : क्या मतलब? एनीवेस तुम कुछ लोगि
लूसी : अपना खाना ख़ाके आई हूँ और तुम दोगे भी क्या? (वो मुस्कुराइ उसका अज़ीब बर्ताव उन दिनो की तरह नही था जब वो मुझसे जंगल में मिलती थी)
मैं : ह्म्म खैर यहाँ इतने रात गये तुम इस सर्द रात में अकेले मुझे कुछ समझ नही आ रहा लूसी तुम्हारी बस्ती भी तो यहाँ से काफ़ी दूर है और रात भी बहुत हो रही है
लूसी : मुझे ख़ौफ़ नही लगता ख़ौफ़ उन्हें होता है जो इंसान होते है (उसकी ये बात मेरे अंदर के शक़ को यकीन में तब्दील कर चुकी थी मेरे सामने सोफे पे बैठी ये लड़की कोई इंसान नही थी जिस लूसी से मैं आजतक मिला था वो एक पिसाच थी)
मैं : त्त...तुम्म वही हो ना
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