RE: Nangi Sex Kahani दीदी मुझे प्यार करो न
मैं जान-बूझकर किचन की और आने लगा और भाभी को मधु दीदी बोल के पुकारते हुए कहा: मधु दीदी, खाना बन गया क्या?
आभा: भैया, मधु दीदी या मधु माँ? (और वो जोर-जोर से हसने लगी)
मैं शर्माता हुआ वापस दुसरे कमरे में जाने लगा। आभा बोली क्यों शरमाते हो भैया, मुझे सब कुछ पता है। ले जाओ अपनी माँ को भी, मैं थोड़ी देर में ही आवाज़ दूँगी खाना बन जाने पर। मैं भाभी के पास जाकर उनके बदन को nighty के ऊपर से ही मसलते हुए उन्हें उन्हें उनके कमरे की तरफ ले जाने लगा।
आभा: भगवान् ने क्या जोड़ी बनाई है! भैया आपकी माँ जितनी खूबसूरत औरत मैंने आज तक नहीं देखि। इन्हे कभी मत छोड़ना।
मैं: हाँ आभा, मेरी गाय माँ बहुत खूबसूरत है। (मैंने भाभी के होठों को आभा के सामने ही चूसते हुए कहा)। वहीं खड़े-खड़े मैंने भाभी की nighty उतार दी और उन्हें पूरा नंगा कर दिया।
आभा: ओह.. क्या गदराई औरत है आपकी मधु माँ! आप तो थक जाते होंगे इनकी चुदाई करने में।
मैं: हाँ, आभा.... (मैं भाभी को कमरे में लाते हुए बोला। फिर मैंने कमरे का गेट सटा दिया और भाभी की जोर-जोर से चुदाई शुरू कर दी )
कुछ ही देर में आभा खाना बना करके कमरे के अंदर आ गयी और मेरी और भाभी की चुदाई देखने लगी।
मैं हांफने लगा भाभी के बदन पर उछलते हुए। मैं अपना लंड भाभी के चुत में जोर-जोर से पेल रहा था। फच-फच के आवाज़ के साथ मेरा लंड और अंदर जाता जा रहा था।
आभा: भैया, बड़े भरे बदन की औरत है न मधु माँ, देखो कितना थका दिया इसने आपको। पर ये आपसे ही संभलेगी, आपके इतना ही हट्टा-कट्टा आदमी रख सकता है इसे खुश।
कुछ ही देर में मैं और भाभी झड़ गएँ। मैंने आभा से पानी लाने को कहा।
आभा: (तुरंत पानी ले आयी) भैया, ये लो।आपको मैं रोज गरम दूध दिया करुँगी आज से। ताकि आप माँ जी की चुदाई और हुमच-हुमच के करें।
आप दोनों थोड़ी देर में खा लेना, मैं चलती हूँ।
आभा चली गयी और फिर मैं भाभी को आलिंगन में करके उनके होठों को चूसने लगा। भाभी का नंगा मांसल जिस्म जब मेरे नंगे जिस्म से सटता था अजब सी सिरहन पैदा होती थी। उनके स्तनों का मर्म स्पर्श मेरे सीने से होता तो मुझे बड़ी उत्तेजना होती। मैंने उन्हें चूमते हुए कहा - माँ, तुम्हे मैंने बड़ी चूतड़ वाली ऑफिस की औरत के बारे में बताया था न। उसने अपने पति को तलाक़ दे दिया है। और ऑफिस के ही एक 25 साल के लड़के के साथ रह रही है।
भाभी: ऑफिस में ये बात सबको पता है?
मैं: नहीं माँ। मुझे पता है क्यूंकि वो लड़का मेरा दोस्त ही है। मुझसे हमेशा उसकी ही बातें किया करता था।
भाभी: वो शादी करेगा उस-से या फिर यूँही?
मैं: उसने अपने माँ-पिताजी से बात तो की है, पर वो अभी मान नहीं रहे। दरअसल प्रकाश (मेरा दोस्त) 25 साल का है और वो औरत 44 साल की।
भाभी: तुम्हारे दोस्त भी तुम्हारे ही तरह बड़े उम्र की औरतें चाहते हैं। (मैंने भाभी के ये बोलते ही उनके गालों को चूमते हुए उनके चूतड़ों पे हाथ रख-कर उनको खुद से और चिपका लिया)
मैं: बड़े उम्र की भरे बदन की औरतों में जो मज़ा है वो किसी और में कहाँ!
भाभी: तुमने जरूर उसे भी हमारे बारे में बताया होगा?
मैं: नहीं माँ, मुझे उसपे भरोसा नहीं है, वो तुम्हारे पे ही डोरे डालने लगेगा। उस औरत को भी उसने जिद से ही पाया है। वो बस सेक्स का भूखा है!
भाभी: और तुम? दिन भर मुझे चोदते रहते हो। कहाँ से आती है इतनी ऊर्जा? दोस्त भी ऐसे ही बनाएं हैं।
मैं: (भाभी को अपने ऊपर चढ़ाते हुए) उनके नितम्बों पे अपना हाथ रख-कर बोला- अच्छा माँ, एक बात बताओ, जब तुम अपने घर पे राहुल और सुमन के साथ रहती थी। तब भी तुम्हारा बदन पूरा कसा हुआ था। इतनी गदराई औरत घर पे होते हुए कभी तुम्हारे छोटे भाई राहुल या तुम्हारे पिताजी ने तुम्हारे साथ कुछ नहीं किया। देखो भाभी गुस्सा मत करना, मैं बस पूछ रहा हूँ। सूरज भैया अगर होते भी तो मैं खुद को ज्यादा दिन नहीं रोक पाता, और किसी-न-किसी दिन तुमसे चिपकने की कोशिश जरूर करता। इसलिए मुझे ये बात अजीब लगती है की तुम्हारे जैसी दुधारू औरत पास में होते दोनों में से किसी का मन नहीं किया होगा की तुम्हारे बदन को चखे। (मुझे भाभी कुछ मूड में दिख रहीं थीं आज सो मैं भी आगे बढ़ने लगा।)
भाभी कुछ बोल नहीं रहीं थीं। मैंने उनके आँखों में देखते हुए प्यार से कहा - बताओ न, माँ।
भाभी: पिताजी, नहीं। हाँ, राहुल कभी कभी मेरे से चिपकने की कोशिश करता था। हम तीनो भाई-बहिन एक कमरे में ही सोते थें। राहुल बीच में सोता था और रात में कितनी बार मुझे अपने से चिपका लेता था। शुरू में तो मुझे ये बात ऐसे ही लगी पर बाद में मुझे कुछ अटपटा सा लगा सो मैंने सुमन को बीच में सोने के लिए कह दिया। बस ये बात यहीं ख़त्म हो गयीं।
मैं: (भाभी को नीचे करके उनके ऊपर चढ़ते हुए) बेचारा राहुल, प्यासा ही रह गया। वैसे माँ, तुम्हारा भाई परसों आ रहा है। बचा के रखना खुद को, कहीं वो फिर न चिपकने लगे।
भाभी और हम दोनों हॅसते हुए एक दुसरे को चूमने लगे। करीब दस मिनट तक एक दुसरे के चेहरे को चाटने के बाद हम दोनों खाना खाने के लिए उठे।
भाभी को मैंने नंगे ही डाइनिंग टेबल की कुर्सी पर खुद के जाँघों पर बैठा लिया और प्यार से उनको खिलाने लगा।
मैं: राहुल मुझसे पूछ रहा था की मैं तुम्हारा ध्यान रखता हूँ की नहीं माँ। मैंने उससे बोलै को वो खुद ही आके देख ले।
खाना खाने के बाद मैंने भाभी की उँगलियों और होठों को चूस-चूस कर साफ़ किया। उन्हें पानी की जरुरत नहीं पड़ी। भाभी को बाहों में भरे मैं बिस्तर पे लिटाने लगा। उन्होंने बोला की वो पिशाब करेंगी। मैंने उन्हें बाथरूम में फर्श पर खुद के ऊपर बैठा लिया। मैं दीवाल से पीठ टिका के बैठा हुआ था।
और फिर मैंने बोला- माँ, करो न पिशाब। मैंने भाभी के दोनों मांसल पैरों को खुद के पैरों के बीच कर रखा था। भाभी के पिशाब से हम दोनों के पैर भींग गए। जब भाभी ने पूरा पिशाब कर लिया हम फिर भी वहीं बैठे रहे। मैंने भाभी के जाँघों को सहलाते हुए बोला की माँ तुम्हारे पिशाब की गंध बहुत अच्छी लगती है।
ऐसी गदराये चुस्त बदन की औरतों की जाँघों को मीचने से वो बड़ी उत्तेजित हो जाती हैं। मैं उनके जाँघों पे अपने हाथ फेरने लगा।
मैं: (भाभी के मुँह को अपने तरफ करके उनके होठों को चूसते हुए) माँ और करो न पिशाब!
भाभी: छी! चलो यहाँ से। और भाभी उठने लगीं।
भाभी ने अपने हाथ जमीन पर रख-कर जैसे ही अपने चूतड़ को मेरे जाँघों से उठाने की कोशिश की, मैंने उनके हाथ ज़मीन से हटा कर उनके स्तनों को पकड़ लिया और उन्हें दुबारा ऐसे बिठाया की उनकी जांघें मेरी जाँघों के ऊपर थीं और मेरा लैंड उनके चूतड़ में घुसा हुआ। भाभी फिर भी ज़ोर लगा रहीं थीं। उन्हें ऐसे रोकना मुश्किल था सो मैंने उन्हें बाथरूम की फर्श पे ही पेट के बल लिटा दिया और खुद उनके स्तनों को पकडे उनकी गांड में लंड घुसा के उनके ऊपर लेट गया।
स्तनों के नीचे से उनका बदन अब उनके पिशाब में पूरा भींग गया था। मैंने अपने एक हाथ को फर्श पे उनके पिशाब से भींगा के उनके गालों और होठों को गीला कर दिया। भाभी छी छी करके मुँह झटकने लगीं। मैंने भाभी के मुँह को अपनी तरफ करके उनके पिशाब से सने होठों को चूसने लगा। मैं एक तरफ उनके होठों, गालों को चूस रहा था और अपने लंड को धीरे-धीरे उनके पिछवाड़े में धक्का दे रहा था। पिशाब के बदबू से पूरा बाथरूम भर गया था और मैं भाभी के पिशाब से सने नंगे मांसल बदन चिपके होने से खुद भी पिशाब से सन गया था।
पिशाब तो बह ही चूका था पर भाभी के बदन का गीलापन भी हमारे बदन के एक-दुसरे से मसलने से कम हो रहा था। भाभी का बदन अभी भी लथ-पथ ही था उनके पिशाब में की मैं उन्हें उठा के बैडरूम में ले आया और उनको बाँहों में करके उनके स्तनों को चूसने लगा।
भाभी के बदन के आगोश में जो मादक अहसास था वो मुझे मदहोश किया जा रहा था। मैं उनके बाहों के बंदिश में उनके मखमली मांसल बदन को मसले जा रहा था। बैडरूम में पंखे और हमारे बदन के आपस में मसलने से पिशाब का गीलापन सूख रहा था पर बैडरूम में पिशाब की बदबू आ गयी थी।
मैं: (भाभी के आँखों में देखते हुए) क्या औरत है तू माँ! तेरे पिशाब में भी मादक गंध है!
भाभी: छी! मेरे पिशाब को चाट रहा है तू बेटे।
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