RE: behen sex kahani मेरी तीन मस्त पटाखा बहनें
"भइया प्लीज।।।।।। हाँ आया था मजा लेकिन ये ठीक नहीं है भाई बहन के बीच में तो प्लीज उसे भूल जाओ, अब हम सिर्फ भाई बहन है और दोस्त भी तो अब सिर्फ बाते होगी नो मोर प्लीज" दीदी मुझे समझाते हुए बॉली।
"दीदी प्लीज।।।। अच्छी कल रात जितना किया था ना बस उतना ही करेंगे प्लीज दीदी इतने से के लिए तो मना मत करो इतने में कुछ नहीं होता" मैं गिडगिडाता हुआ बोला और इतना कह कर मैं दीदी के पास बैठ गया और उसकी टाँग पर अपना हाथ रख कर धीरे धीरे सहलाने लगा तो दीदी ने मेरा हाथ पकड़ा और ग़ुस्से से मेरी तरफ देखा।
"राज एक बार कहा ना की कुछ नहीं करना है चलो जाओ अपने रूम मे" दीदी ग़ुस्से से बोली।
दीदी की बात सुनकर मेरी सूरत रोनी सी हो गई थी और मुँह से आवाज भी निकलने से मना कर रही थी फिर भी मैं बोला "ओके दीदी ठीक है नहीं करना तो मत करो लेकिन मैं आज के बाद कभी भी आपसे बात नहीं करूँगा मुझे यकीन हो गया है की मैं आपको जरा भी प्यारा नहीं हूँ वरना इतना सा करने में क्या हो जाता, कोई बात नहीं मैं जारहा हूँ और एक बार रूम से चला गया तो फिर कभी यहाँ नहीं आउंगा आगे आपकी मर्जि" कहते हुए मैं उठा और रूम के गेट की तरफ बढ़ गया।
में गेट की तरफ बढ़ तो रहा था लेकिन धीरे धीरे क्योंकि मुझे उम्मीद थी की मेरी इमोशनल बातें सुनकर दीदी मुझे रोक लेंगी लेकिन हाय रे मेरी फूटी किस्मत मुझे पीछे से कोई आवाज नहीं आयी और मैं दीदी के रूम से बाहर निकल गया।
मेरे जाने के बाद रीमा दीदी सोच रही थी की अब क्या करे और खुद को ही कोस रही थी की उसकी ही वजह से ये सब हुआ ना वो ऐसी बाते करती और ना ही आज ऐसा होता वो अभी सोच ही रही थी की मैं रूम से बाहर निकल गया था तो दीदी जल्दी से बाहर आई और मुझे आवाज देकर बुलाया लेकिन अब मैं ज़िद्द में आ चुका था और ग़ुस्से से अपने रूम में आकर बेड पर लेट गया और सोचने लगा की आगे क्या होगा।।।।।।।।।।।
रात को सभी ने मुझे खाने के लिए बुलाया लेकिन मैंने तबियत ठीक न होने का बहाना कर दिया और अपने बेड पर ही लेटा रहा लेकिन नींद मेरी आँखों से कोसो दूर थी रात बहुत हो गई थी और शायद सभी लोग सो गए थे की थोड़ी देर बाद मेरा रूम का दरवाजा खुला और दीदी ने अंदर कदम रखा लेकिन मैंने अपनी आँखे बंद कर ली ताकि दीदी यही समझे की मैं सो रहा हूँ।
दीदी मेरे पास आकर बैठ गई और मुझे उठाने लगी "राज उठो भैया मेरी बात तो सुनो"।
लेकिन मैं नहीं उठा तो दीदी ने मुझे हिलाया और जोर से बोल कर मुझे जगाना चाहा लेकिन मैं नहीं उठा दीदी ने मुझे उठाने की हर कोशिश कर ली लेकिन मैं ढीट बन कर पड़ा रहा।
"अच्छा ठीक है भाई मैं जा रही हूँ मैं तो ये कहने आई थी की मुझे तुम्हारी बात मंजूर है हमने कल जितना प्यार किया था उतना अब रोज किया करेंगे लेकिन अब तुम ही नहीं चाहते हो तो ठीक है।।।।।।।।" दीदी हार कर बोली।
"मेने दिल ही दिल में बहुत खुश हुआ और मेरा दिल करने लगा की दीदी को पकड़ कर अपने पास सुला लूँ लेकिन तभी मुझे ख्याल आया की कहीं दीदी मुझसे बात करने के लिए झूट तो नहीं बोल रही है और ये सोच कर मैं सोने का नाटक जारी रखा और थक हार कर दीदी मेरे बेड से उठ कर चली गई मेरी आँखे बंद थी और रूम में अँधेरा भी था कुछ नजर भी नहीं आरहा था।
खेर दीदी दरवाजे के पास पहुँची और बोली "उठ रहे हो या मैं जाउ"।
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