RE: Maa Sex Kahani हाए मम्मी मेरी लुल्ली
सलोनी जब कमरे से बाहर निकल राहुल की तरफ भागती है तोह वो सीढ़ियों के उपरी हिस्से तक्क पहुँच चुका था. राहुल -राहुल पुकारती सलोनी अभी सीढियाँ चढ़ रही थी के राहुल के कमरे का दरवाजा भड़क की ज़ोरदार आवाज़ के साथ बंद हो जाता है. सलोनी हाँफती हुयी राहुल के दरवाजे को खोलने की कोशिश करती है मगर वो अंदर से बंद था. वो दरवाजा खटखटती है.
"राहुल.......राहुल....... बेटा........दरवाजा खोलो.........में मजाक कर रही थी........." सलोनी राहुल को समझाने की कोशिश करती है. मगर राहुल दरवाजा नहीं खोलता.
"आप जायिये यहाँसे .....मुझे आपसे कोई बात नहीं करनी है........" राहुल का तीखा कठोर स्वर सुनायी पढता है.
"बेटा सुनो........अखिर तुम्हे यकीन क्यों नहीं होता........मैने कल सब्जी मंडी में भी तुम्हे बताया था न के आज तक मैंने तुम्हारे पापा के सिवा किसी के साथ सम्बन्ध नहीं बनाया........सिर्फ एक तुम हो........में तोह तुम्हे छेड रही थी बेटा........में मजाक कर रही थी............." सलोनी नंगी बेटे के दरवाजे के बाहर खड़ी उसे बार बार पुकार रही थी, समझा रही थी मगर राहुल कोई बात सुनने के लिए तैयार नहीं था.
"बेटा दरवाजा खोलो.........खोलों भी........देखो मैं तुमसे बार बार कह रही हुण........तुम मेरा यकीन क्यों नहीं करते.........प्लीज् दरवाजा खोलों बेटा........" मगर दरवाजा नहीं खुलता. सलोनी इतने समय से खड़ी खड़ी थक्क चुकी थी. वो नंगी ही ठन्डे फर्श पर बैठ जाती है.
अंदर राहुल अपने हातों में सर दबाये रो रहा था. उसकी आँखों से आंसू बह रहे थे. उसकी माँ को कोई और छुये वो यह विचार भी बर्दाशत नहीं कर सकता था. वो तो कभी अपने घर पर अपने दोस्तों तक को नहीं लाता था क्योंके वो उसकी माँ को गंदि, घिनोनी नज़र से देखते थे. और वो कैसे बर्दाशत करता उसके दोस्त उसकी माँ के नंगे बदन को छूएँ, उसकी माँ के पवित्र देह से खिलवाड करे. नहीं वो यह कभी बर्दाश्त नहीं कर सकता था.
"बेटा दरवाजा खोलो.........देखो में तुम्हे कब से कह रही हु......मैने मज़ाक़ किया था........तुम क्यों बात को इतना बढा रहे हो...........में कोई बाज़ारू रंडी हु...........जो हर किसी के सामने........." सलोनी थोड़ा सा भावुक होते कहती है. मगर दरवाजा नहीं खुलता.
"प्लीज् बेटा...मान जाओ......क्यों इतना सता रहे हो.......मा हु तुम्हारी............मा को इस तरह कोई दुःख देता है क्या...........प्लीज् दरवाजा खोल दो बेटा......." मगर दरवाजा नहीं खुलता.
"बेटा अगर तुम्हे लगता है के मैंने ग़लती की है तोह मुझे जो चाहे सजा दे दो........मगर दरवाजा खोल दो......दरवाजा खोल दो बेटा......प्लीज् बेटा......प्लीस....." सलोनी रुआँसे स्वर में बोली. राहुल अपना चेहरा उठकर दरवाजे की और देखता है. वो अपनी मम्मी को यूँ मिन्नतें करते देख बहुत दुखी था. वो तोह कभी सपने में भी उसे दुखी नहीं देख सकता था मगर उसकी मम्मी ने जो कहा था वो उसके लिए असहनीय था. राहुल की आत्मा तड़प उठि थी. लेकिन वो इस तरह अपनी माँ को रोते बिलखते भी दरवाजे के बाहर नहीं सुन सकता था.
"आप जायिये यहाँसे .........मुझे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दीजिये" राहुल आखिरकार अपनी माँ को जवाब देता है. सलोनी कुछ पल चुप रहती है. फिर उसे लगता है के यही ठीक रहेगा के उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दिया जाये तब तक उसका गुस्सा कुछ शांत हो जायेगा बाकि वो खुद संभाल लेगी.
"ठीक है बेटा.......में जा रही हु........में तुम्हारे लिए नाश्ता बनाकर लाती हु.........." सलोनी दरवाजे से हट जाती है.
"मुझे आपका नाश्ता वाश्ता नहीं चाहिए......आप मेरे दोस्तों को जाकर नाश्ता खिलाइये जिनके साथ आपने मस्ती करनी है, अपना मन बहलाना है"
राहुल के लफ़ज़ जहर बुझे तीर की तरह सलोनी के दिल में चुभ जाते है. वो कुछ कहने के लिए अपना मुंह खोलती है मगर फिर कुछ सोचकर न बोलने का फैसला करती है. उसका बेटा अभी बहुत ग़ुस्से में था, उसे उस समय कुछ कहना आग में घी ड़ालने के बराबर था सही एहि था के उसे कुछ समय के लिए अकेला छोड़ दिया जाये. सलोनी ठण्डी आह भरती निचे की और जाने लगती है.
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