RE: Maa ki Chudai मा बेटा और बहन
"अगर मेरा वाकई उससे कोई मतलब नही होता तो तुम मुझसे ऐसा झूठ कभी नही बोलती" अपनी माँ की ओर से मिले सकारात्मक संकेत को महसूस कर अभिमन्यु दुष्ट हँसी हँसते हुए बोला। जाने कितने अरसे बाद उसकी माँ ने अपनी नाक और कान मे अपने बेटे के सबसे पसंदीदा आभूषण पहने थे जिन पर से अपनी नजरें हटा पाना उसके बस से बाहर हो चला था।
"कैसा झूठ? म ...मैं क्यों बोलने लगी तुमसे झूठ" वैशाली हकलाते हुए पूछती है, जितनी हैरत उसे बेटे के इस अश्लील तोहफे पर नही हुई थी उससे कहीं अधिक वह उसके कथन को सुनकर चौंक पड़ी थी।
"मैं उसी साइज की ब्रा और कच्छी के तीन सेट खरीदकर लाया हूँ मॉम जिस साइज के फिलहाल तुम पहन रही हो। तुम्हें तो झूठ बोलना नही आता माँ" अभिमन्यु फौरन उसे आँख मारते हुए बोला, अब वह पूरी तरह से भय मुक्त हो चुका था।
"तुम जैसे बेशर्म लोगों की सबसे खास बात यही है मन्यु कि वह बात-बात पर बात पकड़ते हैं। अभी इसी वक्त जाओ और इन्हें वापस करके आओ, अपनी माँ को उसका बेटा इस तरह का गंदा तोहफा कभी नही दिया करता" अपनी चोरी पकड़ी जाने पर वैशाली लाज से दोहरी होती हुई बोली और पॉलीबैग तुरंत बेटे की ओर बढ़ा देती है।
"मॉम अब ये रिटर्न नही होंगे, डायरेक्ट एनामोर के आउटलेट से लाया हूँ" अभिमन्यु ने बताया।
"एनामोर? इतनी ब्रांडेड कंपनी? कहीं तुमने सारे पैसे तो खर्च नही कर दिए? फिर पॉलीबैग क्यों बदला?" वैशाली ने एकसाथ कई सवालों की झड़ी लगाते हुए पूछा। वह इस महंगे ब्रांड से तब परिचित हुई थी जब अनुभा ने अपने ससुराल जाने से पहले अपने नये अंडरगारमेंट्स एनामोर से ही खरीदे थे, वह अपनी बेटी के साथ वहाँ मौजूद थी और मात्र चार सेट का कैश मेमो लगभग साढ़े आठ हजार का बना था वर्ना इससे पहले दोनो माँ-बेटी कोई भी सस्ते अंडरगारमेंट्स पहन लिया करती थीं जैसे मिडिल क्लास की हर औरत पहनती है।
"तुम्हें बिलीव नही होगा मम्मी, आउटलेट मे बाय टू गैट वन फ्री का अॉफर चल रहा था और उसमे भी थर्टीफाइव परसेंट अॉफ था। तीन सेट सिर्फ ट्वेंटी सेवन हंड्रेड मे, है ना कूल? और हाँ मैंने पॉलीबैग इसलिए बदला ताकि एकदम से तुम्हारी मार ना खा जाऊँ और फिर यह जालिम समाज, यह मल्टी वाले मुझे बेशर्म नही समझते जो मैं अपनी ही माँ के लिए ब्रा-कच्छी खरीदकर ले ले जा रहा था" कहते वक्त अभिमन्यु की शैतानी अदा देखने लायक थी, उसका अपने दांत बाहर निकालकर बेहूदगी से खिखियाना उसकी माँ को हया से गड़ा देता है। उसने एक नजर ऊपर से नीचे तक बेटे को देखा और पाया कि उसकी जींस के भीतर कैद उसका लंड पूरी कठोरता से तनकर खड़ा हो चुका था, जिसके नतीजतन उसकी जींस के ऊपर एक बड़े--से तम्बू का निर्माण हो गया था।
वैशाली क्षणभर मे कांप उठी, पहली बार प्रत्यक्ष वह अभिमन्यु के खड़े लंड को इतने नजदीक से देख रही थी। भले ही उसके बेटे का लंड अभी उसकी जींस के भीतर छुपा हुआ था मगर फिर भी अपने पूर्णविकसित आकार से उसने, अपने पति से तिरस्कृत चुदाई की इच्छुक उस कुंठित माँ को फौरन सिरहन से भर दिया था। दिन मे तीन बार स्खलित हो चुकने के बावजूद एकाएक वह अपनी चूत मे एक और नई तड़प महसूस करने को विवश हो जाती है। उसे अपनी खुद की स्थिति बहुत दयनीय नजर आने लगी जब वह चाहकर भी अपनी आश्चर्य से फट पड़ी आँखें अपने बेटे की जींस के तम्बू से हटा नही पाती।
"कुछ भी हो मन्यु तुम्हारी माँ होने के नाते मैं तुम्हारे इस तोहफे को नही ले सकती और रिटर्न यह होगा नही। अब एक ही रास्ता बचा है कि इसे मैं अपनी होनेवाली बहू के लिए संभालकर रख लूं, ताकि अभी नही तो कम से कम फ्यूचर मे इसका यूज हो जाए" एकसाथ लज्जा, गुस्सा, निराशा और अनियंत्रित कमुत्तेजना से अभिभूत वैशाली ने जैसे-तैसे अपने बेटे के तम्बू से चिपकी अपनी नीच नजरों को हटाते हुए कहा और तीव्रता से पलटकर अपने बेडरूम की ओर चल देती है।
"मॉम इफ मेरी वाइफ का बदन तुम्हारे बदन की तरह ... वह क्या कहते है? हाँ छरहरा नही हुआ तो" कहते हुए अभिमन्यु भी अपनी माँ के पीछे चलने लगता है।
"प्लीज मम्मी इकसेप्ट कर लो ना मेरे गिफ्ट को, कितने प्यार से लाया हूँ" वैशाली के उसे ध्यान ना देने के बावजूद वह बोलता रहा।
"रुको तो माँ, अच्छा हम इस सब्जेक्ट पर बैठकर बात करें?" उसने चलते-चलते पूछा, दोनो माँ-बेटे बेडरूम के अंदर प्रवेश कर चुके थे।
"मॉम आई रियली लव यू, बहुत प्यार करता हूँ तुमसे। मेरी कोई गर्लफ्रेंड नही है, पहली बार किसी लड़की को गिफ्ट दे रहा हूँ। अब इसमे मेरा क्या फॉल्ट की तुम मेरी माँ हो, मेरी फीलिंग्स को कम से कम ऐसे तो न तोड़ो। प्लीज मॉम प्लीज" अभिमन्यु बिस्तर के पास पहुँचकर रुक जाता है, वैशाली अपना वार्डरोब खोल चुकी थी मगर जाने क्यों वह पॉलीबैग शेल्फ मे रख नही पाती। अपने बेटे के मुंह से ऐसी मार्मिक बातें सुनना उसे अच्छा नही लगा था, यह अवश्य था कि खुद के लिए अभिमन्यु के प्यार को वह बरसों से देखती आ रही थी और अब से थोड़ी देर पहले उसने उसकी आँखों मे स्वयं के लिए एक मर्द रूपी प्यार भी साफ महसूस किया था जब वह उसके लगातार एक ही प्रश्न पर अटके रहने के उपरान्त उसे अपना सच्चा जवाब देने की वजह से रोने लगी थी।
"तुम झूठे हो मन्यु। अगर तुम्हारी गर्लफ्रेंड नही तो तुम वर्जिन क्यों नही हो?" बिना अपना चेहरा घुमाए वैशाली ने उससे पूछा, उसे मालूम था कि ऐसी उलझी परिस्थिति मे उसके बेटे की निजता को भंग करता उसका यह सवाल बिलकुल उचित नही ठहराया जा सकता मगर सत्य जानने की इच्छा के हाथों मजबूर वह पूछ ही लेती है।
"प्रॉस्टिटूट" अभिमन्यु हौले से फुसफुसाया, जवाब देते समय एकपल को भी उसने अपने जवाब की निकृष्टता पर विचार नही किया था।
"वॉट!" वैशाली चौंकते हुए अत्यंत तुरंत उसकी ओर पलट जाती है।
"मैं खुद को संभाल नही पा रहा था मम्मी और अगर मुझे किसी औरत के जिस्म का सहारा नही मिलता तो मानो या ना मानो, मैं पागल हो जाता। इसके बाद मैं कई बार उस गलत जगह पर गया और आगे भी खुद को रोक नही पाऊंगा" कहकर अभिमन्यु बिस्तर पर बैठ गहरी-गहरी सांसें लेने लगता है, उसका सिर शर्म से नीचे झुक गया था। अपने दूसरे पहलू को अपनी माँ के साथ सांझा करने के बाद उसे ऐसे विचार आने लगे थे कि काश अपने आप उसका दिल धड़कना बंद कर दे और वह अपने इस अजीब से पागलपन से पूरी तरह मुक्त हो जाए।
"ऐसे स्टाइलिश अंडरगारमेंट्स मैंने आज तक नही पहने मन्यु" वैशाली ने उसके करीब आते हुए कहा, पॉलीबैग भी उसके हाथ मे मौजूद था।
"तुम्हारे कन्फेशन पर हम जरूर बात करेंगे पर पहले यह बताओ कि कच्छी का कलर तुम सिलेक्ट करोगे या मैं करूँ?" उसने अभिमन्यु के कंधे को थपथपा कर पूछा, यह उसके बेटे की ईमानदारी का नतीजा था जो वह एकबार फिर से पिघल गई थी।
"बोलो जल्दी बोलो फिर तुम मुझे ट्रीट पर भी तो ले जाओगे और बिना कच्छी पहने मैं इस घर से बाहर जाऊंगी नही" अपने कथन को पूरा करते ही वह पॉलीबैग को बिस्तर पर उलट देती है।
"मैं मुंह धोकर आता हूँ, तुम हॉल मे तैयार मिलना माँ" अभिमन्यु बिस्तर से उठते हुए बोला, वह अपनी माँ अश्लील बातों से अकस्मात् झेंप सा गया था।
"पहले अपनी माँ के लिए कच्छी तो सिलेक्ट करो, माँ पेटीकोट के नीचे नंगी है मन्यु" वैशाली सीधे उसकी आँखों मे झांकते हुए बोली। वह बिस्तर के बिलकुल करीब आकर खड़ी हुई और अभिमन्यु के अचानक बिस्तर से उठकर खड़े हो जाने से दोनो माँ-बेटे का शरीर आमने-सामने से काफी हद तक चिपक गया था। दोनो एक-दूसरे की चढ़ी सांसों को अपने-अपने चेहरे पर साफ महसूस कर सकते थे, दोनो की छातियां ओर जांघें भी आपस मे सट गई थीं और ठीक उसी पल अपने बेटे के थरथराते तम्बू का स्पर्श अपनी नाभि पाकर वैशाली के मन मे एक ऐसा पापी ख्याल पनप जाता है जिसके पूरे हो जाने के पश्चात माँ-बेटे का आगामी भविष्य निश्चित ही बदल जाना था।
"अॉन योर नीज़ मन्यु, अभी" अपने जबड़े भींचकर ऐसा कहते हुए वैशाली अपने दोनो हाथ एकसाथ बेटे के कंधों पर रख उसे नीचे फर्श पर अपने घुटनों के बल बैठने के लिए, अपने हाथों की क्रिया के साथ मौखिक दबाव भी देने लगती है। अभिमन्यु ठगा, मंत्रमुग्ध सा अपनी माँ के हाथों के हल्के दबाव से भी हौले-हौले नीचे बैठने लगता है, उसका चेहरा नीचे बैठने के दौरान उसकी माँ के शरीर से बिलकुल सट गया था और जिसके नतीजन जबतब उसके होंठ भी वैशाली की साड़ी व निर्वस्त्र बदन से रगड़ खाते जा रहे थे।
सर्वप्रथम उसके होंठों ने उसकी माँ के गोल-मटोल मम्मों के ऊपरी फूले फुलाव को छुआ और वहाँ से फिसलते हुए उसके होंठ माँ के ब्लाउज पर पहुँचे, फिर पुनः होठों को उसकी माँ की नंगी त्वचा को छू लेने का अवसर प्राप्त हुआ। वैशाली के चिकने गुदाज पेट ने तो जवान अभिमन्यु को जैसे पूरी तरह से अपने वश मे कर लिया था, वह एकाएक इतना अधिक भ्रमित हो गया कि उसे यह भी ख्याल नही रहा कि उसने अपनी माँ के नंगे पेट को चूमना भी शुरू कर दिया है। माँ की गोल गहरी नाभि को बारम्बार पटापट चूमने के उपरान्त उसके होंठों का स्पर्श दोबारा वैशाली की साड़ी से हुआ और फिर वहीं ठहरकर रह गया, यह उसकी माँ का वह वर्जित स्थान था जिसे या तो बचपन मे उसके नाना-नानी ने देखा था या शादी होने के बाद उसके पिता ने। अभिमन्यु अब पूरी तरह से फर्श पर बैठ चुका था और ज्यों ही वह अपने चेहरे को साड़ी के ऊपर से अपनी माँ की टांगों की जड़ पर दबाता है, वैशाली अपना निचला होंठ जोर से अपने दांतों के बीच फंसाकर अपनी सिसकी रोकने के असफल प्रयास से झूझने लगती है। उसकी टांगें तत्काल कुछ इस तरह से कपकपाने लगी थी मानो वह किसी चालू जनरेटर के ऊपर खड़ी हो, वह कैसे भी कर अपने बेटे के मुंह को अपनी चूत के ऊपर से हटाना चाहती थी वर्ना कुछ ही क्षणों मे उसका पतन हो जाना निश्चित था।
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