RE: muslim sex kahani खानदानी हिज़ाबी औरतें
”इस में शर्मिंदा होने वाली किया बात है ज़ाहिद. अगर चाची फ़हमीदा मेरी माँ होतीं तो में भी उन्हे चोदने से अपने आप को रोक ना सकता. और फिर चाची फ़हमीदा की चूत को एक जवान लंड भी तो मिल गया है." चाची फ़हमीदा के सेहतमंद मम्मों और चूतड़ों का सोच के मेरे मुँह में पानी भर आया.
“हाँ ये तो ठीक है. अब अम्मी को कम-आज़-कम घर से बाहर कुछ करने की ज़रूरत नही है." उसने कहा.
"फिर ये भी देखो के तुम और चाची फ़हमीदा बच्चे तो नही हो. तुम दोनो ने अपनी मर्ज़ी से सेक्स किया तुम ने उनके गले पर च्छुरी तो नही रखी थी ना. वैसे बुरा ना मानना चाची फ़हमीदा हैं भी चोदने के क़ाबिल." में उस का दिल बढ़ाते हुए बोला.
"नही में बुरा क्यों मानों गा. मै तो तुम्हे खुद बता रहा हूँ के मैंने अम्मी की फुद्दी मारी है.”
उस ने कहा.
“तभी तो में तुम्हे भी खुश-क़िस्मत कह रहा हूँ.” मैंने जवाब दिया.
“अब ये ना कहना के तुम भी अम्मी को चोदना चाहते हो क्योंके अगर ऐसा हो तो में बदले में किसे चोदुंगा. तुम्हारी तो ना माँ है ना बहन." मेरी बात सुन कर वो ज़रा पूर-सकूँ होते हुए बोला.
उस की ये बात सुन कर मेरे कान खड़े हो गए.
"यार चाची फ़हमीदा की चूत लेने के लिये तो में कुछ भी कर सकता हूँ." मैंने उससे गौर से देखते हुए बे-बाकी से कहा.
”सीरियस्ली अमजद अगर तुम्हे अम्मी को चोदने का मोक़ा मिले तो किया करो गे. किया इस में कुछ मेरा फायदा भी हो सकता है?" उस ने बड़ी संजीदगी से सवाल किया.
में समझ गया के बात किस तरफ जा रही है और ये के चाची फ़हमीदा को चोदने के बारे में वो झूठ नही बोल रहा वरना मुझे उनकी चूत मारने की ऑफर कैसे करता. उस की बात का मतलब साफ़ था के अगर वो फूफी खादीजा को चोद सके तो मुझे चाची फ़हमीदा की चूत लेने दे गा क्योंके बिला-वजा तो वो अपनी माँ को मुझ से नही चुदवा सकता था. ज़ाहिर है के वो खुद फूफी खादीजा पर हाथ डालते हुए घबरा रहा था. अगर में उस की मदद करता तो शायद फूफी खादीजा उससे चूत देने पर तय्यार हो जातीं. इस मदद के बदले में वो मुझे चाची फ़हमीदा को चोदने देता. हरामी ने लंबा ही खेल सोच रखा था.
मुझे गुस्सा तो आया के कोई और फूफी खादीजा की मोटी चूत में लंड डाल कर उन्हे चोदे क्योंके बहरहाल वो मेरी सग़ी फूफी थीं और मुझे उन से बड़ी मुहब्बत भी थी. मै इन्सेस्ट का शौक़ीन था लेकिन सिरफ़ अपनी हद तक. ये मेरी बर्दाश्त से बाहर था के मेरे खानदान की औरतों को कोई और चोदे चाहे वो मेरा कज़िन ही क्यों ना हो. लेकिन मैंने ज़ाहिद के सामने ये कबूल कर के के में फूफी खादीजा की चूत मार चुका हूँ अपनी पोज़िशन बहुत खराब कर ली थी.
में ज़ाहिद को बड़ी अच्छी तरह जानता था. वो बहुत कीना-परवर और छुप कर वार करने वाला इंसान था. अगरचे उस ने भी मुझे ये बताया था के वो अपनी माँ को चोद रहा है मगर में किसी सबूत के बगैर इस बात को उस के खिलाफ इस्तेमाल नही कर सकता था. कोई भी मेरा यक़ीन ना करता. लेकिन अगर वो फूफी खादीजा और मेरे बारे में चाची फ़हमीदा को बता देता तो फिर खानदान का हर फर्द इस मामले से वाक़िफ़ हो जाता. वो बड़ी मुँह-फॅट, बद-तमीज़ और लड़ाका औरत थीं और घर घर जा कर अपनी सुसराल का बुरा कहना हमेशा से उका पसंदीदा काम रहा था. चाची फ़हमीदा और फुफियों में अच्छी ख़ासी दुश्मनी भी थी और अगर चाची फ़हमीदा को फूफी खादीजा का पता चलता तो वो अपनी नंद को रुसवा करने में कोई कसर ना छोड़तीं. उन्हे ऐसा करने के लिये किसी सबूत की भी ज़रूरत नही थी. फिर इस मसले पर सारे खानदान में बातें शुरू हो जातीं और मेरा जो हश्र होता वो में सोच सकता था. मै और फूफी खादीजा आख़िर किस किस के सामने अपनी सफाई पेश करते. इन हालात में में ज़ाहिद को नाराज़ करने का ख़तरा मोल नही ले सकता था.
"कोई प्लान बनाते हैं." मैंने अपनी परैशानी उस से छुपाने की कोशिश करती हुए कहा.
“देख लो अमजद मेरे साथ दो नम्बरी ना करना. मै तुम्हे अकेले अकेले फूफी खादीजा के साथ मज़े नही करने दूँ गा.” उस के लहजे में धमकी पोशीदा थी.
“नही यार ज़ाहिद ऐसी कोई बात नही. तुम अगर फूफी खादीजा की चूत मारो तो भला मुझे किया ऐतराज़ हो सकता है. किया वो तुम्हारी फूफी नही हैं?” खौफ की एक लहर मेरी रीढ़ की हड्डी में दौड़ गई. मेरा अंदाज़ा फॉरन ही सही साबित हो गया था. वो मुझे ब्लॅकमेल करना चाहता था. गुस्से और नफ़रत ने मेरे दिल-ओ-दिमाग को अपनी लपेट में ले लिया. मेरा ज़हन तेज़ी से काम कर रहा था लेकिन मुझे कुछ समझ नही आ रही थी. जब फूफी खादीजा को उस कुत्ते के बच्चे से बचाने का कोई रास्ता नज़र नही आया तो मैंने अपने आप को तस्सली देने के लिये सोचा के फूफी खादीजा ज़ाहिद की भी तो सग़ी फूफी हैं और अगर वो उन्हे चोद लेता तो यक़ीनन मेरे राज़ को कभी फ़ाश नही कर सकता था. अगर वो ऐसा करता तो खुद भी फँसता.
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