Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:34 PM,
#53
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मैं नीनू से बोला –“ यार तू भी ये राजस्थानी ड्रेस पहन न मस्त लगेगी उसमे ”

वो- कुछ भी बोलते हो 

मैं- पहन तो सही 

वो- एक शर्त पर 

मै- बोल

व्- तुम भी ट्राई करो 

मैं – कही पब्लिक हमे लोग- लुगाई नहीं समझने लग जाये 

नीनू ने कातिल निगाहों से मेरी तरफ देखा हमने किराये पर ड्रेस ली और पहन कर तैयार हो गए नीनू कसी हुई 

चोली और घेर वाले घागरे में बड़ी मनमोहक लग रही थी , हाथो में राजस्थानी कड़े ऊपर तक गले में हंसली और 

पांवो में भी कुछ पहना हुआ था जिसका नाम मुझे याद नहीं अपने बालो की चोटी में वो रंग बिरंगे फीते से बांधे 

थे एक दम माल लग रही थी उस टाइम पहली बार मेरे मन में ख्याल आया की चूत तो मस्त है एक दम मैंने भी 

एक कुरता- धोती और सर पर राजस्थानी पगड़ी पहनी ऊपर से मजा जब आया जब लम्बी लम्बी नकली मूंछे 

लगायी 

नीनू – क्या देख रहे हो इस तरह से 

मैं- तुम्हे देख रहा हूँ 

वो- क्यों भला 

मैं- टंच लग रही हो एक दम , करारी 

नीनू- है रब्बा, कैसी बाते करते हो 

मैंने अपना हाथ नीनू की कमर में डाला और उसको अपनी ओर खीचते हुए बोला- तुम्हारे इस रूप को आज से फेले ना देखा मैंने, देखने दो मुझे जी भर के 

नीनू- छोड़ो मुझे, लोग देख रहे है क्या सोचेंगे

मैं- क्या सोचेंगे, की लोग- लुगाई है नया नया ब्याह हुआ होगा 

नेनू- पर हम नहीं है 

मैं- हो तो सकते है ना 

नीनू- बकवास बहुत करते हो तुम 

उन कपड़ो में बहुत एन्जॉय किया हमने कभी नीनू पनिहारन बन कर फोटो खिचवाती तो कभी मैं किसान बन कर 

ये दिन मुझे बेस्ट लग रहा था पर हमारी उस दिन मजबुरिया बहुत थी की टाइम का टोटा था आमेर में ही दोपहर 

होने को आई थी हमे तो वहा से निपटे हम लोग थोडा बहुत सामान लिया और वापिस शहर की तरफ कूच किया 

मेरी बड़ी तमन्ना थी हवा महल देखने की उसके झरोखे देखने की तो पहूँच गए वहा पर , उसके बाद मोती-डूंगरी 

उसके बाद कोई बावड़ी थी वहा पर उस दिन टाइम की कीमत का पता लगा थक कर चूर हो गया था मैं शाम के 

करीब ४ बजे हम पहूँचे बस स्टैंड तो पता चला की ५ बजे की बस है हमारे शहर के लिए तो फटाफट से बस स्टैंड 

के बहार वाले होटल पर पेट पूजा की नीनू ने थोडा सा सामान लिया और पकड़ ली अपनी सीट
बाते करते हुए कभी किताबे पढ़ते हुए, तो कभी एक मीठी सी झपकी लेते हुए हम लोग अपने सहर के पास और 

पास आते जा रहे थे नीनू तो सोयी पड़ी थी पर मैं जाग रहा था घर आने का रोमांच सा हो रहा था अपनी मिटटी 

की खुशबु जो आने लगी थी , पर थकन भी बहुत ज्यादा हो गयी थी लम्बा सफ़र मेरे पाँव बस में मुड़े मुड़े उकता 

गए थे रात के करीब १ बजे बस , बस स्टैंड पर रुकी मैंने नीनू को जगाया अलसाई सी वो उठी समान उतारा 

खुली जमीं पर आकर बहुत अच्छा लगा , नीनू ने मुह धोया पर नींद अभी भी उसके चेहरे पर छाई हुई थी 


मैं- “आ गये अपने शहर ”

नीनू- आ पर घर कैसे जायेंगे इस टाइम कोई साधन भी तो नहीं मिलेगा 

- सुबह तक का इंतज़ार करे 

वो- सब कुछ तो सुनसान पड़ा है , इधर रुकना ठीक रहे गा क्या 

बात तो ठीक ही थी ऊपर से लड़की साथ मेरे तो थोड़ी सी घबराहट सी हो गयी, वक़्त का तकाजा देखो परदेस

घूम आये पर अपने ही सहर में डर लगे , हैं ना अजीब बात गाँव दूर पैदल जा तो सकते थे वैसे पर तीन बैग 

ऊपर 
से फ़ालतू का सामान , नीनू मेरी तरफ देखे मैं उसकी तरफ शहर की सावरिया तो निकल ली थी एक एक करके 

हम कहा जाये , ऊपर से नीनू की जिम्मेदारी खैर, दो बैग मैंने लिए बाकि नीनू ने और बस स्टैंड से बहार निकले 

सुनसान सड़क पर कोई नहीं 


मैं- नीनू, कोई साधन तो मिलने से रहा इस बखत बता क्या करे 

वो- वो ही सोच रही हूँ 

मैं-चलते चलते सोचते है चोक तक चलते है क्या पता कुछ साधन मिल जाये 

तो हम चोक की तरफ बढ़ चले पर उधर आकर भी वो भी हाल काफ़ी देर हो गयी अब इतनी रात को कौन साधन 

मिले सोचने वाली बात थी कुछ सोच कर मैंने कहा 

“एक काम करते है पैदल ही चलते है थोडा समय लगेगा पर पहूँच ही जायेंगे ”

नीनू- सामान में बहुत बोझ है मुश्किल होगा , और फिर तुम तो रास्ते में उतर लोगे मुझे तो आगे जाना है 

मैं- रे बावली, कर दिया न एक मिनट में पराया , तुजे अकेला छोड़ दूंगा ये कैसे सोचा तूने , तू मेरी 

जिम्मेवारी है तू चाहे मुझे पराया मान पर मेरे लिए तू अपनी है 

वो- मेरा वो मतलब नहीं था , तू बुरा मत मान 

मैं- तू अपना मतलब अपने पास रख 

मैंने पेप्सी की बची खुची घूंटो को गले से उतराया और चल पड़े गाँव के रस्ते पर बैग बहुत भारी लगने लगे थे 

पर घर जाना ही था ठंडी हवा चल रही थी हम दोनों ख़ामोशी से चल रहे थे धीमे धीमे कदमो से रास्ता सच में 

बहुत लम्बा लगने लगा था चलते चलते हम लोग सहर की हद से बाहर निकल आये अब गाँव तक थोडा 

सुनसान 

सा रास्ता था इस साइड में आबादी इतनी नहीं थी 

मैं- नीनू, एक कम करियो मेरे घर रुक जाना सुबह चली जाना 

वो- ना तेरे घर कैसे जा सकती हूँ, 

मैं- क्यों ना जा सकती मैं संभाल लूँगा, वैसे भी इतने रात को तेरे घर वाले क्या कहेंगे तुझे की अकेली क्यों 

आई काफ़ी बाते सुनेगी फ़ालतू में 

वो- पर मैं तुम्हारे घर भी तो नहीं जा सकती ना 

मैं- देख , तेरे घर मैं तुझे रात को भी छोड़ आऊंगा दो किलोमीटर और सही पर घरवाले पूछेंगे तो जरुर ही की

किसके साथ आई अकेले आने की क्या जरुरत थी कुछ उल्टा-सीधा हो जाता तो फिर क्या कहेगी 

नीनू मेरी तरफ देखने लगी , और बोली- पर तुम्हारे घर आउंगी तो तुमसे भी काफ़ी सवाल पूछे जायेंगे अपनी बात अलग है पर घर वालो की अलग 


मै- तो क्या करे फिर बता जरा 

वो- सोचने दे ........................................
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RE: Raj sharma stories चूतो का मेला - by sexstories - 12-29-2018, 02:34 PM

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