Raj sharma stories चूतो का मेला
12-29-2018, 02:27 PM,
#8
RE: Raj sharma stories चूतो का मेला
मुझे कोई फरक नहीं पड़ता तुम्हारा जो भी मतलब था , और न ही उन लोगो की बातो से जो वो मेरे बारे में करते हैं आखिर कुछ चीजों को आप कितनी भी कोशिशि कर लो पर सही कर नहीं सकते और फिर किसी को क्या हैं मैं अपनी ज़िन्दगी को कैसे भी जिउ ये मेरी मर्जी हैं , उसने कहा
मैं- वो भी हैं पर सची में मैं तुम्हारा दिल नहीं दुखाना चाहता था 

वो थोडा सा मुस्कुराई , और बोली अच्छे लड़के हो तुम तहजीब हैं तुम्हारे अन्दर मेरी छोड़ो तुम बताओ कुछ क्या पता फिर कभी तुमसे कभी बाते करने का मोका मिले न मिले 

मैं – ऐसा क्यों सोचती ही फिर कभी हम मिलेंगे तो बात तो करेंगे ही वैसे मेरे पास कुछ हैं नहीं तुम्हे बताने को बस कट रही हैं जैसे तैसे कर के 

पिस्ता- मैंने तो सुना था की बड़े घरो के लड़के अक्सर ऐसे वैसे होते हैं पर तुम तो अलग हो

मैं- तुम्हे लगता हैं तो ऐसा ही होगा

प्यास लगी हैं थोडा पानी मिलेगा कहा उसने
हां, अभी लाता हूँ, गिलास भर कर दिया उसको पानी पीते समय थोडा सा पानी उसके सूट पर गिर गया तो मैंने कहा कोई रेल पकडनी हैं क्या आराम से पियो वो मुस्कुराई मेरी और देख के फिर खाली गिलास मुझे पकड़ा दिया 

मैंने उसे भरा और फिर पीने लगा तो उसने कहा अरे मेरा झूठा क्यों पि रहे हो
मैं- ये झूठा सच्चा नहीं पता मुझे मुझे भी पानी पीना था तो पि लिया बस इतनी सी तो बात हैं 
पिस्ता बस मुस्कुरा कर रह गयी 
मैंने बातो का सिलसिला आगे बढ़ाते हूँए कहा- तुम रोज आती हो खेत में
पिस्ता- नहीं रे, बताया न तुम्हे, सब्जियों में पानी देना था इसलिए आई वैसे अगर तुम कहो तो रोज आ जाऊ इस बहाने तुम से बाते भी हो जाया करेंगी , 

मैंने मन में सोचा चलो यार ये मिल गयी तो टाइम पास हो जायेगा मेरा वो कर भी रही थी मजेदार बाते मैंने आगे बढ़ते हूँए कहा , वो क्या तुम सच में घर से भाग गयी थी 
पिस्ता- ऐ वो मुझे न हीरोइन बन ने का शौक हो गया था तो उसी के लिए चली गयी थी काम न बना था तो वापिस आ गयी गाँव के लोगो ने बात फैला दी की भाग गयी फलाना फलाना 

ये सुनते ही मुझे तेज हँसी आ गयी , मैं बोला- तुम तो गजब हो भला ऐसा कोई करता हैं क्या 
अब मैं तो ऐसी ही हूँ जो करना हैं करना हैं दुनिया कौन हैं मुझे रोकने वाली मैं तो ऐसे ही बेतकल्लुफी ही जीती हूँ और जियूंगी पर तुम बहुत खोद खोद के पूछ रहे हो क्या इरादा हैं तुम्हारा 

मेरा क्या इरादा होना हैं , बस ऐसे ही पूछ रहा था

मुझे लगा की तुम में मेरे लिए इंटरेस्ट जाग गया हैं कहा उसने 

मैं हैरान रह गया , कितनी बिंदास लड़की थी यार ये, पर उसकी मुह पर बोलने वाली बात अच्छी लगी मुझे , 
हाँ मैं हूँ ही इतनी मस्ती की किसी का भी इंटरेस्ट जाग ही जाता हैं

मैं- नहीं , नहीं मेरा वो इरादा नहीं था 

वो थोडा सा मेरे पास को सरकी, और कहा- तो फिर क्या इरादा था

मैं- वो मुझे नहीं पता पर अच्छा लग रहा हैं तुमसे बाते करना अब ये मत पूछना की क्यों , मेरे पास जवाब नहीं हैं

पिस्ता- अक्सर लोगो के पास जवाब नहीं होते हैं कुछ सवाल होते ही ऐसे हैं पर तुम पूछो जो पूछना है आज मेरा भी मूड अच्छा हैं 

मैं- अब लाइट तो पता नहीं कब आएगी घर चली जाओ, यहाँ कब तक बैठी रहोगी कहो तो मैं चलूँ घर तक

पिस्ता- ओह हो की बात हैं, सीधा घर तक आने को कह रहे हो

मैं- तुम हर बात का ऐसे ही जवाब देती हो क्या 

पिस्ता- क्या तुम्हे मैं यहाँ पर अच्छी नहीं लगती हू

मैं- मेरे अच्छे लगने न लगने से क्या होता हैं मैं सोच रहा था की शायद तुम्हे घर जाना चाहिए इस लिए बोला 

पिस्ता- लाइट थोड़ी बहुत देर में आने वाली होंगी , पानी देना जरुरी हैं 

मैं- तुम चाहो तो लेट जाओ थोड़ी देर मैं खेतो का एक चक्कर लगा कर आता हूँ और चल दिया पूरा चक्कर लगाने में करीब आधे घंटे से भी ज्यादा लग गया था मैं जब आया तो पिस्ता खाट पर बेसुध होकर सोयी पड़ी थी उसकी चुनरिया चेहरे से सरक गयी थी चाँद की दूधिया रौशनी उसके चेहरे पर पड़ रही थी साँस लेने से उसके जिस्म में हलकी हलकी सी हरकत हो रही थी

मेरी नजर उसके चेहरे पर ठहर सी गयी थी लगा की इस से सुन्दर नजारा फिर नहीं दिखेगा मैं वही पास में एक पत्थर पर बैठ गया और एकटक उसके चेहरे को निहारने लगा बेसुध सी वो अपन सपनो की दुनिया में कही खोई हूँई थी दीन दुनिया से बेखबर लगा की जैसे उस चन्द्रमा के सारे नूर को पिस्ता ने अपने आप में समेट लिया हो उसके रूप का खुमार चढ़ने लगा मुझे पर और फिर मैं उसके चेहरे के ऊपर थोडा सा झुका और उसके गुलाबी गाल पर एक पप्पी ले ली 

अलसाई ओस की बूंदों जैसे मुलायम गाल उसके उसकी सांसो की वो सोंधी सोंधी की महक जैसे मुझे अपने में घोल ही लिया था पर ये सब बस कुछ देर के लिए ही था उस गरम रात में वो ताज़ी हवा के झोंके की तरह आया था , पर ख़ुशी ज्यादा देर कहा टिकती थी वैसे भी अपने पास निगोड़ी तकदीर का खेल देखो उस बिजली को भी तभी आना था कुएँ का लट्टू बिना किसी बात के जल उठा रौशनी फ़ैल गयी दूर दूर तक पिस्ता की आँखे अचानक से खुल गयी और वो उठ बैठी अपने आँचल को सही किया उसने और बोली- बाप रे लाइट आ गयी मोटर चलानी हैं पानी देके मिलती हूँ और भाग चली अपने खेत की तरह हम रह गए उस रात की ख़ामोशी के साथ 
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