Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
12-28-2018, 12:50 PM,
#54
RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
हमने गाँव के पंडित से पूजा सुरू करवाई. पूजा के ख़तम होने पर पंडित को दान दक्षिणा देकर और मंदिर में लोगों को भोजन करा कर जब हम फ्री हुए तो मैं बहन को लेकर खेतों को निकल गया. मेरा दिल उस सुबह से खेतों को देखने के लिए तरस रहा था. मैने ज़मीन चाहे बेच दी थी मगर दिल में वो अब भी मेरी ज़मीन थी. ज़मीन के जितना मैं नज़दीक जाता गया उतनी ही मेरी उत्सुकता बढ़ती गयी. मगर जल्द ही उस उत्सुकता ने दुख का रूप ले लिया. ज़मीन पर हर तरफ पेड़ बीजे हुए थे. जो काफ़ी जगह से पानी की कमी के कारण सुख गये थे. मैने जो मुर्गियों की एक अतिरिकत शेड बनाए थे और हमारे पशुओं का जो बाडा था वो पूरी तरह से टूट गये थे. शेड की हालत दो सालों में ख़स्ता हो गयी थी. जो खेती के आज़ार मैने वहाँ छोड़े थे, वो शेड के आस पास विखरे पड़े थे. बोरेवेल्ल बंद थे, ज़मीन पर जगह जगह घास और झाड़ियाँ उग आई थी. शेड को अंदर से देखा तो सब कुछ विखरा पड़ा था. कभी मेरे आराम करने की चारपाई एक कोने मे तोड़ कर रखी हुई थी. सभ कुछ उजड़ चुका था.मेरा दिल भारी हो गया. ना चाहते हुए भी आँखो में आँसू आ गये. बहन मेरी हालत समझ गयी और मुझे वहाँ से घसीटते हुए लेजाने लगी. मैने रुखसती से पहले अपना सर झुककर उस भूमि से अपने गुनाह के लिए क्षमा माँगी. और फिर बिना रुके बिना पीछे मुड़े मैं वहाँ से आ गया. ना जाने हमारी कितनी पीढ़ियाँ उस ज़मीन पर निर्भर रही थी और आगे कितनी उस ज़मीन के बलबूते रह सकती थी! मुझे शायद ज़मीन को नही बेचना चाहिए था, यह एक वाकाई बहुत बड़ी भूल थी, मगर उसे बेचे बिना मैं सहर में कोई काम धंधा भी तो नही शुरू कर सकता था. गाड़ी में बैठे हुए मेरी आँखो से पानी बहने लगा. मैने कभी सपने में भी उम्मीद नही की थी कि मेरी ज़मीन की यह हालत होगी.


गाँव लौटने पर मैने माँ और बहन को चलने के लिए कहा. माँ इतनी जल्दी जाने के लिए तैयार नही थी मगर जब बहन ने उसको समझाया कि खतों की हालत देखकर मुझ पर क्या गुज़री थी तो वो चलने के लिए उठ खड़ी हुई. सोभा ने हमे रात रुकने के लिए बहुत ज़ोर लगाया मगर हम ना रुके. अब वहाँ मेरा एक पल भी रुकने का मन नही था, मैं जल्द से जल्द वहाँ से दूर चला जाना चाहता था. 


गाँव से लौटने के बाद कयि दिन लग गये उस घाव को भाने के लिए जो मुझे मेरी भूमि की बेसहारा हालत को देखकर लगा था. बहन ने उस समय बहुत समझदारी दिखाई और मुझे अपने प्यार से उस दुख को भूलने में मदद की. 


डेविका हम से सदैव मिलने आती रही. वो लोग बोम्बे आते जाते रहते थे और जब भी वो बॉम्बे आते डेविका हम से मिलने आती. अगर बात सिर्फ़ बहन की होती तो शायद उसका साथ हमारा गाँव छोड़ने के साथ ही ख़तम हो जाता. मगर वो अब मुझसे अपने भाई से मिलने आती थी. जैसा मैं पहले ही कह चुका हूँ कि शायद मैं उसके भाई की जगह कभी ना ले सकूँ मगर मैं उसका दर्द भूलने में उसका सहारा ज़रूर बन सकता था. मैने उसे अपनी बहन की तरह माना और हमारे रिश्ते की पवित्रता को हमेशा बरकरार रखा. उसका पति भी हमारे रिश्ते की इज़्ज़त करता है. वो जब भी हमारे घर आती है तो घर का महॉल बहुत खुशनुमा हो जाता है. हम दोनो उससे चिपक जाते और उसकी बातें सुनते रहते. उसका भी हमे छोड़कर जाने का मन ना होता. वो हमे अपने बच्चों से भी बढ़कर मानती. वो हर वार यही कहती कि उसका मन अपने बंगले में नही बल्कि हमारे साथ रहने को होता है.


माँ और मेरे बीच सेक्स संबंध सहर आने के बाद कुछ समय बने, इतने कि उनकी गिनती उंगलियों पर की जा सकती थी. और वो भी क्योंकि बहन मुझे मजबूर करती थी, उसे हमेशा माँ के अकेलेपन का दुख होता. मगर हमे लगता जैसे हम वो जबरन कर रहे हैं. माँ को भी हमारे संबंध से वो आनंद नही मिलता जो उसे कभी मिलता था. साल बीतते बीतते माँ और मेरे बीच संबंध बिल्कुल बंद हो गया. उसने सॉफ सॉफ लफ़्ज़ों मे मुझे बता दिया कि वो अब हमारे इस अनैतिक संबंध को और आगे नही बढ़ाना चाहती.


माँ हर दिन घर का काम करती और बाकी थोड़ा बहुत समय वो पड़ोसियों से अच्छे संबंध रखने में बिताती, पड़ोस की औरतों को मिलती और बाकी का उसका थोड़ा बहुत समय पूजा पाठ में गुज़रने लगा. धीरे धीरे वो घर का काम निपटा मोहल्ले की औरतों के साथ मंदिर चली जाती और वहाँ वो सब काफ़ी समय पूजा पाठ मे बिताते. मैं भी बहन और माँ के साथ हर सुबह मंदिर जाता था ताकि हमारी खुशियाँ बनी रहे. 


माँ शायद अब हमारे पापों का पश्चाताप कर रही थी. शायद वो हमारी आगे की ज़िंदगी के लिए हमारे गुनाहों को बख्शवाना चाहती थी. शायद उसे अहसास होने लगा था कि हमने कितना बड़ा पाप किया था. सुरू सुरू में वो कुछ अशांत सी दिखती मगर अब जब भी मैं या बहन उसे देखते हैं तो हम उसके चेहरे पर एक अलग सकून पाते हैं. जब वो हमारे बच्चे के साथ खेलती है जा फिर पूजा पाठ से लौट कर आती है तो उसके चेहरे पर पुर्सकून के भाव होते हैं. यक़ीनन वो अब खुश रहने लगी है खास कर हमारे बेटे के जनम के बाद से और हम उसकी इस खुशी में खुश हैं.


हो सकता है माँ का सोचना सही हो कि मेरा और उसका रिश्ता अनैतिक था. हमने बड़ा घोर पाप किया था. मगर बहन के साथ मैने कोई पाप किया है, मैं यह कभी स्वीकार नही करूँगा. मेरे और उसके रिश्ते की पवित्रता को वोही समझ सकता है जिसने दिल मे कभी किसी के लिए सच्चे प्यार का अहसास पाला हो. मेरे लिए उसकी खुशी से बढ़ कर कोई नही था. जब वो घर छोड़ कर गयी थी तब मैने एक निश्चय किया था कि अगर वो हमारे रिश्ते को ख़तम करना चाहती है तो मैं उसके रास्ते से हमेशा हमेशा के लिए हट जाउन्गा. हमारा प्यार समय के साथ साथ बढ़ता जाता है. मैं जब भी काम से थका मान्दा घर लौटता हूँ तो वो सज संवर कर मेरे स्वागत के लिए तैयार खड़ी मिलती है. उसकी वो चंचलता वो शरारातें आज भी वैसे ही बरकरार हैं. वो हमारे रात्रि मिलन के समय जितना मुझे सुख देने की कोशिश करती है, जितना मुझे प्यार करने की कोशिश करती है उतनी ही उसकी चंचलता हमारे मिलन में सजीवता बनाए रखती हैं. 


आज हमारे पास गाड़ी है, अच्छा घर है, और भगवान ने हमे एक सुंदर सा बेटा दिया है. मेरा काम खूब फल फूल रहा है और बहन की दुकान भी अच्छी चल रही है. मैं जल्द ही अपनी शेड के जितनी ही बड़ी एक और शेड वहाँ बनाने वाला हूँ. ज़िंदगी में सुख है, खुशियाँ हैं. फिलहाल इस पल जो ज़िंदगी हम जी रहे हैं हम उससे संतुष्ट है.


हम तीनो हमारे बेटे को लेकर हर सुबह मंदिर जाते हैं. पूजा करते हैं, भगवान से ग़लतिओं की माफी माँगते हैं और अपने सुखद भविष्य की कामना करते हैं. 

वो दोनो क्या मांगती हैं, मुझे नही मालूम. मगर मैने सिर्फ़ सिर्फ़ और सिर्फ़ यही माँगा है और यही माँगूंगा कि मेरा और बहन का साथ हमेशा बना रहे. अगर इस ज़िंदगी के बाद मुझे और जनम मिले तो वो फिर से मुझे मेरी बड़ी बहन और प्रेयसी के रूप में मिले. 


हमारे प्यार का आधार एक प्रेमी प्रेयसी से बढ़कर एक भाई बहन के प्यार का है. वो दुनिया के सामने मेरी पत्नी है मगर अकेले में वो सदैव मेरी बहन है. और मुझे मेरी बड़ी बहन से प्यारा इस दुनिया में और कुछ भी नही है.


हमारे घर में मेरा भी एक गुप्त स्थान हैं. लेकिन वहाँ मेरे पिताजी की तरह मैने अपना कोई राज़ नही छिपाया है. वहाँ मैने वो चीज़ें रखी हैं जो मेरे लिए अनमोल हैं. उसका वो खत जो उसने घर छोड़ कर जाने से पहले मुझे लिखा था और पिताजी के गुप्त स्थान पर छिपाया था, उसकी वो आसमानी रंग की पोशाक जो उसने उस दिन पहनी थी जब हमने पहली बार प्यार किया था और वो कंघी जिससे मैने उस दिन उसके बाल संवारे थे. वो मेरा गुप्त स्थान है.


बंधुओ मेरी ये कहानी यहाँ आकर पूर्ण होती है अगर वक्त ने साथ दिया और आप सभी बंधुओं का सहयोग मिला तो हमारी मुलाकात संभव है सभी बंधुओ का सहयोग मिला उसका में तहेदिल से आभारी हूँ 
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RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें - by sexstories - 12-28-2018, 12:50 PM

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