RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
खत में लिखा था.......
मुझे इस तरह जाने के लिए माफ़ कर देना. फॅक्टरी का पता नीचे लिखा है. मगर मुझे लेने नही आना भाई. मुझे मौका दो अपने प्यार को साबित करने का. मैं अपने प्यार का इम्तिहान देने जा रही हूँ. मैने दो तीन साल सहर में काम करने का सोचा है. इतने समय मैं कभी भी वापस नही आउन्गी. मगर एक दिन मैं लौटूँगी, तुम्हारे पास हमेशा हमेशा तुम्हारी बनने के लिए. अगर तुम मुझे स्वीकार करोगे तो मैं अपनी बाकी ज़िंदगी तुम्हारी अर्धांगिनी बनकर गुज़ारुँगी लेकिन अगर तुम्हारे दिल में मेरे लिए प्यार नही है तो मैं हमेशा हमेशा के लिए तुम्हारे रास्ते से हट जाउन्गी. मगर एक बात याद रखना अगर तुम भी मुझे चाहते हो मुझे प्यार करते हो और मेरे साथ ज़िंदगी बिताना चाहते हो तो तुम्हे मुझे पूरे हक़ देने होगे----पूरा हक़. मुझे पूरा हक़ चाहिए, मुझे पूरा प्यार चाहिए. मुझे नही मालूम तुम्हारे बिना मैं कैसे जियूंगी मगर मुझे यह परीक्षा देनी होगी. माँ का और अपना ख़याल रखना. मुझे उम्मीद है तुम समझ सकोगे मैं क्यों जा रही हूँ. मुझे उस दिन का इंतज़ार होगा जब मैं तुम्हारे पास हूँगी, तुम्हारी बाहों में और तुम मुझसे प्यार का इज़हार करोगे. मुझे जाना होगा. बड़ी हूँ इसीलिए इसे मेरा हुक्म समझना. समय से खाना खाना और सेहत का ख़याल रखना. मैं सदेव भगवान से तुम्हारे लिए प्रार्थना करूँगी"
खत पूरा पढ़ने के बाद मैं कुछ समय तक यूँ ही बैठा रहा. आज मुझे अहसास हुआ मैने उसे कितनी तकलीफ़ दी थी, किस तरह उसे अपनी ज़िंदगी से निकाल फेंका था. उसने कितना दुख सहा था और कितना सह रही होगी सोचकर मुझे खुद पर शरम आने लगी. मैं इतना निर्दयी कैसे हो गया, वो मेरी वजह से इतनी दुखी थी और मेने जानने की कोशिश तक ना की. कभी उससे पूछा भी नही वो कैसी है.......... मैं इतना ख़ुदग़र्ज़ कैसे बन गया था.
मैं उठा और बहन के कमरे की ओर गया. उसका कमरा उसके जाने के बाद से बंद पड़ा था. मैने उसके कपड़ों की अलमारी खोली. मैने उसके कपड़ों को उतारा और अपने सीने से भींच उनमे बसी अपनी बहन की खुसबु लेने लगा. मैं भी कितना बदनसीब था. दुनिया प्यार के लिए तरसती है और मुझे कोई इतना प्यार करने वाला मिला था मगर मैने उसके प्यार की कोई कदर नही की थी. काश वो उस समय वहाँ होती तो मैं उसे बताता मैं उसे कितना यार करता हूँ, उसके बिना कितना तरसता हूँ, कितना तड़प्ता हूँ.
उस रात मैं सो नही सका. मुझे एक फ़ैसला लेना था और सुबह तक मैं फ़ैसला ले चुका था. मैने बहन के नाम एक छोटा सा खत लिखा था ताकि उसे अपने फ़ैसले के बारे में बता सकूँ. अब माँ के हाथ वो खत भेजने में मुझे हिचकिचाहट हो रही थी. हालाँकि मैं खुद माँ पर अपना राज़ जाहिर कर चुका था और माँ के अनुसार तो वो पहले से ही जानती थी मगर फिर भी मेरा दिल नही किया. पोस्ट ऑफीस मैं डाल दूँगा दोफर को, सोचकर मैने खत जेब मे डाल दिया.
सुबह सुबह खेतों को निकल पड़ा. एक रात मे ज़िंदगी वापस पटरी पर आ गयी थी. अब मेरे जीने के लिए फिर से एक उद्देश्य था, एक मंज़िल थी जिस तक मुझे पहुँचना था. मगर पहले की तुलना अब मुझे यह सब अब एक नियत समय सीमा में करना था. मेरे पास समय बहुत कम था और मंज़िल बहुत दूर थी और रास्ता भटकने का ज़ोख़िम मैं हरगिज़ उठा नही सकता था. अब मुझे अपनी हर सोच विचार अपने लक्ष्य पर केंद्रित कर अपना हर कदम उस ओर बढ़ते जाना था. रास्ता बहुत कठिन था, इतना मैं पिछले चार महीने की मेहनत से जान चुका था मगर अब पीछे हटना मुमकिन नही था.
मैं लगभग भागते हुए खेतों में पहुँचा और दूध निकालकर पशुओं को पानी पिलाया. कुछ सब्जियाँ तैयार हो गयी थी उन्हे तोड़ कर और दूध लेकर वापस तेज़ तेज़ कदमो से घर को चल पड़ा. माँ ने खाना बना रखा था. उसे भी बहुत जल्दबाज़ी थी. दुकान पर दूध और सब्ज़ियाँ बेच वो भी जल्द से जल्द सहर के लिए निकलना चाहती थी. मैने खाना खाया. और घर से निकलने ही वाला था कि मुझे कुछ याद आया. मैं माँ के पास गया. "माँ" मैने माँ को पुकारा तो उसने बर्तन सॉफ करते हुए मेरी और चेहरा उठाकर सवालियाँ नज़रों से देखा.
"माँ! देखो मैं जानता हूँ तुम कितनी परेशान रही हो मगर फिर भी भगवान के लिए उसे कोसना नही, डांटना नही. मैं जानता हूँ वो भी हम से दूर जाकर दुखी ही होगी" मैने माँ को धीरे से समझाया.
"ठीक है नही कोस्ती. तुम चिंता मत करो मैं खुद पर काबू रखूँगी" माँ ने कुछ पल चुप रहने के बाद बोला.
"माँ उसे वापस आने के लिए मत कहना बल्कि उसकी हिम्मत बढ़ाना और कहना कि हम उसके साथ हैं हमे उस पर पूरा भरोसा है. और उसे बोलना कि हमारी चिंता ना करे, बस अपना ख़याल रखें" मैने अपने रुँधे गले को सॉफ करते हुए कहा. मैं पूरी कोशिश कर रहा था कि मेरी आँखो से आँसू ना छलक पड़ें. माँ कुछ ना बोली बस टकटकी बाँधे मेरे चेहरे की ओर देखती रही. फिर वो मुझ पर नज़र जमाए मेरी ओर आई.
"क्या हुआ" मैने माँ के उस तरह घूर्ने का कारण पूछा.
"मुझे यकीन नही होता मेरा बेटा कितना समझदार हो गया है. कितना सयाना हो गया है" माँ आगे बढ़ी और अपने गीले हाथों में मेरा चेहरा थामकर उसने मेरा माथा चूमा. "तुम क्यों नही साथ चलते?"
"अभी नही माँ. मगर मैं जाउन्गा जल्द ही जाउन्गा" मैं तेज़ी से मुड़ा और घर से बाहर जाने लगा. फिर अचानक मुझे कुछ याद आया. "और माँ उसके लिए कुछ ताज़ी सब्ज़ियाँ और दूध ले जाना और कुछ पैसे भी, शायद उसे ज़रूरत होगी" इतना बोलकर मैं माँ की बात सुने बिना घर से बाहर निकल गया. अब मैं खुद में पूरा जोश महसूस कर रहा था. पशुओं को चरने के लिए खुला छोड़ मैने मुर्गियों का दाना पानी चेक किया. नब्बे प्रतिशत मुर्गियाँ बच गई थी और जिस हिसाब से मीट का रेट चल रहा था, यह मेरे लिए बहुत ही नफे का सौदा साबित होने वाला था. इतना करने के बाद अब मैं खेतों में काम करने के लिए बिल्कुल फ्री था.
अभी धान की फसल पकने में थोड़ा वक़्त था, मैने बोरेवेल्ल चलाकर पानी छोड़ा और फिर मकयि के खेत में गया. मैने भगवान का नाम लिया और भुट्टो की फसल काटनी शुरू कर दी. बहुत लंबा काम था. भुट्टो के तने ज़रूरत के समय पशुओं के लिए चारे का काम देने वाले थे और शेड को दोनो ओर से कवर करने के भी. क्यॉंके मैने योजना बनाई थी कि कमरे के पास थोड़ी जगह छोड़कर बाकी पूरी शेड को कवर कर दूँगा और अगली बार पूरी शेड मुर्गियाँ पालने के लिए इस्तेमाल करूँगा. दोपहर तक बिना रुके मैने लगभग मकयि की फसल का दसवाँ हिस्सा काट दिया था. उसके बाद खाने के लिए शेड में गया. खाना खाकर मैने वहाँ पड़े स्टोव पर में दूध गरम करके पीने लगा. दूध पीता में काम के बारे में सोचता जा रहा था. फसल काटने और संभालने में बहुत वक़्त लगने वाला था. मुझे थोड़ा हिम्मत से काम लेना था. तभी मुझे शेड के पास किसी के चलने की आवाज़ सुनाई दी. ज़रूर कोई औरत थी, क्यॉंके पायलों की हल्की हल्की छन छन की आवाज़ सुनाई दे रही थी,. शायद माँ थी, मगर माँ तो सुबह ही शहर चली गयी थी और वैसे भी माँ को पायल पहनने की आदत नही थी. कॉन थी वो. मैं दूध का गिलास हाथ में पकड़े शेड से बाहर निकला तो मेरी हैरानी का ठिकाना ना रहा. सामने देविका चली आ रही थी.
"आप यहाँ, खेतों में? सब ठीक तो है ना?"
"सब ठीक है. घबराओ नही" उसे शायद इतना चलने की आदत नही थी इसीलिए उसकी साँसे उखड़ी हुई थी. तुम्हारे घर गयी थी तो दुकान और घर दोनो पर ताला लगा हुआ था. तुम्हारी पड़ोसन ने बताया तुम्हारी माँ को उसने कहीं जाते हुए देखा था, मगर वो अकेली थी. मुझे लगा तुम्हारी माँ तुम्हारी बहन को मिलने गयी होगी मगर अकेले क्यों? तुम क्यों नही गये?"
"मैं जाउन्गा. मुझे मकयि की फसल काटनी है, मौसम का मिज़ाज तो आपको मालूम ही है"
"मैने तो सोचा था तुम सुबह होते ही सहर को भागोगे. कल तो बहन के लिए इतना तड़प रहे थे. मेरा बलात्कार तक करने को तैयार थे" उसके स्वर में गुस्सा या नफ़रत नही मगर उलाहने का पुट ज़रूर था.
"भगवान जानता है मैने कभी बलात्कार तो क्या मैने कभी आपको बुरी निगाह से भी नही देखा. मैं तो बस आपको डराना धमकाना चाहता था ताकि आप मुझे उसका पता बता देती" मैने उसके सामने सर झुकाए किसी गुनहगार की तरह सफाई दी.
"चलो बलात्कार नही करते मगर मेरा गला तो यकीनी तौर पर काटने वाले थे, और झूठ मत बोलना मैने उस समय तुम्हारी आँखो में देखा था, तुम मुझे मारने वाले थे"
मैं कुछ पलों के लिए चुप हो गया. "आपके उन अल्फाज़ों ने मेरे पूरे तन मन में आग लगा दी थी. आप मुझे कुछ भी बोलती मुझे कोई परवाह नही थी मगर बहन के लिए ऐसे अल्फ़ाज़ मैं अभी बर्दाश्त नही करता"
"वो तो देख ही चुकी हूँ. एक पल के लिए तो मुझे लगा था मैं गयी काम से. ना जाने कैसे तुमने हाथ घुमा दिया. उफ्फ अभी भी सोचकर बदन में झुरजुरी दौड़ जाती है"
वाकई में उसका जिस्म काँप सा गया, मुझे खुद पर बहुत शर्मिंदगी महसूस हुई. वो चारपाई पर बैठ गयी. उसने मुझे अपने पास बुलाया और बैठने के लिए बोला. मैं चारपाई के पास नीचे ज़मीन पर बैठने लगा तो उसने कड़क कर कहा
"इधर बैठो मेरे पास. मुझमे कोई काँटे नही लगे हैं"
"जी मैं आपके साथ. किसी ने देख लिया तो?" फरक सिर्फ़ उसके उँची जात और मेरी नीची जात का ही नही था, अमीरी ग़रीबी का फरक ज़मीन आसमान जितना था और सबसे बढ़कर वो एक शादीशुदा महला थी इस तरह उसे कोई भरी दोपेहर मे मेरे साथ अकेली खेतों में बैठे देखता तो उसकी बहुत बदनामी होती.
"अरे पूरे रास्ते में मुझे कोई जानवर तक नज़र नही आया तो इस सूने में इंसान कहाँ से आ जाएगा. आओ बैठो" मगर मुझे अभी भी हिचकिचाहट हो रही थी. मैने बैचैनि से इधर उधर देखा.
"यकीन नही होता, कल तुम्ही थे जिसने मेरा अफ़रन किया था. आओ बैठो" उसकी आवाज़ में वो आत्मीयता थी जो सिरफ़ अपनो के लिए ही होती है. मैं धीरे से उसके पास चारपाई पर बैठ गया. चारपाई छोटी थी महज एक इंसान के आराम करने के लिए. इसीलिए मैं बैठा तो मेरा जिस्म उसके जिस्म को छू रहा था.
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