RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
"मेरे प्यारे भाई,
मुझे समझ नही आता मैं तुम्हे किस नाम से या किस रिश्ते से पुकारूँ. हमारे बीच एक नाता बही बहन का है जो हमे समाज ने दिया है, हमारे माता पिता ने दिया है, एक नाता मैने तुमसे लगाया है जिसके लिए मैने समाज से, धरम से, भगवान से विद्रोह किया है. मैने तुमसे प्रेम किया है.
मैने कभी नही सोचा था हमारे बीच ये सब हो सकता है. मैं झूठ नही बोलूँगी भाई, शुरुआत में, उस किताब के ज़रिए हमारा एक दूसरे से बातें करना मुझे तुम्हारे इतना करीब ला देगा, मैने कभी सोचा नही था. मैं यह भी मानती हूँ कि शुरुआत में, मैं तुमसे शारीरिक सुख पाने की ही इच्छा रखती थी, इसके आगे कुछ भी नही. धीरे धीरे मुझे तुम्हारी आदत पड़ने लगी. तुम्हारा प्यार जैसे मेरे जीने का सहारा बन गया. किसी दिन तुम मुझे प्यार नही करते तो मुझे रात को नींद ना आती, चैन ना मिलता, मैं सारी रात करवटें बदलती रहती. तुम मुझे अपनी बाहों में लेकर सहलाते, प्यार करते तो मैं अपने अंतर में वो खुशी वो सुख महसूस करती जो मैने कभी नही किया था. मगर उस समय तक भी मुझे अहसास नही हुआ था कि मैं तुमसे कितना प्यार करने लगी हूँ.
फिर तुम्हे परिवार के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी का अहसास होने लगा और तुम खेतों में काम करने लगे. धीरे धीरे तुम पूरा समय खेतों में बिताने लगे और हमारे रात के मिलन का समय कम होता गया. फिर माँ भी तुम्हारे साथ जाने लगी. मैं घर पर बिल्कुल अकेली रह जाती. मगर फिर भी तुम कभी कभी मुझे अपने सीने से लगाते मुझे प्यार करते तो मेरे सारे गिले शिकवे दूर हो जाते. मगर अंत में हमारा वो कभी कभार का मिलना भी बंद हो गया और तुम पूरा ध्यान सिर्फ़ खेतों को देने लगे.
पहले पहले मुझे लगा तुम शायद मुझसे गुस्सा हो, मैने तुम्हे मनाने की कोशिस भी की. मगर फिर मैने सोचा हो सकता है तुम इतनी मेहनत के बाद बहुत थक जाते होगे और तुम्हे आराम करना होगा. मगर जल्द ही मुझे अहसास हो गया तुम मुझे जानबूझकर नज़रअंदाज़ कर रहे थे. तुम्हारे उस व्यवहार से मुझे बहुत तकलीफ़ हुई. मेरा दिल किसी काम मे ना लगता. दुकान पर तो जैसे तैसे समय कट जाता मगर घर का सूनापन मुझे काटने को दौड़ता. मुझे लगता था मैं भी जल्द ही तुम्हारे प्यार को भूल जाउन्गी मगर मेरी पीड़ा हर बीतते दिन के साथ बढ़ने लगी. यहाँ तक मैं कयि बार घर में ज़ोर ज़ोर से रोती. अकेली, तन्हा, मैं हर दिन उम्मीद करती शायद तुम आज मेरे पास आओगे शायद कल आओगे. मगर तुम तो शायद उस घर मे मेरे वजूद को ही भूल गये थे.
अब यह पीड़ा मेरे लिए आसेहनीय होती जा रही थी. मैं किसी के साथ अपना दुख भी नही बाँट सकती थी. फिर एक दिन देविका दुकान पर आई तुम्हे मालूम है ना ज़मीदारों की बहू. धीरे धीरे हमारे बीच दोस्ती हो गयी. उसके बहनोई की सहर में फॅक्टरी थी जिसमे वो अच्छे दामों पर मुझे नौकरी दिला सकती थी और फॅक्टरी की ओर से रहने की व्यवस्था भी थी. आख़िरकार मैने सहर जाने का फ़ैसला कर लिया.
अब इससे पहले तुम सोचो कि मैं शायद तुमसे दूर जा रही हूँ तो तुम्हारी गलफहमी है. चाहे तुम मुझसे बात नही करते थे, मुझे प्यार नही करते थे मगर तुम कम से कम मेरी नज़र के सामने तो होते थे, मेरे ईए यह भी बड़ी बात थी. मगर फिर मेरा ध्यान जाता तुम किस तरह दिन रात मेहनत करते हो, किस तरह परिवार के लिए इतना कठिन परिश्रम करते हो. और मैं क्या करती सिर्फ़ दुकान पर थोड़ा सा काम करती, चार पैसे कमाती. मैं भी तुम्हारी मदद करना चाहती थी. मैं चाहती थी तुम्हारी पीड़ा हर दुख हर चिंता को बाँट लूँ. और इसीलिए अंत में मेने सहर जाने का फ़ैसला किया. माँ दुकान और घर का काम देख लेगी. मैं सहर में ज़्यादा से ज़्यादा मेहनत करूँगी ताकि तुम्हे मंज़िल पर पहुंचने मे मदद कर सकूँ.
मगर जितना मैने सोचा था उतना आसान नही है तुम्हे और घर को छोड़ देना. काश तुम देख पाते आज सुबह से मेरी क्या हालत है. आज तक मैने खुद इस बात का खंडन किया है मगर आज मुझे पूरा अहसास हो गया है कि मैं तुमसे प्रेम करती हूँ और तुम्हारे बिना जी नही सकती. हां मैं तुमसे प्रेम करती हूँ, इतना प्रेम करती हूँ जितना आज तक कभी किसी ने किसी से ना किया हो. मैं नही जानती तुम्हारे दिल में क्या है, तुम क्या चाहते हो, मगर मैं सिर्फ़ तुमको चाहती हूँ. सिर्फ़ और सिर्फ़ तुमको चाहती हूँ.
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