RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
उस शाम माँ जब मेरे कमरे में खाना देने आई तो मैं अपनी सोचों में डूबा हुआ था, माँ के आने का मुझे पता तक ना चला. माँ ने जब बेड के किनारे बैठ मेरे सर पर हाथ फेरा तो मुझे उसके आने की खबर हुई.
"खाना खा लो बेटा" वो मुझे दुलारती हुए बोली. मैं उठकर बैठ गया और उसके हाथ से थाली ले ली.
"किस चिंता में इतना खोए हुए हो?" वो मेरी पीठ सहलाते बोली.
मैने निवाला मुँह में डाला. खाकर एक गहरी सांस ली. "उसका पता चल गया है" मैने धीरे से फुसफसा कर कहा.
"किस का पता चल गया है" माँ ने हैरत से पूछा शायद उसे एसी खूसखबरी की उम्मीद नही थी और उसे अपने कानो पर यकीन नही हो रहा था.
"बहन का पता चल गया है. इसी सहर में है वो. एक फॅक्टरी में काम करती है" मैने उसी तरह सर झुकाए बोला.
माँ एकदम से बेड पर से उठ गयी. मैने चेहरा उठाकर देखा तो मेरी ही ओर देख रही थी.
"सच बोल रहे हो ना. मेरा दिल रखने के लिए झूठ तो नही बोल रहे"
"माँ मैं बिल्कुल सच बोल रहा हूँ. सूरत मे बस स्टॅंड से थोड़ी दूर एक बहुत बड़ी फॅक्टरी है, जयदीप रामचंदनी करके. उसी में काम करती है वो. फॅक्टरी के साथ ही मे एक हॉस्टिल है जहाँ वो रहती है"
"तुम उससे मिलने गये थे? वो ठीक तो है ना? तुमने मुझे पहले क्यों नही बताया? वो हमे छोड़कर इस तरह बिन बताए क्यों चली गयी?"
"माँ!" माँ थोड़ा कंट्रोल करो खुद पर. वो बहुत भावभिवहल हो उठी थी. मैने माँ का हाथ पकड़ उसे बेड पर बैठाया. "आज शाम ही पता चला है. मगर मुझे इतना मालूम है वो ठीक है. वो बस इसी डर से कि हम उसे सहर में करने जाने नही देंगे, इसीलिए ऐसे बिन बताए चली गयी"
"पागल लड़की! हम क्यों नही जाने देते! उसने एक बार भी नही सोचा हमारे बारे में. हम कैसे उसकी चिंता में दिन रात मर रहे थे" माँ की आँखो से आँसू बहने लगे मगर उसके चेहरे पर खुशी झलक रही थी. वो हमेशा मुझे हिम्मत बाँधती थी मगर मैं जानता था वो खुद अपने अंतर में कितनी दुखी थी.
"तुम उसे कल जाकर मिल आओ" मैने माँ का हाथ दबाते हुए कहा.
"तुम नही जाओगे? इतने दिनो से दौड़ धूप कर रहे थे और अब जब पता चल गया है तो...."
"मैं जाउन्गा माँ...जल्द ही जाउन्गा" मैने माँ की बात काटते हुए कहा. माँ कुछ कहने लगी मगर फिर बीच में ही रुक गयी.
मैने खाना खाया तब तक माँ दूध ले आई थी. माँ के जाने के बाद मैं अपनी चारपाई पर लेट गया और छत को घूरते हुए उसी उधेड़बुन में लग गया जिसका कोई सिरा मेर हाथ नही लग रहा था. एक तरफ तो देविका की बातों से लगता था बहन मुझसे बहुत प्यार करती है. मैने जब से हमारे बीच ताल्लुक़ात बने थे तब से लेकर आज तक के बारे में सोचा तो मुझे भी हर बात में उसका प्यार झलकता दिखाई दिया. मगर अगर उसे मुझसे प्यार था तो वो इतनी आसानी से कैसे मुझे छोड़कर जा सकती थी. ना उसने जाते हुए बताया ना उसने मेरे लिए कोई खत लिखा. कुछ भी तो नही. अगर उसके लिए इतना आसान था मुझे भूलकर जाना तो फिर वो मुझसे उतना प्यार नही करती थी जितना मैं उससे करता था. मुझे फिर से देविका की बताई बातें याद आने लगी. मन शंकाओं से भरा हुआ था. मुझे उससे इतना प्यार था कि मैं उसे किसी भी कीमत पर खोना नही चाहता था. उसके बिना जिंदगी की कल्पना करना भी मुश्किल था. मैं उसे सदा सदा के लिए अपनी बनाना चाहता था मगर यह तो तभी संभव था जब उसके दिल में भी मेरे लिए उतना ही प्यार हो. अगर उसके दिल में मेरे लिए प्यार होता तो वो इस तरह कभी नही जाती, शायद अब उसके दिल में मेरे लिए पहले जैसा प्यार नही है शायद वो सिर्फ़ एक बड़ी बहन के नाते मेरी चिंता करती है. इसीलिए जाते हुए उसने मुझे खत भी नही लिखा था. उसने एक बार भी नही सोचा मैं उसके बिना कैसे जियूंगा
इन्ही विचारों में गुम ना जाने कब मुझे नींद आ गयी. आधी रात का वक़्त रहा होगा जब मेरी आँख खुली. मन में फिर से वोही बात आ गयी. हमारे बीच इतना कुछ था मगर वो सब भूलकर ऐसे चली गयी. बस एक खत लिख देती मन को हॉंसला हो जाता. उसके लिए इतना तरसा इतना तडपा था मगर उसके मिलने से वो खुशी महसूस नही कर पा रहा था जो होनी चाहिए थी. मन में एक डर सा बैठ गया था कि अब बहन के दिल में मेरे लिए कोई जगह नही बची. इसी लिए उससे मिलने जाने से मैं घबराने लगा कहीं वो मेरा तिरस्कार ना कर्दे. फिर अचानक मुझे देविका की वो बात याद आई कि बहन ने मुझे खत लिखा था मगर मुझे मिला नही था. शायद उसने देविका के कहने पर ही लिखा था और हमे एक दो दिन तक मिल जाए.
मैं उठा कमरे की बत्ती जलाई, बड़े जोरों की पेशाब लगी थी. पेशाब करके वापस आया तो देखा दूध वैसे ही पड़ा है. मैने दूध का घूँट भरा तो बहुत ठंडा था. चुपके से रसोई में गया और बिना कोई आवाज़ किए धीरे से चूल्हा जलाकर दूध गरम किया. मैं नही चाहता था माँ की नींद टूट जाए. आज ना जाने कितने दिनो बाद वो चैन की नींद सोई होगी.
दूध पीकर मैं फिर से लेट गया. खत के बारे में सोचने लगा. उसने उसमे क्या लिखा होगा. अचानक फिर से वोही बात मेरे दिमाग़ में कोंधी. उसने कहा था 'उसने मुझे खत लिखा था मगर शायद मुझे वो मिला नही था'. कहीं उसने वो खत यहाँ से जाने के समय तो नही लिखा था जो मुझे मिला नही था. मैं इस नये विचार से अति उत्तेजित हो उठा और बेड पर उठकर बैठ गया. मुमकिन है उसने खत लिखा हो. नही उसने ज़रूर लिखा होगा वो मुझसे बहुत प्यार करती है, मुझे मालूम है. इस विचार ने एक नयी आशा बँधा दी थी. लेकिन अगर उसने खत लिखा था तो रखा कहाँ था. कॉन सी एसी जगह थी जहाँ मेरा ध्यान नही गया था. घर का कोना कोना तो मैने पहले दिन ही छान मारा था. खत होता तो ज़रूर मुझे मिलता. मैं अपने दिमाग़ में पूरे घर के एक एक हिस्से को तलाशने लगा, शायद कोई एसी जगह थी जो रह गयी थी. मगर बहुत सोचने पर भी मुझे कोई एसी जगह नही सूझी जहाँ बहन ने मेरे लिए कुछ लिख छोड़ा हो. मैं फिर से बेड पर लेट गया. मुझे उन दिनो की याद आने लगी जब हमारे बीच प्यार की शुरुआत हुई थी. कैसे हम उस कामसूत्र की किताब के ज़रिए एक दूसरे को अपने दिल की बात बताते थे. कैसे मेरे पिताजी के गुप्त स्थान के मिलने के बाद हमारे बीच.................गुप्त स्थान......पिताजी का गुप्त स्थान. मैं झटके से उठा और बेड से नीचे उतरा. उफफफफफ़फ्ग मैं कैसे भूल गया, कैसे मेरे दिमाग़ में यह बात नही आई, उस गुप्त स्थान की ओर कदम बढ़ाते मुझे आश्चर्य हो रहा था.
मेरे हाथ कांप रहे थे, दिल पूरी रफ़्तार से धड़क रहा था. मैने धीरे से काँपते हाथों से उसका छोटा सा डोर खोला. मगर डोर पूरा खुलने से पहले ही डर के मारे मैने आँखे बंद कर ली थी, वो आख़िरी उम्मीद थी मेरे प्यार की, उस उम्मीद का टूटना मैं बर्दाशत नही कर सकता था. मैने धीरे धीरे भगवान के आगे प्रार्थना करते हुए आँखे खोलीं. मैने बड़ी मुश्किल से अपने मुँह से खुशी की उस चीख को निकलने से रोका. सामने एक बहुत बड़ा वाइट कलर का पेपर तह करके रखा था और उसके उपर एक गुलाब का सुर्ख लाल रंग का फूल था जो कब का मुरझा चुका था.
मैने उस खत को धीरे से उठाया और उसे और उसके उपर पड़े उस सूखे गुलाब के फूल को कयि बार कोमलता से चूमा. उसे लेकर मैं अपने रूम में आ गया. मैने बेड के किनारे लगे बिजली के छोटे बल्ब को जलाया. बेड पर बैठ मैने खत के उपर रखे फूल और टहनी को एक दूसरे काग़ज़ के उपर बड़े ध्यानपूर्वक रख दिया. धीरे धीरे अपने काँपते हाथों से मैने उस खत को खोला.
खत का काग़ज़ पूरा सीधे होते ही मेरा दिल धक्क से रह गया. पूरा खत जैसे पानी से भीगा हुआ था. सभी अक्षर घुल मिल से रहे थे. मुझे कारण समझने में देर नही लगी. वो पानी नही था जो खत पर गिरा था बल्कि उसके आँसू थे. वो खत लिखते हुए बुरी तरह से रो रही थी. मेरी आँखो से आँसू बहने लगे. मैने उसे अपने होंठो से सटाया और कुछ पलों के लिए अपनी आँखे बंद कर ली ताकि उसे पढ़ने के लिए हिम्मत जुटा सकूँ. कुछ समय बीतने के बाद मैने अपनी आँखे पोन्छि खुद पर नियंत्रण करने की कोशिश की. आँसुओं से खराब हो चुके अक्षरों को शायद ही कोई पढ़ पाता. मगर मैं उस एक एक लफ़्ज को देख सकता था, पढ़ सकता था.
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