RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
उस शाम मैं सुबह के विपरीत पेड़ों की तरफ चला गया. जहाँ से सड़क थोड़ा घुमावदार मोड़ लेती थी उससे थोड़ा सा आगे होकर पेड़ों के पीछे छिप गया. वहाँ से हवेली काफ़ी दूर थी और मोड़ के बाद हवेली नज़र नही आती थी. जहाँ पर मैं छुपा हुआ था वहाँ से भी हवेली नज़र नही आ रही थी. मुझे इस बात की चिंता लगी हुई थी कि सुबह के बाद वो शायद डर ना गयी हो, कि शायद वो आए ही नही और अगर आए भी तो विपरीत दिशा में ना चली जाए वरना मुझे और भी बड़ा जोखिम मोल लेना पड़ेगा. मैं तो भगवान से प्रार्थना कर रहा था वो इसी ओर आए. अभी सूर्य नही ढला था, काफ़ी समय था. मगर मैने पहले आना ही बेहतर समझा. धीरे धीरे शाम होने लगी. मैं शाम की ठंडी हवा में भी पसीने से लथपथ हो गया था. दिल इतने ज़ोरों से धड़क रहा था कि उसकी गूँज मेरे कानो को सुनाई दे रही थी.
वो एक लहंगा चोली पहने थी, और उपर से उसने गरम शॉल लपेटा हुआ था. वो कुछ गुम सूम सी धीरे धीरे चली आ रही थी. मैने अपने हाथों को ज़ोरों से रगड़ा और तैयार होने लगा. वो पास आती जा रही थी, मगर उसे जैसे दीन दुनिया की कोई खबर ही नही थी. वो शॉल की किनारियों को उंगलियों से मसलती इतने धीरे धीरे चल रही थी कि कभी कभी रुक ही जाती. धीरे धीरे वो उस पेड़ के लगभग सामने आ गयी जहाँ मैं खड़ा था, मैने उसका चेहरा देखा, उसके चेहरे पर दुनिया भर की मासूमियत देखकर एकबार मेरा कलेजा डोल गया. मुझे आगे बढ़ना था और जिस काम को करने के लिए वहाँ खड़ा था उसे अंजाम तक पहुँचाना था मगर मेरे पाँव ही नही हिल रहे थे. वो मेरे सामने से गुज़र गयी और धीरे धीरे उसी प्रकार चलती आगे बढ़ती रही.
मैने आँखे बंद कर ली और खुद को इतना संवेदनशील इतना नरमदिल होने के लिए कोसने लगा. मैं उसके पीछे नही जाना चाहता था, बहुत मुमकिन था वो आवाज़ सुनकर चोकन्नि हो जाती इसीलिए अब उसके लौटने पर ही मैने काम को अंजाम देना सही समझा. लेकिन आज तो जैसे वो वापस ही नही आने वाली थी. लगता था जैसे कहीं दूर निकल गयी हो घूमने के लिए. अब हल्का हल्का अंधेरा भी होने लगा था. मैं उसके पीछे जाने ही वाला था कि वो मुझे वापस लौटती दिखाई दी. ना चाहते हुए भी मेरा ध्यान उसके चेहरे की ओर चला गया. मेरा दिल डूबने लगा, हाथ काँपने लगे. अगर वो निर्दोष हुई तो मैं खुद को ज़िंदगी भर माफ़ नही कर पाउन्गा. वो फिर से मेरे सामने थी. चलते चलते वो बिल्कुल उसी पेड़ के सामने रुक गयी जिसके पीछे मैं छुपा हुआ था. शायद उसने मुझे देख लिया था, और अब वो मदद के लिए चिल्लाएगी, मेरी साँसे रुक गयीं. मगर वो कुछ पल रुक फिर से आगे बढ़ गयी. यही मौका है, एक आख़िरी मौका. एक पल के लिए मेरी आँखे बंद हुई और देविका का निर्दोष चेहरा सामने आया मगर अगले ही पल मेरी बहन का खूबसरत, मासूम चेहरा सामने आया, मैने एक दम से आँखे खोलीं. पेड़ के पीछे से निकल पूरी फुर्ती से भागा.
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