RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
सुबह मेरी आँख खुली तो सवेरा हो चुका था. माँ मेरी ओर पीठ किए सो रही थी. हम पिछली रात बहुत देर से सोए थे. तीसरी वार संभोग बहुत लंबा चला. जिंदगी की एक बेहतरीन रात थी वो रात. मैं धीरे से उठा ताकि माँ जाग ना जाए. खिड़की में से झाँक कर देखा तो पाया बारिश अभी भी चालू थी हालाँकि अब वो बहुत कम रह गयी थी. खेतों में हर तरफ पानी ही पानी था. आज खेतों में कुछ नही हो सकता था, शायद कल या परसो भी नही. मैने कमर पर एक पुराना कपड़ा लपेटा और बाहर निकलकर पशुओं के बाडे की ओर चल दिया. मैं घर जाने से पहले जानवरों को पानी और चारा डाल देना चाहता था. पशुओं के बाडे की ओर जाते हुए मैने देखा की फसल को कोई नुकसान नही हुआ था. हालाँकि पानी बहुत था लेकिन अगर बारिश जल्द ही रुक गयी तो इससे कोई बड़ा नुकसान नही होने वाला था. मैने आसमान की ओर देखा, बादल घुले हुए थे, लगता था दोपहर तक बारिश रुक जाएगी. मैने मन ही मन भगवान को धन्यवाद किया और पशुओं के बाडे में उनके पानी पीने के लिए जो दो हौदी मैने बनाई थी, देखा पानी से भरी पड़ी हैं. शायद ठंडे मौसम में जानवरों को भी पानी पीने से गुरेज़ हो रहा था. खैर मैने चारा निकाल उनको डाल दिया. अब वो कल तक आराम से रह सकते थे. गाय का दूध दोहकर मैं वापस शेड की ओर चल पड़ा.
शेड तक पहुँचते पहुँचते मैं फिर से कीचड़ से सन गया था, पाँव घुटनो तक गीली ज़मीन में धँस रहे थे. शेड में पहुँचकर मैने दूध रखा और पहले पानी के ड्रम से पानी लेकर मैं नाहया. बिना कुछ पहने कमरे के अंदर गया तो देखा माँ उठ गयी थी और स्टोव जला रही थी. वो बिल्कुल नंगी थी. हम दोनो ऐसे दर्शा रहे थे जैसे अब नंगे रहने से कोई फरक नही पड़ने वाला था जबके असलियत में मेरा दिल धड़क धड़क कर रहा था, जिस्म के रोएँ खड़े हो गये थे. माँ की खूबसूरत नंगी देह देख मेरे रोम रोम में उत्तेजना का संचार होने लगा.
"मैने कहा थोड़ी चाय बना लूँ, फिर घर चलते हैं" माँ ने कहा और फिर से अपने काम में जुट गयी. मैने दूध एक तरफ रखा और चादर से बदन का पानी पोछने लगा. माँ स्टोव पर पानी रख उठ खड़ी हुई तो मैने उसको सुबह की रोशनी में देखा. कितनी सुंदर, कितनी मनमोहक, कितनी कामुक थी वो औरत. उसकी पतले से जिस्म पर वो दो मोटे मोटे मम्मे कहर ढा रहे थे. मेरा लंड खड़ा हो रहा था. माँ ने मेरी और देखा और फिर मेरे करवटें लेते लंड की ओर तो उसके होंठो पर शरारती सी मुस्कान फैल गयी. वो मूडी और एक कोने में जहाँ सामान रखा था वहाँ गयी और झुक कर चाय और चीनी ढूढ़ने लगी. उसकी टाँगे बिल्कुल सीधी थी और कमर से उपर का बदन पूरा झुका हुआ था. मैं पीछे खड़ा हतप्रभ सा कभी उसकी जाँघो के बीच से झाँकती गुलाबी चूत को देखता तो कभी उसके गान्ड के छेद को. लंड पत्थर के जैसे सख़्त हो चुका था. बिना किसी देरी के मैं माँ के पीछे पहुँच गया और उसकी कमर पर हाथ रख दिए. माँ ठिठक गयी, मैने अपने हाथों में उसके जिस्म में हो रहे कंपन को महसूस किया. वो उसी स्थिति में खड़ी रही और मैने अपना लंड उसकी चूत से भिड़ा दिया और बिना देर किए उसे अंदर डाल दिया. माँ सिसिया उठी. उसकी चूत अभी भी गीली थी, रात की वजह से या वो अब भी उतनी ही कामोत्तेजित थी. मगर मुझे परवाह नही थी मैने दो तीन झटकों में लंड जड़ तक ठोक कर धक्के लगाने सुरू कर दिए. माँ थोड़ा उपर उठी और दीवार पर हाथ रख टाँगे और भी खोल दीं. अब मुझे माँ को चोदने में बहुत मज़ा आ रहा था. माँ ने भी सिसकना चालू कर दिया था, उसकी कराहें निकलना सुरू हो गयी थी. जब मैने थोड़ी गति बढ़ाई तो वो भी कूल्हे पीछे धकेल कर मेरे धक्कों का जबाब धक्कों से देने लगी. चूत में गीलापन बढ़ता जा रहा था. मैं थोड़ा आयेज को झुका और माँ के लटक रहे मम्मे अपने हाथों में थाम लिए. इस पोज़िशन में घस्से तो बहुत ज़ोरदार नही लग सकते थे मगर मम्मों को ज़ोर ज़ोर से मसला जा सकता था और मैं भी बिना कोई हमदर्दी दिखाए माँ के मम्मे पूरी बेदर्दी से मसल रहा था, माँ हाए हाए कर रही थी.
"माँ हम उसी मुद्रा में है जैसे हमारा बैल उस दिन हमारी गाय को चोद रहा था" संभोग के समये पहली वार वो लफ़्ज मेरे मुख से निकले थे. और मेरे मुख से उन लफ़्ज़ों के निकलने की देर मात्र थी कि माँ स्खलित होने लगी. वो मेरे हाथों को दबा रही थी जो उसके मम्मों को मसल रहे थे. मैं बहुत ज़्यादा देर तक ना रुक सका और जल्द ही मेरा भी स्खलन हो गया था. माँ कुछ पल वैसे ही खड़ी रही और मैं उसकी पीठ पर सर टिकाए हाँफ रहा था. आख़िरकार हम अलग हुए. माँ ने एक पुराना कपड़ा लिया और खुद को सॉफ करने लगी फिर वो कपड़ा मुझे देते बोली " कपड़े पहन लो हमें घर जाना है" माँ ने कपड़े पहने और चाय बनाई जिसका पानी दोबारा रखना पड़ा. चाय पी हम दोनो घर की ओर चल पड़े.
क्रमशः.......
बंधुओ अभी तो जाने क्या क्या होना था वो सब जानने के लिए साथ बनाए रखे
|