RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मैं चुपचाप उसकी बातें सुन रहा था और उनका क्या मतलब हो सकता था यही सोच रहा था. सही में हम बाकी दुनिया से पूरी तरह कट गये थे, मगर दुनिया सिर्फ़ कुछेक किलोमेटेर की दूरी पर थी. मेरा मतलब अगर कोई चाहे तो बड़ी आसानी से हमें ढूँढ सकता था.
यह बात दिमाग़ में आते ही मेरा ध्यान मेरी बहन की ओर गया. वो जानती थी एसी तेज़ तूफ़ानी बारिश में हम खेतों में रुकते थे जब तक कि बारिश इतनी कम ना हो जाए कि हम घर लौट सके. इसलिए मुझे इस बात की चिंता नही थी कि वो हमे लेकर चिंतत होगी. मगर जब मेरे जेहन में यह ख़याल आया कि हमारे उस सुने घर में मेरी बहन कितनी अकेली होगी, कितनी तन्हा होगी, मेरे सीने में दर्द की एक तेज़ लहर दौड़ गयी.
माँ चुप थी और पहले की तरह ध्यान लगाए बाहर देख रही थी. उसे अहसास नही हुआ कब मैने अपनी बाहें उसकी कमर में डाल दी. उसकी पीठ से सटाते हुए मैने अपनी बाहें उसकी कमर पर कसते हुए उसके पेट पर हाथ बाँध दिए तब उसका ध्यान इस ओर गया. हम बिल्कुल उसी आलिंगन में खड़े थे जैसे हम टीले पर हर शाम को काम निपटा कर खड़ा करते थे. वो पीछे को थोड़ा झुक कर अपना सर मेरे कंधे पर रख देती है और मैं उसे अपनी बाहों में लिए कुछ पलों तक वैसे ही खड़ा रहता हूँ. वो अब भी उसी कंबल को ओढ़े हुए थी.
उस गगनभेदी तूफान का गगनभेदी सन्नाटा जैसे हमें सच्चाई की धरातल से दूर कहीं किसी काल्पनिक दुनिया में ले गया था. वो मेरी बाहों में थी और हम उस तन्हाई का आनंद ले रहे थे जो उस तूफान के कारण बाकी दुनिया से काट जाने के कारण हमे मिली थी. वहाँ सिर्फ़ हम थे, हम दोनो, अकेले, इकट्ठे, बस एक दूसरे का साथ था. वो मेरी माँ थी और मैं उसका बेटा था मगर ये नाता सिर्फ़ उस शेड में था. इस नयी अंजानी, अनदेखी दुनिया में वो एक बेटा नही था जो अपनी माँ को थामे खड़ा था, वो एक युवा मर्द था जो अपनी संगिनी को अपने आलिंगन में लिए था. वो एक औरत थी जो उस बाहर बरस रहे तूफान को लेकर रोमांचित थी, मैं एक मर्द था जिसके अंदर तूफान बरस रहा था. आग कब की बुझ चुकी थी और आसमानी बिजली का चमकना भी लगभग बंद हो गया था. रात के अंधेरे में हम दोनो जिस्म से जिस्म चिपकाए खड़े थे और हमारे जिस्मो के बीच केवल एक कंबल था.
यह सब जैसे स्वचालित था, मेरा हाथ उसके दाहिने कंधे पर गया और बहुत धीमे से कोमलता से मैने उसे अपनी ओर घुमा कर बिल्कुल अपने सामने कर लिया.
यह भी जैसे स्वचालित था कि जब वो घूमी, तो उसका कंबल उसके जिस्म से फिसल गया और फर्श पर गिर गया जहाँ मेरी चादर पहले से गिरी पड़ी थी.
मैने उसके हाथ पकड़े और उनको अपने कंधो पर रख दिया. उसने अपनी बाहें मेरी गर्दन में डाल दी और मेरी बाहें उसकी कमर के गिर्द लिपट गयी और वो मुझ मे समा गयी.
उसे अपनी बाहों में लिए मैं ना जाने कब तक खड़ा रहा, उसके बड़े बड़े मम्मे मेरी छाती में चुभ रहे थे, हमारे जिस्म सर से पाँव तक एक दूसरे से सटे थे, अंग से अंग मिला हुआ था, मेरा लंड उसकी जाँघो पर ठोकर मार रहा था.
जब उसके हाथ मेरे सर के पीछे गये तो मेरे हाथ उसके चुतड़ों पर पहुँच गये और मैं उसकी पीठ सहलाने लगा. वो थोड़ा उपर को उठी और मेरे सर को नीचे की ओर खींचा और उसका मुख मेरे मुख से मिल गया. पहले हमारे होंठ मिले, फिर हमारे होंठ आपस में उलझे, फिर होंठ खुले, हमारी जिभे मिली , और फिर हमारी जीबे आपस मे उलझ गयी. वो चुंबन बहुत खूबसूरत था. जो अनुभव मैने हासिल किया था, जो अनुभव उसके पास था उसने मिलकर इस चुंबन को एक कभी ना भूलने वाली यादगार बना दिया. वो चुंबन मीठा था, मधुर था और सबसे बढ़कर मादकता से भरपूर एक नशीला चुंबन था. मुझे लगा जैसे माँ के चुंबनो से मुझ पर उत्तेजना का मादकता का नशा सा छाता जा रहा है.
एक लंबे और स्वादिष्ट चुंबन के बाद उसके होंठ उखड़ी सांसो पर काबू पाने के लिए अलग हुए. मैने थोड़ा नीचे झुक कर अपना मुख उसके मम्मों के बीच दबाया. कितने बड़े बड़े मम्मे थे मेरी माँ के. एकदम कोमल, नर्म, मक्खन के जैसे मुलायम. मैने उन दोनो को खूब चूमा और फिर अपने जलते होंठ उसके निप्प्लो पर लगा दिए. उसके निप्पलो को बदल बदल कर चूस्ते हुए मैं उसके मम्मे ज़ोर ज़ोर से दबाने, मसलने लगा. उसके हाथ मेरी पीठ पर घूम रहे थे और वो अपने मम्मे मेरे मुँह पर दबा रही थे. मम्मो को जी भर कर चूसने के बाद मैं नीचे की ओर बढ़ा और उसके पेट पर अपनी जिव्हा घुमाने लगा. खेतों में पिछले तीन महीने के हर रोज के कठिन परिश्रम ने उसका पेट कितना स्पाट कर दिया था, उसकी कमर पहले की तुलना में कितनी पतली हो गयी थी, मैं देख कर हैरान था. पेट से नीचे होते हुए उसकी जाँघो के जोड़ पर छोटे छोटे बालों को चूमते हुए अंत में, मैं उसकी महकती, दहकती चूत तक पहुँच गया. मैं उसके सामने घुटने टेक कर बैठ गया ताकि अपनी जिव्हा ठीक से उसकी चूत में डाल सकूँ. जब मेरी खुरदरी जीभ ने उसकी चूत के कोमल दाने को स्पर्श किया तो उसने दोनो हाथों से मेरा सर कस कर पकड़ लिया और अपनी चूत मेरे मुँह पर मारने लगी. मैं अपनी जिव्हा को पूरे ज़ोर से चूत के दाने पर रगड़ने की कोशिस कर रहा था. माँ हर धक्के पर कराह उठती जब मेरी जिव्हा उसके दाने को रगड़ती. उसकी कराह उँची, और उँची होती गयी और आख़िरकार जब उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गया तो मेरे कंधो को पकड़ कर मुझे फोल्डिंग बेड की ओर खींचते हुए, लगभग घसीटते हुए लेजाने लगी. वो फोल्डिंग बेड पर पीछे की ओर गिर पड़ी मगर जल्दी से उठ कर बेड पर सीधी लेट कर मुझे अपने उपर खींच लिया. मैं भी बिना देरी किए माँ पर चढ़ गया. माँ ने टाँगे खोल दी और मैने उसकी टाँगो के बीच होकर अपना लंड उसकी चूत से सटा दिया. माँ ने हाथ आगे कर मेरे लंड को पकड़ा और उसे अपनी चूत के छेद पर टिका कर अपने अंदर लेने लगी. उसने कमर उपर को उछाली तो गप्प की आवाज़ से एक चौथाई लंड चूत में जा घुसा. होंठ भिंचे चेहरे पर तनाव लिए माँ सिसक उठी. उसके अंदर कामोउत्तेजना का एक अलग तूफान बरस रहा था जिसने उसकी चूत को इतना भर दिया था जितना बाहर बरसने वाला तूफान हमारे खेतों को नही भर सका था और मेरे लंड रूपी हल ने उस मातृभूमि की उसी पल जुताई सुरू कर दी थी जिस पल उसने चूत के होंठो को छुआ था. फिर माँ मेरे चुतड़ों को पकड़ कर मुझे चूत में गहराई तक कस कस कर धक्के लगाने में मेरी मदद करने लगी. वो आँखे बंद किए अपना निचला होंठ काटते हुए कराह रही थी, सिसिया रही थी और उसकी गहरी सिसकियाँ मुझे बता रही थी कि वो बाँध टूटने के कितने करीब थी.
जब वो स्खलित हुई तो उसका स्खलन बहुत ज़ोरदार हुआ. वो अपनी कमर उपर को इतने ज़ोर से उछाल रही थी कि कुछ पलों के लिए मैने धक्के लगाना बंद कर दिया. उसकी चूत के अंदर उठने वाले सैलाब ने मेरे लंड को सरोवार कर दिया. जितने जबरदस्त तरीके से माँ स्खलित हुई थी वैसे बहन कभी स्खलित नही हुई थी और माँ का स्खलन बहन के मुक़ाबले कहीं ज़यादा देर तक चला था. बहन के मुक़ाबले माँ कहीं जल्दी छूट गयी थी और मैं अभी तक नहीं छूटा था. और जब वो एकबार शांत और नरम पड़ गयी तो मुझे माँ को चोदने में बहुत मज़ा आया क्योंकि अब मैं उसे अपनी मर्ज़ी से अपनी जिस्मानी चाहत के हिसाब से चोद सकता था ना कि उसकी मर्ज़ी से. आख़िरकार जब मेरा स्खलन हुआ तो उसने अपनी टाँगे मेरी कमर के गिर्द लपेट दीं और अपनी चूत को भींचते हुए मेरे लंड से वीर्य की आख़िरी बूँद तक निचोड़ने लगी. उसने स्खलन के बाद इतने समय तक मुझे अपनी चूत के अंदर रखा जितना मैं स्खलन के बाद बहन के अंदर कभी नही रहा था. फिर से माँ का तजर्बा मेरे लिए लाभकारी साबित हुआ था क्योंकि उस समय मैं अपनी औरत को नही चोद रहा था बल्कि असलियत में मेरी औरत मुझे चोद रही थी और मुझे माँ से चुदने में अत्यधिक आनंद आया था. मेरी बहन मुझसे चुदवाती थी जबकि माँ मुझे चोद रही थी.
मुरझाए लंड को जल्द से जल्द पुनर्जीवित करने में माँ, बहन से कहीं ज़्यादा आगे थी. इसीलिए, पहले के विपरीत जैसी मुझे आदत थी इस बार मेरा लंड बहुत जल्दी दोबारा खड़ा हो गया. एक और परिवर्तन के तहत, वो मेरे उपर चढ़ गई और फिर से मुझे चोदने लगी.
वो रात मेरे लिए कयि रहस्यों से परदा उठाने वाली रात थी. मैने जाना कि मकयि के खेत की घटना के बाद माँ के व्यवहार में तब्दीली क्यों आई थी. दरअसल पेंट में खड़े लंड पर एक नज़र ने मुझे मेरी माँ की आँखो में एक बलवान ख़तरनाक सांड के रूप में तब्दील कर दिया था जो अपनी सग़ी माँ पर चढ़ने के लिए तैयार था, बस एक खास उपयुक्त या अनुकूल मौका चाहिए था. जिस पल उसकी नज़र पेंट में उठे उफान पर गयी, उसी पल से वो मुझे चाहने लगी थी. कोई एक दसक से ज़्यादा समय बीतने के बाद उसने पहली वार एक तगड़ा लंड देखा था और ना चाहते हुए भी वो उस लंड को पाना चाहती थी, मेरे लंड को पाने की उसकी अभिलाषा इतनी ज़ोरदार थी कि खुद को संभालने के लिए उसने मुझसे दूरी बना ली थी.
मुझे यह भी मालूम चला कि माँ को मेरे मेरे वीर्य का स्वाद बेहद अच्छा लगा था. और उसको लंड मुँह में लेकर चूस्ते हुए स्खलित करने और फिर उसका रस पीने में बहुत मज़ा आता था. वो लंड चूसने में बहुत माहिर थी. उसने मुझे दिखाया था कि लंड चुसवाना कितना आनंदमयी कितना मज़ेदार हो सकता था. एक और बात जो मैने उस रात जानी कि उसे अधिकार में रहना पसंद था, अगुवाई करना पसंद था और इससे मुझे थोड़ी आसानी हो गयी थी. मुझे यह अनुमान लगाना नही पड़ता था कि वो कितनी कामुक है और उतेज्ना के किस पडव् पर है और उसकी उत्तेजना के हिसाब से मुझे कोन्सि कामक्रीड़ा करनी चाहिए. वो खुद अपनी कामोत्तेजना के हिसाब से हमारे संभोग को आगे बढ़ाती और वो इस बात का पूरा ध्यान रखती कि उसे हमारे मिलन से वो सब कुछ मिले जिसकी वो कामना करती थी और इसमे मेरे लिए भी वो सब कुछ शामिल होता जिसकी मैं कामना कर सकता था या यूँ कहिए के कल्पना कर सकता था. और उस रात मैने एक तंग चूत और एक बड़ी चूत के बीच के अंतर को भी जाना. और आज भी, मैं आज भी यह नही कह सकता कोन्सि ज़्यादा आनंदमयी थी.
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