RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
मेरी यह चुप्पी मेरी असली ज़िंदगी में भी दिखाई देने लगी थी. बहन का ध्यान भी इस ओर गया और कुछ दिनो बाद जब हम खाना खा रहे थे तो उसने पूछा " तुम ठीक तो हो?"
"मैं ठीक हूँ" मेने जवाब दिया "बस यह हल्का सा सरदर्द कयि दिनो से परेशान कर रहा है"
उस रात जब मैं अपने बेड में लेटा हुआ था तो वो मेरे कमरे में आई. उसके एक हाथ में पानी का गिलास था और दूसरे हाथ में कुछ देसी दवाई थी जिसका नुस्ख़ा हमारे पिताजी ने इज़ाद किया था.
"यह लो, इससे तुम्हे राहत मिलेगी. मेरे सरदर्द में मुझे हमेशा इससे आराम आता है" दोनो चीज़ें मुझे पकड़ाते हुए वो बोली.
"मेरे सरदर्द" उसका क्या मतलब था मैं नही जानता था. या तो उसे मेरे जैसा सिरदर्द था जिसका मतलब उसे भी मेरे वाली ही बीमारी थी. या वो साधारण सरदर्द की बात कर रही थी और वो बस बड़ी बेहन के नाते मेरी मदद कर रही थी.
अगली सुबह मैं देर तक सोता रहा. वो मेरे रूम में आई और मेरे पास बैठ गयी.
"कुछ फरक पड़ा?' उसने पूछा.
मैं उसके जिस्म से निकलने वाली गर्मी को महसूस कर रहा था. वो मेरे इतने नज़दीक बैठी थी कि मेरा दिल करता था कि हाथ आगे बढ़ा कर बस उसे छू लूँ. "नही अभी भी पहले जैसा ही है" मेने उसे जवाब दिया
उसने हाथ बढ़ा कर मेरे माथे को छुआ और बोली "शुक्र है तुम्हे बुखार नही है, इसलिए चिंता मत करो जल्दी ठीक हो जाओगे"
उसका हाथ नाज़ुक और गरम महसूस हो रहा था. हाथ की कोमलता का एहसास बिल्कुल नया था. ना जाने कितने समय बाद हम दोनो किसी शारीरिक संपर्क में आए थे. और हमारे उन संकेतो के आदान प्रदान के बाद उसका स्पर्श बहुत सुखद था.
उस शाम जब मैने वो किताब खोली तो मैने पेजस के बीच एक काग़ज़ के छोटे टुकड़े को तय लगा कर रखे देखा. मैने काग़ज़ का टुकड़ा निकाला और उसे खोला तो देखा उसमे सिवाय एक बड़े से प्रश्न चिन्ह के और कुछ नही था. उस संकेत के ज़रिए जैसे वो पूछ रही हो कि 'क्या हो रहा है'. प्रश्न चिन्ह का इतना बड़ा होना इस बात की ओर इशारा करता था कि वो हमारी बातचीत के इस तरह अचानक बंद हो जाने और उसके मेरे उपर पड़ रहे प्रभाव से चिंतत थी. उसके सवाल पूछने से हमारी बातचीत अब अगले स्तर तक जा पहुँची थी.
वो जानना चाहती थी 'आख़िर माजरा क्या है'.
मैं कहना चाहता था "बस अब मैं और बर्दाशत नही कर सकता! मेरे दिमाग़ में हो रही उथल पुथल मुझे पागल किए दे रही है" मैं उसे कहना चाहता था "यह संकेत यह इशारे मुझे हद से ज़्यादा कामोत्तेजित कर रहे हैं और मुझे इतना भी नही मालूम कि इन सब का तुम पर भी वोही असर हो रहा है जो मुझ पर हो रहा रहा है. मैं जानना चाहता हूँ कि यह सब तुम्हे कैसे प्रभावित कर रहा है क्योंकि तुम्हारे बारे में प्रचंड कामुक भावनाए, कामोन्माद ख़यालात मुझे पागल किए दे रहे हैं. क्या तुम्हारे दिल में भी मेरे बारे में ऐसे ख़यालात हैं?" मैं उसे बताना चाहता था कि मेरी भावनाए मुझे भड़का रही थी मुझे विवश कर रही थी उसके साथ किताब के वो आसान आज़माऊं. मैं चाहता था कि वो अपनी टाँगे मेरी कमर के इर्दगिर्द लपेट कर मुझे इतनी गहराई तक अपने अंदर लेले जितना शारीरिक तौर पर संभव हो सकता था. मैं उसे बताना चाहता था कि मैं उसकी चूत में अपना लंड डालकर उसे चोदना चाहता था और यही बात मेरे दिलो दिमाग़ पर छाई हुई थी.
सिर्फ़ वो प्रश्न चिन्ह लगाकर उसने गेंद मेरे पाले में डाल दी थी. उसने मुझे अपने जाल में फँसाकर बिना अपनी कोई भावना व्यक्त किए मुझे अपनी भावनाएँ व्यक्त करने पर मजबूर कर दिया था.
मैने वो किया जो मेरे करने के लिए बचा था. मैने काग़ज़ के उस टुकड़े पर 'नींद' शब्द लिख कर उसके उपर एक गोला बनाया और फिर गोले के एक तरफ से दूसरी तरफ तक नींद शब्द को कटती लाइन लगा दी जिसका अंतरराष्ट्रीय मतलब होता है 'नो'. कहने का मतलब मैने उसे जवाब दिया था कि मैं सो नही सकता, मुझे नींद नही आती है.
उस रात खाने के बाद जब वो मेरे कमरे में आई तो उसके हाथ में गरम दूध का ग्लास था.
जाने अंजाने, उसे इस बात का एहसास था या नही मगर उसने वो कर दिया था जो शायद हम नही कर सकते थे. वो हमारे रहस्य को सामने ले आई थी. जो बात मैने उसे गुप्त और रहस्यमयी तरीके से बताई थी उसका जवाब उसने खुले में हमारी असली ज़िंदगी में दिया था.
"यह लो, इससे तुम्हे सोने मैं मदद मिलेगी" दूध का ग्लास मुझे थमाते हुए बो बोली.
मैं बेड पर उठकर बैठ गया और उससे ग्लास ले लिया. दूध पीते हुए अचानक मेरा ध्यान अपने बैठने के तरीके पर गया. हालाँकि मैने जानबूझ कर एसा नही किया था, मगर उस समय मैं उसकी पसंदीदा पोज़िशन में बैठा था.
मुझे नही मालूम उसने इस बात की ओर ध्यान दिया कि नही मगर वो बेड पर मेरे पास बैठ गई. उसके नरम और टाइट चूतड़ मेरी टाँग के साथ स्पर्श कर रहे थे. मैं अपने अंदर जबरदस्त गर्मी महसूस करने लगा.
उसने मेरे माथे पर पसीने की बूंदे चमकते देखी तो हाथ बढ़ा कर उन्हे पोंछने लगी. "तुम्हे बुखार तो नही है? कहीं मलेरिया तो नही हो गया?" वो बोली
यह बल्कुल बेतुकी बात थी. शायद वो कुछ और कहना चाहती थी या मुझे कुछ समझाना चाहती थी.
वहाँ उस समय उस पल हमारे बीच कुछ घटित हो रहा था, इतना मैं ज़रूर जानता था. मगर हमारे बीच रिश्ते का अवरोध था, एक बहुत बड़ी बाधा थी जो किसी असाधारण अनोखे तरीके से ही दूर हो सकती थी.
मगर वो अवरोध वो बाधा जितनी बड़ी थी उतनी ही आसानी से दूर हो गयी.
यह एक तपती गर्मी की दोपेहर थी. मैं खेतों में जानवरों के साथ ज़यादा समय तक ना रह सका, इसलिए जल्दी जल्दी काम ख़तम करके मैं घर लौट आया. घर पहुँचते पहुँचते मैं पसीने से तर बतर हो चुका था. मैं जल्दी से नाहया और घर के उस एकलौते कमरे में चला गया जहाँ पर पंखा लगा था. वो वहाँ पर पहले से ही मोजूद थी, नंगे फर्श पर टाँगे घुटनो से मोड़ कर एक दूसरे के उपर रख वो पालती मार कर बैठी थी. गर्मी की वजह से वो सिर्फ़ ब्लाउस और स्कर्ट में थी.
उसका ब्लाउस पतला और झीना सा था. उसने अपनी स्कर्ट घुटनो के उपर तक खींची हुई थी ताकि उसके बदन के ज़्यादा से ज़्यादा हिस्से को हवा लग सके. बालों मैं धीरे धीरे कंघी करते वो अपना समय बिता रही थी. वो उन्हे संवारने के लिए कंघी नही कर रही थी बल्कि सिर्फ़ समय बिताने के लिए खुद को व्यस्त रखे हुए थी. कंघी चलाते हुए जब उसकी बाहें उपर उठती या सर के पीछे जाती तो उसकी छाती आगे को हो जाती जैसे सीना ताने कोई सिपाही सावधान मुद्रा मे खड़ा हो. मैने महसूस किया कि उसने ब्लाउस के नीचे कोई ब्रा नही पहनी है शायद इतनी गर्मी में ब्रा जैसे संकीर्ण कपड़े से बचने के लिए. उसके निपल ब्लाउस के उपर से बाहर को निकले हुए थे और उसके मम्मे झीने कपड़े में हल्के हल्के से दूधिया रंगत लिए झाँक रहे थे. पंखे की हवा में ब्लाउस हिल डुल कर उसके भारी मम्मों का साइज़ बता रहा था साथ ही साथ पतली कमर के पास थोड़ी सी नंगी पीठ भी दिखा रहा था. मुझे नही मालूम मुझे अचानक क्या हो गया या किस कारणवश मैने यह किया.
मैने एक कुर्सी उठाई और बिल्कुल उसके पीछे रख दी. कुर्सी पर बैठ मैने उसके हाथों से कंघी ले ली. पंखे की हवा लेते हुए मैं उसके बालों में कंघी करने लगा. मैं उसके बालों में कंघी कर रहा था और वो मुझे एसा करने दे रही थी.
जब मैं उसके बालों में कंघी फेर रहा था तो मुझे अपने घुटनो पर उसकी पीठ का दवाब महसूस हुआ. यह स्पर्श रोमांचित कर देने वाला था. जब मैने उसके बालों को कंघी करने की सोची थी तो यह बात मेरे दिल में नही आई थी मगर मुझे उसका स्पर्श अत्यंत सुखद लग रहा था. थोड़े समय बाद उसने अपना बदन ढीला छोड़ दिया, आँखे बंद कर ली और मैं इतमीनान से उसके बालों में कंघी करने लगा. ऐसे ही टाँगे पसार कर और बदन पीछे की ओर झुका कर मेरी टाँगो से टेक लगाए वो आराम से बैठी थी और मैं उसकी ज़ुल्फो से खेल रहा था, कुछ समय बीता होगा जब अचानक हम ने अपनी माँ के घर आने की आवाज़ सुनी. वो एकदम से उछल पड़ी जैसे कोई अपराध करते हुए अपराधी रंगे हाथों पकड़ा जाए, मेरे हाथों से कंघी छीन वो दूसरे कमरे में भाग गयी इससे पहले कि माँ वहाँ आकर हम दोनो को देख लेती.
मुझे नही लगता था कि उसे इस तरह वहाँ से भागने की कोई ज़रूरत थी. चाहे हमारी माँ मुझे उसके बालों में कंघी करते देख भी लेती, क्यॉंके इसमे कोई ग़लत बात या बुराई नही थी. मेरे द्वारा बड़ी बेहन के बालों में कंघी करना नादानी या मूर्खता कहा जा सकता था मगर एसा करना वर्जित या निषिद्ध हरगिज़ नही था. जिस तरह वो उछली थी, जिस तरह उसे अपराध बोध हुआ था और जिस तरह वो वहाँ से दूसरे रूम में भागी थी इससे मुझे एहसास हो गया था कि उसके दिमाग़ में क्या चल रहा है.
उस शाम जब मेरी माँ सोभा के घर गयी तो मेरी बेहन मेरे कमरे में आई. उसने एक हाथ में कंघी पकड़ी हुई थी और वो मुस्करा रही थी. मैं उसका इशारा समझते हुए बेड के सिरे पर टाँगे नीचे लटका कर बैठ गया. वो फर्श पर दोपेहर वाली मुद्रा में बैठ गयी. बेड कुर्सी के मुक़ाबले थोड़ा उँचा था इसलिए उसे पीछे को झुक कर बैठना पड़ा ताकि मेरे हाथ उसके सर तक पहुँच सके. मैं उसके बालों में कंघी करने लगा और वो आँखे बंद किए मेरी टाँगो से सट कर बैठ गयी. मैं अपने पावं के पास उसकी जाँघो और चुतड़ों की सुदृढ मांसपेसियों को महसूस कर रहा था और मेरे घुटने उसकी बाहों को स्पर्श कर रहे थे. कुछ समय बाद वो थोड़ा शांत हो गयी और बदन ढीला छोड़ते हुए पीछे की ओर झुकती चली गयी. मगर पीछे बेड होने के कारण वो इतना ही झुक सकी कि मैं अपनी जाँघो पर उसके बदन की दोनो साइड्स को महसूस कर सकता.
अब हम अगले स्तर पर पहुँच गये थे. मैं उसके जिसम का स्पर्श अपने जिस्म के साथ कर पा रहा था. कंघी करने के बहाने मैं उसकी ज़ुल्फो में उंगलियाँ फेर सकता था. यहाँ तक यह सब मज़ेदार था----मगर बहुत मज़ेदार नही था, उतना मज़ेदार नही था जितना मैं चाहता था.
मैं उसके कंधो को स्पर्श करना चाहता था, उसकी पीठ को सहलाना चाहता था. मैं उसके कोमल मम्मों को दबाना चाहता था. मगर मेरे लिए उस स्तर तक बढ़ना तब तक संभव ना था जब तक मुझे उससे कोई इशारा या संकेत ना मिल जाता कि मुझे एसा करने की इज़ाज़त है. हम एक दूसरे को छेड़ रहे थे मगर उतना जितना अनुकूल परिस्थितिओ में स्वीकार्य होता, उससे बढ़कर या कुछ खुल्लम खुल्ला करने के लिए उनका स्वीकार्य होना अति अवशयक था, और जो सब मैं करना चाहता था वो उन हालातों में तो स्वीकार्य नही होता.
मैने अंदाज़ा लगाया वो भी उसी दिशा में सोच रही थी जिसमे मैं सोच रहा था और शायद वो कोई रास्ता जानती थी जिससे कम से कम हम दोनो के बीच शारीरिक संपर्क बढ़ाया जा सकता था.
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