RE: Incest Kahani ना भूलने वाली सेक्सी यादें
अगले दिन जब मैने अपनी बेहन को देखा तो मैने उसके व्यवहार मे कोई तब्दीली कोई बदलाव ढूँढने की कोशिस की. मगर उसका आचरण वोही पहले वाला था अगर कोई बदलाव था तो वो उसे बड़े अच्छे से छुपा रही थी. मगर मैं जानता था कि वो जानती है कि अब हम दोनो भाई बेहन के बीच एक सूक्षम, एक रहस्यमयी संपर्क स्थापित हो चुका था जिसके माध्यम से हम ने एक दूसरे को अपने चुदाई के पसंदीदा आसान के बारे में बताया था. अब इसका मतलब क्या था ये मेरी समझ से बाहर था और ये हमे किस दिशा मे ले जा रहा था ये भी मेरी समझ से बाहर था. मैं तो अपनी बेहन की पसंदीदा सेक्स पोज़िशन को जानकार हद से ज़्यादा कामोत्तेजित था और अपने सपनो में उसका सहभागी बन उसी पोज़ मे उसे पूर जोशो खरोष से चोद रहा था. मगर अत्यधिक इच्छा होने पर भी मैं हस्तमैथुन से बच रहा था, मैं अपने अंदर दहक रही उस आग को, उस जोश को हस्तमैथुन से कम नही करना चाहता था.
मेरे अंदर आगे बढ़ कर अपनी बेहन के जिस्म को छू लेने की ख्वाइश भी ज़ोर पकड़ रही थी. मैं अपनी बेहन के जिस्म के कुछ खास अंगो को छू कर उस एहसास को महसूस करना चाहता था ता कि उसी एहसास को अपने सपनो में इस्तेमाल कर उनमे थोड़ी वास्तविकता डाल सकूँ. अगले दिन जब मैने अपनी बेहन को अपनी कामाग्नी में जलती आँखो से देखा तो मैने पाया मेरे सामने यौवन से लबरेज एक ऐसी युवती खड़ी है जिसका हर अंग बड़ी शिद्दत से तराषा गया था, जिसके हुश्न को पाने के कोई भी लड़ाई लड़ी जा सकती थी, जिसके लिए मरा और मारा जा सकता था. मैं उसे छूना चाहता था, उसे चूमना चाहता था, उसके अंग अंग को मसलना चाहता था और उसे चोदना चाहता था, उसके दहकते जिसम की आग में खुद को जलाकर उसे भोगना चाहता था.
तीन दिन बाद कहीं जाकर मुझे बातचीत आगे बढ़ाने का तरीका सूझा. मैने कल्पना की हम दोनो भाई बेहन एक साथ उस किताब को देखते हुए बातें कर रहे हाँ. मगर हमारी बातचीत किताब में लगे निशानो या संकेतो के ज़रिए हो रही थी ना कि मुख से निकलने वाले शब्दों से. मेरे स्टार के संकेत से उसने जाना होगा कि यह मेरा पसंदीदा आसन है. उस स्टार के ज़रिए उसने मुझे कहते सुना होगा कि यह मेरा पसंदीदा आसन है, तुम्हारा पसंदीदा आसन कौन सा है. जिसके ज्वाब मे वो अपने पसंदीदा आसन के आगे एक निशान लगाएगी जिसे देखकर मुझे लगेगा जैसे वो कह रही हो मुझे यह आसन अच्छा लगता है या यह आसन मेरा पसंदीदा है. अब उसके संकेत का जवाब देने की बारी मेरी होगी. अगर हम असलियत में बातचीत कर रहे होते तो शायद मेरा जवाब होता हाँ, यह आसन मुझे भी अच्छा लगता है. जब मेने थोड़ा और सोचा तो मेरा असल जवाब था...... हाँ यह आसन अछा है, मगर?.......
पहले मैने किताब में उसके लगाए संकेत के आगे एक स्टार लगाया जिसका मतलब था .......हाँ यह आसन मुझे भी अच्छा लगता है. ....... मगर मैं सिर्फ़ इतना ही नही कहना चाहता था मेरे जवाब में एक 'मगर' भी था. इसलिए मैने उस स्टार के आगे एक प्रश्न चिन्हप (?) लगा दिया. अब मेरा जवाब उसके संकेत के आगे एक स्टार और उसके साथ एक प्रश्न चिन्हअ था जो कह रहा था...हाँ मुझे भी यह आसान पसंद है मगर......
इस बार उसका जबाब जल्दी आया. अगले दिन मैने किताब में अपने प्रश्न चिन्ह के आगे एक तीर का निशान देखा, उस तीर के दूसरे सिरे पर एक और प्रश्न चिन्ह बना हुआ था. उस प्रश्न चिन्ह को देख मुझे लगा जैसे वो मुझसे पूछ रही हो "मगर......मगर क्या?"
अब उसके सवाल के जबाब में मेरा उत्तर थोड़ा जटिल था जिसे मैं एक या दो संकेत लगा कर नही समझा सकता था. मेरा जवाब इस योग्य होना चाहिए था कि वो मेरी बात पूरी तेरह समझ जाए और बिना शब्दों के इस्तेमाल के यह नामुमकिन था. लेकिन अगर मैं उसके सांकेतिक सवाल के उत्तर में सांकेतिक ज्वाब ना देकर शब्दों द्वारा लिखा हुआ जबाब देता तो मैं हमारे बीच की उस बातचीत को अगले स्तकर तक ले जाता. मुझे नही मालूम था इसका परिणाम क्या निकलता. अब तक हमारे बीच हुई उस संकेतिक बातचीत को हम बचकाना खेल कह सकते थे, यह बात अलग है कि बातचीत किसी भी तरह से बचकाना नही थी. मगर शब्द............ अनिश्चित और अस्पष्ट संकेतो की तुलना में शब्द कहीं अधिक वज़नी होते. और यह गैर ज़िम्मेदाराना बातचीत ना रहती. हम उन संकेतो के असली मतलब से अंजान होने का बहाना कर सकते थे मगर शब्द एक खास मतलब लिए होते हैं. कामुकता में डूबा हुआ मैं अब एक सीमा पार करने जा रहा था, अपने अंदर उठे उस तूफान को अनदेखा करते हुए जो मुझे चिल्ला चिल्ला कर कह रहा था "वो तुम्हारी सग़ी बड़ी बेहन है" . मुझे नही मालूम था कि उसके अंदर भी कोई ऐसा तूफान चल रहा है.
आम हालातों में अगर हम साथ बैठे होते तो शायद मेरा जवाब हल्का सा होता मगर काम मेरे सिर चढ़ कर बोल रहा था. मैने उसके प्रश्न चिन्ह के आगे एक तीर लगाया जिसके अंत में मैने एक गोला बनाया और उस गोले में एक नंबर लिखा. वो नंबर उस किताब में एक दूसरे पेज की ओर इशारा था. उस पेज पर औरत और मर्द लेटे हुए संभोग कर रहे थे. मर्द औरत की चूत में पूरी गहराई तक लंड घुसेडे पड़ा था, उसका एक हाथ उस औरत की चूची को मसल रहा था और दूसरा हाथ उसकी गर्दन को लिपटा हुआ था. औरत की टाँगे मर्द की कमर के गिर्द लिपटी हुई थी और उसकी बाहें उसके कंधो को कस कर पकड़े हुए थी. दोनो एक गहरे चुंबन में डूबे हुए थे. मैने उस संभोग की मुद्रा के आगे पहले एक स्टार का संकेत लगाया जिसका मतलब था कि मुझे ये आसन भी पसंद है और उसके आगे लिखा "पूरी गहराई तक चुदाई".
मैने एक लंबी सांस ली. मैने एक सीमा पर की थी. मैने उसे लिख दिया था बल्कि उसे कहा था कि मुझे फलाना पेज का आसान दूसरे पेज के आसान से अच्छा लगता है क्योंकि..........क्योंकि इसमे अति गहराई तक चुदाई होती है.
मैने अपने ख्यालो को शब्दों मे प्रकट कर दिया था, हमारे बीच संभोग की विभिन्न मुद्राओं या आसनो संबंधी प्राथमिकताओं को लेकर एक खुली बातचीत को शुरू किया था. मुझे नही मालूम था उसकी प्रतिक्रिया क्या होगी या वो मेरे इस खुलेपन से आपत्ति जताएगी. अगर उसको आपत्ति होती और वो बातचीत से किनारा कर लेती तो.......तो यही सही.......यह ख़तरा उठाने लायक था.
उसका जबाब भी बड़ी शीघ्रता से आया. उसने मेरे शब्दों के आगे एक तीर का निशान लगा कर एक गोले के अंदर एक दूसरे पेज का नंबर लिखा था. जब मेने उसके संकेत किए हुए पेज पर देखा तो मैने एक संभोग मुद्रा के आगे उसके लिखे शब्दों को पाया. इस मुद्रा मे मर्द कमर आगे धकेलते हुए अपना लंड पूरा औरत की चूत में घुसेडे हुए खड़ा था, औरत के चुतड़ों को कस कर पकड़े हुए उसे अपनी ओर खींच रहा था ताकि जितना हो सके वो उसकी चूत में गहराई तक अपना लंड डाल सके. औरत ने टाँगे मोड़ रखी थी और उसके घुटने मर्द की छाती को टच कर रहे थे. मर्द के लंड पर बैठी वो अपनी बाहें उसके गले मे डाले पीछे को झूल रही थी. मेरी बेहन ने लिखा था "और भी गहराई तक चुदाई, शायद सबसे ज़्यादा गहराई तक"
अब कोई बाधा नही थी, कोई सीमा नही थी, कोई हद नही थी.
जब हम अगले दिन मिले तो हम ने उदासीनता का दिखावा किया. हम ऐसे बर्ताव कर रहे थे जैसे हमारे बीच कुछ भी ना चल रहा हो. मैं आँखे बचा कर उसके जिस्म को निहार रहा था. वो भी चोरी चोरी मुझे ताक रही थी. मगर यह सब रहस्यमयी तरीके से हो रहा था. हमारे बीच होने वाली वो बातचीत एक रहस्य थी और उसको रहस्य ही रहना था. हम छिप कर गोपनीय तरीके से उस रहस्य को बाँट सकते थे मगर उसे खुले में लाने का दम नही भर सकते थे. हमारे बीच प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कोई सहमति नही थी कि इस बातचीत को खुले मे किया जा सके क्योंकि यह संभोग या कामक्रीड़ा की विभिन्न मुड्डराओं या आसनों का मामला था और इसमे कामुक भावनाएँ भी शामिल थी इसलिए एक बड़ी बेहन और छोटे भाई के बीच यह बातचीत एक रहस्य ही रहना चाहिए थी.
कल्पना करना सपने देखना ठीक था मगर उसे असलियत में करना ठीक नही था.
मेरी बेहन और मैने संभोग में पूर्णतया गहराई तक होने वाली चुदाई के आसन के बारे में एक दूसरे को बताया था. उस रात सपना देखते हुए मेरे जिस्म से असीम वीर्य निकला जब मैं अपनी बेहन को उसी आसन में चोदते हुए उस गहराई तक पहुँच गया. हमारे बीच ये विचारों का आदान प्रदान या यह बातचीत मुझे हद से ज़्यादा कामोत्तेजित किए हुई थी. मगर मेरी बेहन कैसा महसूस करती है यह मुझे मालूम नही था. हमारे बीच होने वाली यह बातचीत उसको भी उत्तेजित करती है, या यह सिर्फ़ उसके मन बहलाने का साधन मात्र थी और उसके दिल में मेरे जैसे कोई ख़याल नही थे, मैं नही जानता था.
मगर अब मैं जानना चाहता था और अब मैं और ज़्यादा सबर नही कर सकता था.
मैने अपने प्रश्न को व्यक्त करने के हज़ारों तरीकों के बारे में सोचा , मगर कोई भी तरीका या वाक्य मुझे जॅंच नही रहा था. असल बात बिना खुले शब्दों का इस्तेमाल किए मैं व्यक्त नही कर सकता था. इस बार भी वोही समस्या या जटिलता मेरे सामने थी और मुझे कोई एसा तरीका ढूँढना था कि मैं जान सकूँ कि यह सब उसे किस तरह से प्रभावित कर रहा है और वो बिना हिचकिचाए मुझे जबाब दे सके. तब मुझे यह ख़याल आया. अब तक हमारे बीच होने वाली बातचीत में पहला कदम हमेशा मैने उठाया था, अगर मैं अगला कदम ना उठाऊँ तो? क्या वो हमारी बात चीत को जारी रखने के लिए अगला कदम उठाएगी.
उसके द्वारा अगला कदम उठाने की संभावना ज़्यादा रोमांचित कर देने वाली थी. उसके द्वारा अगला सवाल पूछने का सोचते ही मेरे अंदर कोतुहुल और उत्तेजना की जैसे सिहरन सी दौड़ गयी.
मैने चुप्पी धर ली. मैने ना कुछ लिखा और ना ही कोई संकेत बनाया.मैं बस इंतज़ार करने लगा.
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