non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्रेम कहानी )
12-27-2018, 01:45 AM,
#24
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
बहुत ही शानदार ढंग से सैली ने अपने मकसद को अंजाम दिया था. उसके दिल मे गौरव के लिए कुछ फीलिंग्स हो कि नही हो, लेकिन पार्टी वाली रात के लिए जो नफ़रत नेनू के लिए थी वो उसके बदले के रूप मे यही था... दोनो दोस्तों को अलग करना.


कमरे मे सैली बस रेकॉर्डिंग सुन'ने गयी थी, जहाँ कहीं भी लगा कि ये नही होना चाहिए उसे एडिट कर दी, जब एडिटिंग हो गया तो बड़ी बेचैनी से गौरव को बुलाई और डोर बेल बजते ही, उसने अपने पड़ोस मे रह रहे अंकित को एक मेसेज सेंड कर दी.... घर आओ जल्दी मुसीबत मे हूँ.... और सारा ड्रामा शुरू हो गया था.


प्लॅनिंग तो पहले ये था कि नेनू को फासना और गौरव को अलग करना है, बाद मे नेनू को बेज़्जत कर के दिल तोड़ देना. पर नेनू का रुझान कभी सैली पर था ही नही, इसलिए सब उल्टा करना पड़ा.


गौरव जब साथ मे था तब शुरुआत मे ही सैली ने दोनो की दोस्ती पर अटॅक की, पर तब इनके रिश्ते काफ़ी मजबूत थे और वहाँ हर बार सैली को ही मुँह की खानी पड़ी. इसलिए अंत मे सैली ने अपनी चाल उल्टी की, पहले गौरव के प्रति अपनी परवाह दिखाना शुरू की. 


उसे ज़्यादा से ज़्यादा अपने पास और नेनू से दूर, साथ मे वो नेनू के लिए अच्छा ही बोलती, जबकि उल्टा नेनू ही कई बार गुस्सा दिखाया था गौरव को सैली के साथ होने पर.


आम बात चीत के दौरान हुए मज़ाक को एक ऐसी साज़िश के तहत पेश की, कि घुट कर रह गया नेनू. कल भी दिन मे नेनू से मिलने का मतलब ही इतना था कि, कोई कॅषुयल टॉक मे उसे कुछ और बातें मिल जाए नेनू के खिलाफ ईस्तमाल करने मे, क्योंकि नफ़रत की आग उसे बर्दास्त नही हो रही थी, और वो जल्द से जल्द नेनू को सबक सिखाना चाहती थी.


पर शायद किस्मत सैली के साथ ही थी, ये झगड़ा और नेनू का सैली से कॉंटॅक्ट करना, फिर उसके घर आना.... सब उसी के फेवर मे था. उसे ज़्यादा मेहनत भी नही करनी पड़ी.


जब अंकित के मोम डॅड ने सवाल उठाया कि क्यों वो इस लड़के को अब तक बर्दास्त करती आ रही है, और ऐसा था तो इसे घर मे क्यों घुसने दी ... इश्स बात पर बड़ी सफाई से सैली कह गयी....


"मैं, गौरव से अलग नही रह सकती, मैं मर जाउन्गी इसके बिना, और बस इसी बात के लिए बर्दास्त कर रही थी. मुझे अपने प्यार पर भी गुस्सा आ रहा है, कि उसने इस कमीने का पूरा मेसेज देखा अपने मोबाइल मे फिर भी इसने इसे कुछ नही कहा, ये तो गैर था गौरव तुम तो मेरे अपने, तुम्हे क्यों नही समझ मे आई मेरी बात, और रही बात इसे घर मे आने देने की, तो गिडगिडाता कहने लगा बस मैं यहाँ माफी माँगने आया हूँ, अपने किए की .... माफ़ कर दो चला जाउन्गा".


जब मेसेज की रात याद आई कि कैसे सैली ने गौरव को उस रात के बाद मेसेज नही की, तब दिमाग़ ने सिंपल सा दो कॅल्क्युलेशन बिठा लिया..... एक कि नेनू की वजह से वो वापस कभी मेसेज नही की, और दूसरी ये कि उसने एग्ज़ॅम टाइम इसलिए नही चर्चा की क्योंकि इस से पढ़ाई मे बाधा होगी, जो सैली कभी नही चाहती.


गौरव गुस्से से आँखें लाल पीली करता हुआ... सैली को अपना मोबाइल देकर बस इतना कहा.... "इस कमीने ने मेसेज पूरी डेलीट कर दी, नही तो मैं खबर उसी दिन ले लेता, तुम रोना मत, इसके किए की सज़ा इसे मैं दूँगा".


इतना कह कर गौरव, नेनू के पास गया... कॉलर पकड़ कर खींच कर दो थप्पड़ दिए, धक्का देता कहने लगा.... अंदर से इतना काला होगा मुझे पता नही था, आज के बाद शकल नही दिखाना अपनी, नही तो जान से मार दूँगा.


सारा मामला नेनू के आँखों के सामने चलता रहा, पर उसने ना तो अपने डिफेंड मे कुछ कहा और ना ही सफाई देने की कोशिस किया, वो जानता था कि कुछ सुनने की गुंजाइश नही यहाँ पर, बस दो बूँद आँसू तब निकल आए जब दोस्त दूर हो गया.


चुपचाप नेनू वहाँ से चला गया, फिर ना तो हॉस्टिल मे दिखा और ना ही कॉलेज मे, उसका कोई पता ही नही था. ये एक लड़की का बदला था जिसने ठान ली थी कि उसे किसी तरह अपना बदला लेना है और वो ले भी ली. 


इन सब मामलो मे लेकिन एक भूल हो गयी सैली से कि उसे गौरव के बारे मे सबको बताना पड़ा और साथ मे ये भी कि वो "मर जाएगी उसके बिना"


इसलिए गौरव उसी के साथ ही रहा. सैली के बदले की उड़ान जितनी उँची थी उतनी ही उसकी चाहत ने भी उड़ान भरा. उसी साल आई प्रियंका चोपड़ा की "फैशन" मूवी ने उसके दिमाग़ पर ग्लॅमर वर्ल्ड का ऐसा भूत सवार किया कि वो फैशन डेसिनेर बन'ने का फ़ैसला की. 


आज गौरव और सैली दोनो साथ मे देल्ही के लिए निकले, दोनो फैशों डेसिनेर बन'ने क्योंकि जो सैली की चाहत थी वही गौरव की भी......
दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा
मस्ती भरे मॅन की भोली सी आशा
चाँद तारों को छूने की आशा
आसमानों में उड़ने की आशा

दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा....

महेक जाऊं मैं आज तो ऐसे
फूल बगिया में महेके है जैसे
बादलों की मैं ओढूं चुनरिया
झूम जाऊं मैं बनके बावारिया
अपनी चोटी में बाँध लूँ दुनिया

दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा
मस्ती भरे मॅन की भोली सी आशा
चाँद तारों को छूने की आशा
आसमानों में उड़ने की आशा

दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा
मस्ती भरे मॅन की भोली सी आशा

स्वर्ग सी धरती खिल रही जैसे
मेरा मॅन भी तो खिल रहा ऐसे
कोयल की तरह गाने का अरमान
मछली की तरह मच लूँ यह अरमान
जवानी है लाई रंगीन सपना

दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा
मस्ती भरे मॅन की भोली सी आशा
चाँद तारों को छूने की आशा
आसमानों में उड़ने की आशा

दिल है छोटा सा, छोटी सी आशा
मस्ती भरे मॅन की भोली सी आशा


फेरी टेल्स, फेरी लॅंड जैसी ही कहानी थी, छोटी छोटी चीज़ों मे बड़ी बड़ी ख़ुसीया ढूँढती रही थी . परिवार मे पली-बढ़ी हर मिड्ल क्लास फॅमिली की आग्यकारी सुपुत्री, घर का काम, पढ़ाई, और घर के दिए संस्कार. इन सब से बढ़ कर उसकी अपनी एक चाहत "कोई सपनो का राजकुमार आएगा और उसे दुल्हन बना कर ले जाएगा"


जिंदगी हर पल कुछ नया सीखती और सिखाती है, और सीखने की चाहत अपर थी रीति मे. रूप जितना सुंदर था, स्वाभाव उतना ही चंचल, पर घर के मिले महॉल के कारण सिर्फ़ उन से ही बातें करती थी, जिनको जानती थी. 


कभी बहुत ज़्यादा उतार चढ़ाव नही देखी अपनी जिंदगी मे, सिवाय इसके की जब कोई उँची आवाज़ मे बात कर दे तो आँखों से गंगा-जमुना निकल आती थे. हिमालय की गोद मे बसा हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले से थी. 


नहन, सिरमौर के हार्ट ,मे ही पूरे परिवार का रहना होता था. संगीत से काफ़ी लगाव था और मोहित चौहान की फॅन क्योंकि वो भी उसी सहर से हैं. 


नहन मे किसी बात की कमी नही थी, पढ़ने मे हमेशा आगे थी, पर कहते है ना कोई परफ़ेक्ट नही होता, ऐसी ही कहानी थी रीति की.... एक तो कोई रो कर कुछ कहे तो दिल जल्दी पिघल जाता था, और दूसरी जो आमूमन 60% लड़कियों मे ये खामियाँ पाई जाती हैं .... कंजूस.


खैर जिंदगी बिल्कील सीधी चल रही थी, दो भाइयों की एकलौती लाडली, हमेशा दो सहेलियाँ.... लाडली और प्रिया के साथ वो अपना हर दिन प्यार से गुज़ार रही थी.


लेकिन ये जीवन है, और कहीं ना कहीं, कभी ना कभी कुछ ऐसा हो जाता है, जिसका परस्पर अच्छा या बुरा प्रभाव ता-उम्र रहता है. 


कहते हैं कॉलेज लाइफ जिंदगी के सबसे हसीन दिनो मे गिनी जाती हैं. काम-काम और जीवन की व्यस्त'ता मे फँसने के बाद लोग अपने मोज-मस्ती से बिताए इन्ही दिनो की कल्पना करते हैं, पर एक सच्चाई और भी है, उस वक़्त मे हुए सितम पूरे जीवन पर एक अलग ही छाप छोड़ते हैं. 


कॉलेज के सेकेंड एअर की ये बात थी, जब छोटी-छोटी घटनाएँ फन फैलाए एक विकराल रूप लेने के लिए तैयार थी, और इन सब से बेख़बर रीति अपनी दोस्त लाडली और प्रिया के साथ अपने कॉलेज के आन्यूयल डे के फंक्षन की तैयारी मे लगी थी......


प्रिया..... आह ! घंटे भर से बैठे बैठे कमर अकड़ गयी, तुम दोनो अब भी बैठे हो, छोड़ो इसे और चलो, कल कर लेना.


लाडली..... कामचोर, एक तो पूरा दिन काम करेगी नही, और रोएगी ज़्यादा, उपर से तुझे बैठने मे भी थकान हो रही है.


प्रिया..... हां बिल्कुल थकान होगी ही, यहाँ सबसे ज़्यादा काम मैं ही करती हूँ, अब ज़्यादा बोल मत.


लाडली.... तू और काम, रहने दे, रहने दे, अभी महीने दिन पहले की ही बात है ज़्यादा दिन भी नही हुए उस कहानी को ?


रीति..... लाडली कौन सी कहानी रे, मुझे तो तुम कुछ बताती ही नही.


लाडली.... तुझे नही पता क्या ?


प्रिया.... कोई कहानी नही है रीति, ये बस फेंक रही है.


लाडली... अच्छा मैं फेंक रही हूँ, तो चुप बैठ थोड़ी देर अभी पता चल जाएगा.


प्रिया.... कोई कहानी होगी तो ना, झूठी कहीं की.


रीति.... चुप करो दोनो, और यदि यूँ ही झगड़ा करना है तो निकल जाओ यहाँ से, मुझे फंक्षन की तैयारी करनी है. लाडली अब बोलेगी भी बात क्या थी.


लाडली... कुछ नही रीति, अंकल-आंटी तीन दिन के लिए बाहर गये थे, बाकी कामों के लिए तो नौकर थे, पर खाना बनाने की ज़िम्मेदारी प्रिया की ही थी, पर एक ही दिन किचेन का काम करने के बाद बीमार पड़ गयी, और मजबूरन उन्हे अपना काम बीच मे ही छोड़ कर आना पड़ा.


रीति.... हीए हीए ही ही, सच मे .... कामचोर प्रिया


प्रिया.... बस भी करो तुम सब, वो तो मात्र एक संयोंग था, उसे मेरे काम से जोड़ दी. पागल कहीं की.


रीति और लाडली लगातार प्रिया की खिंचाई करते रहे, तभी एक लड़का उन तीनो के पास पहुँचा, तीनो उस लड़के को देख कर शांत हो गयी, महॉल कुछ ऐसा बना की तीनो उसे हे देख रही थी, और वो सिर झुकाए चुपचाप खड़ा था.


लाडली.... आप कौन है और क्यों आए हो.


लड़का..... जी मैं राजीव हूँ, प्रोफ़ेसर. आचार्या ने भेजा है, आप की हेल्प के लिए.


रीति.... सर ने मुझे कुछ नही कहा इस बारे मे, और कहा भी होता तो हमारा काम लगभग ख़तम हो गया है, कोई ज़रूरत होगी तो मैं बता दूँगी.


राजीव...... जी ठीक है, कोई हेल्प चाहिए होगा तो बता दीजिएगा.


इतना कहने के बाद वो लड़का वहाँ से चला गया, कुछ देर बात करने के बाद तीनो भी कॉलेज से अपने घर की ओर चल दी.
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