non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्रेम कहानी )
12-27-2018, 01:43 AM,
#17
RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�...
अचानक से ही 20/21 लड़के घुसे और सब के सब तोड़-फोड़ के मूड मे थे. पर उन्हे क्या पता था यहाँ की तैयारी उस से ज़्यादा पुख़्ता है. जैसे ही सारे लड़के घुसे उनके पिछे इंजीनियरिंग कॉलेज के करीब 30 स्टूडेंट और पार्टी हॉल के तकरीबन 15 लड़के, और सबके हाथ मे कुछ ना कुछ.


आलम ये हो गया क़ि जो बाहर से मार करने आए थे लड़के, वो बीच मे फसे थे और चारो ओर से उसे इंजीनियरिंग कॉलेज के स्टूडेंट घेरे थे. और जिनका दब-दबा ज़यादा होता है उनकी बोली भी ज़्यादा. महॉल तो पूरा गरम था, पर जो मार करने आए थे वो असहाय हो गये और जो मार खाने वाली पार्टी थी वो भारी पड़ गयी. 


बीच बचाओ मे इस बार अपने पक्षों को शांत कर साइड किया नेनू और गौरव ने, उधर अमित ने विवेक को पकड़ा और समझाने लगा "इनसे मार करने का कोई मतलब नही, अभी इतने है एक फोन कॉल गया तो कुछ देर मे पूरा हॉस्टिल होगा".


हालात को शायद विवेक तो समझ गया पर अंकित के गुस्से ने नही समझा. अंकित & फ्रेंड्स जान चुके थे कि उनके साथ ऐसा क्यों हुआ, इसलिए अंकित सीधा गया और गौरव की कॉलर पकड़ा और हाथ मारने की पोज़िशन मे किया ही था...


ताड़ ..... एक तमाचा पूरे ज़ोर का पड़ा अंकित के गाल पर. तेज वो थप्पड़ इतना था कि उंगलियों के निशान उभर कर आए.


नेनू..... बस, चुप उस दिन भी थे चुप आज भी हैं. हरकत कुछ ऐसी मत करना कि अफ़सोस हो कि इन्हे छेड़ा ही क्यों.


अंकित को थप्पड़ पड़ते ही विवेक भी तैश मे आ गया, पर जो उनके साथ वाले थे बदलते महॉल और वक़्त को देखते हुए निकल लिए. मार कभी भी हो सकती थी, और फालतू के दूसरों के झमेले मे क्यों पड़ें, बस ये सोचते हुए आधे से ज़्यादा निकल गये थे.


कोई वहाँ कुछ नही कर सकता था... विवेक जैसे गुस्से से जल रहा हो....


गौरव.... शांत हो जाओ सब .. और सब पिछे हटो, इन दोनो को बिठाओ कुर्सी पर अब हम ज़रा इन्हे आयना दिखाते हैं.


गौरव की तेज चींख ने जैसे सबको शांत कर दिया हो, बाकी बचे लड़कों को उस जगह को छोड़ने के आदेश मिल गये और ना चाहते हुए भी उनको आना पड़ा. दो कुर्सियाँ हाल के बीच मे उसके सामने नेनू और गौरव की कुर्सियाँ और एक डिस्टेन्स पर बाकी दोस्त, शराब की ग्लास नीचे रखे और हाथो की प्लेट मे तंदूरी मुर्गे लिए इस वार्तालाप का लुफ्त उठाने लगे.


गौरव..... 

"क्यों बे, तुम सब अपने आप को समझते क्या हो. याद है वो सिनिमा हॉल. क्या ग़लती थी ज़रा बता हमे. बोल ना.....


एक तो पहली बात हम हूटिंग नही करते, नही करते मतलब नही करते और दूसरी बात सिनिमा हॉल मे हूटिंग नही करेंगे तो क्या भजंन मंडली मे हूटिंग करेंगे कुत्ते.


सालो जब बोल्ड सीन तुम लड़के-लड़कियाँ एक साथ देखते हो, 100 लोगों के बीच मे तब ऑड नही लगता, तब तुम संस्कारी हो गये और माँ बाप के अग्याकारी, और उसी बोल्ड सीन पर जब कोई हूटिंग कर दे, तो हरामजादे तुम तो सो कॉल्ड हाई-सोसाइटी के लोग उनकी औकात और संस्कार पुच्छने लगते हो.


पता चला भरी सभा की बेज़्जती क्या होती है. कैसा लगता है जब कोई तुम्हारी इज़्ज़त उतारे उस काम के लिए जो काम तुमने किया ही ना हो. 


और तुझे कॉलर पड़कने का बहुत शौक है क्यों. उतर गयी सारी हीरोगिरी. सोच अभी हम ने कुछ नही किया, तुम्हारे जैसे हम भी उस दिन अपने अपमान का बदला लेने आते तो तुमलोगों का क्या होता. 


बात आई हो समझ मे तो ठीक वरना आ जाना अपने सगे संबंधी को लेकर, हम रोज सुबह विजयनगर चौराहे पर मिल जाएँगे, और हां शायद हर रोज हम इतने शांत ना हों ....



द्वेष और बदला दो मन की ऐसी अवस्थाएं हैं, कि जबतक इसे संतुष्ट ना किया जाए इंसान जलते रहता है. कितना सुकून और कितना राहत इस समय गौरव और नेनू महसूस कर रहे थे ये तो दोनो को ही पता था.


सुबह इनकी पूरी मंडली जमा थी विजयनगर चौराहे पर, जब सामने से सैली चल कर उस चाय की टपरी मे आई, साथ ही साथ उसके सभी दोस्त भी आए थे. 


उस दिन भी नेनू और गौरव को जब पहली बार सैली ने आवाज़ दी तो दोनो उसके रूप को देख कर अवाक रह गये थे, पर पहली मुलाकात ही ऐसी गुज़री कि फिर रूप छोड बदले के पिछे पर गया.


हालाँकि कल मे और आज मे सैली के लुभावन रूप मे कोई अंतर नही था, पर बदला जो था वो सिर्फ़ देखने का नज़रिया, और जब नज़रिया बदलते हैं तो दिलों के सूरत-ए-हॉल भी बदल जाते हैं. 


नेनू थोड़ा मुस्कुरा कर देख रहा था क्योंकि बदले के बाद सैली के रियेक्शन का इंतज़ार कर रहा था, वहीं गौरव कुछ ज़्यादा ही मुस्कुरा कर देख रहा था, अब बेचारा क्रेज़ीबॉय का हाल जो दिल का था वो तो वही जाने, पर मुस्कुरा ज़रूर दिल से रहा था.


सभी लड़के खड़े थे, और सबको ऐसा लगा कि कोई कोल्ड वॉर कि इस्थिति पैदा होने वाली है, पर वहाँ जो हुआ वो सोच के विपरीत थी....


सैली.... मैं माफी चाहती हूँ, उस दिन विवेक ने भी मुझे टोका था, कि ऐसे भरी महफ़िल मे किसी को नही बोलना चाहिए. इनफॅक्ट, वो बोलना नही था एक बहुत ही ग़लत हरकत थी, कि मैने आप की बेज़्जती की. कल जो आप लोगों ने किया उसने मुझे एहसास कराया कि गुस्से मे मैं कितनी ग़लत थी.


गौरव .... कोई बात नही मिस .. अब सब बराबर है. वैसे आप ने सॉरी बोल दिया तो हम भी कल के लिए सॉरी कहते हैं, (अंकित की ओर इशारा करते हुए) और तुम भाई... दिल पर मत लेना कोई भी बात.

सैली.... लगता है आप के दोस्त अब भी नाराज़ हैं, इसलिए कुछ बोल नही रहे.

नेनू ...... ना ना मेडम ... कोई गिला कोई शिकवा नही. इस बात को पिछे छोड़ दिया जाए तो मेरे ख्याल से बेहतर होगा.

"तो मिलाइए हाथ, मैं श्रयलीन हूँ, और दोस्त मुझे सैली कहते है" .... "मैं नैन, और दोस्त मुझे कुछ भी कहे सब प्यारा लगता है" .... "हाई मैं गौरव"


पीछे से लड़को के कॉमेंट्स आना शुरू हुए ... अर्रे मिस, गौरव नाम से कभी इसे ढूंड'ना नही, क्योंकि इसे सब क्रेज़ीबॉय बुलाते हैं.


तेज आँधी की उथल-पुथल के बाद जैसे सब शांत हुए हो, उधर की सारी मित्र मंडली गौरव और नेनू से माफी माँगी और अपने किए की शर्मिंदगी जाहिर की. पर इस घटना के बाद आगे कुछ गुस्ताख़ी होनी बाकी थी, एक प्यारी गुस्ताख़ी.


गौरव और नेनू को सैली की ओर से निमंत्रण मिला डिन्नर का, नेनू कम मगर गौरव काफ़ी एग्ज़ाइटेड था इस डिन्नर के लिए, जब शाम को तैयार हुआ निकलने के लिए तो आख़िर नेनू बिना बोले रह नही पाया....

"क्यों क्रेज़ीबॉय, लगता है शादी मे जा रहे हो, बात क्या है बाबू इतना बन ठन के"


गौरव.... हुरर्र, ये मेरा नॉर्मल ड्रेसिंग है, तेरे तरह कबाड़ी नही, कि कुछ भी पहन कर कहीं भी चले गये.


नेनू..... चल चल, मुझे ना ड्रेस के बारे मे ज्ञान नही दे, मैं जो भी पहनता हूँ वो ब्रांड बन जाता है.


रात 8 बजे, सैली और अंकित, रेस्टोरेंट मे दोनो का इंतज़ार कर रहे थे, जब दोनो पहुँचे. नेनू अपनी चेयर पर बैठ'ते हुए, "हम लेट तो नही हुए"


अंकित थोड़ा आगे झुक कर .... भाई पर हम कौन, आप अकेले ही बैठो हो. 


एक नज़र अपने साइड मे डाल चेक किया, अभी तो गेट तक साथ था, और जब स्थिति का जायज़ा लिया तो सिर पर हाथ रख कर मुस्कुराने लगा....


सैली के चहरे पर जैसे अजीब सी मुस्कान आई हो, और वो गौरव को देख कर मुस्कुरा रही थी, गौरव अभी भी गेट के पास खड़ा बस बगुले की नज़र से अपनी सैली मछ्ली को देख रहा था.


गेट पर खड़ा होकर यूँ घूर्ना काफ़ी एंबॅरसिंग था. नेनू, गौरव के पास पहुँचकर उसके सिर पर मारता उसे होश मे जल्द वापस लाया, और जब गौरव को समझ मे आया कि वो क्या कर रहा था तो इधर उधर गर्दन घुमा कर देखने लगा.


नेनू..... करज़ीबॉय पब्लिक प्लेस मे ऐसे कोई घूरता है क्या ?


गौरव.... मैं, मैं ... मई तो रेस्तरा की साफ सफाई देख रहा था, आख़िर खाना और सेहत की बात है.


नेनू.... हां वो तो समझ मे आ रहा है तू कौन सी सेहत बना रहा था. चल अब, और उसे घूर्ना बंद कर.


गौरव जब टेबल पर आया तो अंकित और सैली दोनो हंस रहे थे, साथ मे नेनू को भी हसी आ गयी, गौरव छोटा सा मुँह बनाए चुपचाप बैठ गया पर रह-रह कर नज़र बस सैली के हुस्न पर ही टिकी हुई थी.


सैली.... क्रेज़ीबॉय काफ़ी जच रहे हो आप इस ड्रेस मे.


गौरव सिर झुकाए चोर नज़रों से सैली को देख रहा था और अचानक से जब सैली के मुँह से अपनी तारीफ सुनी तो चेहरा उठा कर पूरी नज़रों से देखते हुए ..... 

उसके हुस्न की तारीफ में क्या कहिए
कोई सहज़ादी जमी पर उतर आई है
ए बनाने वाले लगता जैसे
कोई संगमरमर की मूरत तूने बनाई है

उसकी ज़ुलफो की तारीफ में क्या कहिए
जैसे दिन ढलते ही छाई अंधियारी है
हो चली है पवन भी पागल
उसकी ज़ुल्फ लहर-लहर लहराई है

आँखें उसकी या मैकशी के प्याले
देखकर ही हम पे खुमारी सी छाई है
होंठ कहूँ या फूलो की फांके
जिसकी खुश्बू ने हमारी सासो को महकाई है
अबर कहूँ उसके गालो को मैं
दूध से जैसे वो नहाई है
चाँद कहूँ फिर भी कम होगा
आसमान के नक्षत्रो में वो ही जग-मगाई है

उसके हुस्न की तारीफ में क्या कहिए
कोई सहज़ादी जमी पर उतर आई है
ए बनाने वाले लगता है जैसे
कोई संगमरमर की मूरत तूने बनाई है



बेवक अदा से गौरव के शब्दों मे निकले सैली के रूप वर्णन, सुनकर सबकी आँखें फटी रह गयी और मुँह खुला. जब अपनी कविता पूरी कर दी गौरव ने तो सबको इस तरह से घूरते देख .... "क्या हुआ सबको, ऐसे क्यों देख रहे हो"


सब बस हँसते हुए तालियाँ बजाने लगे ... एक प्यारी सी मुस्कान गौरव के चेहरे पर आ गयी, और थोड़ा सा शरमाता हुआ अपनी जगह पर बैठ गया.


सैली.... वॉवववववव क्रेज़ीबॉय आप पोवेट्री भी करते हो ...


गौरव ..... नही ये किसी की कही कविताएँ थी, जो आप को देख कर ना जाने कैसे खुद-व-खुद बाहर आ गयी. वैसे हर खूबसूरत चीज़ का हक़ है, कि उसकी तारीफ हो.


सैली.... ह्म्म्म ! इंटरेस्टिंग क्रेजीबॉय , वैसे आप ऐसे ही बात करते हो या कोई स्पेशल अकॅशन है.


नेनू..... बस यूँ समझिए कदरदान है जी, और आप के रूप पर फिदा हो गया.


सैली.... टाइम तो गो दोस्तों, लगता है कुछ देर और रही तो एक अनार और दो बीमार हो जाएँगे, चल मोटू.


इतना कह दोनो वहाँ से निकल गये, गौरव टेबल पर हाथ अडाये और उसपर अपना चेहरा टिकाए, ठंडी साँसे भरते.... "याररर ! क्या बला की खूबसूरत है"


नेनू... ओईए मजनू ! और खरनाक भी है, ज़्यादा ख्याली पुलाव ना पका, यदि उसका पहले से कोई बाय्फ्रेंड हुआ तो.


गौरव.... तो मेरी जान तू किस मर्ज की दवा है, आख़िर इलाज़ तो तुम्हे ही करना है मेरे भाई.


नेनू.... अच्छा, और कहीं मैं ही उसका बाय्फ्रेंड रहूं तो....


गौरव.... तो तुझे रास्ते से हटा दूँगा, कौन सी बड़ी डील है. वैसे भी तो कहता है, "अपनो के लिए जान ले भी सकता हूँ और दे भी"

नेनू.... तौबा तौबा, ये लड़का भी ना. तू इतनी सीरियस्ली लेता है मेरी बातों को. ठीक भाई .... ले लेना जान, सुन मज़ाक बहुत हो गया अब सीरियस्ली कहता हूँ, देख ये लड़की का चक्कर छोड़ और पढ़ाई मे ध्यान लगा. वैसे भी तेरे 3 पेपर बॅक है, इस बार गड़बड़ हुआ तो तेरा बाप तुझे जो करेगा है सो करेगा ही, लेकिन मुझे भी मुझे नही छोड़ेगा. सुन रहा कि नही ......

गौरव.... यार, समेस्टर तो बाद मे भी निकाल लूँगा पर लड़की गयी तो बाद मे कहाँ से लाउन्गा......"मैनू इशक़ दा लगिया रोग, मैनु बचने दी नययो उम्मीद"

"हद हो गयी है, ये छोरा तो बावरा हो गया है, चल ओये मजनू, अभी तो कुछ दिन पहले आग लगती थी इसके बारे मे सोच कर, मुझे क्या पता था .. बाद मे भी आग लगने वाली है इसे सोच कर. भगवान बचाए इसे, ये तो गया काम से"


हॉस्टिल पहुँचने के बाद तो जैसे रात भारी हो गयी हो, और गौरव की आँखों से नींद कोसो दूर हो. गौरव बस खुली आँखों से उपर छत को देखते हुए.....


"हाय्यी ! क्या मुस्कान थी, उफ़फ्फ़ ये क्या कोमल निर्मल होंठ, और हँसने की वो अदा ... मैं तो लुट गया. आह ! आज तक किसी का क्रेजीबॉय बोलना अच्छा नही लगा, और आज लगता है काश मेरा ओर्जीनल नाम ही क्रेज़ीबॉय होता. पता नही मेरे बापू को क्यों ना ये नाम सूझा. जानू तुम कब इस दिल की धड़कन बनी पता ही नही चला, अब तो लगता है ये जीना मरना तेरे संग".


गौरव के दिल के अरमानो ने ऐसी आन्ह्ह्ह भरी की रात उसकी पूरी करवटें बदल-बदल गुज़री. ख्यालों का दामन इतना गहरा था कि नींद का साथ छूट गया, और जब दिन मे क्लास अटेंड करने गया तो नीनी रानी ने बसेरा डाल लिया. क्योंकि रिंग, पिस्टन और एंजिन सुन'ना वैसे ही बोरिंग था उपर से रात भर का जागा.


फॅकल्टी ने भी क्या खूब पनिश किया, गौरब को अपने जगह पर खड़े होकर अटेंड करने के आदेश मिले, और साथ मे मिला एक्सट्रा असाइनमेंट. बेचारा, आज रात छत को देखते अपनी हुस्सन-ए-मल्लिका को याद भी नही कर सकता था.
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RE: non veg story अंजानी राहें ( एक गहरी प्र�... - by sexstories - 12-27-2018, 01:43 AM

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