RE: Antarvasna Sex kahani जीवन एक संघर्ष है
पूनम शीशे के सामने अपने जिस्म को मात्र दो कपड़ो में देख कर शर्माती है,
आज से पहले उसने अपने जिश्म को पहले कभी इस तरह घूरा नहीं था ।
पूनम 24 वर्ष की हो चुकी थी, उसकी इच्छाएं उसके जिस्म से निकलने लगी थी।
पति और परिवार की चाह हर लड़की को होती है
लेकिन पूनम की बदनसीबी उसकी गरीबी थी,
जिसके कारण उसका विवाह अभी तक नहीं हो पाया था। दिन तो जैसे तैसे काट लेती लेकिन रात की तन्हाई उसे बहुत तड़पाती थी।
शारीरिक इच्छाएं भड़काने के बावजूद भी पूनम ने कभी घर की मर्यादा को भंग नहीं हॉने दिया।
घर की इज्जत का हमेसा ध्यान रखा।
जब कभी ज्यादा ही जिश्म से आग भड़कने लगती तो खुद ही ऊँगली से अपने आपको शांत कर लेती थी ।
पूनम जालीदार पेंटी के ऊपर निकली झांटे को उंगलिओ से स्पर्श करती है। जिस्म में सिरहन दौड़ने लगती है तभी तनु की आवाज़ आती है ।
तनु-" दीदी जीन्स पहन ली क्या, बहुत देर लगा रही हो"' पूनम एक दम चोंकती हुई
अपने कपडे पहनती है ।जीन्स और टॉप पहनने के बाद पूनम एक दम सेक्सी बोम्ब जैसी लग रही थी ।
जिस्म ऐसा था की शायद उसको सनी लीओन भी देख ले तो शर्मा जाए ।
पूनम बॉथरूम से बहार निकलती है ।
तनु पूनम को देख कर खुश हो जाती है ।
पूनम जीन्स में बाकई बहुत मस्त लग रही थी ।
तनु-" wowwe दीदी आप तो बहुत सुन्दर लग रही हो"
पूनम बहुत शर्मा जाती है और कुछ बोल नहीं पाती है ।तनु पूनम का हाथ पकड़ कर
माँ के रूम में जाती है ।
रेखा भी पूनम का सुन्दर रूप देख कर खुश थी ।
इधर सूरज गाडी लेकर नए घर यानी की सूर्या के घर की तरफ निकल आया था।
संध्या और तान्या सूर्या की यादास्त चली
जाने से बहुत दुखी और परेसान थी।
और बहुत देर से उसके आने का इंतज़ार कर रही थी
तभी बहार सूरज की गाडी की आवाज़ सुनकर उसे सुकून मिलता है ।
सूरज के अंदर आते ही संध्या पूछती है।
संध्या-" बेटा मंदिर से लौटने बड़ी देर लगा दी, भूका प्यासा ही चला गया तू ।
सूरज-" मंदिर से आने के बाद घूमने चला गया था माँ"
संध्या-" चल बेटा खाना खा ले, सब तेरी पसंद का बनाया है" सूरज को भी बहुत तेज भूंक लगी थी इसलिए माँ और बेटा दोनों बैठ कर खाना खाने लगते हैं ।
सूरज-" माँ दीदी कहाँ है ? तान्या उसे दिखाई नहीं दी इसलिए माँ से पूछता है
संध्या-" कंपनी की जरुरी मीटिंग थी आज
इसलिए थोडा देर से आएगी।
तू जल्दी से ठीक हो जा फिर सारी जिम्मेदारी तुझे ही संभालनी है बेटा,
सूरज-" हाँ माँ अब में दीदी के साथ जाया करूँगा, जल्दी सीख जाऊँगा"
संध्या-" तूने मेरे मन की बात कह दी बेटा"
कितना बदल गया है तू, एक समय ऐसा था तू अपनी दीदी की सकल भी नहीं देखना पसंद करता था,
आज उसके साथ बिजनेस की जिम्मेदारी संभालने की बात कर रहा है ।
में बहुत खुश हूँ तेरे इस भोलेपन रवैये से।
सूरज-" माँ में पहले कैसा था?? मन में उमड़े सवालो के उत्तर के लिए सूरज चिंतित था और सूर्या की जीवन शैली उसका व्यवहार
अब जानना चाहता था सूरज ।
संध्या-' बेटा अपने अतीत के बारे में मत पूछ, आज तेरे इस भोलेपन के रूप से में बहुत प्रशन्न हूँ जो कमसे कम मेरे साथ बैठकर खाना तो खा रहा है, आज से पहले तो तूने कभी ढंग से बात भी नहीं की"
संध्या रुआंसी हो जाती है ।
सूरज माँ के पास जाता है और गले लगा लेता है संध्या सूरज को सीने से चुपका लेती है।
और बहुत सारी पुच्ची उसके गालो पर करने लगती है।
संध्या बहुत खुश थी आज कई सालो बाद उसने अपने बेटा को सीने से गले लगाया था
संध्या नहीं चाहती थी की सूरज की फिर से
यादास्त वापिस लौटे और वह फिर आवारा गर्दी और अय्यासी के दल दल में चला जाए ।
रात्रि के समय सूरज अपने रूम लेटने चला जाता है। आज पहला दिन था उसके लिए की किसी आलीसान कोठी के सुन्दर
सुबिधाओं से परिपूर्ण कमरे के नरम गद्दे पर लेटा था।एक ही दिन में उसकी कैसे जिंदगी
बदल गई इसी के बारे में सब सोच रहा था।
इस घर में सूर्या का रूप तो धारण कर लिया था सूरज ने
लेकिन अब सूर्या बनकर सारी समस्याओं को कैसे सुलझाया जाए
यही बाते सूरज के मन मस्तिक में दौड़ रही थी ।
सूरज अभी तक अनभिज्ञ था सूर्या के
परिवार के बारे में कोई जानकारी
हांसिल नहीं थी उसे।
सूरज सोचता है की कैसे सूर्या के बिजनेस को सम्भालू ?
जबकि में गाँव गंवार लकड़ी काटने वाला लकड़हारा इतने बड़े बिजनेस को कैसे
सम्भाल सकूँगा? मुझे सब सीखना होगा,
हालांकि 12वीं तक पढ़ा था सूरज, हिंदी अंग्रेजी और गणित में अव्वल था लेकिन
व्यवस्याय शिक्षा के बारे में जीरो था।
सूरज सोचता है क्यूँ न किसी अच्छे शिक्षक से व्यवस्याय और कम्प्यूटर तकनिकी की
शिक्षा ले ली जाए, बिना कम्प्यूटर ज्ञान के
अच्छा बिजनेस मेन नहीं बन सकता हूँ।
सूरज मन में ठान लेता है की कल से ही
शहरी जिंदगी जीने के लिए कम्प्यूटर और
कॉमर्स की ट्युन्सन लगा लूंगा ।
ज़िन्दगी बदलने के लिए खुद को बदलना
बहुत आवश्यक है, परिवर्तन प्रकृति का नियम है । इसलिए धीरे-धीरे सब कुछ सीखना है और खुद की बहन पूनम और तनु के लिए भी आगे शिक्षा के लिए स्कूल में दाखिला करवा दूंगा ।
इधर रात्रि के 10 बजे तान्या घर आती है।
संध्या और तान्या आज की बिजनेस मीटिंग
के बारे में डिस्कसन कर रही थी।
संध्या का कपड़ो की फेक्ट्री थी, सभी कपडे विदेश जाते थे ।
तान्या खुश थी क्योंकि आज उसकी कंपनी को पचास करोङ का टेंडर मिला था ।
दोनों माँ बेटी बहुत खुश थी ।संध्या डायनिंग टेबल पर खाना खा रही थी ।
संध्या को आज दो ख़ुशी एक साथ मिली थी,
एक तो उसका बेटा घर आ गया था दूसरी ख़ुशी कंपनी के टेंडर की थी।
संध्या तान्या की ओर कुर्सी डाल कर बैठ जाती है
और तान्या से बोलती है
संध्या-" तान्या बेटा तुझ से सूर्या के बारे में बात करना चाहती हूँ ।
तान्या संध्या की ओर देखती है लेकिन
कुछ बोलती नहीं है, तान्या अब से पहले
सूर्या से बहुत नफरत किया करती थी,
बात करना तो दूर की बात उसकी
सकल भी देखना पसंद नहीं करती थी।
तान्या-" बोलो मोम क्या बात करनी है? बेटी के इस नरम रवैये से संध्या खुश थी।
संध्या-" बेटा सूर्या को कुछ याद नहीं है,
उसकी यादास्त वास्तव में चली गई है,
उसके चेहरे के भोलेपन को मैंने
महसूस किया है बेटा, आज से पहले मैंने
कभी सपने में भी नहीं सोचा था की
मुझे बेटा का प्यार नसीब होगा,
हमेसा यही सोचती थी की उसके
अंदर सुधार आए, वो अपनी जिम्मेदारी को
संभाले, बिजनेस और परिवार को ध्यान दे।
ऐसा लगता है जैसे मेरी मनोकामना पूरी हो
गई हो, में नहीं चाहती हूँ की उसे उसकी
पिछली ज़िन्दगी के बारे में कुछ पता चले और
वह फिर से उसी दुनिया में लौट जाए"" संध्या गंभीर होती हुई बोली, तान्या भी नहीं
चाहती थी की फिर से इस घर में कलेस हो इसलिए अपनी माँ को भरोसा दिलाती
है की वह उसे उसकी ज़िन्दगी के बारे में कुछ नहीं बताएगी।
तान्या-"माँ तुम बेफिक्र रहो हम उसे कुछ नहीं बताएंगे ।तान्या की बात सुनकर संध्या को सुकून मिलता है।
संध्या-" बेटी अब सो जाओ बहुत रात हो गई है, कल से तुम सूर्या का थोडा ध्यान रखना, उसे बिजनेस और कंपनी के
सभी काम सिखाओ"
तान्या-" ठीक है मोम, में प्रयास करुँगी,
अब आप भी सो जाओ.
तान्या ने संध्या को गुड नाईट किस्स किया और ऊपर सूर्या के
बगल बाले अपने कमरे में चली गई
अब सूर्या के परिवार के बारे में थोडा जान लेते हैं -
संध्या सिंह- अपने पिता की एकलौती संतान थी, इनके पिता की 2 फेक्ट्री थी,
अमीर घर की लड़की होने के कारण
इनका विवाह एक रहीश परिवार में हुआ
लेकिन शादी के दो साल बाद इनके पति की मृत्य हो गई। संध्या उस समय तान्या को
जन्म दे चुकी थी ।
संध्या के विधवा होने का दुःख संध्या के पिता बहुत हुआ ।
इसलिए उन्होंने अपने फेक्ट्री में काम करने वाले एक बफादार नोकर BP Singh से करवा दी। सूर्याप्रताप इन्ही से पैदा है ये बात सिर्फ संध्या और BP Singh ही जानते हैं। (झगडे का खुलाशा कहानी के अंत में ही होगा)
संध्या पढ़ी लिखी लड़की थी, अपने पिता का पूरा बिजनेस खुद ही सम्भाला ।
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