RE: Nangi Sex Kahani नौकरी हो तो ऐसी
नौकरी हो तो ऐसी--14
गतान्क से आगे…………………………………….
सेठ जी के साथ जीप मे बैठ के हम लोग खेतो की ओर चल दिए गाव से बाहर निकलते ही सेठ जी के सारे खेत दिखने शुरू हो गये सेठ जी बताने लगे “ये सब मेरे पिताजी दादा और परदादा की ज़मीन है …इन लोगोने खूब मेहनत करके ये ज़मीन अपने नाम से जाने से रोकी है …अभी लगभग हम लोग 300-400 एकर के मालिक है…. इसमे 100-200 कूल्हे है… लगभत 90 प्रतिशत ज़मीन बागायती है और बाकी की ज़मीन जानवर चराने के लिए रखी है… मैं चाहता हू कि तुम अब कारोबार पे अच्छे से ध्यान दो… हमारे पहले मुनीम जी अच्छे से इस कारोबार को संभालते थे पर अब तुम्हे ये सब देखना होगा ” मैं हाँ करके मुँह हिला रहा था सेठ जी बोले“पहले मुनीम्जी अच्छे थे पर मेरे बेटे उन्हे ठीक से हर एक काम पे कितने रुपये खर्च हुए इसका हिसाब किताब बराबर से नही देते थे तो उन्हे ज़रा परेशानी रहती थी ….तुम्हे अगर कोई भी परेशानी आए तो तुम मुझे बेझीजक बताना पर हां हिसाब के बारे एक दम बराबर रहना…” हम अभी खेतो से निकल के सेठ जी के कार्यालय कीतरफ निकल पड़े…
जैसे कि मैं यूनिवर्सिटी का ग्रॅजुयेट था और मैं एक चार्टर्ड अकाउंट के नीचे काम किया था… मुझे हिसाब किताब मे किए जानेवाली हर एक चीज़ का बारीकी से ग्यान था और हिसाब मे की गयी कोई भी लापरवाही या मिलीभगत मैं यू पकड़ सकता था…..
हम कार्यालय पे पहुचे… कार्यालय मतलब एक गोदाम था जहाँ मुनीमाजी और सेठ जी बैठते थे वहाँ पे बहुत सारे अनाज की बोरिया लगी हुई थी करीब 1000-2000 अलग अलग किस्म के अनाज की बोरिया थी…पर उन्हे बहुत ही अच्छे से रखा गया था…बहुत सारे मजदूर लोग वहाँ मौजूद थे जो साफ सफाई और देखभाल के लिए रखे थे…. गोदाम पुरखो का और मजबूत लग रहा था… उसकी हाल ही मे पुताई भी की गयी हो ऐसे लग रहा था …यही मेरी काम की जगह बनने वाली थी आजसे….
उधर ही गोदाम के अंदर एक बाजू मे सेमेंट का बड़ा उँचा एक बरामदा तैय्यार किया था जहापे सब हिस्साब किताब की पुस्तक और कापिया रखी थी… नीचे बैठने के लिए तीन चार गद्दे और लोड लगाए थे …..3-4 छोटे छोटे मेज भी थे जहापे मूंदी डाल के अच्छे से हिसाब किताब कर सकते थे …. हम लोग उधर आए और उस बरामदे मे सीडी से चढ़ गये…. लगभग 20 सीडी चढ़ के हम बरामदे मे पहुच गये.
सेठ जी अपनी मेज के पास बैठ गये और मुझे बाजू बिठा के सब हिसाब किताब समझाने लगे “ये ऐसा है… वो वैसा है ..इस साल इतना गेहू हुआ था ..उस साल उतना चावल हुआ था…. इसकी इतनी उधारी है… उसके उतने देने है… ये सब इसके बिल है… ये पिछले साल के कूल्हे बनाने का खर्चा है …ये सब कामगारो की पगार के हिसाब की पुस्तक है… ”
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