vasna kahani चाहत हवस की
12-20-2018, 01:20 AM,
#1
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चाहत हवस की

मेरे परिवार में मेरे पापा, मम्मी मेरी गिफ़्टी दीदी और मैं चार लोग हैं। हम लोग नोएडा में रहते हैं। मेरे पापा और मम्मी दोनों सरकारी जॉब में हैं। दीदी की पिछले साल ही शादी हुई है, जीजू की लन्दन में किसी विदेशी बैंक में अच्छी जॉब है, लेकिन जीजू शादी के बाद दीदी को वीसा प्रॉब्लम के कारण लन्दन नहीं ले जा पाये हैं, दीदी अभी भी हमारे साथ ही रहकर अपनी सॉफ़्ट्वेयर कम्पनी में जॉब कर रही है। जीजू हर दो तीन महिने में आते जाते रहते हैं। 
मेरे घर पर झाड़ू पोंछा सफ़ाई का काम करने वाली गुड़िया को जब भी मम्मी पापा घर पर ना होते, और दीदी जॉब पर गयी होती तो मैं उसको एक हजार का नोट देकर उस से अपना लण्ड चुसवाया करता था। गुड़िया की अभी शादी नहीं हुई थी, एक बार मैंने उससे अपना लण्ड चुसवाते हुए पूछा कि किस किस से चुदी है वो, तो उसने झिझकते हुए अपनी आपबीती सुना दी। 

गुड़िया की आप बीती उसकी खुद की जुबानी

मेरा नाम गुड़िया है, मेरे परिवार में मेरी मम्मी, पापा और मेरा छोटा भाई विजय है, पहले हम जयपुर में रहते थे, कुछ साल पहले ही नोएडा आये हैं। मेरी उम्र 20 साल की है और मेरे छोटे भाई की उम्र 19 साल की। पापा एक फ़ैक्ट्री में मजदूरी करते थे और मम्मी बड़े बड़े घरों में सफ़ाई पोंछे का काम करती थी। दो साल पहले पापा की एक रोड एक्सीडेन्ट में डैथ हो गयी थी, उसके बाद से मैंने मम्मी के साथ कोठियों में सफ़ाई पोंछे का काम करना शुरु कर दिया था। हम एक कच्ची बस्ती में रहते हैं, हमारे घर में दो कमरे हैं, जब तक पापा थे तब तक मम्मी पापा एक कमरे में, और मैं और विजय दूसरे कमरे में सोया करते थे। 

जब मैं और विजय छोटे थे तब बाकी सभी भाई बहनों की तरह डॉक्टर डॉक्टर खेलते हुए एक दूसरे के शरीर की संरचना को समझने की कोशिश करते। हाँलांकि डॉक्टर डॉक्टर खेलते हुए ना जाने कब से विजय मुझे चोद रहा है मुझे याद नहीं, लेकिन फ़िर भी जब पहली बार हमारे यौनांगों ने एक दूसरे के यौनांगों को छुआ था उसकी मुझे अभी भी अच्छी तरह से याद है। हम उस समय बच्चे नहीं थे, और बहुत बड़े हो चुके थे, और वो छोटे भाई विजय के साथ पहली अविस्मरणीय चुदाई, मुझे याद है किस तरह मेरी छोटी सी चूत ने विजय के खड़े लण्ड के सुपाड़े को अपने अंदर लेकर उसको बेतहाशा जकड़ लिया था।

जब हम छोटे थे तब जब भी कभी रात में बगल के कमरे में मम्मी पापा चुदाई करते, तो मैं और विजय आधे सोते हुए उनकी चुदाई की आवाजें साफ़ सुना करते। मम्मी हम दोनों को बैड पर सुला कर चली जातीं और फ़िर शुरु होता मम्मी पापा की चुदाई का खेल, चुदते हुए मम्मी जोर जोर से कराहने की आवाज निकाला करती थीं, और फ़िर दोनों के हांफ़ते हुए तेज तेज साँस लेने की आवाज सुनाई देती। 

हर रात ऐसा ही होता कि जब हम जाग रहे होते, तभी पापा मम्मी को कुतिया बहन की लौड़ी और भी गंदी गंदी गाली देते हुए उनके ऊपर चोदने के लिये चढ जाते और फ़िर दूसरे कमरे से आ रही मम्मी के कराहने की आवाज के साथ साथ खटिया के चरमराने की आवाज सुना करते। जब पापा मम्मी को चोद रहे होते, तो विजय अपने पाजामे में हाथ घुसा कर अपना लण्ड सहलाया करता। क्योंकि मैं और विजय एक ही बैड पर सोया करते थे इसलिये मैं उसकी सब हरकतों से वाकिफ़ थी। कई बार जब मम्मी दरवाजा ठीक से बंद करना भूल जातीं तब मैं और विजय दरवाजे की झिर्री में से मम्मी पापा की चुदाई को देखा करते। 

पापा मम्मी को बहुत अच्छे से चोदा करते थे। वो मम्मी के ऊपर चढ जाते और मम्मी चुदने के लिये अपनी टांगे ऊपर उठा कर फ़ैला लेती, पापा मम्मी की चूत में लण्ड घुसाने से पहले उसके ऊपर ढेर सारा थूक लगाते, और फ़िर आगे झुककर उसमें अपना फ़नफ़नाता हुआ लण्ड एक झटके में पेल देते। और फ़िर शुरू होती चुदाई की हर झटके के साथ वो ऊह्ह आह्ह, जो हम दोनों भाई बहनों को मंत्र मुग्ध कर देतीं। मम्मी अपनी गाँड़ उछाल उछाल कर पापा का चुदाई में भरपूर सहयोग देतीं। 

दो बच्चे पैदा करने के बाद मम्मी की चूत ढीली हो चुकि थी, इसलिये चुदाई शुरू होने के कुछ देर बाद जब वो पूरी तरह गीली हो जाती तो पापा के लण्ड के हर झटके के साथ उसमें से फ़च फ़च की आवाज आती, और मम्मी के कराहने की आवाज तेज होने लगती। हम उनकी चुदाई की आवाज सुनकर ही समझ जाते कि उनकी चुदाई कब चरम पर पहुँचने वाली है, और कब पापा अपने लण्ड का पानी मम्मी की चूत में छोड़ने वाले हैं। 

कभी कभी तो मम्मी पापा की चुदाई इतनी लम्बी चला करती थी कि मैं और विजय दरवाजे के पास खड़े होकर देखते हुए थक जाते। बहुत बार मम्मी पापा से विनती किया करतीं, इसको ऐसे ही अंदर डाल के चोदते रहो, और भी ना जाने क्या क्या चुदते हुए खुशी में मम्मी लगातार बड़बड़ाया करती थीं। पापा मम्मी की बात मानते हुए जब तक लण्ड को मम्मी की चूत में अंदर बाहर करते रहते जब तक कि मम्मी उनको जोर से अपनी बाँहों में जकड़कर जोर से चीखते हुए झड़ नहीं जाती थीं। जब पापा सुनिश्चित कर लेते की मम्मी झड़ चुकि हैं तो उसके बाद पापा अपने लण्ड से पानी निकालने के लिये अपनी मन मर्जी चुदाई शुरु किया करते थे। फ़िर उनके लण्ड के झटकों की स्पीड तेज हो जाती, और वो बेतहाशा ताबड़ तोड़ अपने लण्ड का बेरहमी से मम्मी की गद्दे दार चूत पर प्रहार करने लगते। और फ़िर जल्द ही झड़ते हुए मम्मी के बड़े बड़े मम्मों पर अपना सिर टिका लेते, और उनका लण्ड मम्मी की चूत की सुरंग में बच्चे पैदा करने वाला जूस ऊँडेल रहा होता। और फ़िर पापा मम्मी के ऊपर से उतरकर सीधे लेटकर सो जाते, और कुछ ही मिनटों में खर्राटे भरने लगते। 

जैसे ही उनकी चुदाई खत्म होती, मैं और विजय जल्दी से अपने बैड पर आकर लेट जाते, क्योंकि चुदाई के तुरंत बाद मम्मी आगे से खुला गाउन पहन कर हमारे रुम में चैक करने आतीं कि हम दोनों ठीक से सो रहे हैं। जब मम्मी हमारे ऊपर हमको चादर या कम्बल से उढाने के लिये झुकतीं तो मैं और विजय सोने का बहाना बनाया करते। बहुत बार ऐसा भी होता कि मम्मी अपने गाऊन के सामने वाले बटन बंद किये बिना ही हमारे कमरे में आ जाया करतीं और मम्मी के लटकते हुए बड़े बड़े मम्मे हमको दिखाई दे जाया करते। जब मम्मी हमारे बैड के पास आया करतीं तो उनके बदन में से चुदाई के बाद चूत के रस और पापा के वीर्य की मिश्रित गंध सुंघायी देती। एक रूटीन की तरह वो इसके बाद बाथरूम जातीं और हम उनके मूत की कमोड में गिरने की आवाज सुनते। 

ऐसी रोमांचक चुदाई देखने के बाद मेरा और विजय का भी मन एक दूसरे के बदन के साथ खेलने का करता, लेकिन हम सो जाया करते। लेकिन अब हमारा डॉक्टर डॉक्टर का खेल और ज्यादा आगे बढने लगा था, और हम दोनों जब भी कुछ मिनटों के लिये अकेले होते, तो हम एक दूसरे के अन्डर वियर में हाथ डाल देते और एक दूसरे के गुप्तांगों के साथ खेलने लगते। मैं विजय के लण्ड को पकड़कर सहलाने लगती और विजय मेरी छोटी सी चूत के अन्दरुनी काले काले होंठों को जो बाहर की तरफ़ निकले हुए थे उनको सहलाने लगता। विजय के चेहरे पर आ रहे भाव देखकर ही मैं समझ जाती कि ऐसा करके उसको कितना मजा आ रहा होता।

ऐसे ही हमारी जिन्दगी चले जा रही थी, तभी एक दिन हमारे ऊपर कहर टूट पड़ा, मेरे पापा का देहान्त एक रोड एक्सीडेन्ट में हो गया था। मेरी मम्मी ने बड़े पैसे वाले लोगों के घर में काम करके हमारा भरण पोषण किया। जैसा कि आपको पता है कि पहले हम जयपुर की एक अविकसित कॉलोनी में दो कमरे के घर में रहते थे। पापा की डैथ के बाद, हमने एक कमरा किराये पर उठा दिया, और हम तीनों एक ही कमरे में रहने लगे। मैं भी मम्मी के साथ कोठियों में सफ़ाई पोंछा और कपड़े धोने के लिये जाने लगी, और विजय एक प्लास्टिक फ़ैक्ट्री में फ़ैक्ट्री के मालिक की गाड़ी का ड्राईवर बन गया। किसी तरह हमारा गुजर बसर हो रहा था। 

मम्मी मुझे अकेले किसी घर में काम करने के लिये नहीं भेजती थीं, वो मुझे अपने साथ साथ ही घरों में काम कराने के लिये ले जातीं। जब मैं जवान होने लगी तो मेरे उभार कुर्ते में से साफ़ नजर आते और मैं उनको दुपट्टे से ढकने का प्रयास करती रहती। मैं और मम्मी जिस भी घर में काम करने जाते उस घर के मर्दों की नजरें मेरे जिस्म को ऊपर से नीचे तक देखती रहतीं, जब मैं पोंछा लगाने को झुकतीं तो उनकी नजरें मेरे कुर्ते के गले में से अंदर झाँकती हुई प्रतीत होतीं। लेकिन धीरे धीरे मुझे भी समझ आने लगा था कि मुझे इसी दुनिया में इन्ही लोगों के बीच रहना है, और मुझे अब इन सब चीजों की आदत सी पड़ गयी थी। सिटी बस में चढते उतरते समय या बस के अन्दर भीड़ में सभी मर्द मेरे बदन के साथ जो स्पर्श सुख का आनंद लेते थे, वो मैं अनजान बनकर नजरअंदाज करने लगी थी। हाँलांकि अब मै भी जवानी की दहलीज पर कदम रख चुकी थी, और जब भी बस में भीड़ का फ़ायदा उठाकर कोई मेरी चुँचियों या मेरे चूतड़ों को दबाता या सहलाता तो मेरे अन्दर भी कभी कभी भूचाल सा आने लगता। लेकिन जिस तरह से हमारे घर की परिस्थितियाँ थी उस में मुझे अपनी शादी होने के जल्द ही आसार नजर नहीं आ रहे थे।
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