Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगाना
12-19-2018, 02:13 AM,
RE: Antarvasna kahani ज़िन्दगी एक सफ़र है बेगा...
चूँकि गनी के मुँह पर टेप लगा था, उसकी आँखें ये सुन कर निराशा से बंद हो गयी, 

लेकिन रुखसाना बिफर पड़ी, गुर्राती हुई गाली गलौज पर उतर आई और उल्टा सीधा बकने लगी, बुरी तरह चीखने चिल्लाने लगी. 

मे (अरुण) उसके गालों को सहलाते हुए बोला..

क्यों मेरी जान अब क्यों फडफडा रही है, हम हिंदुस्तानियों का खून बहाने में बड़ा मज़ा आता है ना तुम लोगों को. 

जब अपने खून की बारी आई तो पीड़ा हो रही है क्यों. 

लेकिन तू चिंता मत कर, तुझे हम कुछ नही कहेंगे, तू तो हमारा हसीन मोहरा है.

रुखसाना - क्या मतलब है तुम्हारा..? किस तरह का मोहरा,,? 

मे - देखती जा मेरी छम्मक्छल्लो… इतनी उतावली क्यों हो रही है रानी.. सबर कर, सब पता चल जाएगा वक़्त आने पर.

रणवीर आ चुका था सामान लेकर, हमने खाना खाया और रुखसाना को पुछा तो वो नखरे करने लगी, 

मैने कहा - माँ चुदाने दे साली को, नही खा रही तो ना सही अब इसपर ज़्यादा तरस खाने की ज़रूरत नही है.

फिर हमने गनी की और अच्छी तरह से मुश्क कस दी, और उसे उसी स्टोर रूम में बंद कर दिया जहाँ उस आतंकवादी को रखा था. 

विक्रम रुखसाना को लेकर एक दूसरे रूम में चला गया जहाँ एक बेड भी पड़ा हुआ था. 

मैने उसको बोल दिया था कि अब इसके साथ सेक्स मत करना जब तक ये अपने मुँह से ना कहे.

कुछ देर बाद वो उसको उसी कमरे में बंद कर आया अच्छी तरह से हाथ पैर बाँध कर,

उसका मुँह बंद करना भी ज़रूरी था सो एक पतला सा कपड़ा मुँह पर भी बाँध दिया जिससे साँस लेने में आसानी रहे.

उन दोनो को वहीं छोड़ कर में अपने घर चला आया, क्योंकि आस-पड़ोस वालों को भी शक्ल दिखाना ज़रूरी था, 

दूसरा, शहर में क्या गति विधियाँ चल रही हैं, वो भी पता लगाना ज़रूरी था. 

घर आकर फ्रेश हुआ, टीवी ऑन करके थोड़ा न्यूज़ रेफ्रेश की और फिर सो गया.

दिन भर की भागम-भाग से थकान भी थी, जल्दी नींद आ गयी.

सुबह जल्दी उठकर नित्य क्रिया करके, योगा- प्राणायाम किया, एनएसए को अबतक का अपडेट ईमेल के थ्रू दिया और सुबह की चाइ लेकर फार्म हाउस पहुँच गया. 

गनी का सेल फोन मेरे ही पास था, उसी पर ज़फ़्फेरुल्ला का कभी भी कॉल आ सकता था.

चाइ पीकर हम लोग आज के दिन में जो - जो काम करने थे उसका प्लान करने लगे. 

हमारा अनुमान था कि ज़फ़्फेरुल्ला डाइरेक्ट पाकिस्तान से इंडिया की फ्लाइट ले नही सकता, प्रोबबली वो पहले दुबई जाएगा और वहाँ से किसी दूसरे नाम से पासपोर्ट बनवाया होगा उसीपर इंडिया आएगा, 

अब इंटरनॅशनल फ्लाइट हमारे शहर तो आती नही हैं, तो वो पहले दुबई से मुंबई की फ्लाइट लेगा, फिर यहाँ की डोमेस्टिक फ्लाइट्स से आना चाहिए. 

अब समय वग़ैरह तो उसके फोन आने पर ही पता लगेगा सो उसके फोन का इंतजार करने के अलावा और कोई चारा नही था.

हमें बातों बातों मे 10 बज गये, कि तभी उसके फोन की रिंग बजने लगी.

मैने कॉल पिक की और गनी की आवाज़ में बोला- सलाम वेलेकम भाई ! क्या प्रोग्राम है..?

ज़फर - मे और असरफ़ दुबई पहुँच गये हैं, यहाँ से मुंबई की फ्लाइट है एक घंटे में 1:30 तक मुंबई फिर वहाँ से 2:30 बजे की फ्लाइट लेके 3:30 तक वहाँ पहुँचेंगे, तुम एर पोर्ट आ जाना हमें लेने.

मे - भाई मे तो इन शिकारों को छोड़कर कहीं नही जा सकता, मे अपने खास आदमियों को लेने भेज दूँगा, वो हिफ़ाज़त से आपको मेरे पास तक ले आएँगे..

ज़फ़रुल्ला थोड़ा गुस्से के स्वर में बोला… क्या एडा हो गया है तू, मे किसी और पर कैसे भरोसा कर सकता हूँ..? तुम्हें ही आना होगा.

मे – समझा करो भाई ! मे कोई रिस्क नही लेना चाहता, ऐसा करूँगा मे अपना ये सेल फोन उसको दे दूँगा, यहाँ से चन्द मिनटों का ही तो फासला है, आप उसको कॉल करके चेक कर लेना..

ज़फर - चल ठीक है ये आइडिया भी ठीक है…, फिर उसको खुदा हाफ़िज़ बोल कर कॉल कट कर दिया. 

हमने डिसाइड किया कि हम दो लोग उसको लेने जाएँगे, एक आदमी यहीं रहेगा, सब कुछ समय से हुआ तो 4 बजे तक ज़फ़रुल्ला और उसका साथी असरफ़ हमारी गिरफ़्त में होंगे और एक आतंकवादी संघटन एक तरह से ख़तम समझो.

पूरी प्लॅनिंग और रिपोर्ट एनएसए को भेज दी, उनका कन्फर्मेशन भी आ गया.

दोपहर का लंच लेके हमने वहीं पर थोड़ा आराम करने की सोची, मे थोड़ा सा उन दोनो मियाँ बीवी को चेक करना चाहता था, 

सो पहले गनी के रूम को खोल कर उसको देखा, उसकी हालत ख़स्ता थी, मुँह से पट्टी हटा कर पानी पिलाया और थोड़ा बहुत खाने को दिया.

उसको निपटा के, रुखसाना के पास गया तो उसकी हालत और ज़्यादा खराब मिली, रो रो कर आँखें सूज गयी थी, आँखों के कोरों से पानी बह रहा था, 

मुँह की पट्टी खोली तो वो बुरी तरह से सुबक्ती हुई बोली-

हमने कुछ पल तो साथ में बिताए थे ना ! कम-अज-कम उनको ही थोड़ा याद करके रहम कर लेते, 

कल से ना पेट में एक दाना गया है, ना एक घूँट पानी, इतने जालिम तो ना बनो..,!

मे - मैने तो तुम्हें खाने के लिए पुछा था, तुमने ही तो मना कर दिया था, अब इसमें मेरी क्या ग़लती है..? बोलो पहले खाओगी या पिओगी..?

रुखसाना - पहले मुझे पानी पिला दो, और थोड़ा टाय्लेट मे ले जाकर फ्रेश करवा दो फिर कुछ खाने को हो तो दे देना.

मैने उसे चेतावनी देते हुए कहा - कोई चालाकी मत करना, वरना मुझे तुम्हें शूट करने में एक मिनट भी नही लगेगा.

रुखसाना - मे जानती हूँ, अब यहाँ से तुम्हारी मर्ज़ी के बिना निकल नही सकती.

मैने उसे पानी पिलाया, वो 2-3 ग्लास पानी पी गयी, और फिर हाथ पैर खोलकर बाथरूम तक ले गया, आधे घंटे में वो फ्रेश होकर निकली.

फिर उसे खाना खिलाया, इसी में ढाई बज गया, उसको फिर से क़ैद करके, तय हुआ कि विक्रम को यहीं रुकना है, 

मे और रणवीर दोनो गाड़ी लेकर एर पोर्ट की तरफ निकल लिए.
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