Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
12-18-2018, 01:59 PM,
#21
RE: Kamukta Story बिन बुलाया मेहमान
बिन बुलाया मेहमान-8

गतान्क से आगे……………………

चाचा ने मेरी सलवार में हाथ डाल दिया. उसने पॅंटीस के अंदर भी हाथ सरका दिया और धीरे धीरे मेरी योनि की तरफ बढ़ने लगा. मेरी साँसे तेज चलने लगी. पहली बार गगन के शिवा कोई और मेरी योनि को इतनी नज़दीकी से छुने जा रहा था.

"रुक जाओ मैं कहती हूँ. कुछ तो शरम करो. गगन को पता चलेगा तो वो क्या सोचेगा."

"गगन को कुछ पता नही चलेगा. तुम बस मज़े लुटो."

"मुझे कोई मज़ा नही लूटना छोड़ो मुझे." मैने छटपटाते हुए कहा.

जब चाचा का हाथ मेरी योनि पर टिका तो मैं काँप उठी. चाचा ने मेरी योनि को दो उंगलियों से फैलाया और मेरी योनि को पंखुड़ियों को मसल्ने लगा.

मेरे शरीर में अजीब सी लहर दौड़ने लगी. मेरी टांगे थर थर काँप रही थी. जब चाचा ने मेरी योनि के भज्नासा (क्लाइटॉरिस) पर उंगली टिकाई तो मेरी हालत और ज़्यादा खराब हो गयी. मेरे पूरे शरीर में बीजली की लहरे दौड़ने लगी.

"मज़ा आ रहा है ना. क्या गगन खेलता है इस तरह तुम्हारी चूत के साथ जैसे मैं खेल रहा हूँ."

"नही. वो ऐसा कुछ नही करते. मुझे छोड़ दो वरना...आहह" बोलते बोलते मेरे मूह से सिसकी निकल गयी. मेरी योनि ने पानी छोड़ दिया था.

"बड़ी जल्दी पानी छोड़ दिया. बाते तो बड़ी बड़ी करती हो. देखो खुद अब कैसे मज़े लूट रही है तुम्हारी चूत."

"ये ज़बरदस्ती करवाया तुमने."

"ज़बरदस्ती चूत का पानी नही निकलवा सकता कोई."

"तुम एक नंबर के कामीने हो आहह."मैं चीन्ख पड़ी क्योंकि चाचा ने मेरी योनि में उंगली डाल दी थी. गीली होने के कारण उंगली बड़ी जल्दी अंदर घुस गयी थी.

"वाह क्या चिकनी चूत है तुम्हारी. मैने ठीक ही अंदाज़ा लगाया था. तुम्हारी चूत तुम्हारी गान्ड के जैसी ही कयामत है. अच्छा एक बात बताओ. हफ्ते में कितनी बार मारता है गगन तेरी चूत."

"तुम्हे उस से क्या मतलब उंगली बाहर निकालो अपनी."

चाचा ने मेरी योनि में हर तरफ अपनी उंगली घुमानी शुरू कर दी और बोला, "इतनी भी क्या जल्दी है अभी तो बस घुस्साई ही है."

फिर ना जाने चाचा ने उंगली के साथ क्या किया मैं बहुत ज़ोर से चिल्लाई और मेरी योनि ने फिर से पानी छोड़ दिया. मुझे समझ में नही आ रहा था कि ऐसा क्यों हो रहा है. जबकि मैं तो पूरी कोशिस कर रही थी कुछ भी फील ना करने की. मगर उसकी उंगली मेरी योनि में कुछ अजीब सा जादू कर रही थी.

चाचा ने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरे बायें उभार को थाम कर उसे मसल्ने लगा. अब चाचा का एक हाथ मेरे उभार पर था और एक हाथ मेरी योनि पर. मेरे नितंबो पर हल्का हल्का चाचा का लिंग महसूस हो रहा था. मैं इतनी मदहोश हो चुकी थी कि अब मैं वहाँ चुपचाप आँखे बंद किए खड़ी थी और चाचा मेरे पीछे खड़ा मनचाहे ढंग से मेरे अंगो से खेल रहा था.

डोर बेल बजी तो मैं होश में आई. मैने तुरंत चाचा को ज़ोर से धक्का दिया और वहाँ से भाग कर अपने बेडरूम में आ गयी. अंदर आते ही मैने कुण्डी लगा ली. मेरा दिल बहुत ज़ोर ज़ोर से धड़क रहा था.

अभी मैं संभली भी नही थी कि दरवाजे पर दस्तक हुई.

"निधि बेटी तुम्हारी कोई चिट्ठी आई है. तुम्हे हस्ताक्षर करने होंगे."चाचा ने बाहर से आवाज़ दी.

मैने दरवाजा खोला और बिना चाचा की तरफ देखे सीधा मुख्य द्वार की तरफ बढ़ गयी. मैने चिट्ठी लेकर साइन कर दिए. चिट्ठी लेकर मैं अपने बेडरूम की तरफ बढ़ ही रही थी कि चाचा ने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोला,

"छोड़ा ना पानी तेरी चूत ने आज फिर. तू सच में मज़े लूटती है मेरे साथ."

"तुम्हे तुम्हारे किए की सज़ा ज़रूर मिलेगी देहाती. बस देखते जाओ." उसका हाथ झटक कर मैं दौड़ कर अपने बेडरूम में घुस गयी.

"आज तुम्हारा पर्दाफाश कर दूँगी मैं गगन के सामने. बड़े बाल ब्रह्मचारी बने फिरते हो हा...." मैने मन ही मन सोचा.शाम को जब गगन घर आए तभी मैं अपने बेडरूम से बाहर निकली. मैं मन ही मन खुश हो रही थी की आज गगन के सामने चाचा का झूठा नकाब उतर जाएगा. ड्रॉयिंग रूम में जब कोई नही था तब मैने चुपचाप कॅमरा उठाया और कॅमरा लेकर टाय्लेट में चली गयी.

गगन को दिखाने से पहले मैं खुद रेकॉर्डेड क्लिप को देखना चाहती थी. मगर मुझे बहुत बड़ा झटका लगा. कॅमरा में ऐसा कुछ भी रेकॉर्ड नही हुआ था जिस से चाचा का पर्दाफास किया जा सके. दरअसल चाचा की छेड़खानी रेकॉर्ड होने से पहले ही मेमोरी कार्ड फुल हो गया था और रेकॉर्डिंग बंद हो गयी थी.

"ओह नो मुझे इतना कुछ सहना पड़ा पर इसमे कुछ भी रेकॉर्ड नही हुआ. अब फिर से वही सब सहना पड़ेगा." ये ख्याल आते ही मेरे तन बदन में बीजली की लहर सी दौड़ गयी. मैने खुद को बहुत कोसा क्योंकि मेरा शरीर पता नही क्यों फिर से चाचा के हाथो का खिलोना बनने के लिए तैयार था.

"चाचा को फाँसते फाँसते मैं कही खुद ही ना उसके जाल में फँस जाउ. उसकी छेड़खानी याद आते ही अजीब सी हलचल होती है तन बदन में. ऐसा लगता है जैसे मुझे ये सब अच्छा लगता है."

"नही नही मुझे ये सब अच्छा कैसे लग सकता है. वो बदसूरत देहाती मुझे बिल्कुल अच्छा नही लगता."

"पर मेरे अंग प्रत्यंग उसके हाथो के इशारे पर नाचते हैं. आज फिर से उसने मेरी योनि को पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया जबकि मैं खुद को संभालने की पूरी कॉसिश कर रही थी. बहुत समझा रही थी मैं अपनी योनि को की ऐसा कुछ नही करना है. पर मेरी एक नही चली और फिर से मेरी पॅंटीस गीली हो गयी. सच यही है कि मुझे ये सब अच्छा लगता है."

"नही हो सकता ऐसा. मुझे ये सब अच्छा बिल्कुल नही लग सकता. उसने ज़बरदस्ती करवाया मुझसे सब कुछ."
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