Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
12-17-2018, 02:24 AM,
RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
सुबह :

सुबह का उजाला घर के आँगन में अपने पैर पसार रहा था। अंजू ने अपनी आँखें धीरे धीरे खोलीं। आज बहुत ही अरसे के बाद उसने अच्छे से नींद ली थी – यह बात उसको भी समझ में आ रही थी। कल से आज वह काफी तरो ताज़ा महसूस कर रही थी। उसने जम्हाई भरी, अंगड़ाई ली, और फिर अचानक ही उसको कल रात के सपने की बातें याद आ गईं। उसको स्वयं पर बहुत ही लज्जा आई – अपना पति होते हुए भी ऐसे ऐसे सपने आते हैं..! लेकिन जाने क्यों वो पुरुष भी कोई अपना सा ही लग रहा था। उसने कुंदन को आँगन से इधर उधर होते हुए देखा। वो मुस्कुराई – कल जब कुंदन उसके स्तनों का पान कर रहा था तो उसको बहुत ही आनंद आया। वो भी कैसे नटखट बच्चों के जैसे मचल मचल कर पी रहा था।

कल शाम को कुंदन ने अंजू को बताया की उसकी उम्र सोलह साल की नहीं है.. बल्कि अंजू के बराबर ही है.. अंजू थोड़ा निराश हो गयी – अगर सोलह की उम्र होती, तो कुछ उम्मीद भी थी, लेकिन अभी तो... खैर!

उसके मन में एक बात उठी की उन दोनों की पहली रात कैसी रही होगी? कैसे कुंदन ने उसके कपड़े उतारे होंगे, और कैसे उसके साथ सम्भोग किया होगा! 

कुंदन ने अंजू को देखा तो मुस्कुराया। एक बार उसके मन में आया की अंजू से पूछे की ये नीलू कौन है.. फिर उसको याद आया की अंजू को तो कुछ याद ही नहीं.. क्यों अनायास ही ऐसी बातें छेड़ना? कहीं लेने के देने पड़ गए तो!

“ठीक से सोई?” उसने पूछा।

“हाँ.. आप क्या कर रहे हैं?”

“नाश्ता बना रहा हूँ... काम पर भी तो जाना है..”

“ओ माँ! कितनी देर सोती रही मैं.. और आपने जगाया क्यों नहीं?”

“अरे कोई बात नहीं.. पहले ठीक हो जाओ.. ये सब तो होता रहता है..”

“नहीं नहीं.. अब से खाना मैं ही बनाउंगी..”

“ठीक है.. बना लेना.. लेकिन अभी तो आराम से रहो न..”

“समय कितना हो रहा है..”

“साढ़े नौ हो रहे हैं..”

“बाप रे!” फिर कुछ सोच कर, “आपने... खा लिया?”

“हाँ.. बस अभी अभी.. कुछ देर में निकल जाऊँगा..”

“अच्छा..” अंजू ने कुछ बुझे हुए स्वर में कहा। अकेला रहना भला किसको पसंद आएगा? “कब आयेंगे वापस?”

“शाम को..”

“ओह!”

“कहो तो न जाऊं..” कुंदन ने रोमांटिक बनने की असफल एक्टिंग करी।

अंजू मुस्कुराई, “कुछ देर में चले जाइए?”

“हम्म.. देर में चला तो जाऊं.. लेकिन उसके बदले में मुझे क्या मिलेगा?”

“मेरी गोदी में सर रख कर लेटेंगे आप?” अंजू मुस्कुराई। कुंदन भी मुस्कुराया।

“और?”

“पहले रखिए तो सही..”

कुंदन बिस्तर पर आ कर अंजू के बगल आ कर उसकी गोदी में सर रख कर लेट गया। कुंदन का शिश्न उत्तेजित होने लगा – लेकिन फिर भी वो इस समय काफी आराम महसूस कर रहा था। आश्चर्यजनक रूप से उसको किसी भी तरह का उतावलापन नहीं महसूस हुआ। अंजू बड़े प्यार से कुंदन के सर और चेहरे को सहला रही थी। कुंदन को ठीक वैसा महसूस हुआ, जैसा की अगर वो अपनी माँ की गोदी में सर रखता! उतना ही आराम! उतना ही चैन! उतनी ही कोमलता!

‘बढ़िया!’

सुख और आनंद से उसकी आँखें बंद हो गईं, जो कपडे की हलकी सरसराहट की आवाज़ के बाद ही खुलीं। अंजू ने मैक्सी के सामने के बटन खोल दिए थे, और कुंदन को स्तनपान करवाने के लिए अपने स्तन स्वतंत्र कर दिए थे। कुंदन ने देखा – अंजू के आदर्श स्तन और चूचक उसको निमंत्रण दे रहे थे। उसके चूचक उत्तेजनावश कड़े हो गए थे, मानो कह रहे हों – ‘सैयां! आ जाओ.. हमें अपने मुँह में ले लो.. और चूसो!’

कुंदन ने वही किया। अंजू समझ गयी की आधे घंटे का प्रोग्राम तो बन गया। कल की चुसाई के बाद उसके चूचक थोड़े से पीड़ित थे, लेकिन अकेला रहने से यह ज्यादा अच्छा यह था की वो यह पीड़ा बर्दाश्त कर ले। कुंदन भी पूरी सतर्कतापूर्व चूस रहा था, जिससे अंजू को चोट न लगे। कुछ देर बाद जब उसने दूसरे स्तन को मुँह में लिया, तब अंजू के मुँह से एक कराह निकली।

‘क्या उसको दर्द हुआ?’ कुंदन ने दूध पीना छोड़ कर एक प्रश्नवाचक दृष्टि अंजू पर डाली। वो आँखें बंद किए सिसकारी भर रही थी। जब अंजू ने देखा की कुंदन ने पीना छोड़ दिया, तो उसने आँखों में ही वापस पूछा, ‘क्या हुआ?’

कुंदन ने ‘कुछ नहीं’ में सर हिलाया, और वापस दूध पीने में लग गया। उसी के साथ उसने अंजू की मैक्सी भी उसके कन्धों से नीचे सरका दी – अब वो ऊपर की और नंगी बैठी हुई थी। और कुंदन बिना झिझक के अंजू के स्तन पी रहा था। जब उसका मन भर गया तो अंत में वो अलग हुआ। अलग हो कर वो अंजू की गोदी से उठा, और उसको बिस्तर पर लिटाने लगा। लिटाने साथ साथ ही वो उसकी मैक्सी को नीचे की तरफ खींचने लगा जिससे वो पूरी नंगी हो जाय। अंजू को शर्म आई, लेकिन उसने मना नहीं किया।

“छुन्नी के साथ खेलोगी?”

अंजू शर्माती हुई मुस्कुराई।

“अपनी चूत के साथ खेलने दोगी?”

‘चूत?’ यह तो सुना हुआ शब्द है.. “वो क्या होता है?”

“यह..” कुंदन ने अंजू की योनि की तरफ इशारा किया। अंजू ने जांघे सिकोड़ लीं।

कुंदन अपनी पैंट उतार रहा था। अंजू देख रही थी की आगे क्या होने वाला है। कुछ ही देर में उसका भिन्डी के आकर का शिश्न मुक्त हो गया। वाकई अभूतपूर्व घटना थी की अभी तक उसके लिंग ने वीर्य नहीं छोड़ दिया था। कुंदन ने अंजू का हाथ पकड़ कर अपने छुन्नू पर रख दिया। अंजू ने अपनी उंगलियाँ उसके इर्द गिर्द लपेट लीं।

“कितना गरम है..”

कुंदन गर्व से मुस्कुराया।

“रुको.. आज तुम्हारी चूत के साथ खेलता हूँ.. बहुत दिन हो गए..” उसने प्रभाव के लिए आगे जोड़ा।

कह कर वो अंजू की घने बालों के अन्दर छुपी योनि की दरार पर अपनी उंगली फिराने लगा। अंजू नख-शिख तक कांप गयी, और कुंदन को कामुक लालसा से देखने लगी। कुछ देर यूँ ही दरार पर उंगली चलाने के बाद उसने अपनी उंगली वहां पर दबाई – पट से अन्दर जाने का रास्ता खुल गया। कुंदन मुस्कुराया और अपनी तर्जनी को अंजू की योनि के भीतर डालने लगा। उधर अंजू भी अपनी जांघ खोलने लगी – जैसे उसको अन्दर आने के लिए और जगह दे रही हो..

उंगली पूरी अन्दर जाने के बाद उसने धीरे धीरे ही उसको बाहर निकाला और वापस अन्दर बाहर करने लगा। उसी ताल में अंजू भी अपने नितम्ब हलके हलके उछालने लगी। 

कुंदन अंजू के पास आया, और उसके कान में फुसफुसाते हुए बोला, “इसको कहते हैं उंगल चुदाई..” और उंगली अन्दर बाहर करने का क्रम करते हुए वो उसके स्तन भी चूसने लगा। अंजू के अन्दर का ज्वार बहुत दिनों से उठा हुआ था। कुंदन ने उंगली डाल कर बस जैसे किसी बाँध को तोड़ दिया। दो मिनट के भीतर ही अंजू यौन उत्तेजना के चरमोत्कर्ष पर पहुँच गयी... उसका शरीर किसी अनियंत्रित यंत्र जैसे कम्पित होने लगा।

उसको यूँ स्खलित होते देख कर कुंदन चाह कर भी खुद पर नियंत्रण न रख सका, और उसके कुछ कर पाने से पहले ही उसका वीर्य निकल पड़ा, और सामने अंजू के सपाट पेट पर जा कर गिरा। दो तीन विस्फोटों में वह खाली हो गया। अंजू हाँफते हुए अपने पेट पर पड़े सफ़ेद रंग के तीन छोटे छोटे तलैयों को देखने लगी – और उनको अपनी हथेली से पोंछने लगी।

कुंदन बोला, “सम्हाल कर रानी! हाथ धो लेना पहले.. कहीं मेरे पानी से सना हाथ अपनी चूत पर लगा लिया तो गाभिन हो जाओगी.. समझी?”

अंजू ने हामी में सर हिलाया, और बिस्तर से उठा कर हाथ धोने चल दी। नंगी ही।

कुंदन अपनी किस्मत पर खुद ही रश्क करने लगा।

कुंदन अपनी तरफ से पूरा प्रयास कर रहा था की अंजू के बारे में उसके किसी पडोसी को न पता चले। इसलिए उसने अंजू को जैसी जैसी हिदायदें दी थीं, उनको सुन कर वो खुद भी अचरज में पड़ गयी। वो अगर इस घर की मालकिन थी, तो क्यों नही वो छत पर जा सकती थी? क्यों नहीं वो अपने कपड़े धूप में सुखा सकती थी? क्यों नहीं वो घर में बिना खट-पट के रह सकती थी.. इत्यादि! और सबसे बड़ी बात की कुंदन घर के बाहर ताला लगा कर क्यों जाय? अगर उसको घर से बाहर निकलने की ज़रुरत पड़ी तो? लेकिन उसको कोई उत्तर नहीं मिला। अंजू ने भी कोई अधिक प्रतिवाद नहीं किया – कुछ तो सोचा होगा कुंदन ने! 

नहा धो कर उसने नाश्ता किया, और फिर दवाई खाई। अकेले बंद घर में वो क्या करती भला? जल्दी ही वो फिर से सो गयी। उसको गहरी नींद आई, या उथली यह तो नहीं कहा जा सकता, लेकिन उसको अत्यंत सजीव से सपने आये। और उन सपनो ने फिर से वही पुरुष विभिन्न अवस्थाओ में दिखा – कभी उसको अपनी गोद में बैठाए, कभी सूट पहने, कभी कार चलाते, कभी नग्न, और कभी उसके साथ रमण करते! 

“रूद्र?” अंजू ने ऊंची आवाज़ में कहा, और नींद से जाग उठी। उसका शरीर पसीने पसीने हो गया था, और एक कम्पन भी हो रहा था। 

‘क्या नाम था उसका?’ अंजू को वापस याद नहीं आया।

कुछ देर में उसको घर के दरवाज़े पर आहट हुई। कुंदन वापस आ गया था, और घर का दरवाज़ा खोल रहा था। अंजू ने घड़ी पर नज़र डाली – शाम के चार बज रहे थे।

अन्दर आते हुए उसने बहुत सावधानीपूर्वक दरवाज़ा वापस बंद किया और फिर अंजू को अपनी बाहों में भर लिया। ऐसा करते ही अंजू उसके आलिंगन में सिमट गयी – उधर कुंदन अंजू के गालो, होंठ और माथे पर अपने चुम्बन की छाप लगाने लगा। कुंदन शायद दिन भर इसी क्षण के सपने संजो रहा था। उस पर इस समय वासना का तूफ़ान परवान चढ़ रहा था –उसके हाथ अंजू के शरीर की टोह लेने में व्यस्त थे – वो कभी अंजू के स्तनों को मसलता, तो कभी उसके नितम्बों को! अंत में उसके हाथ अंजू के चूतड़ों पर जम गए।

“अंजू रानी! आज मैं रुक नहीं पाऊँगा! आज मुझे तेरे अन्दर जाना ही है..” चुम्बनों के बीच में कुंदन ने अंजू को अपने इरादों से अवगत कराया। 

उसकी बात पर अंजू ने एक पल को सोचा, और फिर कुंदन के एक हाथ को अपने एक स्तन पर रख दिया। जोश में आ कर कुंदन अंजू को फिर से चूमने लगा। अंजू ने आज शलवार कुरता पहना हुआ था। उसने जल्दी ही अंजू का कुरता उतार दिया – उसने अन्दर कुछ नहीं पहना हुआ था। फिर उसने अंजू के शलवार का नाड़ा भी ढीला कर दिया। 

शलवार उसके कूल्हों से सरक कर नीचे गिर गया।

उसका ऐसा नज़ारा देख कर कुंदन काफी आवेश में आ गया। आज दूकान पर जाते ही उसने किसी से अव्वल गुणवत्ता का शिलाजीत खरीद कर उसका सेवन किया था। अब उसका प्रभाव हो, या न हो, लेकिन इस समय कुंदन को विश्वास भी था, और आत्म-विश्वास भी। लिहाजा, उसका अब तक का प्रदर्शन, उसके लिए अत्यंत संतोषजनक था। अंजू ने चड्ढी पहन रखी थी – गुलाबी चड्ढी पहने हुए, और अन्यत्र पूर्ण नग्न अंजू का रूप बहुत सुहाना लग रहा था। वो सचमुच काम की देवी लग रही थी। उससे रहा नहीं जा रहा था – आज तो बस कर ही डालना है!
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