RE: Chodan Kahani घुड़दौड़ ( कायाकल्प )
मैंने उसकी योनि से हाथ हटा कर उसके कोमल स्तन पर रख दिया और कुछ क्षण उसके निप्पल से खेलता रहा। फिर, मैंने अधीर होकर रश्मि को अपनी तरफ भींच लिया। मेरे ऐसा करने से रश्मि के शरीर में हलचल हुई, लेकिन मैंने उसको छोड़ा नहीं। रश्मि अब तक जाग चुकी थी - लेकिन सूरज की रोशनी, जो कमरे के सामने के पेड़ की पत्तियों से छन छन कर अन्दर आ रही थी, उसकी आँखों को चुंधिया रही थीं, और उसकी आँखें बंद हो रही थीं। मैं उसके इस भोलेपन और प्रेम से अभिभूत हो गया था - मेरे लिए वह निश्छल लालित्य की प्रतिमूर्ति थी। एकदम परफेक्ट!
मैंने अपनी पकड़ ढीली कर दी और हाथ हटा लिया, जिससे वह अपने हाथ पाँव हिला सके और नींद से जाग सके। रश्मि ने सबसे पहले अपना सर मेरी तरफ घुमाया - मैंने देखा की उसकी आँखों में पल भर में कई सारे भाव आते गए - आश्चर्य, भय, परिज्ञान, लज्जा और प्रेम! संभवतः उसको कल रात के कामोन्माद सम्बन्धी अनुभव याद आ गए होंगे। उसके होंठों पर एक मीठी मुस्कान आ गयी।
"गुड मोर्निंग, हनी!" मैंने दबी हुई आवाज़ में कहा, "सुबह हो गयी है ..."
रश्मि ने थोड़ा उठते हुए अंगडाई ली, इससे ओढ़ा हुआ कम्बल उसके ऊपर से सरक गया, और एक बार फिर से रश्मि के स्तन नग्न हो गए। मेरी दृष्टि तुरंत ही उन कोमल टीलों की तरफ चली गयी। उसने झटपट अपने शरीर को ढकना चाहा, लेकिन मैंने उसके हाथ को रोक दिया और अपने हाथ से उसके स्तन को ढक लिया और उसको धीरे धीरे दबाने लगा।
"हमारे पास कुछ समय है ..." मैंने कहा - मेरी आवाज़ और आँखों में कामुकता थी। मेरा लिंग उसके शरीर से अभी भी लगा हुआ था, लिहाज़ा वह उसके कड़ेपन को अवश्य ही महसूस कर पा रही थी।
रश्मि समझते हुए मुस्कुराई, "जी .... आपने कल मुझे थका दिया ... अभी .... थोड़ा नरमी से करियेगा? वहां पर थोड़ा दर्द है ..."
तब मुझे ध्यान आया ... थोड़ा नहीं, काफी दर्द होगा। कल उसने पहली बार सेक्स किया है, और वह भी ऐसे लिंग से। निश्चित तौर पर उसकी हालत खराब होगी। ये बेचारी लड़की मुझे मना नहीं कर सकेगी, इसलिए ऐसे बोल रही है। ऐसे में मुझे हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए। लेकिन, मेरा अभी सेक्स करने का बहुत मन है ... और हर बार लिंग से ही सेक्स किया जाए, यह कोई ज़रूरी नहीं। मैंने सोचा की मैं उसके साथ मुख-मैथुन करूंगा, और अगर लकी रहा, तो वह भी करेगी। देखते हैं।
"ओह गॉड! आई वांट यू सो मच!" कहते हुए मैं रश्मि के ऊपर झुक गया और अपने होंठो को उसकी गर्दन से लगा कर मैंने रश्मि को चूमना शुरू किया - एक पल को वह हलके से चौंक गयी, लेकिन फिर मेरे प्रत्येक चुम्बन के साथ उठने वाले कामुक आनंद का मज़ा लेने लगी। मैंने अपनी जीभ को रश्मि के मुख में डालने का प्रयास किया तो रश्मि ने भी अपना मुख खोल कर पूरा सहयोग दिया। हमारी जिह्वाओं ने एक अद्भुत प्रकार का नृत्य आरम्भ कर दिया, जिसका अंत (जैसी मेरी उम्मीद थी) हमारे शरीर करते। रश्मि ने अपनी बाहें मेरी गर्दन के इर्द-गिर्द डाल कर मुझे अपनी तरफ समेट लिया और मैंने उसको कमर से थाम रखा था। भाव प्रवणता से चल रहे हमारे चुम्बन ने हम दोनों में ही यौनेच्छा की अग्नि पुनः जला दी।
उसकी गर्दन को चूमते हुए मैं नीचे की तरफ आने लगा और जल्दी ही उसके कोमल स्तनों को चूमने लगा। मुझे उनको देख कर ऐसा लगा की वो मेरे ही प्रेम और दुलार का इंतज़ार कर रहे थे। यहाँ पर मैंने काफी समय लगाया - उसके निप्पलों को अपने मुंह में भर कर मैंने उनको अपनी जीभ से सावधानीपूर्वक खूब मन भर कर चाटा, और साथ ही साथ दोनों स्तनों के बीच के सीने को चूमा। मेरी आवभगत का प्रभाव उसके निप्पलो ने तुरंत ही खड़े होकर प्रदर्शित करना शुरू कर दिया। कुछ और देर उसके स्तनों को दुलार करने के बाद, मैंने अनिच्छा से और नीचे बढ़ना आरम्भ कर दिया। उसके निप्पल्स को चूमना और चूसना सबसे रोमांचक अनुभव था। मेरा अगला निशाना उसका पेट था, जिसको चूमते हुए मैं अपने चेहरे को उस पर रगड़ता भी रहा।
खैर, जैसा विधि का विधान है, मैं कुछ ही देर में उसके पैरों के बीच में पहुँच गया। मेरे चेहरे पर, मैं उसकी योनि की आंच साफ़ साफ़ महसूस कर रहा था। मैंने उसकी दोनों जांघो को फैला दिया, जिससे उसकी योनि के होंठ खुल गए। उसकी योनि के बाहर का रंग उसके निप्पल के जैसा ही था, लेकिन योनि के अन्दर का रंग 'सामन' मछली के रंग के जैसा था। रश्मि की योनि के दोनों होंठ, उसके जीवन के पहले रति-सम्भोग के कारण सूजे हुए थे। मैंने उन्ही पर अपनी जीभ का स्नेह-लेप लगान शुरू कर दिया, और बहुत ही धीरे-धीरे अन्दर की तरफ आता गया। मुझे रश्मि के मन का प्रावरोध कम होता हुआ सा लगा - उसने मेरे चुम्बन पर अपने नितम्बों को हिलाना चालू कर दिया था - और मैं यह शर्तिया तौर पर कह सकता हूँ की उसको भी आनंद आ रहा था। कुछ देर ऐसे ही चूमते और चाटते रहने के बाद रश्मि के कोमल और कामुक कूजन का स्वर आने लग गया, और साथ ही साथ उसकी योनि से काम-रस भी रिसने लगा। इसको देख कर मुझे शक हुआ की संभवतः उसका रस मेरे वीर्य से मिला हुआ था। लेकिन मुझे कोई परवाह नहीं थी - वस्तुतः, यह देख कर मेरा रोमांच और बढ़ गया। मैंने उसकी जांघें थोड़ी और खोल दी, जिससे मुझे वहां पर लपलपा कर चाटने में आसानी रहे।
मेरी जीभ ने जैसे ही उसकी योनि के अन्दर का जायजा लिया उसकी हलकी सी चीख निकल गयी, "ऊई माँ!"
रश्मि के मज़े को देख कर मैंने अपने काम की गति को और बढ़ा दिया - अब मैं उसकी पूरी योनि को अपने मुंह में भर कर चूसने लगा, और अपने खाली हाथों से उसके स्तनों और निप्पलों को दबाने कुचलने लगा। जब उसके निप्पल दुबारा खड़े हो गए, तब मैंने अपने हाथो को वहां से हटा कर रश्मि के नितम्ब को थाम लिया। फिर धीरे धीरे, मैंने दोनों हाथों से उसके नितंबों की मालिश शुरू कर दी। मेरा मुंह और जीभ पहले से ही उसकी योनि पर हमला कर रहे थे। रश्मि की तेज़ होती हुई साँसे अब मुझे सुनाई भी देने लग गयी थी।
रश्मि धीरे से फुसफुसाई, "धीरे .. धीरे ..." लेकिन मेरी गति पर कोई अंकुश नहीं था … "आअह्ह्ह्ह! प्लीज! बस ... बस ... अब और बर्दाश्त नहीं कर सकती ...."
प्रत्यक्ष ही है, की यह सब रश्मि के लिए काफी हो चुका था। वह कल रात की गतिविधियों के फलस्वरूप तकलीफ में थी। फिर भी मैंने अभी बंद करना ठीक नहीं समझा - लड़की अगर यहाँ तक पहुंची है, तो उसको अंत तक ले चलना मेरी जिम्मेदारी भी थी, और एक तरह से कर्त्तव्य भी। मेरे हाथ इस समय उसके नितम्बो के मध्य की दरार पर फिर रहे थे। मैंने कुछ देर तक अपनी उंगली उस दरार की पूरी लम्बाई तक चलाई - मन तो हुआ की अपनी उंगली उसकी गुदा में डाल दूँ - लेकिन कुछ सोच कर रुक गया, और उसकी योनि को चूसने - चाटने का कार्य करता रहा।
अब रश्मि के मुख से "आँह .. आँह .." वाली कामुक कराहें निकल रही थी। मानो वह दीन-दुनिया से पूरी तरह से बेखबर हो। अच्छे संस्कारों वाली यह सीधी-सादी लड़की अगर ऐसी निर्लज्जता से कामुक आवाजें निकाले तो इसका बस एक ही मतलब है - और वह यह की लोहा बुरी तरह से गरम है - चोट मार कर चाहे कैसा भी रूप दे दो। पहले तो मेरा ध्यान बस मुख-मैथुन तक ही सीमित था, लेकिन अब मेरा लक्ष्य था की रश्मि को इतना उत्तेजित कर दूं, की सेक्स के लिए मुझसे खुद कहे।
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