Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
12-10-2018, 01:53 PM,
#5
RE: Porn Hindi Kahani रश्मि एक सेक्स मशीन
raj sharma stories

रश्मि एक सेक्स मशीन पार्ट -4
गतान्क से आगे.....


मैं ठिठक कर उस घोड़े को अस्चर्य से देखने लगी. मुझे असमंजस मे देख कर दोनो बहूदे तरीके से हँसने लगे.



“ तूने पहले कभी घुड़सवारी की है? आअज तुझे इस घोड़े की सवारी कराएँगे. जिंदगी भर कभी ऐसी घोड़े की सवारी दोबारा करने को नही मिलेगी तुझे. खूब जम कर सवारी करना. जिससे तेरी चूत की भूख ख़त्म हो जाए”



उन्हों ने छत से लटकती रस्सियों से मेरे दोनो हाथ बाँध दिए. दोनो रस्सियों के बीच एक डंडा बँधा था जिससे रस्सियाँ एक दूसरे से लगभग तीन फुट की दूरी पर रहें.



उन रस्सियो के दूसरे सिरे एक गिरारी से होकर दूसरी ओर एक खूँटे से बँधे थे. तीसरा आदमी जो उन दोनो का बॉस लग रहा था उठ कर उन रस्सियों को खींचने लगा फल स्वरूप मेरे हाथ छत की ओर उठ गये और मैं पंजो पर खड़ी हो गयी. कुच्छ और खींचते ही मेरे पैर ज़मीन से उपर उठ गये.



“छ्चोड़ दो ऊवू क्या कर रहे हो. ऊऊहह…….” वो आदमी रस्सियों को लगातार खींचता रहा और मेरा जिस्म उपर उठता चला गया. मेरे पास खड़े दोनो ने मेरी टॅंगो को पकड़ कर अलग कर दिया. मैं उनकी हरकतों का मतलब समझ कर बुरी तरह से काँप उठी. मुझे लगा शायद कल का सवेरा मेरे नसीब मे नही है.



दोनो मुझे खींचते हुए उस घोड़े के पास ले आए.



“हे भगवाअन मुझे बचाओ. मैं मर जौन्गीईई……..ऊऊओ नहियीई ऐसा मत करना. प्लीईएज मैं सबको खुश कर दूँगी. मुझे माआफ़ कार दो.” मैं रोने लगी.



उन लोगों ने मेरी परवाह किए बिना मेरी दोनो टाँगों को फैला कर मुझे घोड़े के उपर स्थित कर के छत से बँधी रस्सी को धीरे धीरे ढीला करने लगे. मैं नीचे आती जा रही थी. कुच्छ देर बाद उन्हों ने मुझे हवा मे ही रोक कर उस घोड़े को मेरे नीचे इस तरह सेट किया कि उसकी पीठ पर लगा वो लकड़ी का टुकड़ा मेरी दोनो जांघों के बीच था.



मेरा जिस्म वापस नीचे आने लगा. मैने घबराहट मे अपनी आँखें बंद कर ली और आगे होने वाले दरिंदगी की पराकाष्ठा का इंतेज़ार करने लगी. मैं अपनी टाँगो को सिकोड़ने की पूरी ताक़त से कोशिश कर रही थी. मगर दो मजबूत मर्द के सामने मेरी क्या चलती?



कुच्छ ही देर मे मेरी योनि को किसी ठंडी चीज़ ने च्छुआ. मैं बुरी तरह डर गयी थी. कुच्छ उंगलियों ने मेरी योनि की फांकों को अलग कर के मेरी योनि को चौड़ा किया. मेरे झूलते बदन को इस तरह सेट किया की वो लकड़ी का टुकड़ा मेरी योनि की खुली फांकों के बीच था. अब वो मुझे इस अवस्था मे रख कर एक दूसरे को पल भर के लिए देखे फिर तीनो ने अपने हाथों मे थमी चीजोंको छ्चोड़ दिया. मेरी दोनो टाँगे फ्री होते ही मैने उन्हे सिकोड़ने की कोशिश कि मगर तब तक देर हो चुकी थी. तीसरे आदमी के द्वारा मुझे हवा मे लटकाए हुए रस्सियों को छ्चोड़ देने की वजह से मेरे जिस्म का पूरा वजन नीचे की ओर पड़ा और मैं उस लकड़ी के उपर के सिरे पर दो पल टिकी रही . तीसरे ही पल वो लकड़ी का खंबा मेरी चूत को चीरता हुया अंदर घुसता चला गया. मेरे जिस्म अपने वजन से नीचे आने लगा और मैं दर्द से चीखने लगी. चीखते चीखते मुझ पर बेहोशी छाने लगी तो पास खड़े आदमियों मे पानी के झपके देकर मुझे होश मे ला दिया.



मेरा जिस्म तभी रुका जब वो लकड़ी का गुल्ला पूरी तरह मेरी चूत मे धँस नही गया. मेरे पैर अब भी ज़मीन्को नही छ्छू पाए थे. काश मेरे पैर ज़मीन को छ्छू जाते तो पैरों का सहारा पाकर मैं अपनी योनि को उस गुल्ले से निकाल पाती.



ऐसा लग रहा था मानो मेरी योनि को फाड़ कर रख दिया हो. खून की एक पतली धार मेरी योनि से रिस्ते हुए घुटने की तरफ बढ़ रही थी और मैं दोबारा बेहोश होने लगी मगर एक आदमी ने लाकर एक बाल्टी पानी मेरे सिर पर उधेल दी. पानी इतना ठंडा था की मेरे दाँत बजने लगे.



मैं उस पल को कोस रही थी जब मैने उच्छल उच्छल कर इस प्रॉजेक्ट को अपने हाथ मे लिया. अगर पहले इस टॉर्चर के दसवें हिस्से का भी पता होता तो मैं सपने मे भी यहाँ नही आती. ये तो नॅडलाइट्स नही आदमी की खाल मे छिपे दरिंदे थे.



तीनो मुझे उस अवस्था मे खड़ा रख कर आगे क्या किया जाय ये सोच रहे थे कि एक आदमी अंदर आया और बैठे हुए आदमी के कानो मे कुच्छ कहा.



“चल इसे छ्चोड़… “ दोनो ने एक पल अस्चर्य से उसकी तरफ देखा. “ साले जो बोलता हूँ जल्दी कर वरना इस घोड़े की अगली सवारी तुम दोनो करोगे.” उसके इतना कहते ही दोनो किसी कठपुतली की तरह मेरी ओर बढ़े, “ उतार इसे घोड़े पर से.” दोनो ने मुझे सहारा देकर उस घोड़े से उतार दिया. मेरी टाँगे मेरे जिस्म का बोझ सम्हाले नही रख सकी और मैं वहीं फर्श पर ढेर हो गयी. मेरे जिस्म मे कोई हलचूल नही थी. दोनो आदमी उस टेंट से निकल गये



मैं ज़मीन पर पड़े पड़े सूबक रही थी. तीसरा आदमी अब भी उसी तरह मेरे सामने खड़ा हुया था. उसने अपने बूट की एक लटजोरदार ठोकर मेरे नितंबो पर मारी. मैं दर्द से बिल्बिलाते हुए चित हो गयी जिससे मेरे नितंब ज़मीन की तरफ हो कर उसके मार से बच जाएँ. मगर अगले ही पल उसके बूट की एक और ठोकार मेरे जांघों के बीच मेरी योनि के उपर पड़ी. मैं दर्द से दोहरी हो गयी.



“म्‍म्माआअ……मुझे मत मरूऊओ….प्लीईएसस” मैं रोने लगी थी.



“चल अब नाटक बंद कर और उठ कर कपड़े पहन ले. या इसी लिबास मे जाना है तंगराजन जी के पास.”



इतना सुनना था कि मेरे निढाल जिस्म मे एक अजीब सी स्फूर्ति भर गयी. मैं उठी और उठ कर अपने कपड़े ढूँढने लगी. कपड़े उस टेंट के एक कोने पर पड़े हुए मिले. मैं अपने कपड़े पहन कर उस आदमी के सामने आकर खड़ी हुई. सारे कपड़े मिल गये नही मिला तो मेरी पॅंटी. मेरी पॅंटी को पूरे टेंट मे छान मारा मगर वो कहीं नही मिला. शायद किसीने उसे उठा कर अपने पास रख ली हो किसी यादगार के रूप मे. मैने बिना पॅंटी के ही घाघरा पहन लिया.



“आ मेरे साथ.” कह कर वो आदमी उस टेंट से बाहर निकाला. मैं भी उसके पीछे पीछे हो ली. उसने अलग थलग बने एक टेंट की ओर इशारा किया.



“वहाँ बाथरूम है. जा और जाकर अपना हुलिया ठीक कर. बॉस के सामने जाना है तो कुछ बन संवर के तो जा. नही तो वो तुझे कोई ऐसी वैसी महिला समझ बैठेगा.” वो आदमी जो इतनी देर से मुझसे इतनी बुरी तरह पेश आ रहा था. जिसके हावभाव से लग रहा था कि आज मुझे जिंदा नही छ्चोड़ेगा. अब वो एक दम ही शांत नज़र आ रहा था.



मैने अंदर जा कर देखा की फर्र्स की जगह वहाँ एक पत्थर का स्लॅब बिच्छा हुआ था और पास मे कुच्छ बल्टियों मे पानी रखा था. टेंट की एक दीवार पर रस्सी से एक टूटा फूटा आईना लगा था. मैने उस आईने मे अपने अक्स को देख कर पहले पानी से मुँह धोया फिर अपने बॉल संवारे. अपने सामानो से निकाल कर चेहरे पर हल्का सा मेकप किया और फिर के साथ लाई एक स्किन कलर की लिपस्टिक को होंठों पर फेरा. उसके बाद एक नज़र अपने कपड़ों पर दौड़ाई. वैसे तो सब ठीक ही था बस कुच्छ सलवटें पड़ गयी थी. मैने अपने बदन पर नज़र डाली. कई जगह मसले जाने से नीले नीले निशान पड़ गये थे. स्पेशली मेरी चूचियो को तो इन लोगों ने बड़ी बुरी तरह मसला था. ब्रा के कप्स ठीक करते हुए भी दर्द हो रहा था.



मैं जब वहाँ से बाहर निकली तो उस आदमी को तब भी मेरा इंतेज़ार करते हुए पाया. तब शाम हो रही थी. इस घने जंगल मे रात को यही रुकना पड़ेगा. तंगराजन कब मिलेगा क्या पता. और मिलने के बाद भी उसका इंटरव्यू लेना है. पता नही वो इसके लिए राज़ी भी होगा या नही. यही सब सोचते सोचते हुए मैं उस आदमी के पीछे पीछे चल दी. वो मुझे लेकर बीच मे बने उस मकान के अंदर घुसा. बाँस के बने उस मकान मे सारी आधुनकि सुविधाएँ उपलब्ध थी.



सामने एक बैठक था. मुझे लेकर वो वहीं रुक गया. कुच्छ देर बाद अंदर का दरवाजा खुला और एक आदमी बाहर आया. वो मुझे भीतर ले गया. मेरे साथ आया वो आदमी बाहर ही रह गया.



“ बॉस डिन्नर ले रहे हैं. आपको भी इन्वाइट किया है. खाना ख़तम होने तक कोई आवाज़ मत करना. और जो भी कहे सिर झुका कर सुन लेना. नही तो इस जंगल के जानवरों की आज दावत हो जाएगी. हड्डिया भी सारी मिल जाए तो गनीमत है. ” उसने मुझे हिदायत दी और मुझे लेकर एक कमरे मे प्रवेश किया. सामने एक डाइनिंग टेबल लगी थी उसके सिरहाने वाली कुर्सी पर एक आदमी सरीखा कोई बैठा था.



उसको आदमी सरीखा ही कहना बेहतर होगा. तंगराजन छह फीट 4” कद का काफ़ी बलिशट आदमी था. उसका वजन 130 किलो से क्या कम रहा होगा. रंगत एक दम काले काजल की तरह कहने से भी कोई ग़लत नही होगा. पूरे जिस्म पर भालू की तरह लंबे लंबे बाल सिर पर घुंघराले बाल और चेहरे पर एक घनी मूछ किसी डाकू की तरह लगता था.

उसने नंगे बदन पर एक तहमद बाँध रखी थी. मुझे अपने सामने वाली सीट की ओर इशारा किया.



मैने झुक कर उसका अभिवादन किया जिसका उसने कोई जवाब नही दिया. मैं कुर्सी पर बैठ गयी. सामने केले के पत्ते पर चावल और दाल परोसा गया. तंगराजन भी वही खा रहा था. हम चुपचाप खाना खाने लगे. खाना ख़त्म होने पर तंगराजन उठा और मुझे पहले हाथ मुँह धोने का इशारा किया. जब हम दोनो हाथ मुँह धो लिए तो वो बिना कुच्छ कहे उस कमरे से निकल गया. मैं कुच्छ देर तक चुप चाप खड़ी रही. तभी जो आदमी हमे खाना परोस रहा था उसने मुझे उस दरवाजे की तरफ इशारा किया.



“जाओ अंदर….पो…रा..” उसने मुझे तंगराजन के पीछे जाने को कहा. मैं घबराती शरमाती कमरे मे घुसी. मैने देखा तंगराजन उस वक़्त कुच्छ पढ़ने मे व्यस्त था. मुझे देखते ही उसने उस किताब को एक ओर रख दिया.



“कम इन.” मैने पहली बार उसकी आवाज़ सुनी. ऐसा लगा मानो जंगल मे कोई शेर दहाड़ रहा हो. मैने आँखें उठाकर उसकी लाल लाल आँखों मे देखा. ऐसा लगता था मानो आँखों मे खून उतर आया हो. दोस्तो कहानी अभी बाकी है आपका दोस्त राज शर्मा 
क्रमशः....
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