RE: Hindi Porn Story मीनू (एक लघु-कथा)
आदर्श को समझ आया कि चोली को खोलने के लिए पीछे देखना पड़ेगा – पीठ की तरफ उसको खोलने के लिए हुक थे, और उनको खोलना परिश्रम वाला काम था। खैर, अधीर और कांपते हाथों से उसने जल्दी ही सारे हुक अलग कर दिए, और उस वस्त्र को मीनू के शरीर से अलग कर दिया। अचानक ही मीनू को एक नग्न अनुभूति होने लगी – भले ही उसने अभी भी समुचित कपडे पहन रखे थे। लेकिन आदर्श को निराशा ही हाथ लगी, क्योंकि उसका पुरस्कार तो अभी भी छुपा हुआ था।
‘ये क्या बला है!’ उसको समझ ही नहीं आया कि इस नए तरह के वस्त्र का क्या करना है!
लेकिन वो था बहुत रोचक – लक्ष्मी देवी ने मीनू को यह कह कर पहना दिया था कि यह मीनू की माप का था, लेकिन ऐसा था नहीं। दरअसल वो ब्रा कुछ छोटी थी, जिसके दबाव से उसका वक्ष-विदरण उठ कर सामने आ गया था।
‘क्या बात है..!’ आदर्श के मन में अनायास ही प्रसंशा छूटी।
आदर्श को यूँ संभ्रमित होते हुए देख कर मीनू ने ही उसकी मदद करी।
“ये.. सामने से..” फुसफुसाती हुई आवाज़ में उसने मार्ग दर्शाया – उसको अपनी ही कही हुई बात पर शर्म आ गई। वो दरअसल आदर्श को बता रही थी कि उसको निर्वस्त्र कैसे किया जाय..
आदर्श को बात समझ में आ गई। उसने ध्यान से देखा, तो सामने की तरफ हुक दिखाई दिए, जिनको खोलते ही दुनिया के सबसे परिपूर्ण, दोषरहित, सुन्दर और गोल स्तन उसके दर्शन के लिए निरावृत हो गए। आदर्श ने पूरी तसल्ली से मीनू के ऊर्ध्व भाग को निर्वस्त्र किया और थोड़ा पीछे हट कर मीनू को दृष्टि भर कर देखा। मीनू की शारीरिक गढ़न के लिए उसके स्तन बिलकुल ही उत्तम थे और अत्यंत आकर्षक थे। उसकी स्तनों की गोलाइयों का रंग साफ़ था, और चूचकों और उनके गिर्द गोल घेरों का रंग गहरा लाल गुलाबी था। मीनू के चूचक उत्तेजनावश खड़े हो गए थे। ऐसा लग रहा था कि कुछ देर ऐसे ही रहेंगे तो फट पड़ेंगे!
‘ये तो एकदम शहतूत के फलों जैसे हैं.. वो लाल शहतूत...!’ उनको देख कर आदर्श को सबसे पहला यही ख़याल आया।
आदर्श को अपने स्तनों को ऐसे अरमान और लालसा भरी दृष्टि से देखते हुए देख कर मीनू का दिल पसीज गया। उसका मन हुआ कि वो आदर्श को अपने सीने में भींच ले। लेकिन वो कुछ कर न सकी। बस, नज़रें झुकाए अपने पति की लोभी आँखों का स्पर्श अपने चूचकों पर महसूस करती रही। उसको आज पहली बार अपनी योनि से कुछ रिसता हुआ सा महसूस हुआ। आदर्श के चुस्त पाजामे के भीतर से अंगड़ाई लेता हुआ उसका छुन्नू मीनू देख पा रही थी.. आखिरकार एक बड़ा सा तम्बू जो बना हुआ था वहां पर!
“खड़ी हो..” आदर्श ने आज्ञा दी। मीनू ने तुरंत उसका पालन किया।
पलंग पर बैठे हुए ही आदर्श ने उसकी कमर से पकड़ कर अपनी ओर खींचा, और फर एक एक कर के उसके सारे वस्त्र उतारने शुरू कर दिए। मीनू ने चड्ढी नहीं पहनी थी क्योंकि उनमें वो अत्यंत असहज महसूस कर रही थी। बस कुछ ही क्षणों में मीनू नितांत नग्न आदर्श के सामने खड़ी थी। उसके शरीर पर जेवरात छोड़ कर अब कुछ भी नहीं बचा था।
वो वैसी ही, अनाड़ी की भांति नग्न खड़ी थी। उत्तेजना, शर्म, और घबराहट से उसकी हालत खराब थी। उधर आदर्श की भी कोई अच्छी हालत नहीं थी। अपनी पत्नी के इस दिव्या रूप को देख कर वो विस्मय और आदर से भर गया था – कितनी कम उम्र लग रही थी मीनू! बहुत ही कम! खुद उसकी उम्र के जितनी! गुड़िया जैसी! बहुत बहुत सुन्दर! बेहद सुन्दर!
बिना मीनू के चेहरे से दृष्टि हटाए, उसने पुनः उसको कमर से पकड़ कर अपनी ओर समेटा, और अपने आलिंगन में फिर से बाँध लिया।
‘कितना चिकना शरीर!’ मीनू के नितम्बों पर हाथ फिराते हुए उसने महसूस किया!
मीनू के चूचक इतने करीब देख कर उसको सहज ही उनको पीने की इच्छा जाग गई – वो जानता था, कि इनमें दूध तो नहीं है अभी.. लेकिन फिर भी ऐसे सुन्दर स्तनों को बिना चखे कैसे रहा जाय?
मीनू की जैसे तो मन मांगी मुराद पूरी हो गए जब आदर्श ने उसके चूचकों को बारी बारी से पीना शुरू कर दिया। बिलकुल किसी भोले बच्चे के समान। वहां तक तो सब ठीक था, लेकिन इस पूरी क्रिया का मीनू पर अजीब सा प्रभाव हो रहा था। उसका पूरा शरीर कांप रहा था और उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था। उसके पैर पके हुए मांड के जैसे हो गए थे – लिजलिजे.. नहीं लिजलिजे नहीं, डांवाडोल!
‘यहाँ मुझसे खड़ा ही नहीं हुआ जा रहा है, वो ये मेरे भोले सजन, मुझे छोड़ ही नहीं रहे हैं!’
फिर एक समय आया जब उसका पूरा शरीर बुरी तरह से कांपने लगा, इतनी तेज कि आदर्श ने भी महसूस किया। उसके स्तन पीना छोड़ कर वो प्रश्नवाचक दृष्टि से मीनू को देखने लगा। मीनू आँखें बंद किये, सर पीछे ढलकाए, और मुँह से साँस लेती हुई किसी और ही दुनिया में प्रतीत हो रही थी। आदर्श को नहीं मालूम पड़ा, लेकिन मीनू को पता चला कि उसकी योनि से एक प्रबल स्राव हुआ है! लेकिन क्या स्राव हुआ है, वो समझ नहीं आया उसको। उसको लगा कि शायद पेशाब हुई है। उसको शर्म आई! उसका पति क्या सोचेगा! वो तो गनीमत है कि इतना कम हुआ! लेकिन इस पेशाब का अनुभव कितना भिन्न था... कितना.. आनंददायक! ऐसा आनंद, जैसा कभी नहीं महसूस हुआ!
आदर्श ने मीनू को पलंग पर लिटा दिया।
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